Tag Archive for: science and tech

इंडिया मोबाइल कांग्रेस का आयोजन, भारत में 5जी मोबाइल सेवाओं की शुरूआत

भारत में 1 अक्तूबर 2022 को 5जी मोबाइल सेवाओं की शुरूआत हुई थी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में आयोजित छठे इंडिया मोबाइल कांग्रेस (IMC) में इसकी शुरुआत की थी.

छठे IMC का आयोजन 1 से 4 अक्तूबर तक प्रगति मैदान में किया गया था. एशिया की इस सबसे बड़ी तकनीकी प्रदर्शनी का आयोजन दूरसंचार विभाग और सेल्‍यूलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) संयुक्त रूप से किया था.

5G तकनीक: एक दृष्टि

  • 5G का पूरा नाम 5th generation है. यह 5वीं पीढ़ी का मोबाइल नेटवर्क है जो 4G नेटवर्क की तुलना में 10 गुना तेज इंटरनेट स्पीड प्रदान करता है. यह अधिकतम स्पीड 20 Gbps है.
  • 5G से अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि समेत अधिकतर क्षेत्रों पर इसका काफी व्यापक प्रभाव पड़ेगा. एक अनुमान के मुताबिक 5जी सेवा भारतीय अर्थव्यवस्था में अगले 15 वर्षों में 450 बिलियन डॉलर का योगदान करेगी.
  • 5जी की शुरूआत से भारत फिन्टेक में एक अग्रणी देश बनकर सामने आएगा. UPI और रुपे जैसी तकनीकों का तेजी से देश और दुनिया में फैलाव संभव हो सकेगा.
  • सरकार ने देशभर में 5जी प्रौद्योगिकी के लिए सौ प्रयोगशालाएं स्थापित करने की योजना बनाई है. इनमें कम से कम 12 प्रयोगशालाओं में विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा.
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नासा ने मंगल ग्रह पर जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण नमूनों को एकत्रित किया

हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के पर्सवेरेंस रोवर (Perseverance Rover) ने मंगल ग्रह (Mars) पर जीवन के संकेतों से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण नमूनों को एकत्रित किया है.

मुख्य बिन्दु

  • रिपोर्ट से पता चला है कि ग्रह पर कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति है. माइक्रोबियल जीवन के नमूने खोजे जाने से पता चला है कि 3.5 अरब साल पहले यहां झील और उसमें एक डेल्टा भी था.
  • नासा के रोवर ने चार नमूने एकत्र किए हैं जिनमें एक प्राचीन नदी डेल्टा के संभावित सबूत हैं, जो एक जैविक समृद्ध नमूने हैं.
  • एक वर्ष के दौरान, रोवर ने ज्वालामुखी विस्फोट वाली झील से एक जैकपॉट की खोज की थी. रोवर ने एक अरब साल पुरानी चट्टान को ड्रिल किया, जिसमें रोवर ने कार्बनिक अणुओं की खोज की.
  • नासा का यह रोवर जुलाई 2020 में केप कैनावेरल, फ्लोरिडा से लॉन्च होने के बाद फरवरी 2021 में मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक उतरा था.
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वैज्ञानिकों ने की चांद की मिट्टी में पहली बार पौधे उगने में सफलता पाई

वैज्ञानिकों ने की चांद से लायी गयी मिट्टी में पहली बार पौधे उगने में सफलता पाई है. चांद से मिट्टी के ये नमूने 1969 और 1972 में नासा के मिशनों के दौरान इकट्ठे किए गए थे, जिन पर वैज्ञानिकों ने पौधे उगाए हैं.

मुख्य बिंदु

  • धरती के पौधों का दूसरी दुनिया की मिट्टी में उग पाना मानवता के लिए बहुत बड़ी सफलता है. इससे संभावना पैदा होती है कि धरती पर पनपने वाले पौधों को दूसरे ग्रहों पर भी उगाया जा सकता है.
  • नासा ने इस प्रयोग के लिए केवल 12 ग्राम मिट्टी ही दी थी जो कि Apollo 11, Apollo 12 और Apollo 17 मिशन के दौरान इकट्ठा की गई थी.
  • वैज्ञानिकों ने 12 छोटे कंटेनरों में इस मिट्टी में अरबिडोप्सिस थालियाना (Arabidopsis thaliana)  नाम के एक कम फूल वाले खरपतवार के बीज डाले. कुछ दिनों बाद पौधे उग आए.
  • यह मिट्टी नुकीले कणों और ऑर्गेनिक मैटिरियल की कमी के चलते धरती की मिट्टी से बहुत अलग है, इसलिए वैज्ञानिकों को शंका थी कि शायद पौधे न उगें.
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अटल इनोवेशन मिशन को मार्च 2023 तक विस्तारित किया गया

केंद्र सरकार ने अटल इनोवेशन मिशन (AIM) को मार्च 2023 तक विस्तारित करने का निर्णय लिया है. यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 9 अप्रैल को लिया गया था.

मुख्य बिंदु

  • AIM देश में नवाचार संस्कृति (Innovation culture) और उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र (Entrepreneurial Ecosystem) बनाने के अपने लक्ष्य पर काम करेगा. यह AIM द्वारा अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से किया जाएगा.
  • AIM द्वारा हासिल किए जाने वाले लक्ष्यों में 10,000 अटल टिंकरिंग लैब्स, 101 अटल इनक्यूबेशन सेंटर तथा 50 अटल कम्युनिटी इनोवेशन सेंटर की स्थापना करना और अटल न्यू इंडिया चैलेंजेस के माध्यम से 200 स्टार्टअप्स का समर्थन करना शामिल है.
  • इसके लिए 2000 करोड़ रुपये से अधिक का कुल बजट निर्धारित किया गया है.

अटल इनोवेशन मिशन (AIM) क्या है?

अटल इनोवेशन मिशन को 2015 में नीति आयोग के तहत स्थापित किया गया था. इसका उद्देश्य स्कूल, विश्वविद्यालय, अनुसंधान संस्थानों, MSME और उद्योग स्तरों पर देश भर में नवाचार और उद्यमिता का एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है. AIM ने बुनियादी ढांचे के निर्माण और संस्था निर्माण दोनों पर ध्यान केंद्रित किया है.

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IIT रूड़की में स्वदेश निर्मित पेटास्‍केल सुपर कंप्‍यूटर ‘परम गंगा’ को इंस्‍टॉल किया गया

IIT रूड़की में स्वदेश निर्मित पेटास्‍केल सुपर कंप्‍यूटर ‘परम गंगा’ (PARAM Ganga) को स्थापित (इंस्‍टॉल) किया गया है. इसकी सुपरकंप्‍यूटिंग कैपिसिटी 1.66 PFLOPS (पेटा फ्लोट‍िंग-पॉइंट ऑपरेशंस प्रति सेकंड) है.

मुख्य बिंदु

  • इससे पहले इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (IISc) ने सुपर कंप्यूटर ‘परम प्रवेग’ (Param Pravega) को इंस्‍टॉल किया था. यह देश का सबसे पावरफुल सुपर कंप्‍यूटर है, जिसमें 3.3 पेटाफ्लॉप्स की सुपर कंप्यूटिंग कैपेसिटी है.
  • ‘परम गंगा’ को नेशनल सुपर कंप्‍यूटिंग मिशन (NSM) के तहत तैयार किया गया है. इसे सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्‍ड कंप्‍यूटिंग (CDAC) ने तैयार किया है. IIT रुड़की ने इसके लिए CDAC के साथ एक MoU साइन किए थे.
  • इस सुपर कंप्‍यूटर का मकसद IIT रूड़की और इसके आसपास के एजुकेशन इंस्टीट्यूट की यूजर कम्‍युनिटी को कंप्‍यूटनेशनल पावर देना है.
  • इसका उपयोग जीनोमिक्स और ड्रग डिस्कवरी, मौसम विज्ञान, जल विज्ञान, बाढ़ आने की चेतावनी और भविष्यवाणी, गैस ढूढ़ने में और भूकंपीय इमेजिंग में किया जायेगा.
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NMC ने डॉक्टरों को हिपोक्रेटिक शपथ की जगह ‘चरक शपथ’ दिलाये जाने का सुझाव दिया

भारत के शीर्ष चिकित्सा शिक्षा नियामक, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने डॉक्टरों को हिपोक्रेटिक शपथ की जगह ‘चरक शपथ’ दिलाये जाने का सुझाव दिया है. डॉक्टरों को यह शपथ पढ़ाई पूरी करने के बाद स्नातक समारोह के दौरान दिया जाता है.

चरक शपथ, आयुर्वेद विशारद महर्षि चरक की चिकित्सा को लेकर किताब ‘चरक संहिता’ पर आधारित होगी. यह शपथ दिलाये जाने का उद्देश्य भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना है.

अब तक की परंपरा के अनुसार मेडिकल में स्नातक की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद छात्रों को हिपोक्रेटिक शपथ दिलाई जाती रही है. इसमें भावी डॉक्टरों से मरीजों की सेवाभाव और उनकी जान बचाने की प्राथमिकता जैसे कई वादे लिए जाते थे.

हिपोक्रेटिक शपथ और चरक शपथ

  • अभी तक डॉक्टरों को प्राचीन यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट के सिद्धांतों की शपथ दिलाई जाती थी. NMC के अनुसार देश की चिकित्सा का समृद्ध इतिहास रहा है, यहां आचार्य चरक जैसे महान विशेषज्ञ रहे हैं तो फिर विदेशी सिद्धांतों को मानने की क्या आवश्यकता है.
  • हिपोक्रेटिक शपथ में अब तक भावी डॉक्टर्स से वादा लिया जाता रहा है कि वह बिना अपने पद का दुरुपयोग किए, मरीजों की सेवा करने को अपना धर्म मानेंगे. अपने साथी डॉक्टर्स का सम्मान करेंगे और हर मुश्किल में उनका साथ देंगे. शपथ की यह प्रक्रिया डॉक्टरों को उनके कर्तव्य और जिम्मेदारी के प्रति बाध्य करती है.
  • चरक-शपथ के मुताबिक- ”ना अपने लिए और ना ही दुनिया में मौजूद किसी वस्तु या फायदे को पाने के लिए, बल्कि सिर्फ इंसानियत की पीड़ा को खत्म करने के लिए मैं अपने मरीजों का इलाज करूंगा.”
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पहली बार मानव में सूअर के हृदय का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया गया

पहली बार मानव में सूअर के हृदय का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया गया है. यह प्रत्यारोपण अमेरिका के यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड मेडिकल स्कूल के शल्य चिकित्सक डॉ. बार्टले ग्रिफिथ ने की. इस प्रत्यारोपण में 57 साल के एक व्यक्ति में आनुवंशिक रूप से परिवर्तित एक सूअर का दिल प्रत्यारोपण किया गया.

अमेरिका के दवा नियामक (FDA) ने इस सर्जरी के लिए 31 दिसम्बर 2021 को मंजूरी दी थी. सूअर के दिल के प्रत्यारोपण की यह आपात मंजूरी 57 साल के पीड़ित व्यक्ति डेविड बेनेट की जान बचाने के लिए अंतिम उपाय के रूप में दी गयी थी.

इस प्रत्यारोपण से हृदय की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लाखों लोग के दिल के प्रत्यारोपण का नया रास्ता खुल गया है. यह शल्य चिकित्सा पशुओं के अंगों के इंसान में प्रत्यारोपण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी.

बेनेट का परंपरागत रूप से होने वाले हृदय प्रत्यारोपण नहीं हो सकता था, इसलिए अमेरिकी चिकित्सकों ने यह बड़ा फैसला लेकर सूअर का दिल प्रत्यारोपित कर दिया.

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विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने स्वदेशी कोविड रोधी टीके कोवैक्‍सीन को मंजूरी दी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वदेशी कोविड रोधी टीके को-वैक्सीन (Covaxin) के आपात उपयोग की अनुमति दी है. जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने को-वैक्‍सीन को WHO की मंजूरी दिए जाने पर  बल दिया था. उन्‍होंने कहा था कि भारत 2022 तक कोविड की 500 करोड़ वैक्सीन का उत्पादन करेगा.

को-वैक्सीन को भारत बायोटेक और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने मिलकर बनाया है. WHO ने को-वैक्सीन से पहले फाइजर-बायोएनटेक, एस्ट्राजेनेका/SII कोविशील्ड, जॉनसन एंड जॉनसन, मॉडर्ना और सिनोफार्म के कोविड रोधी टीकों को आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दी थी.

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प्रधानमंत्री ने भारतीय अंतरिक्ष संघ का शुभारंभ किया

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 11 अक्तूबर को ‘भारतीय अंतरिक्ष संघ’ (Indian Space Association – ISpA) का शुभारंभ किया था. ISpA अंतरिक्ष और उपग्रह कंपनियों का प्रमुख उद्योग संगठन है जो भारतीय अंतरिक्ष उद्योग का सामूहिक प्रतिनिधि होगा.

मुख्य बिंदु

भारतीय अंतरिक्ष संघ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना के अनुरूप देश को स्‍वालम्‍बी, प्रौद्योगिकी-सक्षम और प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति बनाने में सहयोग देगा.

ISpA के संस्थापक सदस्यों में नेल्को (टाटा समूह), भारती एयरटेल, लार्सन एंड टुब्रो, मैपमायइंडिया, वनवेब, वालचंदनगर इंडस्ट्रीज और अनंत टेक्नोलॉजी लिमिटेड शामिल हैं. मुख्य सदस्यों में BEL, गोदरेज, ह्यूजेस इंडिया, सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स, एज़िस्टा-BST एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड और मैक्सार इंडिया शामिल हैं.

ISpA के प्रथम अध्यक्ष जयंत पाटिल (एलएंडटी-एनएक्सटी रक्षा के वरिष्ठ कार्यकारी उपाध्यक्ष) होंगे.

ISpA क्या है?

ISpA देश में अंतरिक्ष और उपग्रह कंपनियों के लिए एक प्रमुख उद्योग निकाय के रूप में कार्य करेगा. यह भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने की दिशा में काम करेगा, जिसमें भारत में क्षमता निर्माण और अंतरिक्ष आर्थिक हब और इन्क्यूबेटरों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा.

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WHO ने विश्व की पहली मलेरिया वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी दी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मलेरिया के खिलाफ विश्व की पहली वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी दी है. इस वैक्सीन का नाम ‘RTS,S/AS01’ है. WHO ने यह निर्णय घाना, केन्या और मलावी में 2019 से चल रहे एक पायलट प्रोग्राम (प्रायोगिक कार्यक्रम) की समीक्षा के बाद लिया है. यहां वैक्सीन की 20 लाख से अधिक खुराक दी गई थीं, जिसे पहली बार 1987 में दवा कंपनी GSK द्वारा बनाया गया था.

मुख्य बिंदु

  • वायरस और बैक्टीरिया के खिलाफ कई टीके मौजूद हैं, लेकिन यह पहली बार है जब WHO ने मानव परजीवी के खिलाफ व्यापक उपयोग के लिए एक टीके की सिफारिश की है. यह टीका प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) के खिलाफ काम करता है, जो पांच परजीवी प्रजातियों में से एक और सबसे घातक है.
  • उप-सहारा अफ्रीका मलेरिया से सबसे अधिक प्रभावित है. मलेरिया से एक वर्ष में दुनियाभर में चार लाख से अधिक लोगों की मौत होती है, जिनमें ज्यादातर अफ्रीकी बच्चे शामिल हैं.
  • मलेरिया के लक्षणों में बुखार, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द, ठंड लगना, बुखार और पसीना आना शामिल हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर दो मिनट में एक बच्चे की मलेरिया से मौत होती है.
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कई अमेरिकी अधिकारी हवाना सिंड्रोम से पीड़ित, जानिए क्या है हवाना सिंड्रोम

हाल के दिनों में कई अमेरिकी अधिकारी हवाना सिंड्रोम से पीड़ित हुए हैं. अमेरिकी सीआईए डायरेक्टर बिल बर्न्स हाल में भारत के दौरे पर थे. इस दौरे पर बर्न्स की टीम के एक सदस्य में हवाना सिंड्रोम के लक्षण दिखाई दिए हैं.

क्या है हवाना सिंड्रोम?

2016 में अमेरिकी खुफिया के कई अधिकारी और राजनयिक क्यूबा की राजधानी हवाना में थे. इस दौरान कई कर्मचारियों को मिचली, तेज सिरदर्द, थकान, चक्कर आने की दिक्कतें आने लगी. कई कर्मचारी को नींद की समस्या भी दिखी. इस सबका लंबे वक्त तक असर रहा. इस रहस्यमय बीमारी से प्रभावित कर्मचारियों में से तो कुछ तो ठीक हो गए लेकिन कई लोगों के सामान्य काम-काज भी महीनों तक प्रभावित रहे. इसे हवाना सिंड्रोम कहा गया.

अमेरिका इस रहस्यमय बीमारी के बारे में जांच करता रहा है. 2020 में अमेरिकी नेशनल एकेडमिक्स ऑफ़ साइंसेज ने हवाना सिंड्रोम का संभावित कारण डायरेक्टेड माइक्रोवेव रेडिएशन को बताया था. हालांकि यह अब तक साफ नहीं हो सका है कि ये इंसान की जान ले सकते हैं या स्थायी नुकसान पहुंचा सकते हैं.

रूस, चीन, यूरोप सहित कई एशियाई देशों में तैनात अमेरिकी खुफिया अधिकारियों के साथ भी ऐसा हो चुका है. कुछ अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि इसके हवाना सिंड्रोम के पीछे रूसी खुफिया एजेंसी का हाथ है. हालांकि अमेरिकी सरकार ने इस सिंड्रोम को लेकर आधिकारिक तौर पर अभी तक किसी भी देश का नाम नहीं लिया है.

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देश के पहले ‘क्वांटम कंप्यूटर सिम्युलेटर टूलकिट’ लांच किया गया

भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने स्वदेश विकसित देश के पहले ‘क्वांटम कंप्यूटर सिम्युलेटर (QSim) टूलकिट’ लांच किया है. इसका विकास IIT रुड़की, IISC बंगलूरू और सी-डैक की साझा पहल से किया गया है.

QSim: मुख्य बिंदु

QSim (Quantum Computer Simulator) पहला स्वदेशी टूलकिट है. इससे प्रोग्रामिंग के व्यावहारिक पहलुओं को सीखने और समझने में मदद मिलेगी. इसे भारत में क्वांटम कंप्यूटिंग अनुसंधान के नए युग की शुरुआत माना जा रहा है. साथ ही शोधकर्ताओं और छात्रों को कम खर्च पर क्वांटम कंप्यूटिंग में बेहतर शोध करने का अवसर मिलेगा.

क्वांटम कंप्यूटिंग से क्रिप्टोग्राफी, कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री और मशीन लर्निंग जैसे क्षेत्रों में कंप्यूटिंग पावर में कई गुनी वृद्धि की संभावना है.

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