असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में AFSPA को छह महीने के लिए बढ़ाया गया

असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के कुछ जिलों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA) को अतिरिक्त छह महीने के लिए बढ़ा दिया है.

गृह मंत्रालय से इसकी अधिसूचना हाल ही में जारी की थी जो 1 अप्रैल, 2024 से प्रभावी होगी. गृह मंत्रालय ने, यह निर्णय इन पूर्वोत्तर राज्यों में कानून और व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा के बाद लिया है.

मुख्य बिन्दु

  • असम के चार जिलों से AFSPA को 1 अप्रैल से छह महीने के लिए बढ़ा दिया है. ये जिले हैं – तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, चराइदेव और शिवसागर.
  • अरुणाचल प्रदेश में AFSPA को तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग जिले सहित एक अन्य जिले के तीन पुलिस थाना क्षेत्र में छह महीने के लिए बढ़ाया गया है.
  • नागालैंड में दीमापुर, न्यूलैंड, चुमुकेदिमा, मोन, किफिरे, नोकलाक, फेक और पेरेन सहित पांच अन्य जिलों के 21 पुलिस थाना क्षेत्र में छह महीने के लिए AFSPA बढ़ाया गया है.
  • गृह विभाग ने अधिसूचना में कहा है कि इन ज़िलों को कानून-व्यवस्था की दृष्टि से अशांत क्षेत्र माना गया है और इसलिए अधिनियम की अवधि 30 सितंबर तक बढा दी गई है.

AFSPA क्‍या है?

  • AFSPA का पूरा नाम The Armed Forces (Special Powers) Act, 1958 है. यह अधिनियम 11 सितंबर 1958 को AFSPA लागू हुआ था. केंद्र सरकार या राज्यपाल पूरे राज्य या उसके किसी हिस्से में AFSPA लागू कर सकते हैं.
  • AFSPA के जरिए सुरक्षा बलों को कई खास अधिकार दिए गये हैं. इसके तहत सुरक्षा बलों को कानून के खिलाफ जाने वाले व्यक्ति पर गोली चलाने, सर्च और गिरफ्तारी का अधिकार है.
  • AFSPA के तहत किसी तरह की कार्रवाई करने पर सैनिकों के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है.
  • शुरू में यह पूर्वोत्तर और पंजाब के उन क्षेत्रों में लगाया गया था, जिनको ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित कर दिया गया था. इनमें से ज्यादातर ‘अशांत क्षेत्र’ की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश और म्यांमार से सटी थीं.
  • अप्रैल 2022 में केंद्र ने नागालैंड, असम और मणिपुर के कई हिस्सों में AFSPA के तहत आने वाले क्षेत्रों में कमी की गयी थी.
  • 2015 में त्रिपुरा, 2018 में मेघालय और 1980 के दशक में मिजोरम से इस अधिनियम को हटा लिया गया था. इन कटौतियों के बावजूद, जम्मू और कश्मीर में AFSPA लागू है.
  • कई राजनीतिक दल और संगठन AFSPA को हटाने की मांग कर रहे हैं. आलोचकों का तर्क है कि AFSPA के कारण मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है, जबकि समर्थकों का दावा है कि संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है.