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लोकतंत्र पर पहली बार शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया

9-10 दिसम्बर को प्रथम लोकतंत्र शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था. यह सम्मेलन अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की पहल पर आयोजित किया गया था. वर्चुअल रूप से आयोजित इस सम्‍मेलन में शासनाध्‍यक्षों, नागरिक संगठनों और निजी क्षेत्र से संबंधित हस्‍तियों ने हिस्‍सा लिया. सम्‍मेलन में भारत सहित 12 चुने हुए देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया.

सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने लोकतांत्रिक तौर-तरीकों और संबंधित व्‍यवस्‍था को और बेहतर बनाने की जरूरत पर बल दिया. उन्‍होंने कहा कि इसमें समावेश, पारदर्शिता और मानवीय गौरव को और बढ़ाए जाने की जरूरत है.

21वां भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक, भारत-रूस ‘टू-प्‍लस-टू’ संवाद

रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने 6 दिसम्‍बर को आधिकारिक यात्रा की थी. इस यात्रा के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के साथ 21वें भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लिया था. बैठक दिल्ली के हैदराबाद हाउस में आयोजित किया गया था. बैठक में दोनों नेता द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की और रणनीतिक भागीदारी और मजबूत करने के उपायों पर विचार-विमर्श किया. उनकी यात्रा के दौरान, भारत और रूस ने 28 समझौतों पर हस्ताक्षर किए. उनमें से कुछ अर्ध-गोपनीय थे.

  • पिछली भारत-रूस शिखर बैठक सितम्‍बर 2019 में रूस में हुई थी. 2020 में कोविड महामारी के कारण बैठक नहीं हो सकी थी. नवम्बर 2019 में ब्राजिलिया में ब्रिक्‍स शिखर सम्‍मेलन के अवसर पर मुलाकात के बाद यह दोनों नेताओं की पहली बैठक थी.
  • इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बीते कुछ दशकों में दुनिया ने बहुत से भूराजनीतिक परिवर्तन देखे हैं, लेकिन भारत और रूस की दोस्ती जस की तस रही है. इस दौरान व्लादिमीर पुतिन ने भी भारत को भरोसेमंद दोस्त करार दिया. पुतिन ने कहा कि हम भारत को एक महान ताकत, मित्र देश और भरोसेमंद साथी के तौर पर देखते हैं.
  • रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि फिलहाल दोनों देशों के बीच करीब 38 अरब डॉलर का कारोबार है. इसके अलावा हम सैन्य और तकनीक के क्षेत्र में भी बड़ी साझेदारी रखते हैं. इस मीटिंग में पुतिन ने आतंकवाद के खिलाफ जंग में भी भारत का साथ देने की बात कही.

भारत-रूस ‘टू-प्‍लस-टू’ संवाद, AK-203 राइफलों का निर्माण समझौता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन की मुलाकात से पहले भारत और रूस के बीच पहला ‘टू-प्‍लस-टू’ संवाद आयोजित किया गया था. इस संवाद में भारत का प्रतिनिधित्‍व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री डॉक्‍टर एस. जयशंकर ने किया था. इसमें रूस की ओर से विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और रक्षा मंत्री सर्गेई सोइग्‍यू ने भाग लिया.

इस दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रूसी रक्षा मंत्री से मुलाकात के दौरान 5,000 करोड़ रुपये के राइफल निर्माण परियोजना समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस परियोजना के तहत रूस के सहयोग से 5 लाख से ज्यादा AK-203 राइफलों का निर्माण के अमेठी में किया जाना है. इस दौरान दोनों देशों के बीच अगले 10 साल तक के लिए रक्षा करार भी हुआ.

भारत, चीन और रूस यानी रिक देशों की 18वीं बैठक आयोजित की गयी

भारत, चीन और रूस यानी रिक देशों की 18वीं बैठक 26 नवम्बर को वीडियो कांफ्रेंस के माध्‍यम से आयोजित की गयी थी. बैठक में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया था. भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री डॉ जयशंकर ने किया था. इससे पहले इन देशों की बैठक ओसाका में जून 2019 में हुई थी.

रिक देशों की 18वीं बैठक: मुख्य बिंदु

  • तीनों देशों के विदेश मंत्रियों ने विश्‍व व्‍यापार संगठन (WTO) की पारदर्शी, समावेशी और भेदभाव मुक्‍त बहुपक्षीय व्‍यापार प्रणाली को सहयोग देने का आश्‍वासन दिया.
  • बैठक के बाद संयुक्‍त वक्‍तव्‍य में नेताओं ने संगठन में आवश्‍यक सुधारों को समर्थन देने पर सहमति व्‍यक्‍त की. इन देशों ने अपीलीय संस्‍था के सदस्‍यों की तेजी से नियुक्ति पर भी जोर दिया.
  • विदेश मंत्रियों ने आतंकवाद के सभी प्रारूपों की कड़े शब्‍दों में निंदा की. उन्‍होंने अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय से संयुक्‍त राष्‍ट्र के नेतृत्‍व में आतंक के विरूद्ध वैश्विक सहयोग को मजबूत करने का आह्वान किया.
  • विदेश मंत्रियों ने रूस, भारत और चीन के बीच त्रिपक्षीय सहयोग बढ़ाने के बारे में विचार रखे. कोविड-19 से लड़ाई में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन, सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, व्‍यापारियों और उद्योगों के सामूहिक प्रयासों के मुद्दे पर भी बैठक में चर्चा की गई.

13वां एशिया-यूरोप शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया

13वां एशिया-यूरोप शिखर सम्मेलन (ASEM) 25-26 नवम्बर तक वर्चुअल माध्‍यम से आयोजित किया गया था. इस सम्मेलन का विषय – ‘साझा विकास के लिए बहुपक्षवाद को सुदृढ़ बनाना’ था. यह शिखर सम्मेलन एशिया यूरोप बैठक की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया गया था. शिखर सम्मेलन में कई राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने भाग लिया

सम्‍मेलन की मेजबानी बैठक के अध्यक्ष के रूप में कंबोडिया ने किया था. शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने किया था.

इस सम्मेलन में बहुपक्षवाद के सुदृढ़ीकरण, कोविड महामारी के बाद सामाजिक-आर्थिक सुधार तथा अन्य क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर मुख्य रूप से चर्चा की गयी.

एशिया-यूरोप बैठक (ASEM): एक दृष्टि

  • एशिया-यूरोप बैठक (Asia–Europe Meeting – ASEM) एक एशियाई-यूरोपीय राजनीतिक संवाद मंच है. यह अपने भागीदारों के बीच संबंधों और सहयोग के कई रूपों को बढ़ाने के लिए काम करता है. पहला एशिया-यूरोप बैठक 1 मार्च, 1996 को बैंकॉक में हुई थी.
  • इस सम्मेलन में एशिया-यूरोप समूह में 51 सदस्य देश और 2 क्षेत्रीय संगठन – यूरोपीय संघ और आसियान शामिल हैं.
  • ASEM शिखर सम्मेलन में अर्थशास्त्र, राजनीति, वित्त, शिक्षा, सामाजिक और संस्कृति के क्षेत्र में पारस्परिक हित के मुद्दों पर एशिया और यूरोप के बीच संवाद आयोजित किया जाता है.

जी-4 संगठन के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक न्‍यूयॉर्क में आयोजित की गयी

जी-4 संगठन के सदस्य देशों (भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान) के विदेश मंत्रियों की बैठक 22 सितम्बर को न्‍यूयॉर्क में आयोजित की गयी थी. इस बैठक में भारत के एस जयशंकर, ब्राजील के कार्लोस एलबर्टो फ्रैंको रांका, जर्मनी के हेको मास और जापान के तोशीमित्‍शू मोटेगी ने हिस्सा लिया था. जी-4 के मंत्रियों ने विस्‍तारित सुरक्षा परिषद में स्‍थायी सदस्‍यता के लिए एक-दूसरे की दावेदारी के प्रति समर्थन दोहराया.

बैठक के मुख्य बिंदु

  • इस बैठक में सदस्य देशों ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) को अधिक विधि सम्मत, प्रभावी और प्रतिनिधिक बनाने के लिए तत्‍काल सुधार की जरूरत पर जोर दिया.
  • इन मंत्रियों ने बैठक के बाद जारी संयुक्‍त वक्‍तव्‍य में कहा कि सुरक्षा परिषद में सुधारों को अब रोका नहीं जा सकता.
  • सुरक्षा परिषद को उभरती जटिलताओं तथा अंतरराष्‍ट्रीय शांति और सुरक्षा के समक्ष आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए स्‍थायी और अस्‍थायी सदस्‍यों की संख्‍या बढ़ानी होगी, तभी परिषद अपने कर्तव्‍यों का प्रभावी ढंग से निर्वाह कर सकेगी.

जी-4 क्या है?

भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील ने मिलकर जी-4 (G4) नामक समूह बनाया है. ये देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यता के लिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं.

SCO के राष्‍ट्राध्‍यक्षों के परिषद की 21वीं बैठक दुशांबे में आयोजित की गयी

शंघाई सहयोग संगठन (SCO)  के राष्‍ट्राध्‍यक्षों के परिषद की 21वीं बैठक 17 सितम्बर को ताजिकिस्‍तान की राजधानी दुशांबे में आयोजित की गयी थी. इस सम्मलेन की अध्यक्षता ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान ने की थी.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस शिखर सम्मेलन के पूर्ण सत्र को वर्चुअल माध्‍यम से संबोधित किया था. इस बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्‍व ताजिकिस्‍तान की यात्रा पर गये विदेश मंत्री जयशंकर ने किया था.

इस सम्मेलन में, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के सामयिक मुद्दों और पिछले दो दशकों की उपलब्धियों और भविष्य में सदस्‍य देशों के बीच सहयोग बढाने की संभावनाओं पर चर्चा हुई.

ईरान SCO का नया सदस्य बना

इस बैठक में ईरान को SCO के नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया है. इसके साथ ही सऊदी अरब, मिस्र और कतर को संवाद भागीदार बनाया गया है. अब SCO के सदस्य देशों की संख्या 9 हो गई है.

क्या है SCO?

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना है. SCO को बनाने की घोषणा 15 जून, 2001 को हुई थी. शुरूआत में इसमें छह देश शामिल थे- किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, रूस, चीन, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान. वर्ष 2017 में भारत और पाकिस्तान के शामिल होने के बाद इसके सदस्यों की संख्या आठ हो गई थी.

16वां भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया

16वां भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन 8 मई को वर्चुअल बैठक आयोजित की गयी थी. यह बैठक पुर्तगाल के पोरतो में यूरोपीय परिषद की शिखर बैठक के इतर आयोजित की गयी थी. बैठक में यूरोपीय संघ के सभी 27 सदस्‍य देशों के नेता, यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन (जर्मनी) और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल (बेल्जियम) ने हिस्स्सा लिया.

इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने किया. प्रधानमंत्री मोदी को इस बैठक में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था. बैठक का आयोजन पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्‍टा की पहल पर किया गया था. पुर्तगाल यूरोपीय संघ का वर्तमान अध्‍यक्ष देश है.

16वां भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन: मुख्य बिंदु

  • पहली बार प्रधानमंत्री ने यूरोपीय संघ+27 के प्रारूप में नेताओं के साथ बैठक की. बैठक के दौरान नेताओं ने लोकतांत्रिक, मौलिक स्वतंत्रता, कानून सम्मत नियम और बहुपक्षवाद पर आधारित भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की.
  • प्रतिभागियों ने विदेश नीति और सुरक्षा, कोविड-19, जलवायु और पर्यावरण तथा व्यापार संपर्क और प्रौद्योगिकी विषयों पर विचार-विमर्श किया.
  • भारत और यूरोपीय संघ ने ‘संतुलित और व्यापक मुक्त व्यापार’ (FTA) तथा ‘निवेश समझौतो’ पर आठ वर्ष बाद बातचीत फिर शुरू करने के निर्णय का स्वागत किया. इन दोनों समझौतों को जल्द से जल्द अंतिम रूप दिये जाने के लिए बातचीत जारी रखी जाएगी.
  • नेताओं ने 15वें भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के दौरान तय किये गये ‘भारत यूरोपीय संघ कार्ययोजना 2025’ को जल्‍दी लागू करने पर सहमति व्‍यक्त की.
  • बैठक में शामिल नेताओं ने महत्वाकांक्षी और व्यापक ‘संपर्क साझेदारी’ का शुभारंभ किया जिससे डिजिटल, ऊर्जा, परिवहन और लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा मिलेगा. यह साझेदारी सामाजिक, आर्थिक, वित्तीय और पर्यावरणीय सुरक्षा तथा अंतरराष्ट्रीय कानूनों और प्रतिबद्धताओँ के सम्मान पर आधारित है. इससे हिन्द-प्रशांत क्षेत्र सहित विकासशील देशों में संपर्क पहल तेज करने में मदद मिलेगी.
  • इस दौरान भारत के वित्त-मंत्रालय और यूरोपियन निवेश बैंक द्वारा पुणे मेट्रो रेल परियोजना के लिए 15 करोड़ यूरो के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गये.

भारत-यूरोपीय संघ व्यापर

यूरोपीय संघ, भारत के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण समूह है. यह 2018 में भारत का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी रहा है. यूरोपीय संघ के साथ भारत का द्विपक्षीय कारोबार वर्ष 2018-19 में 115.6 अरब डालर था. जिसमें निर्यात 57.17 अरब डॉलर और आयात 58.42 अरब डॉलर रहा.

जलवायु पर विश्‍व नेताओं का शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया

जलवायु पर हाल ही में विश्‍व नेताओं का एक शिखर सम्मेलन (लीडर्स समिट) आयोजित किया गया था. सम्मेलन का आयोजन अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की पहल पर पृथ्वी दिवस के दिन 22 और 23 अप्रैल को वर्चुअल माध्‍यम से किया गया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित विश्व के 40 देशों के प्रतिनिधियों ने इस सम्मलेन में हिस्सा लिया था. प्रधानमंत्री को इस शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने आमंत्रित किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मलेन के ‘अवर क्‍लेक्‍टिव स्प्रिंट 2030’ सत्र में अपने विचार रखे.

सम्‍मेलन के मुख्य बिंदु

  • सम्‍मेलन में जलवायु परिवर्तन के समाधान, जलवायु सुरक्षा के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा के तकनीकी नवाचारों के लिए धन जुटाने पर विचार-विमर्श किया गया.
  • सम्मलेन के दौरान भारत ने अमेरिका ने साझेदारी के तहत 2030 तक 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा पर काम करने की बात कही.
  • इस शिखर सम्मेलन के दौरान, अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दशक के अंत (2030) तक अमेरिका में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को आधा करने का संकल्प लिया.
  • अमेरिकी राष्ट्रपति ने 2 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर के बुनियादी ढांचे के पैकेज का अनावरण किया. इस पैकेज में जलवायु अनुकूल नीतियों, इलेक्ट्रिक ग्रिड में निवेश, स्वच्छ ऊर्जा के लिए विकास निधि के कई तत्व शामिल थे.
  • इस शिखर सम्मेलन के दौरान, 101 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने ‘जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि’ (Fossil Fuel Non-Proliferation Treaty) पर हस्ताक्षर करने के लिए आवाहन किया.
  • अमेरिका ने विकासशील देशों के लिए अपने सार्वजनिक जलवायु वित्तपोषण को दोगुना करने और इसे 2024 तक तीन गुना करने की घोषणा की.
  • ब्रिटेन ने 1990 के स्तरों की तुलना में 2035 तक 78% उत्सर्जन कम करने की बात कही. जर्मनी ने कहा कि वह 1990 के स्तर की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन में 55% की कमी लाने की राह पर है.

क्वाड देशों के नेताओं का पहला शिखर सम्मेलन

क्वाड देशों – भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमरीका के नेताओं का पहला शिखर सम्मेलन 12 मार्च को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित किया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा और अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस शिखर सम्मेलन की पहली बैठक में हिस्सा लिया.

सम्‍मेलन में नेतागण साझा हित के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की और एक स्‍वतंत्र, खुले और समावेशी भारत-प्रशांत क्षेत्र को बनाये रखने की दिशा में सहयोग के व्‍यावहारिक क्षेत्रों पर विचारों पर आदान-प्रदान किया.

बैठक में इन देशों के शीर्ष नेतृत्‍व की ओर से भारत-प्रशान्‍त क्षेत्र में सुरक्षित सामान और सस्‍ता टीका उपलब्‍ध कराने में सहयोग के लिये और कोविड-19 महामारी से निपटने के लिये की जा रही कोशिशों पर भी चर्चा हुई.

‘क्वाड’ क्या है?

  • ‘क्वाड’ (QUAD) का पूरा नाम Quadrilateral Security Dialogue (QSD) है. यह ‘भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान’ का चतुष्कोणीय गठबंधन है. यह चीन के साथ भू-रणनीतिक चिंताओं के मद्देनजर गठित की गयी है.
  • जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा भारत के परामर्श से 2007 में ‘क्वाड’ की शुरुआत की थी. 2008 में ऑस्ट्रेलिया द्वारा इस ग्रुप से बाहर आने के कारण यह संगठन शिथिल पड़ गया था, लेकिन बाद में वह पुन: इस वार्ता में शामिल हो गया.
  • 2017 में, इस अनौपचारिक समूह को पुनर्जीवित किया गया ताकि एशिया में चीन के आक्रामक उदय को संतुलित किया जा सके.
  • क्‍वाड संगठन का उद्देश्‍य इस क्षेत्र में वैध और महत्‍वपूर्ण हित रखने वाले सभी देशों की सुरक्षा और उनके आर्थिक सरोकारों का ध्‍यान रखना है.

क्‍वाड संगठन के विदेश मंत्रियों की तीसरी बैठक

चार देशों के समूह- क्‍वाड के विदेश मंत्रियों की बैठक 18 फरवरी को वर्चुअल माध्यम से आयोजित की गयी. यह इस समूह की तीसरी मंत्रिस्‍तरीय बैठक थी. पहली बैठक 2019 में और दूसरी बैठक अक्टूबर 2020 में आयोजित की गयी थी.

इस बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री मारिज पायने और जापानी विदेश मंत्री तोशिमित्सु मोतेगी ने हिस्सा लिया.

बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को मुक्‍त और समावेशी बनाये रखने की दिशा में सहयोग सहित क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक में वैश्विक जलवायु परिवर्तन और आपसी हित के अन्‍य मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया गया।

बैठक में कोविड महामारी के बाद अन्तर्राष्ट्रीय व्‍यवस्‍था और चुनौतियों से निपटने के समन्वित प्रयासों पर विचार-विमर्श किया गया. क्षेत्रीय मुद्दों तथा मुक्‍त और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्‍व पर भी चर्चा हुई.

क्वाड क्या है?

क्वाड का पूरा नाम Quadrilateral Security Dialogue (QSD) है. इस संगठन में अमरीका, जापान, ऑस्‍ट्रेलिया और भारत इसमें शामिल हैं. क्‍वाड संगठन का उद्देश्‍य इस क्षेत्र में वैध और महत्‍वपूर्ण हित रखने वाले सभी देशों की सुरक्षा और उनके आर्थिक सरोकारों का ध्‍यान रखना है.

भारत को 46वें G-7 शिखर सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण, जानिए क्या है G-7

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भारत को 2021 में होने वाले 46वें G-7 शिखर सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण दिया है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस सिलसिले में एक पत्र लिखा है. भारत की यात्रा पर आये ब्रिटेन के विदेश मंत्री डोमनिक राब ने श्री मोदी से मुलाकात कर उन्हें यह पत्र सौंपा. प्रधानमंत्री ने निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है.

G-7 का विस्तार कर D-10 किये जाने का प्रस्ताव

इस वर्ष G-7 का विस्तार भी होने वाला है, जिसमें 10 लोकतांत्रिक देश शामिल होंगे और इसका नाम D-10 कर दिया जाएगा. D-10 दस लोकतांत्रिक देशों को दर्शाता है.

2021 में होने वाले 46वें G-7 शिखर सम्मेलन की मेजवानी ब्रिटेन कर रहा है. ब्रिटेन ने भारत, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया को G-7 राष्ट्रों के साथ शामिल करने का प्रस्ताव दिया है. इससे पहले अमेरिका ने भारत, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के साथ रूस को भी शामिल करने का प्रस्ताव दिया था.

G-7 क्या है?

G-7 दुनिया की सात सबसे विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है. इसके सदस्य देशों में अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान शामिल हैं. चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवथा है, फिर भी वो इस समूह का हिस्सा नहीं है. इसकी वजह यहां प्रति व्यक्ति आय संपत्ति जी-7 समूह देशों के मुक़ाबले बहुत कम है.

शुरुआत में यह छह देशों का समूह था, जिसकी पहली बैठक 1975 में हुई थी. बाद में कनाडा इस समूह में शामिल हो गया और इस तरह यह G-7 बन गया. 1998 में G-7 में रूस भी शामिल हो गया था और यह जी-7 से जी-8 बन गया था. लेकिन साल 2014 में यूक्रेन से क्रीमिया हड़प लेने के बाद रूस को समूह से निलंबित कर दिया गया.

जेनेवा में अफगानिस्तान सम्मेलन 2020 आयोजित किया गया

जेनेवा में 23 से 24 नवंबर तक अफगानिस्तान सम्मेलन 2020 आयोजित किया गया था. सम्मेलन की सह-मेजबानी संयुक्त राष्ट्र (UN), इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान की सरकार और फिनलैंड की सरकार ने की थी.

अफगानिस्तान सम्मेलन का उद्देश्य परिवर्तनकारी दशक 2015-2024 के दूसरे भाग के दौरान अफगानिस्तान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिबद्धता की पुन: पुष्टि करना है.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विडियो कांफ्रेंसिंग माध्यम से इस सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था. भारत-अफगान संबंधों को और मजबूत करने के लिए एक और कदम आगे बढ़ाते हुए भारत सरकार ने अफगानिस्तान में एक नया बांध बनाने की घोषणा की है. यह बांध काबुल के लाखों लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया कराएगा.

सम्मेलन में विदेश मंत्री जयशंकर ने अफगानिस्तान में उच्च प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजनाओं के चौथे चरण के शुभारंभ की भी घोषणा की. इन परियोजनाओं में आठ करोड़ अमेरिकी डॉलर की 100 से अधिक परियोजनाओं की परिकल्पना की गई है.