DRDO ने एरिया सैनिटाइजर टावर UV-BLASTER बनाया

रक्षा अनुसन्धान व विकास संगठन (DRDO) ने हाल ही में अल्‍ट्रावायलेट (UV) डिसइंफेक्‍टेंट टावर (Ultra Violet Disinfection Tower) बनाने में कामयाबी हासिल की है. इस टावर उपयोग कोरोना वायरस के अति संवेदनशील क्षेत्रों को कम समय में वायरस मुक्‍त करने के लिए किया जा सकता है. इस UV-आधारित एरिया सैनिटाइजर का नाम UV-BLASTER रखा गया है.

DRDO के लेज़र साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर (LASTEC) ने न्यू ऐज इंस्ट्रूमेंट एंड मैटीरियल्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ मिलकर UV-BLASTER बनाया है. यह उन सभी चीजों को सैनिटाइज करने के लिए आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है, जिन्हें साफ़ करने के लिए किसी केमिकल का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.

यह सैनिटाइजर एयरपोर्ट, शॉपिंग मॉल, फैक्ट्री, ऑफिस जैसी उन जगहों पर भी आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है, जिनका एरिया और आने वाले लोगों की संख्या ज्यादा होती है. इसे दूर से भी मोबाइल, लैपटॉप की मदद से Wi-Fi से कनेक्ट कर चला सकते हैं.

अल्ट्रावायलेट किरणों से काम करने वाले इस UV-BLASTER में 43 वाट UV-C के 6 लैंप लगते हैं जोकि 254 नैनोमीटर वेव लेंथ पर काम करते हैं ताकि 360 डिग्री यानि की हर तरफ रोशनी पहुंच सके. UV-BLASTER की मदद से 400 स्क्वायर फीट के कमरे को सैनिटाइज करने में लगभग 30 मिनट लगते हैं.

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वैज्ञानिकों ने ओजोन परत के सबसे बड़ा छेद के बंद हो जाने की पुष्टि की

यूरोपियन संघ के कोपर्निकस एटमॉस्फियर मॉनिटरिंग सर्विस (CAMS) के वैज्ञानिकों ने ओजोन लेयर के सबसे बड़ा छेद (Largest Hole on the Ozone Layer) के भर जाने की पुष्टि की है. यह ओजोन लेयर यह छेद उत्तरी ध्रुव (धरती का आर्कटिक वाला क्षेत्र) के ऊपर लगभग 10 लाख वर्ग किमी तक फैला था. यह ओजोन परत के इतिहास में पाया गया सबसे बड़ा छेद था. इस छेद की वजह से धरती पर बड़ा खतरा मंडरा रहा था.

CAMS के वैज्ञानिकों के अनुसार, इस छेद के बंद होने का मुख्य कारण ध्रुवीय भंवर है. ध्रुवीय भंवर चक्रवाती हवाएँ हैं जो ध्रुवीय क्षेत्रों में ठंडी हवाएं लाती हैं. CAMS ने कहा कि, इस साल ध्रुवीय भंवरें बहुत ज्यादा मजबूत हैं और इसके अंदर का तापमान बहुत ठंडा है.

ओजोन लेयर: एक दृष्टि

  • पृथ्वी की सतह से 20 से 30 किलोमीटर की ऊंचाई (समताप मंडल में) पर ओजोन गैस की एक परत पाई जाती है. इसे ही ओजोन लेयर कहा जाता है.
  • ओजोन लेयर सूर्य से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन (पराबैगनी विकिरणों) को पृथ्वी पर आने से रोकती है. इसीलिए पृथ्वी पर जीवन के लिए ओजोन परत बहुत महत्वपूर्ण है.
  • ओजोन लेयर में छेद का मुख्य कारण क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन्स होते है. स्ट्रेटोस्फेयर में इनकी मात्रा बढ़ने से ओजोन लेयर नुकसान पहुँचता है.
  • ओज़ोन ऑक्सीजन का ही एक प्रकार है और इसे O3 के संकेत से प्रदर्शित करते हैं. ऑक्सीजन के जब तीन परमाणु आपस में जुड़ते है तो ओज़ोन परत बनाते हैं.
  • ओजोन परत का निर्माण सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट रेडिएशन की वजह से होता है. जब यह अल्ट्रावायलेट किरणें सामान्य ऑक्सीजन (O2) के अणुओं पर गिरती हैं तो यह अक्सीजन के दोनों परमाणुओं को अलग-अलग कर देती है. मुक्त हुए यह दोनों ऑक्सीजन परमाणु, ऑक्सीजन के दूसरे अणु से मिलकर ओजोन (O3) का निर्माण करते हैं.
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‘प्लाज़्मा थैरेपी’ से ‘कोविड-19’ का उपचार, जानिए क्या है प्लाज़्मा थैरेपी

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने कोविड-19 के उपचार के लिए रोग मुक्त करने वाली ‘प्लाज़्मा थैरेपी’ (Plasma Therapy) को स्वीकृति दी है. इसका उद्देश्‍य उपचार के बाद कोविड-19 से पूरी तरह ठीक हुए व्‍यक्ति के खून के प्‍लाज्‍मा का उपयोग रोगियों के इलाज के लिए किया जाता है. इस थैरेपी में प्‍लाज्‍मा में मौजूद एंटीबॉडी के आधार पर रोगी व्‍यक्ति में वायरस रोधी क्षमता विकसित की जाती है. चीन और दक्षिण कोरिया में इस इलाज का इस्तेमाल हो रहा है.

श्री चित्रा तिरूनल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्‍थान को उपचार की स्वीकृति

ICMR ने केरल में श्री चित्रा तिरूनल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्‍थान को ‘प्लाज़्मा थैरेपी’ से कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों के उपचार की स्वीकृति दी थी. तिरूअनंतपुरम में यह संस्‍थान केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत राष्‍ट्रीय महत्‍व का संस्‍थान है.

प्लाज़्मा थैरेपी (Plasma Therapy): एक दृष्टि

  • वे मरीज़ जो किसी कोरोना वायरस संक्रमण (कोविड-19) से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी ऐंटीबॉडीज़ विकसित हो जाते हैं. इन ऐंटीबॉडीज़ की मदद से कोविड-19 के रोगी के रक्त में मौजूद वायरस को ख़त्म किया जा सकता है.
  • ठीक हो चुके मरीज़ का ELISA (The enzyme-linked immunosorbent assay) टेस्ट किया जाता है जिससे उसके शरीर में ऐंटीबॉडीज़ की मात्रा का पता लगता है.
  • फिर इस ठीक हो चुके रोगी के शरीर से ऐस्पेरेसिस विधि से ख़ून निकाला जाता है जिसमें ख़ून से प्लाज़्मा या प्लेटलेट्स जैसे अवयवों को निकालकर बाक़ी ख़ून को फिर से उसी रोगी के शरीर में वापस डाल दिया जाता है. ऐंटीबॉडीज़ केवल प्लाज़्मा में मौजूद होते हैं.
  • डोनर के शरीर से लगभग 800 मिलीलीटर प्लाज़्मा लिया जाता है. इसमें से संक्रमित रोगी को लगभग 200 मिलीलीटर ख़ून चढ़ाने की ज़रूरत होती है. यानी एक डोनर के प्लाज़्मा का चार रोगियों में इस्तेमाल हो सकता है.
  • 18 साल से 55 साल का कोई भी पुरुष जो कोरोना से ठीक हो चुका है प्लाज्मा दे सकता है. सभी अविवाहित महिला या विवाहित लेकिन जिसके बच्चे ना हो ऐसी महिला प्लाज्मा दे सकती हैं.
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नैनो विज्ञान और नैनो प्रौद्योगिकी पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन कोलकाता में आयोजित किया गया

नैनो विज्ञान और नैनो प्रौद्योगिकी (ICONST) 2020 पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन 5-7 मार्च को कोलकाता के बिस्वा बंगला पारंपरिक केंद्र में किया गया. इस सम्मलेन का आयोजन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के नैनो मिशन के तत्वावधान में किया गया था. आयोजन का उद्देश्य इस प्रमुख अनुसंधान क्षेत्र की हाल की प्रगतियो पर ध्यान केंद्रित करना था.

इस सम्मेलन में भौतिक, रासायनिक सामग्री के साथ-साथ जैविक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक विकास के कई विषयगत विषयों पर विचार-विमर्श किया गया. नैनो-सामग्रियों पर मौजूदा शोध के अलावा, कई उभरते क्षेत्रों जैसे कि क्वांटम मैटिरियल, ऊर्जा सामग्री और कृषि के लिए नैनो प्रौद्योगिकी को DST नैनो मिशन के चिन्हित क्षेत्रों में शामिल किया गया है.

प्रो. साबू थॉमस राष्ट्रीय अनुसंधान पुरस्कार से सम्मानित

उद्घाटन समारोह के दौरान, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोट्टायम के कुलपति प्रो. साबू थॉमस को नैनो विज्ञान के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी में राष्ट्रीय अनुसंधान पुरस्कार से सम्मानित किया गया. IIT मुम्बई के डॉ. सौरभ लोढ़ा और TIFR, मुंबई के डॉ. विवेक पोलशेट्टीवार को नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी में युवा अनुसंधान पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

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ISRO ने GSLV-F 10 जियो इमेजिंग सैटेलाइट, GISAT-1 के प्रक्षेपण की घोषणा की

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 5 मार्च को जियो इमेजिंग सैटेलाइट- GISAT-1 का प्रक्षेपण करेगा. यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से किया जायेगा.

इस प्रक्षेपण में GSLV-F 10 राकेट के माध्यम से GISAT-1 सैटेलाइट को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (भू-समकालीन स्थानांतरण कक्षा- GTO) में स्थापित किया जाएगा. इसके बाद, उपग्रह प्रणोदन प्रणाली का उपयोग करके अंतिम भूस्थिर कक्षा में पहुंच जाएगा. यह GSLV का 14वां उड़ान होगा.

GISAT-1: एक दृष्टि

  • GISAT-1 एक अत्याधुनिक तेजी से धरती का अवलोकन करने वाला उपग्रह है. इसका वजन 2,275 किलोग्राम है.
  • इस GSLV उड़ान में पहली बार चार मीटर व्यास का ओगिव आकार का पेलोड फेयरिंग (हीट शील्ड) प्रवाहित किया जा रहा है.
  • GISAT-1 में इमेजिंग कैमरों की एक विस्तृत श्रंखला है. ये निकट इंफ्रारेड और थर्मल इमेजिंग करने में सक्षम हैं. इन कैमरों में हब्बल दूरदर्शी जैसा 700 एमएम का एक रिची च्रीटियन प्रणाली का टेलीस्कोप का इस्तेमाल किया गया है.
  • इसमें कई हाइ-रिजोल्यूशन कैमरे हैं जो उपग्रह की ऑन-बोर्ड प्रणाली द्वारा ही संचालित होंगे. इसकी एक और खासियत ये है कि ये 50 मीटर से 1.5 किलोमीटर की रिजोल्यूशन में फोटो ले सकता है.
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वैज्ञानिकों ने घोंघे की एक नई प्रजाति खोजी, ग्रेटा थनबर्ग का नाम दिया

ब्रुनेई में वैज्ञानिकों ने घोंघे की एक नई प्रजाति की खोज की है. इस प्रजाति का नाम पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग के नाम पर ‘क्रास्पेडोट्रोपिस ग्रेटाथनबर्ग’ रखा गया है. यह घेंघा दो मिमी लंबा और एक मिमी चौड़ा है.

घोंघों की यह प्रजाति ‘केनोगैस्ट्रोपॉड्स’ समूह से संबंधित है. जमीन पर रहने वाली इस प्रजाति पर सूखा, तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और जंगलों की कटाई का असर होता है. नई प्रजाति के घोंघे ब्रूनेई के कुआला बेलालॉन्ग फील्ड स्टबडीज सेंटर के करीब पाए गए.

घोंघे का तापमान के प्रति संवेदनशील होने के कारण इसका नाम ग्रेटाथनबर्ग पर गया है. ग्रेटा जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनियाभर में जागरुकता फैलाने का काम कर रही हैं. यह सम्मान इन्हीं प्रयासों को देखते दिया गया है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रेटा थनबर्ग के नाम पर इसका नामकरण करने के पीछे हमारा उद्देश्य यह बताना है कि थनबर्ग की पीढ़ी को उन समस्याओं का समाधान भी ढूंढना होगा, जिन्हें उन्होंने पैदा नहीं किया.

ग्रेटा थनबर्ग: एक दृष्टि

ग्रेटा थनबर्ग जलवायु परिवर्तन के ख़तरों पर केंद्रित एक स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता हैं. अगस्त 2018 में, 15 वर्ष की उम्र में, ग्रेटा थनबर्ग ने स्वीडन की संसद के समक्ष पेरिस समझौते के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए विरोध प्रदर्शन किये जाने के कारण चर्चित हो गयीं थीं. 11 दिसम्बर 2019 को इन्हें ‘टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर’ का अवॉर्ड दिया गया था.

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (Climate Action Summit) को संबोधित करते हुए थनबर्ग ने विकसित देशों पर अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी न करने का आरोप लगाया था. विश्व नेताओं को भावुकता से संबोधित करते हुए ग्रेटा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण लोग यातना झेल रहे हैं, मर रहे हैं और पूरी पारिस्थितिकीय प्रणाली ध्वस्त हो रही है.

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NASA ने सूर्य के ध्रुवों की तस्वीर लेने के लिए सोलर ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट प्रक्षेपित किया

यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (NASA) ने 9 फरवरी को संयुक्त रूप से ‘सोलर ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट’ प्रक्षेपित किया है. इस महत्वाकांक्षी मिशन का उद्देश्य पहली बार सूर्य के ध्रुवों की तस्वरी लेना है. 1.5 अरब डॉलर की लागत वाले इस स्पेसक्राफ्ट को फ्लॉरिडा के केप कैनावरल एयर फोर्स स्टेशन से ‘यूनाइटेड लॉन्च अलायंस एटलस 5’ रॉकेट के माध्यम से प्रक्षेपित किया गया.

सोलर ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट 7 साल में कुल 4 करोड़ 18 लाख किलोमीटर दूरी तय करेगा. प्रक्षेपण के बाद पहले दो दिनों में इसके सोलर ऑर्बिटर अपने तमाम उपकरणों और ऐंटिना को तैनात करेगा जो धरती तक संदेश भेजेंगे और वैज्ञानिक आंकड़ों को जुटाएंगे. वैज्ञानिक सोलर ऑर्बिटर से सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के बारे में और ज्यादा जानकारी हासिल कर सकेंगे.

सोलर ऑर्बिटर से पहले यूलिसेस मिशन प्रक्षेपित किया था

ESA और NASA ने इससे पहले 1990 में ‘यूलिसेस मिशन’ प्रक्षेपित किया था, जिससे वैज्ञानिकों को सूर्य के चारों तरफ के अहम क्षेत्र को पहली बार मापने में मदद की थी. यूलिसेस में कैमरा नहीं लगा था लेकिन सोलर ऑर्बिटर पर कैमरे लगे हैं जो सूर्य के ध्रुवों की पहली बार तस्वीर मुहैया कराएंगे.

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क्रिस्टीना कोच ने किसी माहिला द्वारा सबसे लंबे समय तक अन्तरिक्ष में रहने का रिकॉर्ड बनाया

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की अंतरिक्ष यात्री क्रिस्टीना कोच अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर लगभग 11 महीने बिताने के बाद 6 फरवरी को सुरक्षित पृथ्वी पर लौट आईं. अंतरिक्ष में उनका यह मिशन किसी महिला का अब तक का सबसे लंबा मिशन था. कोच ने अंतरिक्ष में 328 दिन व्यतीत किये. इससे पहले नासा की पेगी व्हिटसन के पास था सबसे अधिक 289 दिन रहने का रिकॉड था.

क्रिस्टीना कोच के साथ यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के लुका परमितानो और रूसी अंतरिक्षक एजेंसी के अलेक्जेंडर स्कोवोर्तसोव भी थे. कोच 14 मार्च 2019 को पृथ्वी से रवाना हुई थीं. अपने मिशन के दौरान कोच ने 210 अनुसंधानों में हिस्सा लिया जो नासा के आगामी चंद्र मिशन और मंगल पर मानव को भेजने की तैयारियों में मददगार होंगे.

पेगी व्हिटसन का रिकॉर्ड तोडा, स्कॉट केली पहले स्थान पर

अमेरिकी की अंतरिक्ष यात्री क्रिस्टीना कोच ने पिछले वर्ष 28 दिसम्बर को किसी महिला द्वारा एक ही अंतरिक्ष उड़ान में 289 दिन रहने के पूर्ववर्ती रिकार्ड को तोड़ दिया था. उक्त रिकार्ड नासा की पेगी व्हिटसन ने 2016-2017 में बनाया था. अपने पहले ही मिशन में कोच लगातार सबसे लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने वाले अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों की सूची में स्कॉट केली के बाद दूसरे स्थान पर पहुँच गयी हैं जो 340 दिन तक लगातार अंतरिक्ष में रहे थे.

328 दिन में की 13.9 करोड़ किलोमीटर की यात्रा

अंतरिक्ष में 328 दिन के अपने प्रवास के दौरान कोच ने धरती के 5,248 चक्कर लगाते हुये 13.9 करोड़ किलोमीटर की यात्रा की है. उन्होंने अपने अंतिम स्पेसवॉक में जेसिका मीर के साथ बाहर निकली थीं. इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी स्पेसवॉक में पूरी तरह महिलाओं का दल अंतरिक्ष स्टेशन के बाहर गया हो.

अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) क्या है?

  • अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन (International Space Station) मानव निर्मित एक उपग्रह है. यह बाहरी अन्तरिक्ष (पृथ्वी से करीब 350 किलोमीटर ऊपर) में औसतन 27724 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से परिक्रमा कर रहा है. ISS एक अन्तरिक्ष शोध स्थल जिसे बनाने की शुरुआत 1998 में हुआ था और यह 2011 तक बन कर तैयार हो गया था.
  • ISS कार्यक्रम, संयुक्त राज्य की नासा, रूस की रशियन फेडरल स्पेस एजेंसी (RKA), जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA), कनाडा की कनेडियन स्पेस एजेंसी (CSA) और यूरोपीय देशों की संयुक्त यूरोपीयन स्पेस एजेंसी (ESA) की कई स्पेस एजेंसियों का संयुक्त उपक्रम है.
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‘क्लासिकल स्वाइन फीवर’ से बचाने के लिए कारगर टीका विकसित किया गया

घरेलू वैज्ञानिकों ने सूअरों को घातक ‘क्लासिकल स्वाइन फीवर’ (CSF) से बचाने के लिए एक नया और कारगर टीका विकसित किया है. यह संक्राम बुखार सूअरों के लिए जानलेवा साबित होता है और इससे देश में इनकी संख्या गिर रही है और सालाना अरबों रुपये का नुकसान होता है. वर्ष 2019 की पशुगणना के अनुसार भारत में सूअरों की संख्या वर्ष 2007 के एक करोड़ 11.3 लाख की तुलना में 90.6 लाख रह गई है.

इस टीका का विकास उत्तर प्रदेश में ICAR-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IBRI) द्वारा किया गया है. यह मौजूदा टीके की तुलना में काफी सस्ता होगा. स्वाइन फीवर का मौजूदा घरेलू टीके 15-20 रुपये प्रति खुराक और कोरिया से आयातित टीका 30 रुपये प्रति खुराक का है. इसकी तुलना में नया टीका केवल दो रुपये में है. मौजूदा वैक्सीन की दो खुराक की जगह नये टीके की बस एक खुराक ही एक वर्ष में देनी होगी.

IBRI के अनुसार क्लासिकल स्वाइन बुखार (CSF) को नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण पर्याप्त नहीं हो रहा है. जिसके कारण सूअरों की मृत्यु दर काफी ऊंची है और देश को लगभग 4.29 अरब रुपये की वार्षिक हानि होती है. विशेषज्ञों के अनुसार देश में टीकों की दो करोड़ खुराक की वार्षिक आवश्यकता है जबकि उपलब्धता केवल 12 लाख खुराक की ही है.

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ISRO ने स्कूली छात्रों के लिए यंग साइंटिस्ट प्रोग्राम का दूसरा संस्करण शुरू किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 3 फरवरी को ‘युवा विज्ञानी कार्यक्रम- युविका’ (ISRO Young Scientist Programme) 2020 शुरू किया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य स्कूली छात्रों को अंतरिक्ष की जानकारी और उसकी टेकनोलॉजी की समझ को विकसित करना है.

युविका 2020 के लिए 24 फरवरी, 2020 तक www.isro.gov.in पर आवेदन किए जा सकते हैं. यह कार्यक्रम गर्मियों के छुट्टियों के दौरान दो सप्ताह 11 मई से 22 मई 2020 तक चलेगा.

इसरो का युविका कार्यक्रम 2019 में शुरू किया गया था. 2020 में इस कार्यक्रम का दूसरा संस्करण है. इस कार्यक्रम का मकसद बच्चों को स्पेस टक्नोलॉजी, स्पेस साइंस जैसी चीजों के बारे में जागरूक करना है.

योग्यता

जिन स्टूडेंट्स ने आठवीं की परीक्षा पास कर ली है और नौवीं में पढ़ाई कर रहे हैं, वह इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आवेदन कर सकते हैं. इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सीबीएसई, आईसीएसई और राज्‍य पाठ्यक्रम को मिलाकर हर राज्‍य/केंद्र शासित प्रदेश से तीन विद्यार्थियों का चयन किया जाएगा.

चयन

उम्मीदवारों का चयन ऑनलाइन पंजीकरण के जरिए किया जाएगा. इसके लिए 24 फरवरी तक ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया चलेगी. 8वीं के प्राप्त मार्क्स और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में प्रदर्शन के आधार स्टूडेंट्स का चयन होगा.

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गगनयान मिशन में मानव से पहले रोबोट ‘व्‍योम मित्र’ को अन्तरिक्ष भेजा जायेगा

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) गगनयान मिशन के अंतर्गत मानव को अन्तरिक्ष भेजने से पहले दो मानवरहित मिशनों का प्रक्षेपण करेगा. मानवरहित मिशन में ISRO ने अंतरिक्ष की स्थिति को बेहतर तरीके से समझने के लिए ह्यूमैनोयड मॉडल (मानव की तरह दिखने वाला रोबोट) भेजने की योजना बनाई है. इस ह्यूमनॉयड रोबोट को इसरो ने ‘व्योम मित्र’ नाम दिया है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख के सिवन ने कहा कि दिसंबर 2021 में भारत के प्रथम मानवयुक्त अंतरिक्षयान ‘गगनयान’ के प्रक्षेपण के मद्देनजर इसरो दिसंबर 2020 और जून 2021 में दो मानवरहित मिशनों का प्रक्षेपण करेगा. व्योम मित्र उसी का हिस्सा है.

गगनयान मिशन तीन चरणों में पूरा होगा

गगनयान मिशन तीन चरणों में पूरा किया जायेगा. दिसंबर 2020 और जून 2021 में दो मानवरहित मिशन और उसके बाद दिसंबर 2021 में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान. व्योम मित्र, वैज्ञानिक की तरह हर हलचल पर नज़र रखेगी. यह एक इंसान की तरह काम करेगा और वहां की जानकारियां उपलब्ध कराएगा.

गगनयान मिशन का उद्देश्य

गगनयान मिशन के तहत 2022 तक तीन भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजने का लक्ष्य है. इस मिशन का उद्देश्य न केवल अंतरिक्ष में भारत का पहला मानवयान भेजना है, बल्कि ‘निरंतर अंतरिक्ष मानव उपस्थिति’ के लिए नया अंतरिक्ष केंद्र स्थापित करना भी है. गगनयान इसरो के ‘अंतर-ग्रहीय मिशन’ के दीर्घकालिक लक्ष्य में भी मदद करेगा. अंतर-ग्रहीय मिशन दीर्घकालिक एजेंडे में शामिल है.

फ्रांस में दो हफ्ते का प्रशिक्षण

गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष भेजे जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों का चयन कर लिया गया है. ये अंतरिक्ष यात्री भारतीय वायुसेना के हैं. इन चुने गए अंतरिक्षयात्रियों की सेहत की निगरानी के लिए फ्रांस, भारतीय फ्लाइट सर्जनों को प्रशिक्षण देगा. दो हफ्ते का यह प्रशिक्षण गगनयान अभियान का अहम पहलू है.

मानव अंतरिक्ष उड़ान पर अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्‍ठी आयोजित की गयी

मानव अंतरिक्ष उड़ान और अन्‍वेषण, वर्तमान चुनौतियां और भावी रूझान विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्‍ठी बेंगलूरू में 22-24 जनवरी को आयोजित किया गया. भारतीय अं‍तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ एस्ट्रोनॉटिक्स एंड एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने संयुक्‍त रूप से इसका आयोजन किया था. 2022 तक भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयान’ के मद्देनजर यह संगोष्‍ठी महत्त्वपूर्ण है.

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विश्व भर के 11000 वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल की घोषणा की

विश्व भर के 153 देशों के 11000 वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल (Climate Emergency) की घोषणा कर दी है. ‘बायोसाइंस’ (Bioscience) नाम की पत्रिका में छपे एक लेख में 11258 मे से 69 भारतीय वैज्ञानिकों के भी हस्ताक्षर हैं.

जलवायु आपातकाल की घोषणा पिछले 40 सालों के दौरान कुछ क्षेत्रों के तय मानकों पर एकत्रित डेटा के आधार पर की गई है. यह घोषणा ऊर्जा उपयोग, सतह के तापमान, जनसंख्या वृद्धि, भूमि समाशोधन, वनों की कटाई, ध्रुवीय बर्फ द्रव्यमान, प्रजनन दर के वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित है.

वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन से जो हालात उपजे हैं उसने बचना आसान नहीं है. हालात सुधारने के लिए जलवायु पर हो रहे आघात तुरंत रोकना होगा. धरती के बढ़ते तापमान के लिए वैज्ञानिकों के समूह ने छह क्षेत्रों में तत्काल कदम उठाने पर जोर दिया है. ये हैं ऊर्जा, लघु प्रदूषक, प्रकृति, भोजन, अर्थव्यवस्था और जनसंख्या.