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पेगासस जासूसी आरोप, जानिए क्या है पेगासस और कैसे काम करता है

हाल के दिनों में पेगासस जासूसी (Pegasus Spyware) आरोप चर्चा में है. एक वैश्विक सहयोगी जांच परियोजना से पता चला है कि इजरायली कंपनी, एनएसओ ग्रुप (NSO Group) के पेगासस स्पाइवेयर से भारत में 300 से अधिक मोबाइल नंबरों को टारगेट किया गया, जिसमें वर्तमान सरकार के दो मंत्री, तीन विपक्षी नेता, एक जज, कई पत्रकार और व्यवसायी शामिल हैं. सरकार ने इन आरोपों को आधारहीन बताया है.

हालाँकि, डेटाबेस में फोन नंबर की मौजूदगी मात्र इस बात की पुष्टि नहीं करती है कि संबंधित डिवाइस पेगासस से संक्रमित हुए या सिर्फ हैक करने का प्रयास किया गया.

पेगासस क्या है?

पेगासस इजराइल के एनएसओ ग्रुप (NSO Group) द्वारा विकसित एक स्पाइवेयर (spyware) मोबाइल App है. यह App लोगों के फोन के जरिए उनकी जासूसी करते हैं. पेगासस एक लिंक भेजता है और यदि उपयोगकर्ता लिंक पर क्लिक करता है, तो उसके फोन पर पेगासस इंस्टॉल हो जाता है.

एक बार पेगासस इंस्टॉल हो जाने के बाद यह उस मोबाइल के मैसेजिंग ऐप से पासवर्ड, संपर्क सूची, कैलेंडर ईवेंट, टेक्स्ट संदेश और लाइव वॉयस कॉल सहित उपयोगकर्ता के निजी डेटा को चुरा सकता है. फोन के आसपास की सभी गतिविधियों को रिकॉर्ड करने के लिए फोन कैमरा और माइक्रोफोन को भी चालू किया जा सकता है.

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जेफ बेजोस ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा पूरी की

दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस (Jeff Bezos) ने 20 जुलाई को अपनी अंतरिक्ष यात्रा पूरी की. वह सिर्फ 11 मिनट के भीतर अंतरिक्ष की यात्रा कर धरती पर लौट आए. उनके साथ 3 और यात्री थे. इनमें एक उनके भाई मार्क, 82 साल की वैली फंक और 18 साल के ओलिवर डेमेन शामिल थे.

मुख्य बिंदु

  • जेफ बेजोस ने यह अंतरिक्ष यात्रा अपनी स्पेस कंपनी ‘ब्लू ओरिजिन’ (Blue Origin) के स्पेसशिप ‘न्यू शेपर्ड’ (New Shepard) और कैप्सूल के माध्यम से की. यह न्यू शेपर्ड रॉकेट की कुल 16वीं उड़ान और अंतरिक्ष यात्रियों के साथ पहली उड़ान थी. न्यू शेपर्ड पूरी तरह स्वचालित रॉकेट विमान है, जिसे भीतर से नहीं चलाया जा सकता.
  • ‘न्यू शेपर्ड’ स्पेसशिप को बनाने में भारतीय संजल गावंडे ने अहम भूमिका निभाई है. 30 वर्षीय संजल गावंडे महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर कल्याण की रहने वाली हैं.
  • जेफ बेजोस अमेजन संस्थापक हैं. वह दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं. जेफ बेजोस की कुल दौलत 206 बिलियन डॉलर के करीब है.
  • 11 जुलाई को अमेरिकी अंतरक्षि यान कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक (Virgin Galactic) के रिचर्ड ब्रेनसन सहित छह लोगों ने अंतरिक्ष की यात्रा की थी. इन्हीं छह लोगों में भारतीय मूल की सिरिशा बांदला का नाम भी शामिल था.
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भारत में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, जानिए क्या है ब्लैक फंगस

इन दिनों भारत में कोरोना वायरस के साथ ही ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. कोविड-19 के साथ-साथ फंगल संक्रमण भी हो सकता है, खासकर उन लोगों को जो पहले से ही गंभीर रोगों से पीड़ित हैं या जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है.

ब्लैक फंगस का वैज्ञानिक नाम ‘म्यूकोरमायकोसिस’ है. फिलहाल देश के कई राज्यों में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. एक रिपोर्ट के अनुसार, कोविड ​​​​-19 के साथ-साथ यह फंगल संक्रमण उन लोगों में होता है, जिन्हें मधुमेह या HIV जैसी मौजूदा बीमारियां हैं.

दुर्लभ किस्म की यह बीमारी आंखों में होने पर मरीज की रोशनी के लिए घातक साबित हो रही है. यह शरीर में बहुत तेजी से फैलती है. इस बीमारी से शरीर के कई अंग प्रभावित हो सकते हैं.

ब्लैक फंगस के लक्षण

विशेषज्ञों के मुताबिक ब्लैक फंगस के कारण सिर दर्द, बुखार, आंखों में दर्द, नाक बंद या साइनस के अलावा देखने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.

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अन्तरिक्ष यान वोयेजर-1 ने अन्तरिक्ष से आती के ध्वनि का पता लगाया

अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी (NASA) के अन्तरिक्ष यान (spacecraft) वोयेजर-1 (Voyager-1) ने अन्तरिक्ष से आती से आती भिनभिनाने की ध्वनि (humming sound) का पता लगाया है. इस ध्वनि का पता वोयेजर के प्लाज्मा वेव सिस्टम इंस्ट्रूमेंट द्वारा पता लगाया गया है.

वैज्ञानिकों ने इसे तारे के बीच अन्तरिक्ष (interstellar space) में थोड़े मात्रा में गैस की मौजूदगी के कारण बताया है. इस आवाज को “प्लाज्मा वेव परसिस्‌टन्‍ट्‌” (persistent plasma waves) नाम दिया गया है. यह ध्वनि तब सुनी गयी जब वोयेजर-1 ने हेलियोस्फीयर से बाहर निकलकर इंटरस्टेलर स्पेस में प्रवेश किया.

वोयेजर-1 (Voyager-1) क्या है?

वोयेजर-1 (Voyager-1), अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी (NASA) का एक अन्तरिक्ष यान (spacecraft) है, जिसे 1977 में प्रक्षेपित किया गया था. इसे बाहरी सौर मंडल और रास्ते में आने वाले शनि और बृहस्पति जैसे ग्रहों का अध्ययन करने के लिए भेजा गया था. वोयेजर-1 अन्तरिक्ष यान 44 वर्षों से लगातार सेवा कर रहा है.

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NASA के इन्जेन्यूटी हेलिकॉप्टर ने मंगल पर कई सफल उड़ानें पूरी की

अमेरिका की स्पेस एजेंसी (NASA) के हेलिकॉप्टर इन्जेन्यूटी (Ingenuity) ने मंगल ग्रह पर अब तक कई सफल उड़ानें पूरी कर ली हैं. NASA ने मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए इन्जेन्यूटी हेलिकॉप्टर और परसेवरांस रोवर (Perseverance rover) के हाल ही में भेजा था.

NASA ने मंगल पर इन्जेन्यूटी हेलिकॉप्टर के उड़ान का हाल ही में विडियो जारी किया है. यह विडियो मंगल गृह की सतह से परसेवरांस रोवर (Perseverance rover) द्वारा रिकॉर्ड किया गया है. तीन मिनट के इस में जेजेरो क्रेटर (Jezero crater) में बहने वाली हवाओं को दिखाया गया है. परसेवरांस रोवर ने मंगल ग्रह के जेजेरो क्रेटर पर लैंडिंग की थी.

हेलिकॉप्टर इन्जेन्यूटी ने अपनी पांचवी उड़ान (फ्लाइट) के दौरान मंगल ग्रह के करीब 10 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचा. इस हेलिकॉप्टर ने मंगल पर लैंड होने से पहले हाई-रेजॉलूशन तस्वीरें भी लीं.

चौथी फ्लाइट के दौरान NASA को हेलिकॉप्टर की आवाज भी सुनाई दी. यह आवाज थी इन्जेन्यूटी के रोटर ब्लेड्स की थी. यह 262 फीट दूर खड़े परसेवरांस रोवर से रिकॉर्ड की हुई थी. पृथ्वी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी ग्रह पर आवाज रिकॉर्ड की गयी हो.

नासा का मार्स मिशन (Mars Mission) 2020

अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी (NASA) ने मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए जुलाई 2020 में मार्स मिशन (Mars Mission) 2020 शुरू की थी. इस मिशन में नासा ने इन्जेन्यूटी हेलिकॉप्टर और परसेवरांस रोवर (Perseverance rover) को मंगल गृह पर भेजा था. इस मिशन को ‘एटलस वी लॉन्च वाहन’ (Atlas V Launch Vehicle) से प्रक्षेपित किया गया था.

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NASA के पार्कर सोलर प्रोब ने पहली बार शुक्र ग्रह से आ रही आवाज रिकॉर्ड की

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पार्कर सोलर प्रोब ने शुक्र ग्रह से आ रही आवाज और रेडियो सिग्नल को रिकॉर्ड किया है. यह आवाज शुक्र के ऊपरी वातावरण से आ रही थी.

नासा ने पार्कर सोलर प्रोब को सूरज का अध्ययन करने के लिए भेजा था. सूरज की परिक्रमा करते हुए जब यह प्रोब शुक्र के ऊपर से गुजरा तो उसने इस भयंकर आवाज को सुना.

पार्कर सोलर प्रोब ने इस आवाज को शुक्र के करीब से तीसरी बार उड़ने के दौरान 11 जुलाई 2020 को रिकॉर्ड किया था. उस समय पार्कर प्रोब और शुक्र के बीच की दूरी मात्र 832 किलोमीटर ही थी. इससे पहले भी पार्कर प्रोब ने शुक्र के करीब से दो बार उड़ान भरी थी, लेकिन इतनी नजदीकी से कभी भी नहीं गुजरा था.

पार्कर सोलर प्रोब: एक दृष्टि

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने ‘पार्कर सोलर प्रोब’ अंतरिक्षयान को सूरज के बाहरी कोरोना के बारे में अध्ययन करने के लिए 2018 में लॉन्च किया था. इस प्रोब को नासा का ‘गोडार्ड स्पेस सेंटर’ संचालित कर रहा है.

यह प्रोब हर चक्कर के दौरान सूरज के नजदीक जाने की कोशिश कर रहा है. 2025 तक इस प्रोब को सूरज के 4.3 मिलियन मील की दूरी तक पहुंचाने का प्लान है. अगर इस प्रोब ने सूरज की गर्मी को बर्दाश्त कर लिया तो इसे और नजदीक तक पहुंचाया जाएगा.

शुक्र ग्रह

धरती की जुड़वा बहन कहे जाने वाले शुक्र ग्रह से आ रहे प्राकृतिक रेडियो सिग्नल से मिली आवाज की जांच से इस ग्रह के वातावरण के बारे में और अधिक जानकारी मिल सकती है. शुक्र को सौर मंडल का सबसे गर्म ग्रह माना जाता है क्योंकि सूरज से अधिक नजदीक होने के कारण बुध का वायुमंडल नष्ट हो चुका है. जिस कारण वह उष्मा को अवशोषित नहीं कर पाता है.

नासा के अनुसार, पृथ्वी और शुक्र दोनों जुड़वा दुनिया हैं. ये दोनों ग्रह पहाड़ी, समान आकार और संरचना के हैं. लेकिन, दोनों का रास्ता शुरू से ही अलग है. शुक्र में एक चुंबकीय क्षेत्र की कमी होती है. इसकी सतह का तापमान इतना ज्यादा होता है कि सीसा भी पिघल जाए. इस ग्रह का अध्ययन करने के लिए भेजा गया स्पेसक्राफ्ट भी गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाता है.

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मेघालय में 10 करोड़ साल पहले के सॉरोपॉड डायनासोर की हड्डियों के जीवाश्म मिले

मेघालय के पश्चिम खासी हिल्स जिले के पास सॉरोपॉड डायनासोर की हड्डियों के जीवाश्म मिले हैं. यह अनुमानत: करीब 10 करोड़ साल पुराना है.

यह अनुसन्धान भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के पूर्वोत्तर स्थित जीवाश्म विज्ञान प्रभाग के अनुसंधानकर्ताओं ने कियाहै. GSI अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार यह टाइटैनोसॉरियाई मूल के सॉयरोपॉड के अवशेष हैं.

सॉरोपॉड की लंबी गर्दन, लंबी पूंछ, शरीर के बाकी हिस्से की तुलना में छोटा सिर, चार मोटी एवं खंभे जैसी टांग होती हैं. गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद मेघालय भारत का पांचवां राज्य और पहला पूर्वोत्तर राज्य है जहां टाइटैनोसॉरियन मूल के सॉरोपोड की हड्डियां मिली हैं.

डायनासोर

एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन के कारण डायनासोर विलुप्त हो गये. भारत में पाए जाने वाले डायनासोरों में से, बारापासॉरस (Barapasaurus) सबसे बड़ा था. यह चार मीटर ऊँचा और 24 मीटर लंबा था. सबसे खतरनाक टायरानोसॉरस रेक्स (Tyrannosaurus rex) था.

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भारतीय वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की अधिक उपज देने किस्म MACS-1407 विकसित की

भारतीय वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की एक अधिक उपज देने वाली और कीट प्रतिरोधी किस्म विकसित की है. MACS-1407 नाम की यह नई किस्म असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त. इसके बीज वर्ष 2022 के खरीफ के मौसम के दौरान किसानों को बुवाई के लिए उपलब्ध कराये जायेंगे.

सोयाबीन की नई किस्म MACS-1407 का विकास अग्रहार रिसर्च इंस्टीट्यूट (ARI), पुणे के वैज्ञानिकों ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), नई दिल्ली के सहयोग से किया है. ARI, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (MACS) के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है.

MACS-1407 का विकास पारंपरिक क्रॉस ब्रीडिंग तकनीक का उपयोग करके किया है, जो कि प्रति हेक्टेयर में लगभग 39 क्विंटल का पैदावार देते हुए इसे एक अधिक उपज देने वाली किस्म बनाता है. यह गर्डल बीटल, लीफ माइनर, लीफ रोलर, स्टेम फ्लाई, एफिड्स, व्हाइट फ्लाई और डिफोलिएटर जैसे प्रमुख कीट-पतंगों का प्रतिरोधी भी है. यह पूर्वोत्तर भारत की वर्षा आधारित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है.

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भारत के प्रस्तावित सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ के लिए सपोर्ट सेल ‘AL1SC’ की स्थापना की गयी

भारत के प्रस्तावित पहला सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ (Aditya L-1 Mission) से प्राप्त होने वाले आंकड़ों को एक वेब इंटरफेस पर जमा करने के लिए एक कम्युनिटी सर्विस सेंटर की स्थापना की गई है. इस सेंटर का नाम ‘आदित्य L1 सपोर्ट सेल’ (AL1SC) दिया गया है. इसकी स्थापना उत्तराखंड स्थित हल्द्वानी में किया गया है.

आदित्य L1 सपोर्ट सेल (AL1SC): मुख्य बिंदु

  • इस सेंटर को भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस (ARIES) ने मिलकर बनाया है.
  • सपोर्ट सेल ‘AL1SC’ की स्थापना का उद्देश्य भारत के प्रस्तावित पहले सौर अंतरिक्ष मिशन आदित्य L1 (Aditya-L1) से मिलने वाले सभी वैज्ञानिक विवरणों और आंकड़ों का अधिकतम विश्लेषण करना है. इस केंद्र का उपयोग अतिथि पर्यवेक्षकों (गेस्ट ऑब्जर्वर) द्वारा किया जा सकेगा. यह विश्व के प्रत्येक इच्छुक व्यक्ति को आंकड़ों का वैज्ञानिक विश्लेषण करने की छूट देगा.
  • AL1SC की स्थापना ARIES के उत्तराखंड स्थित हल्द्वानी परिसर में किया गया है, जो इसरो के साथ संयुक्त रूप काम करेगा.
  • यह केंद्र दुनिया की अन्य अंतरिक्ष वेधशालाओं से भी जुड़ेगा. सौर मिशन से जुड़े आंकड़े उपलब्ध कराएगा, जो आदित्य L1 से प्राप्त होने वाले विवरण में मदद कर सकते हैं.

भारत का प्रस्तावित सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’

  • ‘आदित्य एल-1’ (Aditya-L1) भारत का प्रस्तावित पहला सौर मिशन है. इसरो (ISRO) ने अगले वर्ष (2022 में) इस मिशन को प्रक्षेपित करने की योजना बनायी है.
  • इसरो द्वारा आदित्य L-1 को 400 किलो-वर्ग के उपग्रह के रूप में वर्गीकृत किया है जिसे ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-XL’ (PSLV- XL) से प्रक्षेपित (लॉन्च) किया जाएगा.
  • आदित्य L-1 को सूर्य एवं पृथ्वी के बीच स्थित एल-1 लग्रांज/ लेग्रांजी बिंदु (Lagrangian point) के निकट स्थापित किया जाएगा. आदित्य L-1 का उद्देश्य ‘सन-अर्थ लैग्रैनियन प्वाइंट 1’ (L-1) की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है.
  • यह मिशन सूर्य का नज़दीक से निरीक्षण करेगा और इसके वातावरण तथा चुंबकीय क्षेत्र के बारे में अध्ययन करेगा.
    आदित्य L-1 को सौर प्रभामंडल के अध्ययन हेतु बनाया गया है. सूर्य की बाहरी परतों, जोकि डिस्क (फोटोस्फियर) के ऊपर हजारों किमी तक फैला है, को प्रभामंडल कहा जाता है.
  • प्रभामंडल का तापमान मिलियन डिग्री केल्विन से भी अधिक है. सौर भौतिकी में अब तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि प्रभामंडल का तापमान इतना अधिक क्यों होता है.
  • आदित्य L-1 देश का पहला सौर कॅरोनोग्राफ उपग्रह होगा. यह उपग्रह सौर कॅरोना के अत्यधिक गर्म होने, सौर हवाओं की गति बढ़ने तथा कॅरोनल मास इंजेक्शंस (CMES) से जुड़ी भौतिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करेगा.

लग्रांज/लेग्रांजी बिंदु क्या होता है?

सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, वह लग्रांज बिंदु (Lagrangian point) कहलाता है.

लग्रांज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल समान रूप से लगने से दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है. इस स्थिति में वस्तु को ना तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा, ना पृथ्वी अपनी ओर खींच सकेगी और वस्तु अधर में लटकी रहेगी.

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO): एक दृष्टि

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है. इसकी स्थापना वर्ष 1969 में की गई थी. इस संस्थान का प्रमुख काम उपग्रहों का निर्माण करना और अंतरिक्ष उपकरणों के विकास में सहायता प्रदान करना है.

आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस (ARIES)

‘आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस’ (ARIES), भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संचालित एक स्वायत्त संस्थान है. यह संस्थान उत्तराखंड की मनोरा पीक (नैनीताल) में स्थित है. इसकी स्थापना 20 अप्रैल, 1954 को की गई थी. इस संस्थान के कार्यक्षेत्र खगोल विज्ञान, सौर भौतिकी और वायुमंडलीय विज्ञान इत्यादि हैं.

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मछलियों में होने वाली ‘वायरल नर्वस नेक्रोसिस’ बीमारी के लिए भारत में एक स्वदेशी टीका विकसित

मछलियों में होने वाली ‘वायरल नर्वस नेक्रोसिस’ (Viral Nervous Necrosis) बीमारी के लिए भारत में पहली बार एक स्वदेशी टीका (वैक्सीन) विकसित किया गया है. इस टीके का विकास चेन्नई स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रैकिश एक्वाकल्चर (Central Institute of Brackish Aquaculture) ने किया है. इस टीके का नाम नोडावैक-आर (Nodavac-R) है.

‘वायरल नर्वस नेक्रोसिस’ (VNN) बीमारी बीटानोडै-वायरस (Betanoda-virus) के कारण होती है. यह बीमारी मछलियों के 40 से अधिक प्रजातियों को प्रभावित करती है, उनमें से ज्यादातर समुद्री प्रजातियां हैं. यह ज्यादातर टेलीस्ट मछली (teleost fish) को प्रभावित करता है.

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जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर

दिग्गज टेक कंपनी ‘माइक्रोसॉफ्ट’ और ब्रिटेन के ‘मेट ऑफिस’ मिलकर दुनिया के सबसे शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर के निर्माण की घोषणा की है. यह सुपर कंप्यूटर मौसम और जलवायु-परिवर्तन से संबंधित पूर्वानुमान के लिये होगा.

इस सुपर कंप्यूटर के वर्ष 2022 तक परिचालन शुरू कर देने का अनुमान है. इसके माध्यम से गंभीर मौसम घटनाओं की सटीक पूर्वानुमान और चेतावनी जारी की जा सकेगी, जिससे आम लोगों को ब्रिटेन में लगातार बढ़ रहे तूफान, बाढ़ और बर्फ के प्रभाव से बचाने में मदद मिलेगी.

यह सुपर कंप्यूटर नवीकरणीय ऊर्जा से चलेगा जिससे एक वर्ष में 7,415 टन कार्बन डाइऑक्साइड को बचाने में मदद मिलेगी. इसमें 5 मिलियन से अधिक प्रोसेसर कोर होंगे जो प्रति सेकंड 60 क्वाड्रिलियन गणना करने में सक्षम होगा.

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पृथ्वी पर मात्र 3 प्रतिशत भू-भाग ही मानव गतिविधियों से दूर

हाल ही में किये गये एक शोध से पता चला है कि पृथ्वी पर मात्र 3 प्रतिशत भू-भाग ही मानव गतिविधियों से दूर रहा है जहाँ पारिस्थितिक रूप से (ecologically) सभी प्रकार के मूल प्रजाति (native species) का निवास है.

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा किया गया यह शोध ‘फ्रंटियर्स इन फारेस्ट एंड ग्लोबल चेंज’ (Frontiers in Forests and Global Change) जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

इंटैक्ट हैबिटेट क्या है?

विज्ञान की भाषा में मानव गतिविधियों से दूर भू-भाग को ‘इंटैक्ट हैबिटेट’ (Intact Habitat) कहा जाता है. पहले यह दावा किया गया था कि पृथ्वी का 40% हिस्सा इंटैक्ट हैबिटेट है. हालांकि, इस अध्ययन कहता है कि यह क्षेत्र मात्र 3% है.

इंटैक्ट हैबिटेट: शोध के मुख्य बिंदु

पृथ्वी का मात्र 3 प्रतिशत भू-भाग ही ‘इंटैक्ट हैबिटेट’ है. यह वह क्षेत्र है जहाँ मानव गतिविधि का कोई संकेत नहीं है.
इस शोध में पाया गया है कि इंटैक्ट हैबिटेट में मौजूद प्रजातियां, आक्रामक प्रजातियों या बीमारियों के कारण समाप्त हो रही हैं. इसका तात्पर्य है कि इंटैक्ट हैबिटेट मानव गतिविधियों के बिना भी खतरों का सामना कर रहे हैं.
कार्यात्मक रूप से इंटैक्ट हैबिटेट क्षेत्र उत्तरी कनाडा, बोरेल, कांगो बेसिन अमेज़ॅन, सहारा रेगिस्तान, टुंड्रा बायोम, पूर्वी साइबेरिया हैं.

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