महिलाओं के स्‍वास्‍थ्‍य स्तर में सुधार के लिए जया जेटली की अध्यक्षता में कार्यदल का गठन

केंद्र सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय ने देश में महिलाओं के स्‍वास्‍थ्‍य तथा पोषण स्तर में सुधार के लिए 6 जून को एक कार्यदल का गठन किया है. इसकी प्रमुख जया जेटली होंगी. यह दल अपनी रिपोर्ट 31 जुलाई तक सौंपेगा. वित्‍तमंत्री निर्मला सीतारामन ने 2020-2021 के बजट में महिलाओं के लिए एक कार्यदल बनाने की घोषणा की थी.

यह कार्यदल शिशु मृत्‍यु दर, मातृ मृत्‍यु दर, कुल प्रजनन दर, जन्‍म लेने वाले शिशुओं और बच्चों में बालक-बालिका के अनुपात और स्‍वास्‍थ्‍य तथा पोषण से संबंधित अन्‍य मुद्दों पर विचार करेगा. यह महिलाओं में उच्‍च शिक्षा को बढ़ावा देने के उपाय भी सुझाएगा. यह दल इन विषयों से संबंधित विधायी उपायों और मौजूदा कानूनों में संशोधन के बारे में सुझाव देगा.

वायुसेना ने LCA तेजस के साथ नए स्‍क्‍वाड्रन ‘फ़्लाइंग बुलेट्स’ का शुभारंभ किया

वायुसेना ने हल्‍के लड़ाकू विमान LCA तेजस के साथ अपने नए स्‍क्‍वाड्रन नंबर-18 ‘फ़्लाइंग बुलेट्स’ के संचालन का शुभारंभ किया. वायुसेना प्रमुख एअर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने कोयम्‍बटूर के निकट सुलूर वायुसेना अड्डे में इसकी शुरूआत की.

फ़्लाइंग बुलेट्स आधुनिक बहुउद्देश्‍यीय लड़़ाकू विमान LCA तेजस के साथ संचालित होने वाली वायुसेना की दूसरी स्‍क्‍वाड्रन के रूप में काम करेगी. तेजस के साथ संचालित पहली स्‍क्‍वाड्रन का नाम नंबर-45 ‘फ़्लाइंग डैगर्स’ है जिसका मुख्‍यालय भी सुलूर वायुसेना अड्डा ही है.

नम्‍बर-18 स्‍क्‍वाड्रन

नम्‍बर-18 स्‍क्‍वाड्रन का गठन 1965 में हुआ था और श्रीनगर से संचालित और वहां उतरने वाला यह पहला स्‍क्‍वाड्रन था. इस स्‍क्‍वाड्रन से कुछ सैनिकों को 1971 में पाकिस्‍तान के साथ युद्ध के दौरान परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया था. इस स्‍क्‍वाड्रन को इस वर्ष सुलूर बेस में 1 अप्रैल से फिर शुरू किया गया है.

LCA तेजस

यह देश में ही निर्मित LCA तेजस चौथी पीढ़ी का लडाकू विमान है. इसे हिंदुस्‍तान एरोनॉटिक्‍स लिमिटेड (HAL) ने तैयार किया. LCA तेजस हल्‍के लड़ाकू विमान को सभी मानकों के साथ पूर्ण संचालन की मंजूरी मिल गयी है.

इस विमान में फ्लाई बाई वायर उड़ान नियंत्रित प्रणाली, एकीकृत डिजिटल वैमानिकी और बहुआयामी रडार प्रणाली है. इस सुपरसोनिक लड़ाकू विमान को अपनी तरह का सबसे हल्‍का और सबसे छोटा विमान माना जा रहा है.

अधीर रंजन चौधरी संसद के लोक लेखा समिति के अध्यक्ष चुने गए

कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी को संसद की लोक लेखा समिति (Parliament’s public accounts committee-PAC) के पुनः अध्यक्ष चुने गये हैं. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्षी दलों की राय से उन्हें इस समिति का अध्यक्ष चुना है. परंपरा के तौर पर इस समिति के अध्यक्ष का पद विपक्षी दल के नेता को दिया जाता रहा है.

अध्यक्ष सहित इस समिति में लोकसभा और राज्यसभा के 20 सदस्य चुने गए हैं. इनमें लोकसभा से 15 और राज्यसभा से 5 सदस्य शामिल हैं. समिति का कार्यकाल 1 मई 2020 से 30 अप्रैल 2021 तक रहेगा.

क्या है लोक लेखा समिति (PAC)?

  • लोक लेखा समिति (PAC) का काम सरकारी खर्चों के खातों की जांच करना है. जांच का आधार नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट होती है.
  • PAC की रिपोर्टों में सिफारिशें होती हैं जो तकनीकी रूप से सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होतीं. लेकिन, उन्हें गंभीरता से लिया जाता है और सरकार संसद में कार्रवाई नोट्स भी रखती है.
  • PAC संसद की सबसे पुरानी समिति है. इस समिति का प्रावधान 1921 में भारत सरकार अधिनियम 1919 में किया गया था.
  • PAC का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है. PAC के अध्यक्ष का चयन लोकसभा अध्यक्ष द्वारा विपक्षी दलों की राय से किया जाता है. इस समिति में अधिकतम 22 सदस्य हो सकते हैं.

‘महामारी रोग अधिनियम 1897’ में संशोधन के लिए अध्यादेश

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने ‘महामारी रोग अधिनियम 1897’ (The Epidemic Diseases Act of 1897) में संशोधन के लिए अध्यादेश लाने का फैसला किया है. यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 22 अप्रैल को हुई मंत्रीमंडल की बैठक में लिया गया. इस संशोधन अध्यादेश में स्वास्थ्य-कर्मियों पर हमला गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है. यानी थाने से आरोपी को जमानत नहीं मिल सकेगी.

स्वास्थ्य कर्मियों पर हमले के आरोपियों को पांच लाख रुपये तक जुर्माना और सात तक की सजा हो सकती है. ऐसे मामले की जांच वरिष्ठ इंस्पेक्टर के स्तर पर 30 दिन में पूरा करने और एक साल के भीतर अदालत में इसकी सुनवाई पूरी कर फैसला का प्रावधान कर दिया गया है.

महामारी रोग अधिनियम 1897 क्या है?

  • भारत में महामारी से निपटने के लिए ‘महामारी अधिनियम (एक्ट) 1897’ लागू किया गया था. इस कानून को अंग्रेजों के जमाने में उस समय लागू किया गया था जब भूतपूर्व बंबई स्टेट में बूबोनिक प्लेग ने महामारी का रूप लिया था. इस अधिनियम की चार धाराएं हैं.
  • इस अधिनियम का उपयोग उस समय किया जाता है, जब किसी भी राज्य या केंद्र सरकार को इस बात का विश्वास हो जाए कि राज्य व देश में कोई खतरनाक बीमारी प्रवेश कर चुकी है और समस्त नागरिकों में फैल सकती है.
  • 123 साल पुराने इस कानून में स्वास्थ्य कर्मियों के साथ हिंसक वारदातों के लिए सजा का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था. इस कानून की धारा 3 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति इस दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करता है तो भारतीय दंड संहिता की (IPC) धारा 188 के तहत सजा देने की बात कही गई थी.
  • संपूर्ण भारत में यह अधिनियम पहली बार COVID-19 से बचने के लिए मार्च 2020 में लागू किया गया. सन 1959 में हैजा के प्रकोप को देखते हुए उड़ीसा सरकार ने यह अधिनियम लागू किया था.

सरकार ने MPLAD फंड और सांसदों के वेतन में कटौती से संबंधित अध्यादेश को मंजूरी दी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 6 अप्रैल को संसद अधिनियम, 1954 के सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन में संशोधन के अध्यादेश को मंजूरी दी. इस मंजूरी के तहत 1 अप्रैल, 2020 से देश के सभी सांसदों के वेतन, भत्ते और पेंशन में एक साल तक 30 प्रतिशत की कटौती की जाएगी. इसके साथ ही सांसद निधि के लिए दी जाने वाली राशि भी दो साल तक के लिए स्‍थगित कर दी गई है.

संसद सदस्यों के वेतन कटौती से सरकार को एक साल में करीब 8000 करोड़ रुपए की बचत होगी. राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपालों ने स्वेच्छा से सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में वेतन कटौती का फैसला किया है. यह राशि भारत के संचित निधि (समेकित कोष) में जमा की जाएगी.

MPLAD फंड को 2 साल के लिए निलंबित किया गया

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में महामारी के प्रतिकूल प्रभाव के प्रबंधन के लिए 2020-21 और 2021-22 के लिए सांसदों को मिलने वाले MPLAD (Members of Parliament Local Area Development Scheme) फंड को अस्थायी तौर पर निलंबित कर दिया.

इस निलंबन से 2 साल के लिए MPLAD फंड के 7900 करोड़ रुपये का उपयोग भारत की संचित निधि में किया जाएगा. MPLAD के तहत प्रत्येक सांसद को अपने क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिवर्ष 5 करोड़ रुपये प्रदान किये जाते हैं.

संचित निधि क्या है?

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 266 में संचित निधि (Consolidated Fund) का उल्लेख किया गया है. सरकार को प्राप्त सभी राजस्व (प्रत्यक्ष कर, अप्रत्यक्ष कर, ऋण प्राप्तियां, उधार लिया गया धन) संचित निधि में ही जमा होते हैं.
  • यह भारत की सबसे बड़ी निधि है जो कि संसद के अधीन रखी गयी है. बिना संसद की पूर्व स्वीकृति के कोई भी धन इससे निकाला नहीं जा सकता है.
  • राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, महालेखानियंत्रक (CAG), सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का वेतन संचित निधि से ही दिया जाता है.
  • लोक निधि: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 266 में लोक निधि (Public Fund) का भी उल्लेख है. कर्मचारी भविष्य निधि को भारत की लोकनिधि में जमा किया जाता है. यह कार्यपालिका के अधीन निधि है. इससे व्यय धन महालेखानियंत्रक द्वारा जाँचा जाता है.

प्रधानमंत्री ने देश में 21 दिन के लिए लॉकडाउन की घोषणा की, जानिए क्या है लॉकडाउन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए 24 मार्च को देश को संबोधित किया. अपने संबोधन में उन्होंने देश में 21 दिन के लिए लॉकडाउन की घोषणा की. इस खतरनाक वायरस के खिलाफ सबसे अहम हथियार सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) को सख्त तरीके से लागू करने के लिए यह कदम उठाया गया है.

लॉकडाउन क्या होता है?

लॉकडाउन एक आपातकाल व्यवस्था होती है, जिसमें जरूरी सेवाएं बंद नहीं की जाती. लॉकडाउन में बैंक, डेरी, जरूरी सामान के लिए दुकानें खुली होती हैं. लोगों को घरों में रहने की अपील की जाती है. उन्‍हें केवल आवश्यक चीजों के लिए ही बाहर निकलने की अनुमति होती है. इस स्थिति में प्रशासन पर निर्भर करता है कि वह किन सेवाएं को जारी रखना चाहता है.
महामारी रोग अधिनियम, 1897 के अनुसार मुख्य चिकित्सा अधिकारी लॉकडाउन लागू कर सकते हैं. पुलिस के पास उलंघन करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार करने और धारा 271 के तहत मामला दर्ज करने का अधिकार होता है.

क्‍या होता है कर्फ्यू?

कर्फ्यू आमतौर पर बेहद गंभीर स्थिति में लगाया जाता है. कर्फ्यू के दौरान लोगों को अपने घरों से बाहर जाने की इजाजत नहीं होती. चूंकि इसमें कुछ समय किए दी जाती है. कर्फ्यू के दौरान सिर्फ वही सेवाएं चालू रहती हैं, जो बेहद जरूरी हों. इस दौरान ट्रैफिक पर भी पूरी तरह से पाबंदी रहती है. उल्लंघन करने वाले की गिरफ्तारी हो सकती है.

धारा 144 क्या है?

धारा 144 का मुख्य मकसद कई लोगों का एक जगह पर इकट्ठा होने से रोकना है. सरकार यह धारा तब लागू करती है जब लोगों के इकट्ठा होने से कोई खतरा हो सकता है. इस धारा के तहत 5 से अधिक लोगों को इकट्ठा होने की अनुमति नहीं होती.

कोविड-19 की रोकथाम के लिए डॉ. वीके पॉल की अध्यक्षता में समिति का गठित की गयी

सरकार ने देश में कोविड-19 की रोकथाम के लिए स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों की एक उच्‍चस्‍तरीय तकनीकी समिति गठित की है. नीति आयोग के सदस्‍य डॉ. वीके पॉल को 21 सदस्‍यों वाली इस समिति का अध्‍यक्ष बनाया गया है. केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य सचिव प्रीति सूदन और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक समिति के सह-अध्‍यक्ष बनाये गये हैं.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान (AIIMS) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया, दिल्‍ली के राष्‍ट्रीय रोग नियंत्रण केन्‍द्र के निदेशक डॉ. सुजीत सिंह, पुणे के संक्रामक रोग संस्‍थान के निदेशक डॉ. संजय पुजारी और केरल के अपर मुख्‍य सचिव डॉ. रंजन खोबरागडे को सदस्‍य के रूप में समिति में शामिल किया गया है.

इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स योजना को वित्तीय सहायता देने को मंजूरी दी गयी

केंद्रीय मंत्रिमड़ल ने संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स योजना को वित्तीय सहायता देने को मंजूरी दे दी है. इस योजना के जरिये देश में विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे का विकास किया जायेगा.

इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स योजना: एक दृष्टि

सरकार ने ‘इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स योजना’ को देश में व्यापक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिए स्वीकृति दी है. योजना का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना और मोबाइल फोन विनिर्माण तथा विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में बड़े निवेश को आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन राशि देना है. यह प्रोत्साहन राशि उत्पादन से जुड़ी होगी. सरकार भारत में मोबाइल और संबंधित उपकरणों के विनिर्माण पर बल देगी. केंद्र सरकार इस क्षेत्र में 20 लाख करोड़ रुपये निवेश करेगा जिससे अगले पांच वर्ष में 25 लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा.

भारत और इजरायल के बीच 880 करोड़ रुपये के रक्षा सौदा

भारत सरकार ने इजरायल की फर्म ‘इजरायल वेपंस इंडस्ट्रीज’ (IWI) के साथ 880 करोड़ रुपये में 16,479 लाइट मशीन गन (LMG) की खरीद का सौदा किया है.से एक है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की स्वीकृति के बाद सौदे पर हस्ताक्षर किए गए हैं.

नेगेव LMG: एक दृष्टि

  • इजरायल से खरीदे जाने वाली इन लाइट मशीन गन्स का नाम ‘नेगेव’ है. नेगेव LMG आमने-सामने की लड़ाई में आजमाया हुआ उत्कृष्ट हथियार है. इसे दुनिया के कई देश इस्तेमाल कर रहे हैं.
  • इस हथियार के मिल जाने पर देश के अग्रणी मोर्चे पर रहने वाले जवानों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे ज्यादा आक्रामकता से दुश्मन पर धावा बोल पाएंगे.
  • साढ़े सात किलोग्राम वजन वाली इस LMG का इस्तेमाल हेलीकॉप्टर, छोटे समुद्री जहाजों और जमीनी लड़ाई में आसानी से किया जा सकेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-142 का प्रयोग कर पहली बार किसी मंत्री को बर्खास्त किया

सुप्रीम कोर्ट ने 18 मार्च को पूर्वोत्तरीय राज्य मणिपुर के कैबिनेट मंत्री टीएच श्याम कुमार को बर्खास्त कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत हासिल विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए मंत्री के खिलाफ यह कार्रवाई की है. ऐसा पहली बार हुआ है जब इस अनुच्छेद का प्रयोग कर किसी मंत्री को बर्खास्त किया गया हो. कोर्ट ने दल-बदल कानून के तहत विधायक को अयोग्य ठहराते हुए उनके विधानसभा में जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया.

क्या है मामला?

मणिपुर में 2017 में हुए 60 सीटों पर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 28 और BJP के 21 सदस्य (विधायक) चुने गये थे. कांग्रेस के 9 विधायक चुनाव के बाद पार्टी छोड़कर BJP में चले गए. श्याम कुमार भी उनमें से एक थे, जिन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया गया था. विधानसभा अध्यक्ष से दल-बदल रोधी कानून के तहत श्यामकुमार को अयोग्य ठहराने की मांग की गई थी. विधानसभा अध्यक्ष की तरफ कोई निर्णय नहीं आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने विशेषाधिकार का प्रयोग किया.

क्या है अनुच्छेद-142?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 212 के अनुसार देश का कोई भी न्यायालय राज्य विधानमंडल की कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, लेकिन अनुच्छेद-142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को विशेषाधिकार हासिल है.

अनुच्छेद-142 के अनुसार अगर सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगता है कि किसी अन्य संस्था के जरिए व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए किसी तरह का आदेश देने में देरी हो रही है, तो कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत खुद उस मामले में फैसला ले सकता है. सुप्रीम कोर्ट इस अनुच्छेद का इस्तेमाल विशेष परिस्थितियों में ही करता है.

अयोध्या विवाद और भोपाल गैस त्रासदी मामले में अनुच्छेद-142 का प्रयोग

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-142 के तहत अयोध्या की विवादित जमीन रामलला विराजमान को सौंपने और मुसलमानों को मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अलग से देने का फैसला सुनाया था.

भोपाल गैस त्रासदी मामले में भी अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया था. इस मामले में कोर्ट ने यह महसूस किया कि गैस के रिसाव से पीड़ित हजारों लोगों के लिये मौजूदा कानून से अलग निर्णय देना होगा.

भारतीय वायु सेना के लिए 83 स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमानों की खरीद को मंजूरी दी

रक्षा खरीद परिषद (DAC) ने भारतीय वायु सेना के लिए 83 स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमानों की खरीद की मंजूरी दी है. DAC के 19 मार्च को हुई इस बैठक में तेजस के नए उन्नत ‘MK-1A’ संस्करण के विमानों की खरीद को मंजूरी दी गयी. इस बैठक में DAC ने लगभग 1300 करोड़ रुपये के स्‍वदेशी रक्षा साजो-सामान की खरीद को भी मंजूरी दी.

जनरल विपिन रावत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) बनने और डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस (DOD) व डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर (DMA) के गठन के बाद यह DAC की पहली बैठक थी.

देश में निर्मित तेजस लड़ाकू विमान की खरीद से ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को भी बल मिलेगा. स्वदेश निर्मित हलके लड़ाकू विमान ‘तेजस’ की खरीद में रक्षा मंत्रालय ने 10 हजार करोड़ रुपए की बचत की है.

तेजस लड़ाकू विमान: एक दृष्टि

तेजस स्वदेश निर्मित हल्का लड़ाकू विमान (Light Combat Aircraft) है. इसका डिजाइन, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के तहत विमान विकास एजेंसी (Aircraft Development Agency) ने किया है और इसका निर्माण हिन्‍दुस्‍तान एयरोनॉटिक्‍स लिमिटेड (HAL) ने किया है.

रक्षा खरीद परिषद (DAC): एक दृष्टि

रक्षा खरीद परिषद (Defence Acquisition Council) रक्षा मंत्रालय के तत्वावधान में देश में रक्षा खरीद पर निर्णय लेने वाली संस्था है. रक्षा मंत्री इस परिषद के पदेन अध्यक्ष होते हैं. DAC का गठन 2001 में किया गया था.

जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के चार राज्यों के परिसीमन के लिए आयोग का गठन किया गया

सरकार ने देश के पांच राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन के लिए हाल ही में एक आयोग का गठन किया है. यह आयोग जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के चार राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड का परिसीमन करेगा.

पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई अध्यक्ष नियुक्त

कानून मंत्रालय की जारी अधिसूचना के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई को इस परिसीमन आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. सेवानिवृत्त जस्टिस देसाई को एक साल के लिए या अगले आदेश तक इस आयोग की अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर तथा चार राज्यों के राज्य निर्वाचन आयुक्तों को इस आयोग का पदेन सदस्य बनाया गया है.

जम्मू-कश्मीर, असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में परिसीमन

परिसीमन आयोग ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून’ के प्रावधानों के तहत जम्मू-कश्मीर में लोकसभा एवं विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करेगा जबकि ‘परिसीमन कानून 2002’ के प्रावधानों के मुताबिक असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में परिसीमन होगा.

जम्मू-कश्मीर में वर्तमान स्थिति

जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन से पहले यहाँ के विधानसभा में 111 सीटें थीं. इनमें लद्दाख की 4 सीटें और गुलाम कश्मीर (पाकिस्तान के कब्जे में) की 24 सीटें शामिल हैं. अब लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है. लद्दाख के 4 सीटें अलग हो जाने के बाद तरह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 107 सीटें रह गईं.

यह परिसीमन 2011 की जनसंख्या के आधार पर होगा. परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 7 सीटें बढ़ेंगी और इनकी संख्या बढ़कर 114 हो जाएंगी.

राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की सीटों में कोई बदलाव नहीं होगा. वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की 5 सीटें और लद्दाख में एक सीट हैं. इस तरह लोकसभा सीटों में फिलहाल कोई बदलाव नहीं होगा.

जम्मू और कश्मीर में अंतिम परिसीमन 1995 में हुआ था. तब राज्य में सीटों की संख्या बढ़ाकर 75 से 87 की गई थी. उसके बाद फारूक अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू कश्मीर विधानसभा ने प्रस्ताव पास कर परिसीमन पर रोक लगा दी थी.

2002 के चुनावों में कश्मीर और लद्दाख के मुकाबले जम्मू में मतदाताओं की संख्या अधिक थी. इसके बावजूद कश्मीर में सीटों की संख्या अधिक रही और लगातार कश्मीर केंद्रित दल ही राज्य की सत्ता पर काबिज रहे. यही वजह है कि कश्मीरी दल परिसीमन नहीं होने देना चाहते थे.

क्या है परिसीमन और परिसीमन आयोग?

परिसीमन का तात्पर्य किसी देश या प्रांत में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के पुनर्निर्धारण से है. निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के पुनर्निर्धारण परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 82 के मुताबिक, सरकार हर 10 साल बाद परिसीमन आयोग का गठन कर सकती है. इसके तहत जनसंख्या के आधार पर विभिन्न विधानसभा व लोकसभा क्षेत्रों का निर्धारण होता है.

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन

परिसीमन आयोग का गठन भारत सरकार की ओर से ‘परिसीमन अधिनियम, 2002’ की धारा 3 के अन्तर्गत किया जाता है. इस सम्बन्ध में अधिसूचना भारत के राष्ट्रपति के ओर से जारी की जाती है. अब तक चार बार परिसीमन आयोग का गठन हो चुका है. पहली बार 1952 में इस आयोग का गठन किया गया था. इसके बाद 1962, 1972 और 2002 में इस आयोग का गठन किया गया था.