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संसद से पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 प्रभाव में आया

  • वक्फ संशोधन अधिनियम (Waqf Amendment Bill) 08 अप्रैल 2025 से देश में प्रभावी. केंद्र सरकार ने इसको लेकर हाल ही में अधिसूचना जारी की थी.
  • अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने इससे संबंधित अधिसूचना भारत के राजपत्र (The Gazette of India) में प्रकाशित की थी.
  • वक्फ संधोशन विधेयक को संसद के दोनों सदनों और राष्ट्रपति से मंजूरी मिल गई थी. जिसके बाद से यह अधिनियम बन गया.
  • राज्‍यसभा ने वक्फ संधोशन विधेयक को 4 अप्रैल मंजूरी दी थी. 128 सदस्‍यों ने इस विधेयक के पक्ष में और 95 ने विपक्ष में मतदान किया.
  • लोकसभा में 3 अप्रैल को 288 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में जबकि 232 सदस्यों ने विरोध में मतदान किया था. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को विधेयक को अपनी मंजूरी दी थी.
  • वक्फ संशोधन विधेयक 2025 का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना, शासन संरचनाओं में सुधार करना और वक्फ संपत्तियों को दुरुपयोग से बचाना है.

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के मुख्य बिन्दु

  • इस अधिनियम के तहत वक्फ बोर्ड अब किसी भी संपत्ति पर मनमाने तरीके से दावा नहीं कर सकता है.
  • विवाद की स्थिति में अदालत में भी चुनौती दी जा सकती है और पांच साल तक इस्लाम का पालन करने वाला ही वक्फ को संपत्ति दान कर सकता है.
  • आदिवासी बहुल राज्यों और इलाकों में जमीन सहित अन्य संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित नहीं की जा सकेगी. वक्फ की ऐसी संपत्ति जो राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है, उसको बचा पाना मुश्किल होगा.
  • वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति होगी. इस्लाम धर्म के एक विशेषज्ञ का बोर्ड का सदस्य होना जरूरी है.
  • वक्फ बोर्ड और परिषद में दो महिला सदस्यों की नियुक्ति जरूरी. किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले सत्यापन अति आवश्यक.
  • जिला कलेक्टर वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण करेगा, स्वामित्व सुनिश्चित करेगा.
  • निर्णय लेने में गैर मुस्लिम, अन्य मुस्लिम, पसमांदा मुस्लिम, पिछड़े मुस्लिम और महिलाओं को भी शामिल किया जाएगा.

संसद ने त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक  पारित किया

  • संसद ने हाल ही में त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक 2025 पारित था. राज्य सभा ने यह विधेयक 1 अप्रैल 2025 को पारित किया गया था, जबकि लोकसभा ने इसे 26 मार्च 2025 को पारित किया था. राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद यह अधिनियम बन जाएगा.
  • इस विधेयक का उद्देश्य गुजरात के आनंद में सहकारी विश्वविद्यालय स्थापित करना है. यह देश का पहला सहकारी विश्वविद्यालय होगा.
  • इस विधेयक के अनुसार ग्रामीण प्रबंधन संस्थान आनंद (IRMA) का नाम बदलकर त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय कर दिया जाएगा. IRMA की स्थापना 1979 में गुजरात के आनंद में एक सोसायटी के रूप में की गई थी.
  • IRMA की स्थापना भारत में श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीस कुरियन के नेतृत्व में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी), भारत सरकार, गुजरात सरकार, भारतीय डेयरी निगम और स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट कोऑपरेशन के सहयोग से की गई थी.
  • भारत को दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए IRMA के सहयोग से 1970 में ऑपरेशन फ्लड (श्वेत क्रांति) शुरू किया गया था.
  • त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय होगा. यह सहकारी क्षेत्र की भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए शिक्षा और क्षमता निर्माण प्रदान करेगा.

1 जुलाई से तीन नये आपराधिक कानून को लागू किया गया

भारतीय संसद द्वारा पारित तीन नये आपराधिक कानून को 1 जुलाई 2024 से लागू कर दिया गया. संसद के शीतकालीन सत्र 2023 के दौरान इन कानूनों को पारित किया गया था. ये कानून हैं-  भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक.

मुख्य बिन्दु

  • भारतीय न्‍याय संहिता को भारतीय दण्‍ड संहिता (आईपीसी) 1860 के स्‍थान पर लागू किया गया है. यह देश में फौजदारी अपराधों से संबंधित प्रमुख कानून है.
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा सं‍हिता को दण्‍ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1973 के स्थान पर लागू किया गया है. इसमें गिरफ्तारी, अभियोग और जमानत की प्रक्रिया के प्रावधान हैं.
  • भारतीय साक्ष्‍य विधेयक, भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम 1872 का स्‍थान लिया है. इसमें देश के न्‍यायालयों में साक्ष्‍यों की स्वीकार्यता से जुडे प्रावधान हैं.
  • नए कानूनों में पूराने औपनिवेशिक कानूनों के विपरीत ‘न्याय’ प्रदान करने पर जोर दिया गया है, जबकि औपनिवेशिक कानूनों में ‘सज़ा’ पर अधिक ध्यान दिया जाता था.
  • ये नये आपराधिक कानून जांच, सुनवाई और अदालती प्रक्रियाओं में प्रौद्योगिकी के उपयोग पर बल देते हैं.
  • नए आपराधिक कानूनों के प्रमुख प्रावधानों में घटनाओं की ऑनलाइन रिपोर्टिंग, किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करना और साथ ही पीड़ितों को एफआईआर की मुफ्त प्रति मिलना शामिल है.
  • इसके अलावा, गिरफ्तारी की स्थिति में व्यक्ति को इच्‍छानुसार किसी व्‍यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार है.
  • नए कानून त्वरित न्याय और पीड़ितों के अधिकार सुनिश्चित करेंगे. नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच को भी प्राथमिकता दी गई है.
  • सरकार ने देश विरोधी गतिविधि के खिलाफ नए प्रावधानों के साथ राजद्रोह कानून को समाप्त कर दिया है.
  • सामूहिक दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के लिए अब 20 वर्ष की कैद या आजीवन कारावास की सजा होगी. नाबालिग से दुष्कर्म के लिए मौत की सजा दी जाएगी.
  • नए कानूनों में भीड की हिंसा (मॉब लिंचिंग) के विरूद्ध भी प्रावधान हैं. नस्ल, जाति, समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा और अन्य कारणों से जो मॉब्लिंचिंग होता है. इसमें सात वर्ष के कारावास से लेकर मृत्यु की सजा, आजीवन करावास तक इसके अंदर जोड़ा गया है.

सार्वजनिक परीक्षा अनुचित साधन रोकथाम अधिनियम 2024 को लागू किया गया

सार्वजनिक परीक्षा अनुचित साधन रोकथाम अधिनियम 2024 को 22 जून से लागू कर दिया गया. इसकी आधिकारिक अधिसूचना हाल ही में कार्मिक मंत्रालय ने जारी की थी. इस अधिनियम में प्रतियोगी परीक्षाओं में कदाचार और अनियमितताओं पर नियंत्रण के लिए कड़े दंड का प्रावधान किया गया है.

मुख्य बिन्दु

  • सार्वजनिक परीक्षा अनुचित साधन रोकथाम विधेयक, 2024 संसद से पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे 12 फरवरी को मंजूरी दी थी.
  • संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), कर्मचारी चयन आयोग (SSC), राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA), रेलवे भर्ती बोर्ड (RRB), बैंकिंग भर्ती परीक्षा निकायों और अन्‍य सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों को रोकने के लिए यह अधिनियम बनाया गया है.
  • इस अधिनियम में धोखाधड़ी रोकने के लिए न्यूनतम तीन से पांच साल की कैद का प्रावधान रखा गया है. साथ ही धोखाधड़ी के संगठित अपराधों में शामिल लोगों को 5 से 10 साल की कैद और न्यूनतम एक करोड़ रुपये का जुर्माना देना होगा.

सार्वजनिक परीक्षा कदाचार रोकथाम विधेयक 2024 को मंजूरी

राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सार्वजनिक परीक्षा कदाचार रोकथाम विधेयक (Public Examinations (Prevention of Unfair Means) Bill) 2024 को 13 फ़रवरी को मंजूरी दे दी. संसद ने हाल में बजट सत्र में यह विधेयक पारित किया था.

मुख्य बिन्दु

  • विधेयक का उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षाओं में धांधली और अनुचित तरीकों का इस्तेमाल रोकना है.
  • विधेयक में अपराध साबित होने पर तीन से 10 वर्ष तक के कारावास और 10 लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है.
  • इस विधेयक के तहत आने वाले सभी अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-समाधेय होंगे.

जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण संशोधन विधेयक 2024 संसद में पारित

संसद ने हाल ही में जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण संशोधन विधेयक 2024 पारित किया था. लोकसभा ने इसे 8 फ़रवरी को स्‍वीकृति दी, राज्यसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी थी.

मुख्य बिन्दु

  • जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण संशोधन विधेयक, 2024 के माध्यम से जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण अधिनियक, 1974 को संशोधित किया गया है.
  • अधिनियम के अंतर्गत जल प्रदूषण पर रोक लगाने और नियंत्रण के लिए केन्द्र और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है.
  • नए विधेयक के अंतर्गत कई उल्लंघनों को अपराधमुक्त किया गया है और जुर्माने लगाएं गए हैं. विधेयक के अनुसार प्रावधानों के उल्लंघन के लिए 10 हजार रुपये से 15 लाख रुपये तक का जुर्माना लगेगा.
  • शुरुआत में यह हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होगा.

संसद से तीन आपराधिक संहिता विधेयकों के पारित किया

भारतीय संसद से हाल ही में तीन तीन आपराधिक संहिता विधेयकों के पारित किया था. संसद के शीतकालीन सत्र 2023 के दौरान इन तीन विधेयकों को पेश किया गया था. ये विधेयक हैं-  भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक 2023.

भारतीय न्‍याय द्वितीय संहिता 2023, भारतीय दण्‍ड संहिता (आईपीसी) 1860 का स्‍थान लेगी. यह देश में फौजदारी अपराधों से संबंधित प्रमुख कानून है. भारतीय नागरिक सुरक्षा द्वितीय सं‍हिता 2023, दण्‍ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1973 का स्‍थान लेगी. इसमें गिरफ्तारी, अभियोग और जमानत की प्रक्रिया के प्रावधान हैं. भारतीय साक्ष्‍य द्वितीय विधेयक 2023, भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम 1872 का स्‍थान लेगी. इसमें देश के न्‍यायालयों में साक्ष्‍यों की स्वीकार्यता से जुडे प्रावधान हैं.

मुख्य बिन्दु

  • राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इन विधेयकों ने कानून का रूप ले लिया है. ये कानून औपनिवेशिक काल के पुराने आपराधिक कानूनों का स्थान लेंगे.
  • इन अधिनियमों में कानूनी, पुलिस और जांच प्रणालियों को अद्यतन किया गया है जिससे कमजोर लोगों के लिए सुरक्षा बढ़ती है. इससे संगठित अपराध और आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी प्रतिक्रिया की सुविधा भी मिलती है.
  • नए अधिनियमों में प्रथम सूचना रिपोर्ट से लेकर केस डायरी, आरोप पत्र और अदालत के फैसले तक की पूरी प्रक्रिया डिजिटल बनाने का प्रावधान है.
  • इन अधिनियमों में आतंकवादी गतिविधियों, मॉब लिंचिंग, भारत की संप्रभुता को खतरा पैदा करने वाले अपराधों को कानूनों में शामिल किया गया है और बलात्कार जैसे कई अपराधों में सजा में बढ़ोतरी की गई है.
  • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को एक नए अपराध की कैटेगिरी में डाला गया है. जबकि तकनीकी रूप से राजद्रोह को आईपीसी से हटा दिया गया है.
  • आतंकवादी कृत्य, जो पहले गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम जैसे विशेष कानूनों का हिस्सा थे, इसे अब भारतीय न्याय संहिता में शामिल किया गया है.
  • पॉकेटमारी जैसे छोटे संगठित अपराधों समेत संगठित अपराध से निपटने के लिए प्रावधान पेश किए गए हैं. पहले इस तरह के संगठित अपराधों से निपटने के लिए राज्यों के अपने कानून थे.
  • मॉब लिंचिंग, यानी जब पांच या अधिक लोगों का एक समूह मिलकर जाति या समुदाय आदि के आधार पर हत्या करता है, तो समूह के प्रत्येक सदस्य को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी.
  • शादी का झूठा वादा करके संबंध बनाने को विशेष रूप से अपराध के रूप में पेश किया गया है. व्यभिचार और धारा 377, जिसका इस्तेमाल समलैंगिक यौन संबंधों पर मुकदमा चलाने के लिए किया जाता था, इसे अब हटा दिया गया है.
  • पहले केवल 15 दिन की पुलिस रिमांड दी जा सकती थी. लेकिन अब अपराध की गंभीरता को देखते हुए इसे 60 या 90 दिन तक दिया जा सकता है.
  • छोटे अपराधों के लिए सजा का एक नया रूप सामुदायिक सेवा को शामिल किया गया है. सामुदायिक सेवा को समाज के लिए लाभकारी बताया गया है. जांच-पड़ताल में अब फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने को अनिवार्य बनाया गया है.
  • एफआईआर, जांच और सुनवाई के लिए अनिवार्य समय-सीमा तय की गई है. उदाहरण के लिए, अब सुनवाई के 45 दिनों के भीतर फैसला देना होगा, शिकायत के 3 दिन के भीतर एफआईआर दर्ज करनी होगी.
  • अब सिर्फ मौत की सजा पाए दोषी ही दया याचिका दाखिल कर सकते हैं. पहले गैर सरकारी संगठन या नागरिक समाज समूह भी दोषियों की ओर से दया याचिका दायर कर देते थे.

संसद ने केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2023 पारित किया

संसद ने हाल ही में केंद्रीय विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक (Central Universities Amendment Bill) 2023 पारित किया है. राज्यसभा ने 14 दिसम्बर को इसे मंजूरी दी जबकि लोकसभा ने इसे पहले ही पारित कर चुका था.

मुख्य बिन्दु

  • यह विधेयक विभिन्‍न राज्‍यों में शिक्षण और अनुसंधान के लिए केंद्रीय विश्‍वविद्यालयों की स्थापना से सम्‍बंधित है.
  • इसमें तेलंगाना के लिए केंद्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना का प्रावधान है. इसका नाम सम्‍मक्‍का-सरक्‍का केन्द्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय होगा.
  • इससे जनजातीय समुदाय के लोगों को उच्च शिक्षा और अनुसंधान की सुविधाएं प्राप्त होगी.

संसद ने जम्‍मू-कश्‍मीर आरक्षण-संशोधन विधेयक-2023 पारित किया

संसद ने हाल ही में जम्‍मू-कश्‍मीर आरक्षण-संशोधन विधेयक (Jammu and Kashmir Reservation Amendment Bill) 2023 और जम्‍मू-कश्‍मीर पुनर्गठन-संशोधन विधेयक-2023 पारित किया था. राज्‍यसभा ने इस विधेयक को 11 दिसम्बर को मंजूरी दी जबकि लोकसभा ने 6 दिसम्बर को स्‍वीकृति दी थी.

मुख्य बिन्दु

  • जम्‍मू-कश्‍मीर आरक्षण-संशोधन विधेयक-2023, जम्‍मू-कश्‍मीर आरक्षण विधेयक-2004 में संशोधन के बारे में है. इसके अंर्तगत अनुस‍ूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछडे लोगों को पेशेवर संस्‍थानों में नौकरियों तथा प्रवेश में आरक्षण का प्रावधान है.
  • जम्‍मू-कश्‍मीर पुनर्गठन-संशोधन विधेयक-2023, जम्‍मू-कश्‍मीर पुर्नगठन विधेयक-2019 में संशोधन से संबंधित है. इस विधेयक में जम्‍मू-कश्‍मीर विधानसभा में कुल 83 सीटों को निर्दिष्‍ट करने वाले 1950 के अधिनियम की दूसरी अनुसूची में संशोधन किया गया था.
  • प्रस्तावित विधेयक में सीटों की कुल संख्या बढाकर 90 करने का प्रावधान किया गया है. इसमें अनुसूचित जातियों के लिए 7 और अनुसूचित जनजातियों के लिए 9 सीटों का प्रस्ताव है.

संसद ने 128वां संविधान संशोधन विधेयक पारित किया

संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) ने हाल ही में संविधान का 128वां संशोधन विधेयक (128th Constitutional Amendment Bill) 2023 पारित किया था. इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान है.

इस विधेयक का नाम ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ (Nari Shakti Vandan Vidheyak) दिया गया था. केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक को संसद में पेश किया था.

128वां संविधान संशोधन विधेयक: मुख्य बिन्दु

  • यह विधेयक संसद के विशेष सत्र में पारित किया गया था. मुख्य रूप से इस विधेयक को पारित करने के लिए 18 से 21 सितम्बर तक के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था.
  • संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही 19 सितम्बर से नये संसद भवन में शुरू हुई थी. इस प्रकार नए संसद भवन में पारित होने वाला यह पहला विधेयक था.
  • राज्यसभा में यह विधेयक 21 सितंबर को सभी सदस्यों के समर्थन से पारित किया गया. इससे पहले लोकसभा ने इस विधेयक को पारित किया था, जिसमें दो सदस्यों को छोड़कर सभी सदस्यों ने समर्थन दिया था.
  • इस विधेयक को पारित कराने के लिए दो तिहाई बहुमत आवश्यक था. आगे इसे देश की 20 विधानसभाओं से भी मंजूरी दिलानी होगी.
  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून बन जाएगा और यह ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ कहलाएगा.
  • इस अधिनियम के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण 15 वर्ष के लिए लागू रहेगा, जिसकी अवधि संसद द्वारा और आगे बढ़ाई जा सकेगी.
  • इस अधिनियम के तहत जनगणना के आधार पर, परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी.
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए निर्धारित आरक्षण के भीतर ही महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान होगा.
  • वर्तमान लोकसभा में कुल 82 महिला सदस्य हैं, जो कुल 543 सदस्यों का 15 प्रतिशत से भी कम है.

निवार्चन आयुक्त (सेवा नियुक्ति शर्तें और पद की अवधि) विधेयक 2023

राज्य सभा में 11 अगस्त को मुख्य निवार्चन आयुक्त और अन्य निवार्चन आयुक्त (सेवा नियुक्ति शर्तें और पद की अवधि) विधेयक 2023 पेश किया गया था. विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह विधेयक पेश किया था.

विधेयक का उद्देश्य मुख्य निवार्चन आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव करना है.

विधेयक के मुख्य बिन्दु

  • इस विधेयक के मुताबिक, CEC और अन्य EC की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति करेगी। इस कमेटी में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री भी सदस्य होंगे. मुख्य न्यायाधीश (CJI) को शामिल नहीं किया गया है.
  • दरअसल, इससे पहले मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा चयन प्रक्रिया को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि अब CEC और EC की नियुक्ति का भी वही तरीका होगा, जो सीबीआई चीफ की नियुक्ति का है. अब तक CEC और EC की नियुक्तियां केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी.
  • सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने फैसले में कहा था कि अब ये नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस की कमेटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति करेंगे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि मौजूदा व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक संसद इस पर कानून ना बना दे.
  • CEC और EC का वेतन और भत्ते कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे. वर्तमान कानून के तहत उन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज के वेतन के बराबर वेतन दिया जाता है. वरीयता क्रम में CEC और EC को राज्य मंत्री से नीचे स्थान दिया जाएगा.
  • CEC और EC की नियुक्ति उन व्यक्तियों में से की जाएगी जो भारत सरकार के सचिव के पद के बराबर पद पर हैं या रह चुके हैं.
  • CEC और EC पद ग्रहण से छह साल की अवधि के लिए पद पर रहेंगे या जब तक वह 65 वर्ष की आयु पूरी नहीं कर लेते, जो भी पहले हो. मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे.
  • जब एक चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाता है, उसका कार्यकाल कुल मिलाकर छह साल से ज्यादा नहीं होगा. मौजूदा कानून भी उसी तर्ज पर है.

निर्वाचन आयोग (Election Commission)

  • देश का संविधान 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया. लेकिन भारत निर्वाचन आयोग को एक संवैधानिक संस्‍था के रूप में स्‍थापित करने वाला संविधान का अनुच्‍छेद 324 उन गिने-चुने प्रावधानों में से है जिन्हें पूरे दो महीने पहले 26 नवम्‍बर 1949 को ही लागू कर दिया गया था.
  • भारत निर्वाचन आयोग का गठन भारत के गणतंत्र बनने के एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को हो गया था. निर्वाचन आयोग लोकसभा, राज्य सभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करवाता है.
  • भारतीय संविधान का भाग 15 चुनावों से संबंधित है. संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं.
  • मूल संविधान में निर्वाचन आयोग में केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था. 1 अक्तूबर, 1993 को इसे तीन सदस्यीय आयोग वाला कर दिया गया. तब से निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं.

न्याय प्रणाली में सुधार के लिए संसद में तीन विधेयक पेश किए गए

भारत में न्याय प्रणाली में सुधार के लिए तीन विधेयक पेश किए गए हैं। ये विधेयक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त को लोक सभा में प्रस्तुत किया था। इन विधेयकों में भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 शामिल हैं.

ये विधेयक औपनिवेशिक काल में बने वर्तमान तीन कानूनों की जगह लेंगे. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता 2023, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1898 की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023; और भारतीय साक्ष्य संहिता (आईईए) 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 प्रभाव में आ जाएगा.

वर्तमान कानूनों में 313 बदलाव किए गए हैं, जिनका उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली को सशक्‍त बनाना है.

महिलाओं और बच्चों को त्वरित न्याय दिलाने के लिए विशेष प्रावधान किये गये हैं. संपूर्ण आपराधिक न्याय प्रणाली को डिजिटल बनाने पर विशेष ध्यान दिया गया है.

विधेयक के मुख्य बिन्दु

  • नई सीआरपीसी में 356 धाराएं होंगी जबकि पहले उसमें कुल 511 धाराएं होती थी.
  • सबूत जुटाने के टाइव वीडियोग्राफी करनी जरूरी होगी.
  • जिन भी धाराओं में 7 साल से अधिक की सजा है वहां पर फॉरेंसिक टीम सबूत जुटाने पहुंचेगी.
  • राज्य में किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देता है, चाहे अपराध कहीं भी हुआ हो.
  • 3 साल तक की सजा वाली धाराओं का समरी ट्रायल होगा. इससे मामले की सुनवाई और फैसला जल्द आ जाएगा.
  • 90 दिनों के अंदर चार्जेशीट दाखिल करनी होगी और 180 दिनों के अंदर हर हाल में जांच समाप्त की जाएगी.
  • चार्ज फ्रेम होने के 30 दिन के भीतर न्यायाधीश को अपना फैसला देना होगा.
  • गलत पहचान देकर यौन संबंध बनाने वालों को अपराध की श्रेणी में लाया जाएगा. गैंगरेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास की सजा होगी.
  • 18 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ यौन शोषण मामले में मौत की सजा का प्रावधान जोड़ा जाएगा.
  • राजद्रोह कानून पूरी तरह से खत्म किया गया है.