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टाइप 5 डायबिटीज़ को आधिकारिक तौर पर मान्यता मिली

  • टाइप 5 मधुमेह (डायबिटीज़) को रोग के एक अलग रूप के रूप में आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई है.
  • इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) की वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ डायबिटीज 2025 में टाइप 5 मधुमेह को पहली बयर नामित किया गया. यह सम्मेलन थाईलैंड के बैंकॉक में 7 से 10 अप्रैल 2025 तक आयोजित किया गया था.
  • कुपोषण से जुड़े मधुमेह को ‘टाइप-5 डायबिटीज’ के तौर पर नामित किया गया है. एक अनुमान के अनुसार कि दुनिया भर में 20-25 मिलियन लोग ‘टाइप-5 डायबिटीज’ से पीड़ित हैं. अधिकतर पीड़ित एशिया और अफ्रीका में हैं.
  • टाइप-5 डायबिटीज से पीड़ित लोग आमतौर पर कम वजन वाले होते हैं, उनके परिवार में डायबिटीज की कोई हिस्ट्री नहीं होती है और ऐसे लक्षण दिखते हैं जो टाइप-1 या टाइप-2 डायबिटीज से मेल नहीं खाते हैं.
  • ‘टाइप-5 डायबिटीज’ का का पहला मामला 1955 में जमैका में सामने आया था. उस समय, कुपोषण से संबंधित डायबिटीज को जे-टाइप डायबिटीज के रूप में परिभाषित किया गया था.
  • 1985 में, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने इसे अपने क्लासिफिकेशन में शामिल किया था, लेकिन सहायक साक्ष्य की कमी के कारण 1999 में इसे हटा दिया.
  • यह बीमारी टाइप-2 और टाइप-1 डायबिटीज से बिल्कुल अलग है. इस प्रकार की डायबिटीजवाले लोगों में इंसुलिन स्रावित करने की क्षमता में गहरा दोष होता है, जिसे पहले पहचाना नहीं गया था.

टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज

  • टाइप 1 डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर इंसुलिन नामक हार्मोन का उत्पादन करना बंद कर देता है. इंसुलिन रक्त में ग्लूकोज (चीनी) के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है. जब शरीर इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता है, तो रक्त में ग्लूकोज का स्तर बहुत अधिक हो जाता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.
  • टाइप 2 डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता है या इंसुलिन का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं करता है, जिसके परिणामस्वरूप रक्त में शर्करा (ग्लूकोज) का स्तर बढ़ जाता है.

इसरो के SpaDeX मिशन ने ऐतिहासिक डॉकिंग सफलता हासिल की

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) मिशन ने 16 जनवरी 2025 को ऐतिहासिक डॉकिंग सफलता हासिल की. डॉकिंग के बाद एक ही अंतरिक्षयान के रूप में दो उपग्रहों का नियंत्रण सफल रहा.

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 30 दिसंबर 2024 को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था.
  • SpaDeX मिशन को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लांच किया गया. इसे PSLV-C60 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया किया गया था.
  • इस मिशन के तहत PSLV-C60 के जरिए दो छोटे अंतरिक्ष यान ‘चेजर’ (SDX01) और ‘टारगेट’ (SDX02) भेजे गए थे. इनमें से प्रत्येक का वजन 220 किलोग्राम है.
  • प्रक्षेपण के कुछ ही मिनटों बाद दोनों अंतरिक्ष यान, रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग होकर करीब 470 किलोमीटर की निचली कक्षा में स्थापित हुए थे.
  • इसरो ने 16 जनवरी 2025 को पहली बार अंतरिक्ष में दोनों उपग्रह ‘चेजर’ और ‘टारगेट’  की सफल डॉकिंग कराकर ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की. इसरो आने वाले दिनों में अनडॉकिंग और पावर ट्रांसफर की जांच करेगा.
  • लगातार तीन वर्ष से इसरो एक के बाद एक इतिहास रच रहा है. भारत ने 2023 में चंद्रयान मिशन में कामयाबी के साथ ही चंद्रमा की सतह पर अपने लैंडर उतारने वाला अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश बना. 2024 में आदित्य एल1 मिशन में सफलता हासिल की थी.

SpaDeX (स्पैडेक्स) डाकिंग क्या है?

  • SpaDeX का अर्थ होता है ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट’ यानी अंतरिक्ष में यानों को ‘डॉक’ और ‘अनडॉक’ करना.
  • बिना किसी बाहरी सहायता के एक अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान के जुड़ने को डाकिंग, जबकि अंतरिक्ष में एक दूसरे से जुड़े दो अंतरिक्ष यानों के अलग होने को अनडाकिंग कहते हैं.
  • अंतरिक्ष में देश के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए डॉकिंग क्षमता बेहद जरूरी है. इन लक्ष्यों में चंद्रमा से नमूने लाना, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएसएस) का निर्माण शामिल है.

‘इन-स्पेस डॉकिंग’ तकनीक के उपयोग

  • ‘इन-स्पेस डॉकिंग’ तकनीक की जरूरत उस समय होती है, जब एक कॉमन मिशन को अंजाम देने के लिए कई अंतरिक्षयानों को लॉन्च करने की जरूरत पड़ती है.
  • यह चंद्रयान-4 जैसे मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए भी अहम साबित होगा. साथ ही वहां से सैंपल लाने के साथ-साथ 2035 तक भारत के अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने जैसी योजनाओं के लिए बेहद अहम साबित होगा.

भारत दुनिया का चौथा देश बना

  • इस सफलता के साथ ही भारत दुनिया का चौथा देश बन गया जिसके पास अपनी स्पेस डॉकिंग जटिल तकनीक है. इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ही ऐसा करने में सफल रहे हैं.
  • 1966 में जेमिनी आठ अंतरिक्षयान और एजेना टार्गेट व्हीकल की डॉकिंग प्रक्रिया पूरी कर अमेरिका डॉकिंग क्षमता को प्रदर्शित करने वाला दुनिया का पहला देश बना था.
  • तत्कालीन सोवियत संघ ने 1967 में कोसमोस 186 और कोसमोस 188 अंतरिक्ष यान को डॉक कर स्वचालित डॉकिंग का प्रदर्शन किया था.
  • चीन ने पहली बार 2011 में डॉकिेग क्षमता का प्रदर्शन किया, जब मानव रहित शेनझोउ-8 अंतरिक्षयान तियांगोंग-1 अंतरिक्ष लैब के साथ डाक किया गया था.

सबसे घातक प्रजातियों में से एक सिडनी फ़नल-वेब स्पाइडर की एक और प्रजाति की खोज

  • ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने दुनिया की सबसे घातक प्रजातियों में से एक सिडनी फ़नल-वेब स्पाइडर (Sydney funnel-web spider) की एक और प्रजाति की खोज की है.
  • नई फ़नल-वेब प्रजाति को ‘बिग बॉय’ उपनाम दिया गया है. यह पहले से अधिक बड़ी और अधिक जहरीली प्रजाति है.
  • 9 सेंटीमीटर लंबी इस प्रजाति को पहली बार 2000 के दशक की शुरुआत में सिडनी के पास ऑस्ट्रेलियाई सरीसृप पार्क में खोजा गया था.
  •  वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति को खोजने वाले वैज्ञानिक क्रिस्टेंसन के नाम पर इस प्रजाति का नाम एट्रैक्स क्रिस्टेंसनी (Atrax christenseni) रखा है.

नाड़ी तरंगिनी- CDSCO से मंजूरी प्राप्त करने वाला भारत का पहला आयुर्वेदिक चिकित्सा उपकरण

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में नाड़ी तरंगिनी उपकरण का उल्लेख किया था और इसकी प्रशंसा की थी. इसके बाद यह उपकरण चर्चा में आ गया था.
  • ‘नाड़ी तरंगिणी’ आयुर्वेदिक पल्स डायग्नोस्टिक उपकरण है जिसे पुणे के हिंजेवाड़ी की आत्रेय इनोवेशन्स कंपनी ने बनाया है.
  • यह उपकरण भारत का पहला आयुर्वेदिक चिकित्सा उपकरण है जिसे CDSCO (सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन) से मंजूरी मिली है. CDSCO देश में सौंदर्य प्रसाधन, दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के लिए राष्ट्रीय नियामक है.
  • नाड़ी तरंगिणी को डॉ. अनिरुद्ध जोशी ने IIT बॉम्बे में छह साल से अधिक समय तक शोध के बाद विकसित किया है.
  • नाड़ी तरंगिणी से नाड़ी की जांच करने पर 22 आयुर्वेदिक मानकों वाली 10 पेज की रिपोर्ट मिलती है. नाड़ी तरंगिणी की एक्‍यूरेसी लगभग 85 फीसदी है.

चर्चा में: ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (hMPV)

  • चीन के बाद भारत में ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (hMPV) के कुछ मामलों की पुष्टि के बाद यह  हाल के दिनों में चर्चा में रहा है.
  • स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार HMPV कोई नया वायरस नहीं है. इसे पहली बार 2001 में पहचाना गया था और यह कई वर्षों से पूरी दुनिया में फैल रहा है.
  • अमेरिकन लंग एसोसिएशन के अनुसार, ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (hMPV) एक सामान्य श्वसन वायरस (common respiratory virus) है जो ऊपरी श्वसन संक्रमण (जैसे सर्दी) का कारण बनता है.
  • यह एक मौसमी बीमारी है जो आमतौर पर सर्दियों और शुरुआती वसंत में होती है, जो RSV और फ्लू के समान है. इस बीमारी की पहचान 2001 में नीदरलैंड के वैज्ञानिकों ने की थी.
  • hPMV संक्रमित व्यक्ति के साथ निकट संपर्क या वायरस से संक्रमित क्षेत्र के संपर्क में आने से यह बीमारी फैलती है. hMPV के लक्षण सामान्य सर्दी जैसे हैं.

भारत ने पहली स्वदेशी एंटीबायोटिक दवा ‘नेफिथ्रोमाइसिन’ तैयार की

  • भारत ने पहली स्वदेशी एंटीबायोटिक दवा ‘नेफिथ्रोमाइसिन’ (Nafithromycin) तैयार की है. यह दवा समुदाय-अधिग्रहित बैक्टीरियल निमोनिया (CABP) नामक संक्रमण का तोड़ है.
  • एंटीबायोटिक नैफिथ्रोमाइसिन को बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (BIRAC) के सहयोग से विकसित किया गया है. इसे मिक्नाफ नाम से बाजार में उतारा गया है.
  • यह देश का पहला स्वदेशी रूप से विकसित एंटीबायोटिक है जिसका उद्देश्य एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध से निपटना है. यह एजिथ्रोमाइसिन की तुलना में दस गुना अधिक प्रभावी है.
  • यह दवा CABP रोगियों के लिए दिन में एक बार, तीन दिन तक दी जाएगी. यह पहला उपचार है, जिसमें मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी (MDR) संक्रमण वाले मरीज भी शामिल हैं.
  • इस दवा पर 15 वर्षों में कई नैदानिक परीक्षण किए गए हैं. इनमें अमेरिका और यूरोप में हुए पहले व दूसरे चरण के परीक्षण भी शामिल हैं. भारत में इस दवा ने हाल ही में तीसरा चरण पूरा किया था.
  • यह दवा इसलिए भी काफी अहम है क्योंकि CABP के कारण हर साल लाखों की संख्या में बुजुर्ग मरीजों की मौत हो रही है.
  • वैश्विक स्तर पर CABP से सालाना मरने वालों में 23 फीसदी हिस्सा भारत का है. इसकी मृत्यु दर 14 से 30% के बीच है.
  • एंटीबायोटिक दवाएं बैक्टीरियल संक्रमणों के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं. ये बैक्टीरिया को मारती हैं या उनके प्रजनन को रोकती हैं.

प्रधानमंत्री ने परम रुद्र सुपर कंप्यूटर और हाई-परफार्मेंस कंप्यूटिंग सिस्टम लॉन्च किया

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 26 सितम्बर को तीन परम रुद्र सुपरकंप्यूटर और अर्का और अरुणिका नामक हाई-परफार्मेंस कंप्यूटिंग सिस्टम लॉन्च किया.

परम रुद्र सुपर कंप्यूटर: मुख्य बिन्दु

  • ये सुपर कंप्यूटर भारत के नेशनल सुपर-कंप्यूटिंग मिशन (NSM) के तहत तैयार किए गए हैं. इनकी लागत 130 करोड़ रुपए है.
  • इसका मकसद शिक्षा, शोध, MSMEs और स्टार्टअप्स जैसे क्षेत्रों में भारत के सुपरकंप्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना है.
  • नेशनल सुपर-कंप्यूटिंग मिशन के तहत, पहला स्वदेशी रूप से असेंबल किया गया सुपरकंप्यूटर PARAM शिवाय 2019 में IIT (BHU) में स्थापित किया गया था.
  • तीनों परम रुद्र सुपर कंप्यूटर्स को तीन जगहों- दिल्ली, पुणे और कोलकाता में स्थापित किया गया है.
  • पुणे में जाइंट मीटर रेडियो टेलीस्कोप (GMRT) इस सुपरकंप्यूटर का इस्तेमाल फास्ट रेडियो बर्स्ट्स (FRBs) और अन्य एस्ट्रोनॉमिकल इवेंट्स की स्टडी करने के लिए करेगा.
  • दिल्ली में इंटर यूनिवर्सिटी एक्सेलेरेटर सेंटर (IUAC) मटेरियल साइंस और एटॉमिक फिजिक्स जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा देगा.
  • कोलकाता में एसएन बोस सेंटर इस सुपरकंप्यूटिंग तकनीक का इस्तेमाल उन्नत अनुसंधान के लिए करेगा, जिसमें फिजिक्स, कॉस्मोलॉजी और अर्थ साइंस जैसे क्षेत्र शामिल हैं.

हाई-परफॉर्मिंग कंप्यूटिंग सिस्टम

प्रधानमंत्री  ने अर्का और अरुणिका नामक 850 करोड़ रुपए का हाई-परफॉर्मिंग कंप्यूटिंग सिस्टम का भी उद्घाटन किया, जो कि मौसम और जलवायु रिसर्च के लिए तैयार किया गया है.

नेशनल सुपर-कंप्यूटिंग मिशन (NSM)

भारत सरकार ने 2015 में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) की एक संयुक्त पहल के रूप में नेशनल सुपर-कंप्यूटिंग मिशन (NSM) का शुभारंभ किया था.

उन्नत कंप्यूटिंग विकास केंद्र (सी-डैक), पुणे और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बैंगलोर, इस मिशन को कार्यान्वित कर रहे हैं.

चीन ने चंद्र रिसर्च मिशन के लिए अपना अंतरिक्ष यान ‘चांग’ई-6’ को प्रक्षेपित किया

चीन ने 3 मई को अपने चंद्र रिसर्च मिशन के लिए अपना अंतरिक्ष यान (स्पेसक्राफ्ट) ‘चांग’ई-6’ (Chang’e 6) को प्रक्षेपित किया है. यह प्रक्षेपण रॉकेट ‘लांग मार्च-5 वाई8’ के माध्यम से किया गया है. इस मिशन को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव-एटकेन बेसिन नमूना एकत्र करने और फिर पृथ्वी पर वापस लाने का काम सौंपा गया है.

चंद्र मिशन यान ‘चांग’ई-6’: मुख्य बिन्दु

  • चांग’ई-6, चंद्रमा पर पहुंचने के बाद सॉफ्ट लैंडिंग करेगा. लैंडिंग के 48 घंटों के भीतर चंद्रमा की सतह से चट्टानों और मिट्टी को निकालने के लिए रोबोटिक हाथ बढ़ाया जाएगा, जबकि जमीन में छेद करने के लिए ड्रिल का इस्तेमाल किया जाएगा.
  • चांग’ई-6 मिशन का प्राथमिक लक्ष्य लैंडिंग और नमूना (सैंपल) एकत्र करना है. चांग’ई-6 चांद के दक्षिणी ध्रुव-एटकिन बेसिन क्रेटर पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा. यह क्रेटर 4 अरब साल पहले बना था.
  • यह मिशन 53 दिनों तक चलने की उम्मीद है, जिसमें चांग’ई-6 चंद्रमा के अंधेरे इलाके में पहुंचकर वहां से दो किलोग्राम सैंपल्स इकट्ठा करेगा. इसमें चांद की मिट्टी और पत्थर जैसी चीजें शामिल होंगी.
  • अगर यह मिशन अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल होता है, तो चीन दुनिया का पहला ऐसा देश बन जाएगा जो चांद के उस हिस्से से नमूना लाने में कामयाब होगा जिसे पृथ्वी से कभी देखा ही नहीं जाता है.
  • भारत अगस्त 2023 में अपने चंद्रयान-3 मिशन के साथ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बना था.
  • चांग’ई-6 मिशन के लैंडर पर फ्रांस, इटली और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी/स्वीडन के वैज्ञानिक उपकरण और ऑर्बिटर पर एक पाकिस्तानी पेलोड होगा.
  • चांग’ई 6 मिशन में पाकिस्तान द्वारा विकसित आईक्यूब-क़मर उपग्रह भी है. इस लघु उपग्रह में दो ऑप्टिकल कैमरे हैं जो चंद्रमा की सतह की तस्वीरें ले सकते हैं. यह पाकिस्तान का पहला चन्द्र मिशन है.

क्या है चांग’ई-6?

चांग’ई-6 एक स्पेसक्राफ्ट है, जिसके 4 हिस्से हैं. ऑर्बिटर, लैंडर, ऐसेंडर और रिटर्नर. ऑर्बिटर, मिशन के बाकी तीन हिस्सों को चांद तक ले जाएगा. इस मिशन का नाम चीनी चंद्रमा देवी (चांगा) के नाम पर रखा गया है.

लैंडर, मिशन का वो हिस्सा जो चांद की सतह पर उतरेगा. ऐसेंडर, लैंडर से सैंपल लेकर ऑर्बिटर तक पहुंचाएगा. रिटर्नर, सारे सैंपल लेकर धरती पर पहुंचेगा.

रूस ने किया अंगारा-A5 अंतरिक्ष रॉकेट का सफल प्रक्षेपण

रूस ने 11 अप्रैल 2024 को अंगारा-A5 अंतरिक्ष रॉकेट का सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण वोस्तोचन कोस्मोड्रोम से किया गया था. हालांकि, यह रूस का तीसरा परीक्षण है जो सफल हुआ.

अंगारा रॉकेट 54.5 मीटर (178.81 फुट) लम्बा तीन चरणों वाला रॉकेट है. इसका वजन लगभग 773 टन है, लगभग 24.5 टन वजन अंतरिक्ष में ले जा सकता है.

रूस ने 1991 में सोवियत संघ के विघटन के कुछ साल बाद एक रूस-निर्मित लॉन्च वाहन के लिए अंगारा परियोजना की शुरुआत की थी.

दुनिया का सबसे शक्तिशाली लेजर रोमानिया में विकसित किया गया

रोमानिया में दुनिया का सबसे शक्तिशाली लेजर विकसित किया गया है. यह लेजर सूर्य से अरबों गुना तेज और चमकीली किरण पैदा करने में सक्षम होगी. इसे रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में एक अनुसंधान केंद्र ने विकसित किया गया है. यह यूरोपियन यूनियन इंफ्रास्ट्रक्चर एक्सट्रीम लाइट इंफ्रास्ट्रक्चर (ELI) परियोजना का हिस्सा है.

मुख्य बिन्दु

  • इस लेजर तकनीक को चिरप्ड पल्स एम्प्लीफिकेशन (CPA) तकनीक के रूप में जाना जाता है. यह नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांस के जेरार्ड मौरौ (Gérard Mourou) और कनाडा की डोना स्ट्रिकलैंड (Donna Strickland) के आविष्कारों पर आधारित है.
  • चिरप्ड पल्स एम्प्लीफिकेशन के व्यावहारिक कार्यान्वयन के लिए जेरार्ड मौरौ और डोना स्ट्रिकलैंड को 2018 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
  • रोमानिया में विकसित अति-शक्तिशाली लेजर में विभिन्न क्षेत्रों में क्रांति लाने और महत्वपूर्ण समस्याओं को हल करने की क्षमता है.

शक्तिशाली लेजर के कुछ संभावित अनुप्रयोग

  • परमाणु अपशिष्ट उपचार: लेजर का उपयोग परमाणु कचरे की रेडियोधर्मिता अवधि को कम करने के लिए किया जा सकता है, जिससे इसका निपटान सुरक्षित और अधिक प्रबंधनीय हो जाता है.
  • अंतरिक्ष मलबा हटाना: अंतरिक्ष में जमा हो रहे मलबे की बढ़ती मात्रा के साथ, उपग्रहों और अंतरिक्ष यान के साथ टकराव के जोखिम को कम करते हुए, कक्षीय वातावरण को साफ करने के लिए लेजर तकनीक का उपयोग किया जा सकता है.
  • चिकित्सा प्रगति: लेज़र की सटीक और शक्तिशाली प्रकृति लक्षित कैंसर उपचारों और उन्नत शल्य चिकित्सा तकनीकों जैसे चिकित्सा उपचारों में सफलता दिला सकती है.
  • कैंसर थेरेपी: यह कैंसर थेरेपी के फील्ड में भी उपयोगी साबित हो सकती है. इसका उपयोग कैंसर के रेडियोथेरेपी ट्रीटमेंट के लिए एक नई कण त्वरण विधि (Particle acceleration method) की स्टडी करने के लिए भी किया जा सकता है.
  • रिन्यूएबल एनर्जी: यह न्यूक्लियर फ्यूजन, रिन्यूएबल एनर्जी और बैटरी के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा देगा. इनके अलावा इसके और भी कई अनोखे फायदे होंगे.

इसरो ने सूर्य के अध्ययन के ‘आदित्य एल-1’ उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने देश के पहले सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ उपग्रह का 2 सितम्बर को सफल प्रक्षेपण किया था. यह प्रक्षेपण आन्‍ध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी रॉकेट के माध्यम से किया गया था.

मुख्य बिन्दु

  • आदित्य एल-1 चार माह में पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल-1’ बिंदु पर पहुंचेगा. इस मिशन का उद्देश्य सूर्य के वातावरण का अध्ययन करना है. इस मिशन से सूर्य की बाहरी परत ‘कोरोना’ और सौर पवन के संबंध में जानकारी मिल सकेगी.
  • यह उपग्रह सूर्य और धरती के बीच लैग्रेंज बिन्‍दु ‘एल-1’  के आस-पास ‘हेलो कक्षा’ में स्थापित किया जायेगा. 125 दिन में इस उपग्रह के 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल-1 प्‍वाइंट’ पर पहुंचने की संभावना है.
  • इस उपग्रह में प्रकाशमंडल, क्रोमोस्‍फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों यानि कोरोना का अध्ययन करने के लिए सात उपकरण लगे हैं.

रूस का चंद्र मिशन लूना-25 अनियंत्रित होकर चन्द्रमा पर दुर्घटनाग्रस्‍त

रूस द्वारा का चंद्र मिशन ‘लूना-25’ विफल हो गया है. रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस के अनुसार यह मिशन अनियंत्रित होकर चन्द्रमा पर दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया. रूस ने 1 अगस्त 2023 को अपने चंद्र मिशन ‘लूना-25’ को प्रक्षेपित किया था.

लूना-25 मिशन: मुख्य बिन्दु

  • रॉसकॉसमॉस के प्रारंभिक विश्‍लेषण से प‍ता चलता है कि संचालन के वास्‍तविक और परिकलित मानदण्‍डों में अंतर के बाद अंतरिक्ष यान किसी अन्य कक्षा में चला गया और चन्द्रमा की सतह से टकराकर ध्वस्त हो गया.
  • 19 अगस्त को रूस ने लूना-25 की भेजी ज़ीमन क्रेटर की तस्वीर शेयर की थी. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद क़रीब 20 गहरे गड्ढों में ज़ीमन क्रेटर तीसरा बड़ा क्रेटर है. ये क़रीब 190 किलोमीटर चौड़ा है और 8 किलोमीटर गहरा है.
  • रूस की योजना चांद के दक्षिणी ध्रुव पर इस मानवरहित यान की सॉफ्ट लैंडिग कराने की थी. चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने में रूस के लूना-25 का भारत के चंद्रयान- 3 से मुक़ाबला हो रहा था. चंद्रयान- 3 को 23 अगस्त को चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिग किया जाना है.
  • अब तक चांद के लिए जो भी सफल मिशन रहे हैं वो चांद के उत्तर या मध्य में हैं. यहां पर लैंडिंग के लिए जगह समतल है और सूरज की सही रोशनी भी आती है.
  • चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर रोशनी नहीं पहुंचती. साथ ही इस जगह पर चांद की सतह पथरीली, ऊबड़-खाबड़ और गड्ढों से भरी है.
  • दक्षिणी हिस्से में सूरज की रोशनी के कारण गड्ढों की परछाईं बहुत लंबी होती है. इस कारण यहां गड्ढों और ऊबड़-खाबड़ ज़मीन की पहचान कर पाना बेहद मुश्किल है.
  • चांद के दक्षिणी ध्रुव से जुड़ी कम ही तस्वीरें उपलब्ध हैं जिस कारण वैज्ञानिक अब तक इस इलाक़े का विस्तार से अध्ययन नहीं कर पाए है.
  • 1976 में रूस ने लूना-24 मिशन ने चांद पर लैंडिंग की थी. इसके 47 साल बाद लूना-25 को चांद के दक्षिणी हिस्से में भेजा गया था, जो नाकाम रहा.