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भारतीय सेना ने स्वदेश निर्मित SDRs खरीदने के लिए अनुबंध किया

भारतीय सेना ने पहली बार स्वदेशी डिजाइन और निर्मित ‘सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो’ (SDRs) का पहला बैच खरीदने के लिए अनुबंध किया है.

यह कदम भारतीय सेना की संचार क्षमताओं को मजबूत करने और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

अनुबंध के मुख्य बिन्दु

  • यह भारतीय सेना द्वारा खरीदा गया पहला स्वदेशी डिज़ाइन और निर्मित सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो (SDR) है.
  • SDR का डिजाइन रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने जबकि इसका निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने किया है.

सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो (SDR)

  • SDR एक ऐसा वायरलेस संचार उपकरण है जहाँ रेडियो सिस्टम के घटकों (जैसे मॉड्यूलेशन, डीमॉड्यूलेशन, फ़िल्टरिंग आदि) को आमतौर पर सॉफ्टवेयर के माध्यम से बदला जा सकता है. पहले यह काम हार्डवेयर (जैसे एनालॉग सर्किट) के माध्यम से किया जाता रहा.

SDR का उपयोग

  • सैन्य और सुरक्षा: विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मानकों का समर्थन करने वाले संचार उपकरणों के लिए.
  • दूरसंचार: 5G जैसे नए वायरलेस नेटवर्क के बेस स्टेशनों में.
  • शोध एवं विकास: नए वायरलेस प्रोटोकॉल और संचार तकनीकों के परीक्षण के लिए.
  • शौकिया रेडियो (Ham Radio): शौकिया रेडियो ऑपरेटरों द्वारा प्रयोगों और लचीले संचार के लिए.

पनडुब्बी रोधी युद्धपोत ‘आईएनएस माहे’ को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया

स्वदेश निर्मित पनडुब्बी रोधी युद्धपोत ‘आईएनएस माहे’ (INS Mahe) को 25 अक्टूबर 2025 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया है. यह भारतीय नौसेना की पनडुब्बी रोधी क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण वृद्धि है.

आईएनएस माहे

  • आईएनएस माहे, पनडुब्बी रोधी युद्धपोत शैलो वॉटर क्राफ्ट (ASW SWC – Anti-Submarine Warfare Shallow Water Craft) है.
  • यह स्वदेशी रूप से विकसित ASW SWC श्रृंखला का पहला जहाज है, जिसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया है.
  • इसका निर्माण कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (Cochin Shipyard Limited – CSL) द्वारा किया गया है. यह उन्नत टॉरपीडो, रॉकेट और सोनार सिस्टम से लैस है.
  • यह लगभग 80% स्वदेशी उपकरणों से लैस है, जो भारत के आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) मिशन की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है.
  • इस युद्धपोत को मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों (Shallow Water) में दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगाने और उनसे निपटने की नौसेना की क्षमता को मजबूत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
  • इस युद्धपोत का नाम पुडुचेरी केंद्र शासित प्रदेश के ऐतिहासिक माहे बंदरगाह शहर के नाम पर रखा गया है, जो भारत की समृद्ध समुद्री विरासत का प्रतीक है.

तेजस LCA MK-1A लडा़कू जेट विमान का अनावरण

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के नासिक प्लांट में निर्मित पहले तेजस LCA MK-1A लड़ाकू विमान ने 17 अक्टूबर 2025 को अपनी पहली उड़ान भरी.

  • इस अवसर पर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मौजूद थे. इस दौरान रक्षा मंत्री ने HAL के नासिक प्लांट में LCA के लिए तीसरी प्रोडक्शन लाइन और HTT-40 ट्रेनर विमान के लिए दूसरी प्रोडक्शन लाइन का भी उद्घाटन किया.
  • LCA MK-1A, भारतीय वायुसेना से हाल ही में हटाए गए MiG-21 विमानों की जगह लेगा.

तेजस LCA MK-1A

  • तेजस LCA MK-1A (लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट मार्क-1A) भारत का एक उन्नत और स्वदेशी रूप से विकसित बहु-भूमिका वाला लड़ाकू विमान है. यह तेजस LCA MK-1 का उन्नत संस्करण है.
  • यह 4.5वीं पीढ़ी का उन्नत मल्टी-रोल फाइटर जेट है जिसकी गति मैक 1.8 तक (लगभग 2,222 किमी प्रति घंटा) है.
  • यह हवा से हवा में ईंधन भरने (Air-to-Air Refueling – IFR) की क्षमता से सुसज्जित है.

लखनऊ में निर्मित ब्रह्मोस मिसाइलों की पहली खेप रवाना

लखनऊ में निर्मित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों की पहली खेप को 18 अक्टूबर 2025 (शनिवार) को रवाना किया गया.

  • रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संयुक्त रूप से मिसाइलों की पहली खेप को रवाना किया.
  • यह खेप ‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड’ पहल के तहत भारत की बढ़ती स्वदेशी रक्षा क्षमताओं का प्रतीक है.
  • इस अत्याधुनिक केंद्र में प्रतिवर्ष 80 से 100 ब्रह्मोस मिसाइलों का उत्पादन करने का लक्ष्य है, जिसे बाद में बढ़ाया जा सकता है.
  • इस सुविधा से अगले वित्तीय वर्ष से लगभग ₹3,000 करोड़ का कारोबार होने और ₹500 करोड़ का जीएसटी राजस्व मिलने की उम्मीद है.

लखनऊ ब्रह्मोस यूनिट

  • लखनऊ ब्रह्मोस निर्माण यूनिट, उत्तर प्रदेश डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (UPDIC) की सबसे महत्वपूर्ण परियोजनाओं में से एक है, जो मिसाइल के असेंबली, इंटीग्रेशन और परीक्षण (Testing) का पूरा काम भारत में ही करती है.
  • इस अत्याधुनिक केंद्र में प्रतिवर्ष 80 से 100 ब्रह्मोस मिसाइलों का उत्पादन करने का लक्ष्य है, जिसे बाद में बढ़ाया जा सकता है.

ब्रह्मोस मिसाइल

  • ब्रह्मोस (BrahMos) मिसाइल दुनिया की सबसे तेज़ और घातक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलों में से एक है. यह भारत की रक्षा क्षमताओं की रीढ़ मानी जाती है और ‘मेक इन इंडिया’ का एक प्रमुख प्रतीक है.
  • यह मिसाइल भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और रूस के एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया का एक संयुक्त उद्यम है, जिसके तहत ब्रह्मोस एयरोस्पेस का गठन किया गया है.
  • इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है.
  • अपनी सुपरसोनिक गति (मैक 3), उच्च सटीकता और विस्तारित मारक क्षमता के कारण भारतीय सशस्त्र बलों की रीढ़ मानी जाती है.
  • इसके उन्नत संस्करणों की रेंज 450 किमी से 800 किमी तक है. इसे भूमि (मोबाइल ऑटोनॉमस लॉन्चर से), समुद्र (युद्धपोतों और पनडुब्बियों से) और वायु (Su-30MKI फाइटर जेट से) लॉन्च किया जा सकता है.

स्‍वदेशी स्टील्थ युद्धपोत उदयगिरि और हिमगिरि भारतीय नौसेना के बेड़े में श‍ामिल

  • अत्याधुनिक स्‍वदेशी स्टील्थ युद्धपोत ‘उदयगिरि’ और ‘हिमगिरि’ को 26 अगस्त को भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया.
  • रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विशाखापत्तनम स्थित नौसेना अड्डे पर इन दोनों युद्धपोतों का जलावतरण किया.
  • उदयगिरि और हिमगिरि दोनों युद्धपोतों को भारत सरकार के ‘प्रोजेक्ट 17A’ के तहत विकसित किया गया है.
  • ‘उदयगिरि’ को मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) ने, वहीं ‘हिमगिरि’ को गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) ने बनाया है. ऐसा पहली बार है, जब दो युद्धपोतों का एकसाथ एक ही जगह पर जलावतरण किया गया.

प्रोजेक्ट 17A (नीलगिरि श्रेणी)

  • सरकार ने वर्ष 2015 में ‘प्रोजेक्ट 17A‘ को मंज़ूरी दी थी. इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत 50,000 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत के सात स्टील्थ युद्धपोतों का निर्माण किया जाना है. इन युद्धपोतों को नीलगिरि श्रेणी के फ्रिगेट नाम से जाना जाता है.
  • इन सात युद्धपोतों में से, तीन का अनुबंध गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) को प्रदान किया गया था, जबकि अन्य चार युद्धपोतों का अनुबंध मझगांव डॉक्स लिमिटेड (MDL) को दिया गया था.
  • GRSE द्वारा बनाए जा रहे तीन स्टील्थ युद्धपोत- हिमगिरि, दूनागिरि और विंध्यगिरि हैं. MDL द्वारा बनाए जा रहे चार स्टील्थ युद्धपोत हैं- नीलगिरि, उदयगिरि, तारागिरि और महेंद्रगिरि.
  • प्रोजेक्ट 17A (नीलगिरि श्रेणी) के तहत निर्मित युद्धपोत, ‘प्रोजेक्ट 17’ (शिवालिक श्रेणी) के तहत निर्मित किए गए तीन  युद्धपोतों का उन्नत संस्करण है.
  • INS शिवालिक (F47), INS सतपुड़ा (F48), और INS सह्याद्री (F49) शिवालिक श्रेणी के तहत निर्मित किए गए तीन  युद्धपोत हैं जो भारतीय नौसेना के सेवा में हैं.
  • ‘हिमगिरि’ युद्धपोत, नौसेना के प्रोजेक्ट 17A के अंतर्गत GRSE द्वारा बनाए जा रहे तीन स्टील्थ युद्धपोतों में से पहला है.
  • नीलगिरि और उदयगिरि युद्धपोत पहले ही MDL द्वारा भारतीय नौसेना को सौंपा जा चुका है.
  • प्रोजेक्ट 17A के तहत निर्मित सभी युद्धपोतों का डिज़ाइन और निर्माण देश में ही किया जा रहा है और इनमें 75% अधिक स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया जाएगा.

स्टील्थ युद्धपोत क्या होता है?

  • स्टील्थ युद्धपोत अपनी निर्माण प्रक्रिया में स्टील्थ प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं, जिससे जहाज को विभिन्न पहचान तकनीकों, जैसे रडार, इन्फ्रारेड, सोनार और अन्य विधियों द्वारा पता लगाना कठिन होता है.

उदयगिरि और हिमगिरि: मुख्य विशेषताएं

  • दोनों युद्धपोत उदयगिरि और हिमगिरि करीब 6,700 टन के हैं और पूर्ववर्ती शिवालिक-क्लास युद्धपोतों से आकार में करीब 5% बड़े हैं.
  • इन स्टील्थ युद्धपोतों को बहुत सारे हथियारों से लैस किया जा सकता है. मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें भी इनसे आसानी से दागे जा सकते हैं.
  • इनकी डिजाइन ऐसी है कि रडार की पकड़ से बच जाते हैं. इन जहाजों के पास एंटी-सबमरीन हथियार भी हैं. ये ब्रह्मोस मिसाइल, टॉरपीडो और रॉकेटों आदि से भी लैस हैं.
  • यह युद्धपोत डीजल इंजनों और गैस टर्बाइनों के संयोजन से संचालित होता है. इसकी अधिकतम गति 30 नॉटिकल माइल्स है.
  • 149 मीटर लंबा और 6,670 टन वजनी हिमगिरि, GRSE के 65 वर्षों के इतिहास में अब तक निर्मित सबसे बड़ा और सबसे उन्नत गाइडेड-मिसाइल फ्रिगेट है.

MDL और GRSE: एक दृष्टि

  • GRSE (गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स), कोलकाता में स्थित एक प्रमुख भारतीय जहाज निर्माण कंपनी है. यह रक्षा मंत्रालय के तहत काम करती है. यह भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल के लिए युद्धपोतों और अन्य जहाजों का निर्माण करती है.
  • MDL (माझगाव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड) मुंबई में स्थित भारत का एक प्रमुख शिपयार्ड है. यह भारतीय नौसेना के लिए युद्धपोत, पनडुब्बियां और अपतटीय प्लेटफार्मों का निर्माण करता है. 1774 में स्थापित, यह भारत का सबसे बड़ा शिपयार्ड है.

मिशन सुदर्शन चक्र: भारत ने एकीकृत हवाई रक्षा प्रणाली का पहला सफल परीक्षण किया

भारत ने मिशन सुदर्शन चक्र के अंतर्गत 23 अगस्त को एकीकृत हवाई रक्षा प्रणाली (IADWS) का पहला सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने ओडिशा के चांदीपुर से किया था. इस दौरान प्रणाली से तीन लक्ष्यों को सफलतापूर्वक नष्ट किया.

एकीकृत हवाई रक्षा प्रणाली (IADWS)

IADWS का पूरा नाम Integrated Air Defence Weapon System है. यह एक बहु-स्तरीय स्वदेशी सतह-से-हवा में मार करने वाली कम दूरी की हवाई रक्षा प्रणाली है.

IADWS में, QRSAM (त्वरित मिसाइल), VSHORADS (वायु रक्षा प्रणाली) और DEW (लेजर आधारित उच्च ऊर्जा अस्त्र) शामिल हैं:

  1. QRSAM: QRSAM (Quick Reaction Surface-to-Air Missile) छोटी दूरी की मिसाइल प्रणाली है, जो तेजी से प्रतिक्रिया देती है. यह 3 से 30 km की दूरी तक लक्ष्य को नष्ट कर सकती है.
  2. VSHORADS: VSHORADS (Very Short Range Air Defence System) चौथी पीढ़ी का पोर्टेबल वायु रक्षा प्रणाली है. यह 300 मीटर से 6 किलोमीटर की दूरी तक ड्रोन, हेलीकॉप्टर और अन्य छोटे हवाई खतरों को नष्ट कर सकता है.
  3. DEW: DEW (Directed Energy Weapon): एक अत्याधुनिक लेजर हथियार है, जो ड्रोन और अन्य हवाई लक्ष्यों को 3 किलोमीटर से कम दूरी पर नष्ट कर सकता है.

इन तीनों हथियारों का संचालन एक केंद्रीकृत कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के जरिए होता है, जिसे DRDO ने विकसित किया है.

IADWS की विशेषताएं

  • IADWS विभिन्न प्रकार के हवाई खतरों जैसे ड्रोन, क्रूज मिसाइल, हेलीकॉप्टर और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमान—को नष्ट करने में सक्षम है. इसकी रेंज 30 km तक है.
  • यह पूरी तरह से स्वदेशी है जो आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को मजबूत करती है. ये बार-बार इस्तेमाल किए जा सकते हैं, जिससे इनकी लागत भी पारंपरिक हथियारों की तुलना में कम है.
  • IADWS का सबसे खास हिस्सा इसका लेजर आधारित डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) है. लेजर हथियारों की खासियत यह है कि वे प्रकाश की गति से सटीक हमला करते हैं.
  • यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि लेजर हथियारों की तकनीक में महारत हासिल करने वाले देशों की सूची में अब भारत भी शामिल हो गया है.

सुदर्शन चक्र मिशन

  • IADWS भारत के महत्वपूर्ण ठिकानों को हवाई हमलों से बचाने के लिए बनाई गई ‘सुदर्शन चक्र मिशन’ का हिस्सा है.
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर सुदर्शन चक्र की घोषणा की थी. उन्होंने कहा था कि यह रक्षा कवच न केवल दुश्मन के हमलों को रोकेगा, बल्कि जवाबी हमला करने की ताकत भी रखेगा.

भारत ने अग्नि-5 बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया

भारत ने 20 अगस्त को अग्नि-5 बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण ओडिशा के चांदीपुर स्थित एकीकृत परीक्षण केंद्र से किया गया था. यह परीक्षण सामरिक बल कमान के तत्वावधान में किया गया था.

अग्नि-5: मुख्य तथ्य

  • अग्नि-5 मध्यम दूरी की सतह-से-सतह पर मार करने वाली अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) है. यह परमाणु और पारंपरिक दोनों प्रकार के वारहेड ले जाने में सक्षम है.
  • इसकी मारक क्षमता 5,000 किलोमीटर है. यानी यह मिसाइल एशिया महाद्वीप के लगभग सभी देशों और यूरोप के कुछ हिस्सों तक आसानी से पहुंच सकती है.
  • इसका विकास रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन ने किया है. यह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है. सड़क-गतिशील (रोड-मोबाइल) लॉन्चर से भी दागी जा सकती है.

अग्नि श्रृंखला

  • अग्नि श्रृंखला भारत की परमाणु-सक्षम मिसाइलों का मुख्य आधार है. सबसे पहली अग्नि-1 की मारक क्षमता 700 किमी थी.
  • इसके बाद अग्नि-2 (2,000 किमी), अग्नि-3 (3,500 किमी) और अग्नि-4 (4,000 किमी) विकसित की गईं.
  • अग्नि-5 इस श्रृंखला की सबसे उन्नत मिसाइल है. अग्नि-5 मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) तकनीक से लैस है, जिससे यह एक ही प्रक्षेपण में कई लक्ष्यों पर वार कर सकती है.

वायु सेना के लिए 97 LCA तेजस मार्क-1A लड़ाकू विमान की खरीद को मंजूरी

केंद्र सरकार ने भारतीय वायु सेना के लिए 97 LCA (लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) तेजस मार्क-1A लड़ाकू विमान (फाइटर जेट्स) की खरीद को मंजूरी है. यह मंजूरी सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति (CCS) ने 19 अगस्त को दी थी.

  • इसके तहत 62,000 करोड़ रुपये की लागत से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) 97 LCA तेजस मार्क-1A का उत्पादन करेगी. ये लड़ाकू विमान पुराने हो चुके मिग-21 विमानों की जगह लेगा.
  • वर्तमान में IAF के पास 40 तेजस LCA मार्क-1 जेट्स हैं. 48000 करोड़ रुपये की लागत से 83 LCA मार्क-1A  के खरीद का ऑर्डर 2021 में HAL को दिया जा चुका है.

भारतीय वायुसेना को 42 फाइटर स्क्वाड्रन की जरूरत

  • भारतीय वायुसेना के पास वर्तमान में 31 फाइटर स्क्वाड्रन हैं, जबकि जरूरत 42 स्क्वाड्रन की है. एक स्क्वाड्रन में औसतन 18 जेट्स होते हैं.
  • भारतीय वायुसेना के पास वर्तमान में सुखोई Su-30 MKI (260 जेट्स), राफेल (36 जेट्स), मिग-29 (65 जेट्स), मिराज 2000 (44 जेट्स), जगुआर (130 जेट्स), और तेजस MK-1 (40 जेट्स) शामिल हैं.

तेजस लड़ाकू विमान

  • तेजस भारत द्वारा विकसित किया जा रहा एक हल्का जेट लड़ाकू विमान है. इसे रक्षा अनुसन्धान एवं विकास सङ्गठन (DRDO) की एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) ने डिजाइन किया है और हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड (HAL) इसका निर्माण कर रही है.
  • यह एक सीट और एक जेट इंजन वाला, अनेक भूमिकाओं को निभाने में सक्षम एक हल्का युद्धक विमान है.

तेजस LCA मार्क-1

  • तेजस LCA मार्क-1, 4.5 पीढ़ी का मल्टी-रोल सुपरसोनिक जेट है. इसका मतलब है कि यह हवा से हवा में और हवा से जमीन पर दोनों तरह के मिशन को पूरा करने में सक्षम है.
  • इसमें 65% से अधिक स्वदेशी सामग्री है. यह उन्नत AESA रडार, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सुइट और अस्त्र मिसाइल जैसी तकनीकों से लैस है.
  • वर्ष 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका नाम ‘तेजस’  दिया था.

तेजस LCA मार्क-2

  • तेजस LCA मार्क-2, तेजस का उन्नत संस्करण है, जो GE F414 इंजन से लैस होगा और 6,500 किलो पेलोड ले जा सकता है.
  • इसका पहला प्रोटोटाइप 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में उड़ेगा. 2029 से बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू होगा. यह मिग-29, मिराज 2000 और जगुआर की जगह लेगा.

भारतीय तटरक्षक बल के लिए पहला स्वदेशी होवरक्राफ्ट के निर्माण की शुरुआत

  • भारतीय तटरक्षक बल (ICG) के लिए पहले स्वदेशी एयर कुशन व्हीकल यानी होवरक्राफ्ट के निर्माण की औपचारिक शुरुआत 30 जुलाई 2025 को गोवा के चौगुले शिपयार्ड में हुई.
  • ICG के लिए 6 होवरक्राफ्ट के निर्माण को लेकर 24 अक्तूबर 2024 को रक्षा मंत्रालय और चौगुले शिपयार्ड के बीच समझौता हुआ था.
  • चौगुले शिपयार्ड, चौगुले एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड का एक हिस्सा है. यह गोवा में स्थित एक प्रमुख जहाज निर्माण और मरम्मत यार्ड है.
  • चौगुले शिपयार्ड द्वारा किया जाने वाला होवरक्राफ्ट का डिजाइन ब्रिटेन के ग्रिफॉन होवरवर्क मॉडल पर आधारित है. लेकिन, इसे भारतीय जरूरतों के मुताबिक ढाला गया है. इन होवरक्राफ्ट्स के शामिल होने से तटरक्षक बल की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी.

होवरक्राफ्ट क्या है?

  • होवरक्राफ्ट एक ऐसा वाहन है जो हवा के कुशन पर मंडराते हुए चलता है, जिससे यह जमीन, पानी, या किसी भी सतह पर चल सकता है. इसे एयर-कुशन व्हीकल (ACV) भी कहा जाता है.
  • एक शक्तिशाली पंखा होवरक्राफ्ट के नीचे हवा फेंकता है, जिससे एक एयर कुशन बनता है. यह एयर कुशन वाहन को सतह से ऊपर उठाता है, जिससे घर्षण कम हो जाता है और यह आसानी से चल सकता है

होवरक्राफ्ट से समुद्र तट की सुरक्षा

  • होवरक्राफ्ट भारत के 7,500 किलोमीटर लंबे समुद्र तट की सुरक्षा के लिए कम करेंगे. ऐसे इलाके जो पारंपरिक जहाजों के लिए दुर्गम होते हैं, यह वहां भी आसानी से चलेंगे.

अग्नि-नियंत्रण रडार की खरीद हेतु BEL के साथ अनुबंध

  • रक्षा मंत्रालय ने सेना के लिए वायु रक्षा अग्नि-नियंत्रण रडार (Air Defence Fire Control Radars)  की खरीद हेतु भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के साथ दो हज़ार करोड़ रुपये के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं.
  • ये अग्नि-नियंत्रण रडार दुश्मन के लड़ाकू विमानों, हमलावर हेलीकॉप्टरों और ड्रोन सहित सभी प्रकार के हवाई खतरों का पता लगाने में सक्षम होंगे.
  • 2,000 करोड़ रुपये की यह खरीद ‘भारतीय-स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित श्रेणी’ के ढांचे के तहत की जाएगी.
  • यह वायु रक्षा रेजिमेंटों के आधुनिकीकरण में एक महत्वपूर्ण साबित होगा और भारतीय सेना की परिचालन क्षमता को बढ़ाएगा.

DRDO ने ULPGM-V3 मिसाइल का सफल परीक्षण किया

ULPGM-V3 का सफल परीक्षण

  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने 25 जुलाई को मिसाइल ‘ULPGM-V3’ का सफल परीक्षण किया. यह परीक्षण आंध्र प्रदेश के कुरनूल स्थित नेशनल ओपन एरिया रेंज से किया गया.
  • परीक्षण के दौरान ULPGM-V3 को एक मानवरहित वायुयान (ड्रोन) से छोड़ा गया. इस मानवरहित वायुयान को बेंगलुरु की भारतीय स्टार्टअप न्यूस्पेस रिसर्च टेक्नोलॉजीज ने स्वदेशी रूप से विकसित किया है.

ULPGM-V3: मुख्य बिन्दु

  • ULPGM-V3 का पूरा नाम Unmanned Aerial Vehicle Launched Precision Guided Missile-V3 है.
  • ULPGM-V3 मानवरहित वायुयान (ड्रोन) से दागे जाने वाली सटीक मारक क्षमता वाली मिसाइल है. यह ULPGM-V2 का उन्नत संस्करण है.
  • यह मिसाइल विभिन्न प्रकार के लक्ष्यों को भेद सकती है. इसे मैदानी इलाकों और ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों दोनों में इस्तेमाल किया जा सकता है.
  • यह मिसाइल दिन और रात दोनों समय में लक्ष्यों को भेदने की क्षमता रखती है. इसमें दो-तरफा डेटा लिंक है, जिससे प्रक्षेपण के बाद इसके लक्ष्य में बदलाव किया जा सकता है.
  • यह तीन मॉड्यूलर वारहेड से लैस है जिसमें आधुनिक बख्तरबंद गाड़ियों को नष्ट करने के लिए बख्तरबंद रोधी प्रणाली है.

ULPGM का विकास

  • ULPGM मिसाइल का विकास DRDO ने स्वदेशी रूप से किया है. इस परियोजना में अडाणी डिफेंस, भारत डायनमिक्स लिमिटेड और लगभग 30 मध्यम एवं लघु स्टार्टअप ने सहयोग किया है.

DRDO: एक दृष्टि

  • DRDO, रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation) का संक्षिप्त रूप है. यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक संगठन है. यह सैन्य अनुसंधान तथा विकास से संबंधित कार्य करता है.
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है. DRDO का आदर्श वाक्य ‘बलस्य मूलं विज्ञानं’ है. पूरे देश में DRDO की 52 प्रयोगशालाओं का नेटवर्क है.
  • DRDO देश की सुरक्षा के लिए मिसाइल, रडार, सोनार, टॉरपीडो आदि का निर्माण करती है.

भारतीय नौसेना के नए पनडुब्बी रोधी युद्धपोत ‘अजय’ का जलावतरण

भारतीय नौसेना के लिए तैयार की गई उथले पानी का पनडुब्बी रोधी युद्धपोत (Anti-Submarine Warfare Shallow Water Craft) ‘अजय’ (Ajay) का 21 जुलाई को सफलतापूर्वक जलावतरण किया गया.

GRSE द्वारा तैयार की गई जलपोतों की श्रृंखला का अंतिम पोत

  • कोलकाता स्थित रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (GRSE) द्वारा तैयार की गई आठ पनडुब्बी रोधी जलपोतों की श्रृंखला का अंतिम पोत है.
  • इस प्रोजेक्ट के 8 पनडुब्बी रोधी युद्धपोत हैं: अर्नाला, अंजादीप, अमिनी, अग्रे, एंड्रोथ, अक्षय, अझिक्कल और अजय.
  • इस प्रोजेक्ट के तहत बनाए गए सभी आठ पोत भारतीय नौसेना के लिए विशेष रूप से डिजाइन और निर्मित किए गए हैं जिनमें 80% से ज्यादा स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल किया गया है.
  • केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने 2014 में भारतीय नौसेना के लिए 16 विशेष पनडुब्बी रोधी युद्धक पोतों (ASW SWC) के निर्माण को मंज़ूरी दी थी.
  • आठ युद्धक पोत GRSE को और आठ कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) को दिए गए थे. GRSE द्वारा विकसित जहाजों को ‘अर्नाला श्रेणी’, जबकि CSL द्वारा बनाए जा रहे जहाजों को ‘माहे श्रेणी’ कहा जाता है.

INS अजय की विशेषता

  • INS अजय पनडुब्बी रोधी युद्धपोत की लंबाई 77.6 मीटर और चौड़ाई 10.5 मीटर है. इसको खास तौर पर शैलो वॉटर (कम गहराई वाले समुद्र क्षेत्र) में पनडुब्बी खोज और हमले के लिए डिजाइन किया गया है.
  • इनकी प्रमुख विशेषताओं में सतही लक्ष्यों के विरुद्ध कार्रवाई, खदान बिछाने की क्षमता और तटीय क्षेत्रों में गश्त शामिल है.
  • ये युद्धपोत हल्के टॉरपीडो, पनडुब्बी रोधी रॉकेट और अत्याधुनिक हथियारों से लैस हैं. ये विमान के साथ समन्वित पनडुब्बी रोधी अभियान चलाने में भी सक्षम हैं.