चीन ने अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट ‘Long March-5B’ के सफल परीक्षण का दावा किया

चीन की अंतरिक्ष एजेंसी (CMSA) ने अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट ‘Long March-5B’ के सफल परीक्षण का दावा किया है. CMSA के अनुसार उसका यह परीक्षण अंतरिक्ष यान 8 मई को इनर मंगोलिया ऑटोनॉमस क्षेत्र में निर्धारित जगह पर सफलतापूर्वक उतरा है. यह परीक्षण एक स्थाई स्पेस स्टेशन चलाने और अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने के लिहाज से यह एक बड़ा कदम है.

चीन ने 5 मई को दक्षिणी चीन के दक्षिणी प्रांत हैनान के वेनचांग स्पेस लॉन्च सेंटर से ‘Long March-5B’ रॉकेट के चालक दल के बिना नए अंतरिक्ष यान का परीक्षण संस्करण लॉन्च किया था.

इस परीक्षण में लगभग 488 सेकंड बाद, बिना चालक दल (क्रू) के प्रायोगिक मानवयुक्त अंतरिक्ष यान, कार्गो रिटर्न कैप्सूल के परीक्षण संस्करण के साथ, रॉकेट के साथ अलग हो गया और योजनाबद्ध तरीके से कक्षा में प्रवेश कर गया. प्रायोगिक अंतरिक्ष यान ने 2 दिन और 19 घंटे अंतरिक्ष के कक्षा में उड़ान भरा.

Long March-5: एक दृष्टि

  • Long March-5 का विकास चाइना एकेडमी ऑफ स्पेस टेक्नोलॉजी ने किया है. यह यान लगभग 9 मीटर लंबा और 4.5 मीटर चौड़ा है. इसका वजन 20 टन से अधिक है.
  • यह विशेष रूप से चीन के मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए बनाया गया है. इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से अंतरिक्ष स्टेशन के मॉड्यूल को लॉन्च करने के लिए किया जाएगा.
  • इस रॉकेट के सफल परीक्षण चीन को “Tiangong” अंतरिक्ष स्टेशन को स्थापित करने की योजना में सहायता करेगा. Tiangong चीन का अंतरिक्ष स्टेशन कार्यक्रम है.
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मुस्तफा अल कादमी ने इराक के अगले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली

मुस्तफा अल कादमी ने 7 मई को इराक के अगले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. इससे पहले श्री अल कादमी अमरीका समर्थित खुफिया विभाग के पूर्व प्रमुख थे. प्रधानमंत्री पद के लिए मनोनीत होने से पहले उन्होंने खुफिया प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था.

इराक के प्रधानमंत्री के तौर पर मुस्तफा अल-कदीमी के नाम के प्रस्ताव को मंजूरी दी इराक की संसद ने दिया. अप्रैल 2020 में इराक के राष्ट्रपति बरहम सलीह ने कादमी को इस पद के लिए नामित किया गया था.

मुस्तफा अल-कदीमी सद्दाम हुसैन के मुखर विरोधी थे. 1985 में उन्होंने इराक छोड़ दिया था. वे कई वर्षों तक इराक से निर्वासन होकर ब्रिटेन में रहे थे.
कादमी ने ऐसे समय में प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभाला है, जब तेल राजस्व में गिरावट के बीच इराक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है.

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जर्मनी ने हिजबुल्लाह पर प्रतिबंध लगाया, हिजबुल्‍लाह का संक्षिप्त काल क्रम

जर्मनी ने हाल ही में लेबनान (Lebanon) के आतंकी संगठन हिजबुल्लाह पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है. ये प्रतिबंध देश में इस आतंकी संगठन द्वारा हमले कराए जाने की आशंका के मद्देनजर लगाया गया है. ईरान ने जर्मनी के इस निर्णय को इजराइल और अमेरिका के दबाव में उठाया गया कदम बताया है.

जर्मनी हिजबुल्लाह को दुनिया भर में कई हमलों और अपहरणों के लिए जिम्मेदार मानता है. इस फैसले से पहले जर्मनी ने इस संगठन की सैन्य गतिविधियों पर ही रोक लगा रखी थी. इसकी वजह से ये राजनीतिक रूप से यहां पर सक्रिय था.

जर्मन की सुरक्षा एजेंसियों को शक है कि इस संगठन के करीब 1000 सदस्य देश में मौजूद हैं. ये जर्मनी का इस्तेमाल एक सुरक्षित जगह के रूप में करते आए हैं जहां ये योजना बनाते हैं, नए सदस्य खोजते हैं और आपराधिक गतिविधियों के जरिए धन जमा करते हैं.

यूरोपीय संघ पर भी प्रतिबंधित करने का दबाव

जर्मनी से पहले अमेरिका, इस्राएल, सऊदी अरब समेत कुछ अन्‍य देशों ने इस आतंकी संगठन पर प्रतिवंध लगा चुके हैं. जर्मनी के इस कदम से यूरोपीय संघ पर भी इसको प्रतिबंधित करने का दबाव बढ़ जाएगा. अमेरिका और इजराइल ने जर्मनी के इस कदम की सराहना की है. इजराइल ने जहां जर्मनी के इस कदम को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक जंग में एक महत्वपूर्ण बताया है वहीं अमेरिका ने इससे यूरोपीय संघ को सीख लेने की नसीहत दे डाली है.

हिजबुल्‍लाह: संक्षिप्त काल क्रम

  1. हिजबुल्लाह की शुरुआत को समझने के लिए लेबनान (Lebanese Republic) के इतिहास पर एक नजर जरूरी है. लेबनान में 1943 में एक समझौते के तहत ये तय किया गया था कि देश में केवल एक सुन्नी मुसलमान ही प्रधानमंत्री बन सकता था. इसके अलावा ईसाई राष्ट्रपति और संसद का स्पीकर शिया मुसलमान हो सकता है.
  2. धीरे-धीरे लेबनान में फिलिस्‍तीन से आए सुन्नी मुसलामानों की संख्या बढ़ती चली गई और शिया मुसलामानों को अपने हाशिये पर जाने का डर सताने लगा. इसाई यहां पर पहले से ही अल्‍पसंख्‍यक थे. इस डर की वजह से 1975 में लेबनान में गृह युद्ध की शुरुआत हुई, जो 15 वर्ष तक चला.
  3. 1978 में इजराइल ने लेबनान के दक्षिणी हिस्से पर कब्जा कर लिया था. इससे पहले फिलिस्‍तीनी इस इलाके का इस्‍तेमाल इजरायल पर हमले के लिए किया करते थे.
  4. 1982 में लेबनान में हिजबुल्लाह नाम का एक शिया संगठन बना जिसका मतलब था ‘अल्लाह की पार्टी’. इजराइल के खिलाफ हमलों के लिए ईरान ने इसको फंडिंग में मदद की.
  5. हिजबुल्‍लाह ने 1985 में अपना घोषणापत्र जारी किया जिसमें लेबनान से सभी पश्चिमी ताकतों को निकाल बाहर करने का एलान किया गया. इसमें अमेरिका और सोवियत संघ को दुश्मन घोषित किया गया. इसके अलावा इसमें इजराइल को तबाह करने की भी बात कही गई थी.
  6. वर्ष 2000 में इजराइली सैनिकों की लेबनान से वापसी के बाद भी इनके बीच तनाव खत्म नहीं हुआ. 2011 में इस गुट ने सीरिया में राष्‍ट्रपति बशर अल असद के समर्थन में हजारों लड़ाके भेजे.
  7. धीरे-धीरे हिजबुल्लाह लेबनान में और मजबूत होता गया और आज ये देश की एक अहम राजनीतिक पार्टी है. दुनिया के कई देश इसे आतंकी संगठन घोषित कर चुके हैं.
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ईरान ने सैन्य उपग्रह ‘नूर’ के प्रक्षेपण किये जाने की पुष्टि की

ईरान ने हाल ही में एक सैन्य उपग्रह (military satellite) के प्रक्षेपण किये जाने की पुष्टि की है. इस उपग्रह को ‘नूर’ नाम दिया गया है. यह उपग्रह पृथ्वी की सतह से 425 किलोमीटर ऊपर कक्षा में सफलतापूवर्क स्थापित किया गया है.

यह प्रक्षेपण ऐसे समय में किया गया है जब ईरान और अमेरिका के बीच खत्म हुए परमाणु समझौते तथा जनवरी में अमेरिकी ड्रोन हमले में ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी के मारे जाने को लेकर दोनों देशों के संबंधों में तनाव चल रहा है.

उल्लेखनीय है कि 3 जनवरी को अमेरिका द्वारा बगदाद एयरपोर्ट पर एक एयर स्ट्राइक की गई, जिसमें ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की मौत हो गई थी. तब से अमेरिका-ईरान के बीच तनाव और अधिक बढ़ गया है.

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दक्षिण कोरिया संसदीय चुनाव में सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी ने जीत हासिल की

दक्षिण कोरिया में हाल ही में संपन्न हुए संसदीय चुनाव में सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी ने जीत हासिल की है. इस चुनाव में 300 सीटों वाली नेशनल असेंबली में राष्ट्रपति मून-जे-इन की डेमोक्रेटिक पार्टी ने 163 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं, डेमोक्रेटिक पार्टी की सयहोगी प्‍लेटफॉर्म पार्टी को भी 17 सीटें मिली हैं. इस तरह से सहयोगी के सीटों को मिलाकर सत्ताधारी पार्टी के पास अब कुल 180 सीटें हो गई हैं.

इस चुनाव में करीब 35 पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे थे, मगर मुकवला लेफ्ट झुकाव वाली डेमोक्रेटिक पार्टी और कंजर्वेटिव विपक्ष, ‘यूनाइटेड फ्यूचर पार्टी’ के बीच था.

दक्षिण कोरिया दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है, जहां पर कोरोना महामारी के बीच ही राष्‍ट्रीय चुनावों को संपन्‍न कराया गया है. इस चुनाव में 1.18 करोड़ लोगों ने मतदान किया था. कुल मिलाकर 66.2 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया जो 1992 के चुनाव के बाद हुए मतदान का सर्वाधिक आंकड़ा है.

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दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर विश्व बैंक की रिपोर्ट: वृद्धि दर घटकर 1.8% रह जाएगी

विश्व बैंक ने दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर 12 अप्रैल को एक रिपोर्ट जारी किया है. इस रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस महामारी ने वैश्विक स्तर पर कहर बरपाया हुआ है. दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था को भी इससे चोट पहुंची है. विश्व बैंक ने आगाह किया कि इस जानलेवा महामारी की वजह से दक्षिण एशिया गरीबी उन्मूलन में हुए लाभ को गंवा सकता है.

अनुमान में विश्व बैंक ने कहा है कि क्षेत्र की सरकारों को इस आपात स्थिति से निपटने के लिए कार्रवाई को तेज करना चाहिए और विशेष रूप से अत्यधिक गरीब लोगों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए और तेजी से आर्थिक सुधार का रास्ता तैयार करना चाहिए.

रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र के आठ देशों की अर्थव्यवस्थाओं में जोरदार गिरावट आएगी. क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां ठप हैं, व्यापार में नुकसान हो रहा है और वित्तीय और बैंकिंग क्षेत्र दबाव में हैं. क्षेत्र को गरीबी उन्मूलन में जो भी लाभ हुआ है वह समाप्त हो जाएगा.

वृद्धि दर घटकर 1.8% से 2.8% के बीच रह जाएगी

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-20 में क्षेत्र की वृद्धि दर घटकर 1.8 प्रतिशत से 2.8 प्रतिशत के बीच रह जाएगी. छह माह पहले विश्व बैंक ने क्षेत्र की वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था. विश्व बैंक का कहना है कि 2020-21 में भी क्षेत्र की वृद्धि पर इसका असर बना रहेगा. इस दौरान यह 3.1 से 4 प्रतिशत के बीच रहेगी. पहले विश्व बैंक ने इसके 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था.

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अमेरिका ने ईरान के 4 न्यूक्लियर प्रोग्राम पर लगाये प्रतिबंधों को आगे बढाया

अमेरिका ने ईरान के 4 न्यूक्लियर प्रोग्राम पर लगाये प्रतिबंधों को अगले 60 दिन तक जारी रखने का 30 मार्च को फैसला किया. अमेरिका ने 2018 में ईरान परमाणु समझौता (न्यूक्लियर डील) रद्द करके ये प्रतिबंध लगा दिए थे. अब अमेरिका ईरान पर इस बात का भी दबाव बना रहा है कि वह अपनी न्यूक्लियर और मिसाइल संबंधी गतिविधियां बंद कर दे. इन प्रतिबंधों के साथ ईरान के लिए न्यूक्लियर हथियार बनाना मुश्किल होगा.

क्या है ईरान परमाणु समझौता?

ईरान ने P5+1 (China, France, Russia, the United Kingdom, and the US; plus Germany) देशों के साथ जिनेवा में एक परमाणु समझौता हस्ताक्षरित किया था. 2015 के इस परमाणु समझौते में ईरान अपनी संवेदनशील परमाणु गतिविधियों को सीमित करने और अन्तर्राष्ट्रीय निरीक्षकों को जांच की अुनमति देने पर राजी हुआ था. इसके बदले ईरान के खिलाफ लगे कड़े आर्थिक प्रतिबंध को हटाने का प्रावधान था.

2018 में अमेरिका इस परमाणु समझौते से अलग हो गया था. परन्तु रूस, चीन, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम अभी भी इस समझौते में बना हुआ है.

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अमेरिका और UAE के बीच 7वां ‘नेटिव फ्यूरी’ सैन्य अभ्यास आयोजित किया गया

अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की इलीट फोर्स के बीच ‘नेटिव फ्यूरी’ (Native Fury) सैन्य अभ्यास का हाल ही में समापन हो गया. इस अभ्यास का आयोजन 8 से 23 मार्च तक UAE के अल हमारा सैन्य अड्डे पर किया गया था. यह इस अभ्यास का 7वां संस्करण था.

नेटिव फ्यूरी अभ्यास में अमेरिका ने अपने अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया. इस अभ्यास में अमेरिका के मरीन कमांडो और अमीराती कमांडो ने खासतौर पर हिस्सा लिया था.

इस अभ्यास के लिए खासतौर पर कई निर्माण किए गए थे. रेत के टीले तैयार किए गए थे, मस्जिद तैयार की गई और कई इमारतें बनाई गई थीं. ज्यादातर निर्माण दिखावटी थीं लेकिन युद्ध स्थितियों को ध्यान में रखकर यह सब किया गया था. इसमें हेलीकॉप्टर और जहाजों से जमीन और पानी में दुश्मनों की खोज का अभ्यास भी गया.

नेटिव फ्यूरी: एक दृष्टि

अमेरिका और UAE के बीच ‘नेटिव फ्यूरी’ (Native Fury) सैन्य अभ्यास का आयोजन प्रत्येक 2 वर्ष में एक बार किया जाता है. पहला ‘नेटिव फ्यूरी अभ्यास 2008 में आयोजित किया गया था.

ईरान ने भड़कावे वाला कदम बताया था

यह सैन्य अभ्यास ईरान से चल रहे अमेरिका के तनावपूर्ण संबंधों के बीच संपन्न हुआ. ईरानी सैन्य जनरल को मारने की अमेरिकी कार्रवाई के बाद क्षेत्र में तनाव बढ़ा हुआ है. इस अभ्यास को लेकर ईरान ने अमेरिका का भड़कावे वाला कदम बताया है, जबकि अमेरिकी सेना के ब्रिगेडियर जनरल थॉमस सावेज ने इससे इन्कार किया है.

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अमेरिका ने अपनी पहली हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया

अमेरिका ने 20 मार्च को अपनी पहली हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया. यह परीक्षण थल सेना और नौसेना द्वारा संयुक्त रूप से किया गया. इस परीक्षण में मिसाइल ने निर्धारित लक्ष्य तक हाइपरसोनिक गति यानी ध्वनि की गति से पांच गुणा अधिक तेजी से उड़ान भरी.

इस मिसाइल की चाल 6,200 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा है. यह बैलेस्टिक मिसाइल परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम होगी. इस परीक्षण से पहले अक्टूबर, 2017 में अमेरिकी सेना एवं नौसेना ने पहला संयुक्त परीक्षण किया था. तब इस प्रतिकृति मिसाइल ने दर्शाया था कि वह हाइपरसोनिक रफ्तार से लक्ष्य की दिशा में उड़ सकती है.

हाइपरसोनिक मिसाइल: एक दृष्टि

हाइपरसोनिक मिसाइल को दुनिया की सबसे तेज हमलावर मिसाइल माना जाता है. इस रफ्तार से उड़ने वाली मिसाइल को किसी भी रडार और एयर डिफेंस सिस्टम से पकड़कर उसे रोकने के लिए कार्रवाई कर पाना असंभव सा है. इससे किसी भी युद्ध का नक्शा बदल सकता है.

हाइपरसोनिक मिसाइल क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइल दोनों के फीचर्स से लेस होती हैं. यह मिसाइल लॉन्च के बाद पृथ्वी की कक्षा से बाहर जाती है. इसके बाद जमीन या हवा में मौजूद टारगेट को निशाना बनाती है. इन्हें रोकना काफी मुश्किल होता है.

रूस ने ‘एवेनगार्ड’ हाइपरसोनिक मिसाइल

अमेरिका ने अपने हाइपरसोनिक मिसाइल का विकास रूस के जवाब में किया है. अमेरिका से पहले दिसंबर 2019 में रूस ने ‘एवेनगार्ड’ हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया था. रूस के अनुसार इस मिसाइल की चाल 33000 किलोमीटर प्रति घंटा है. रूस ने अपनी सेना में इसे शामिल कर लिया है.

चीन ने भी हाल ही में अपने पास हाइपरसोनिक मिसाइल ‘डोंगफेंग-41’ होने का दावा किया था. इस चीनी मिसाइल की मारक क्षमता 15000 किलोमीटर है. इस मिसाइल की गति 25 मैक है, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई.

मिसाइलों की गति को मैक में प्रदर्शित किया जाता है. एक मैक की गति का मतलब ध्वनि की गति के बराबर चाल है. अमेरिका की रिम-161 एसएम-3 मिसाइल की गति 13.2 मैक है और मारक क्षमत 2500 किलोमीटर है. भारत के सबसे तेज ब्रह्मोस मिसाइल की गति 2.8 मैक है. यह 290 किमी तक मार कर सकती है.

हाइपरसोनिक मिसाइलों के निर्माण में भारत की स्थिति

रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने भारत की अगली पीढ़ी की हाइपरसोनिक मिसाइलों का निर्माण शुरू कर दिया है. इन मिसाइलों के परीक्षण के लिए ‘एक विंड’ टनल बनाया गया है.

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अमेरिका ने इराक के नए प्रधानमंत्री अदनान जुरफी को समर्थन देने की घोषणा की

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने इराक के नए प्रधानमंत्री अदनान जुरफी को समर्थन देने की बात कही है. उन्होंने कहा कि इराक के लोग देश की संप्रभुता को बनाए रखने के अलावा लोगों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने वाली भ्रष्टाचार मुक्त सरकार चाहते हैं, जो कि उनके मानवाधिकारों की रक्षा भी करें. अगर इराक के नवनियुक्त प्रधानमंत्री इन मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं, तो उन्हें अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन मिलेगा.

पोम्पियो ने इससे पहले रविवार को इराक के पूर्व प्रधानमंत्री अदेल अब्दुल मेंहदी से इराक में अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना की सुरक्षा के मद्देनजर कुछ निश्चित कदम उठाने की बात कही थी. पूर्व प्रधानमंत्री मेंहदी ने दो माह पूर्व ही पद से इस्तीफा दे दिया था और वे सिर्फ अंतरिम तौर पर पद संभाले हुए थे.

अदनान जुरफी नये प्रधानमंत्री नियुक्त किये गये थे

इराक के राष्ट्रपति बरहाम सालेह ने 17 मार्च को अदनान जुरफी को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया था. जुरफी पवित्र शिया शहर नजफ के पूर्व गवर्नर थे. जुरफी के पास अपने मंत्रिमंडल का गठन करने के लिए 30 दिनों का समय है. जिसके बाद पद बने रहने के लिए उन्हें इराक के संसद से विश्वास मत हासिल करना होगा.

अदनान जुरफी को निवर्तमान प्रधानमंत्री आदिल अब्देल मेहदी की जगह नियुक्त किया गया है. मेहदी ने दिसंबर 2019 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. प्रदर्शनकारियों ने उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार एवं अक्षमता के आरोप लगाया था.

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WHO ने कोविड-19 के प्रकोप को वैश्विक महामारी घोषित किया

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) ने COVID-19 (नोवल कोरोना वायरस) के प्रकोप को ‘पैन्‍डेमिक’ यानी वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है. संगठन के प्रमुख टेडरोस अधनॉम गेब्रेयेसस ने बीमारी से निपटने के लिए की जा रही कार्रवाई को अपर्याप्‍त बताया. वर्तमान में COVID-19 से संक्रमित लोगों की संख्या 1,26,369 है. इस बीमारी के कारण अब तक 4,634 लोगों की मौत हो चुकी है.

किसी बीमारी को तब पैन्‍डेमिक करार दिया जाता है, जब यह कई देशों और महाद्वीपों में फैल जाती है. विश्‍व के स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों का कहना है कि किसी बीमारी को वैश्विक महामारी करार देने के गंभीर राजनीतिक और आर्थिक परिणाम हो सकते हैं.

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने इससे पहले 2009 में ‘H1N1 इन्‍फ्लुएन्‍जा’ के प्रकोप को वैश्विक महामारी घोषित किया था. H1N1 इन्फ्लुएंजा, H1N1 वायरस से होने वाली बीमारी है. इस बीमारी के कारण वैश्विक आबादी में 11% से 21% हिस्सा प्रभावित हुआ था. इसकी बीमारी की पहचान सबसे पहले मेक्सिको में हुई थी.

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अफगानिस्तान में राजनीतिक संकट: अशरफ गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली

अफगानिस्तान में 9 मार्च को दो प्रतिंद्वद्वी नेताओं- अशरफ गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने समांतर समारोहों में राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली. वहीं अशरफ गनी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान लगातार विस्फोट हुए. इससे वहां राजनीतिक संकट गहरा गया और इस दौरान राजधानी में कम से कम दो विस्फोट भी हुए. इससे तालिबान के साथ वार्ता की अमेरिका की योजना पर ही संकट गहरा गया.

चुनाव परिणामों में अशरफ गनी को जीत

18 फरवरी को घोषित हुए चुनाव परिणामों में अशरफ गनी को जीत हासिल हुई थी. लेकिन अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने मतगणना में धांधली का आरोप लगते हुए इस चुनाव परिणाम को मनाने से माना कर दिया था. अशरफ गनी के राष्ट्रपति पद के शपथ की घोषणा के बीच ही अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने भी खुद को राष्ट्रपति घोषित करते हुए शपथ की घोषणा कर दी थी.

अशरफ गनी तालिबान के कैदियों को रिहा करेगी

अशरफ गनी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अफगानिस्तान में शांति के लिए तालिबान के कैदियों को रिहा करने की घोषणा की. अफगान सरकार की नार्वे में तालिबान के साथ शांति वार्ता होनी है. वार्ता के तहत अफगान सरकार और तालिबान को एक दूसरे के कैदी छोड़ने होंगे. हालांकि, पहले गनी ने कैदियों को छोड़ने से मना कर दिया था.

अफगानिस्तान राष्ट्रपति चुनाव

अफगानिस्तान में 28 सितंबर 2019 को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए थे. अब्दुल्ला ने मतगणना में धांधली का आरोप लगाया था. दोबारा वोटों की गिनती के बाद 18 फरवरी को परिणाम जारी किए गए थे. 50.64% वोटों के साथ अशरफ गनी की जीत हुई थी. लेकिन अब्दुल्ला ने इसे मानने से इनकार कर दिया था.

कौन है अब्दुल्ला अब्दुल्ला?

अशरफ गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला पुराने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं. अब्दुल्ला अब्दुल्ला अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हैं. वह अफगानिस्तान के विदेश मंत्री भी रह चुके हैं. पिछली सरकार में विवाद होने पर उन्हें मुख्य कार्यकारी बनाकर सत्ता में साझेदार बनाया गया था.

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