चीन ने प्रकाश आधारित दुनिया का पहला क्वांटम कंप्यूटर ‘जियूझांग’ बनाने का दावा किया

चीन के वैज्ञानिकों ने प्रकाश आधारित, दुनिया का पहला क्वांटम कंप्यूटर बनाने का दावा किया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह कंप्यूटर पारंपरिक सुपर कंप्यूटर के मुकाबले कहीं अधिक तेजी से कार्य कर सकता है. इस सुपर कंप्यूटर का नाम गणित के प्राचीन चीनी ग्रंथ के नाम पर ‘जियूझांग’ दिया गया है.

जियूझांग क्वांटम कंप्यूटर भरोसेमंद तरीके से कंप्यूटेशनल एडवान्टेज का प्रदर्शन कर सकता है, जो कंप्यूटर क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि है. इस कंप्यूटर की मदद से शक्तिशाली मशीन को बनाने के तरीके में मौलिक बदलाव आएगा.

क्वांटम कंप्यूटर: एक दृष्टि

क्वांटम कंप्यूटर बहुत तेजी से काम करते हैं, जो पारंपरिक कंप्यूटर के लिए संभव नहीं है. इनकी मदद से भौतिक विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और चिकित्सा क्षेत्र में उपलब्धि हासिल होती है. यह सुपर कंप्यूटर जो गणना मात्र 200 सेकेंड (100 ट्रिलियन गुना तेज) में कर सकता है, उसे करने में पारंपरिक पद्धति से बने दुनिया के सबसे तेज कंप्यूटर ‘फुगाकू’ को 60 करोड़ साल लगेंगे.

पिछले साल गूगल ने 53 क्यूबिट क्वांटम कंप्यूटर बनाने की घोषणा की थी. जियूझांग 76 फोटॉन में हेरफेर कर जटिल गणना करता है, जबकि गूगल का क्वांटम कंप्यूटर सुपर कंडक्टिव वस्तुओं का इस्तेमाल करता है.

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न्यूजीलैंड ने जलवायु आपातकाल की घोषणा की, 2025 तक कार्बन उत्सर्जन तटस्थ करने का वादा

न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने देश में जलवायु आपातकाल (क्लाइमेट इमरजेंसी) की घोषणा की है. वहां की संसद ने इससे संबंधित एक विधेयक 2 दिसम्बर को पारित किया. इस विधेयक के मुताबिक, देश के सभी सरकारी विभागों और इंस्टीट्यूशन्स को साल 2025 तक कार्बन न्यूट्रल किया जाएगा. यानी यहां कार्बन उत्सर्जन नहीं होगा.

इससे पहले ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस सहित दुनिया में करीब 30 देशों ने जलवायु आपातकाल की घोषणा कर चुके हैं. जलवायु आपातकाल, ग्लोबल वार्मिंग के औसत लेवल को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के लक्ष्य के लिए किया गया है.

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जेनेवा में अफगानिस्तान सम्मेलन 2020 आयोजित किया गया

जेनेवा में 23 से 24 नवंबर तक अफगानिस्तान सम्मेलन 2020 आयोजित किया गया था. सम्मेलन की सह-मेजबानी संयुक्त राष्ट्र (UN), इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान की सरकार और फिनलैंड की सरकार ने की थी.

अफगानिस्तान सम्मेलन का उद्देश्य परिवर्तनकारी दशक 2015-2024 के दूसरे भाग के दौरान अफगानिस्तान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिबद्धता की पुन: पुष्टि करना है.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विडियो कांफ्रेंसिंग माध्यम से इस सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था. भारत-अफगान संबंधों को और मजबूत करने के लिए एक और कदम आगे बढ़ाते हुए भारत सरकार ने अफगानिस्तान में एक नया बांध बनाने की घोषणा की है. यह बांध काबुल के लाखों लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया कराएगा.

सम्मेलन में विदेश मंत्री जयशंकर ने अफगानिस्तान में उच्च प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजनाओं के चौथे चरण के शुभारंभ की भी घोषणा की. इन परियोजनाओं में आठ करोड़ अमेरिकी डॉलर की 100 से अधिक परियोजनाओं की परिकल्पना की गई है.

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ऑस्‍ट्रेलिया और जापान के बीच एतिहासिक रक्षा समझौता

ऑस्‍ट्रेलिया और जापान ने हाल ही में एक एतिहासिक रक्षा समझौता किया है. इस समझौते के तहत दोनों देश सैन्य सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं. इस समझौते को रेसिप्रोकल एक्‍सेस एग्रीमेंट (Reciprocal Access Agreement-RAA) नाम दिया गया है.

यह समझौता ऑस्‍ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्‍कॉट मॉरिसन की जापान यात्रा के दौरान जापानी प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा के साथ द्विपक्षीय वार्ता में हुए. हालांकि औपचारिक तौर पर इसे हस्ताक्षर किया जाना बाकी है. इस समझौते के बाद ऑस्‍ट्रेलिया और जापान की सेनाएं एक-दूसरे के बेसेज का प्रयोग कर सकेंगी.

यह समझौता हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए काफी अहम है जिस कारण चीन अपने खिलाफ मान रहा है. चीन ने दोनों देशों को इसके खिलाफ कदम उठाए जाने की चेतावनी दी है.

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37वां आसियान शिखर सम्मेलन, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर

37वां दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (ASEAN) शिखर सम्मेलन 13-15 नवम्बर को वियतनाम के हनोई में आयोजित किया गया था. सम्मलेन की अध्यक्षता आसियान (ASEAN) के वर्तमान अध्यक्ष देश वियतनाम के प्रधानमंत्री गुयेन जुआन फुक ने की थी.

सम्मेलन के दौरान आसियान सदस्य देशों और उनके संवाद भागीदारों ने कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक बहाली और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (RCEP) के हस्ताक्षर आदि मुद्दों पर विचार-विमर्श किया.

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर

इस सम्मलेन के दौरान 10 आसियान (ASEAN) देशों और उनके 5 अन्य मुक्त व्यापार साझेदार देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूज़ीलैंड तथा दक्षिण कोरिया) के बीच ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी’ (RCEP) पर हस्ताक्षर किये गये. RCEP के सदस्य दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 30% हिस्सा हैं.

क्या है क्षेत्रीय व्‍यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)?

  • RCEP, Regional Comprehensive Economic Partnership का संक्षिप्त रूप है. यह आसियान के दस सदस्य देशों तथा पाँच अन्य देशों द्वारा अपनाया गया एक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है. इस समझौते पर 15 नवंबर 2020 को हस्ताक्षर किये गए.
  • RCEP में 10 आसियान देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के शामिल होने का प्रावधान था, जिसमें से अब भारत ने इसमें से बाहर रहने का फैसला किया है.
  • आसियान और उसके व्‍यापारिक साझेदार देशों के बीच आर्थिक संबंध को मजबूत करने के लिए नवम्‍बर 2012 में RCEP का गठन किया गया था.
  • RCEP समझौते के तहत सदस्य देशों के बीच आयात और निर्यात कर मुक्त या आंशिक कर लगाने का प्रावधान था.
    भारत का मानना है कि आयात शुल्क कम करने या खत्म करने से विदेश (मुख्य तौर पर चीन) से भारी मात्रा में सामान भारत आएगा और इससे देश के घरेलू उद्योगों को काफी नुकसान होगा.

भारत का RCEP समझौते से अलग होने के कारण और परिणाम

  • भारत ने RCEP समझौते की वार्ता में शामिल रहने के बाद आखिरी मौके पर इससे अलग रहने का निर्णय लिया है. RCEP से अलग रहने के पीछे भारत ने इस समझौते में अपने कई मुद्दों और चिंताओं पर आवश्यकता अनुरूप ध्यान नहीं दिये जाने को बड़ा कारण बताया है.
  • इस समझौते में शामिल होने के पश्चात् भारत को अपना बाजार खोलना पड़ता है, जिससे चीन से सस्ते उत्पादों का आयात बढ़ने की आशंका थी इससे घरेलू उद्योग व कारोबार पर असर पड़ने की संभावना बनी हुई थी.
  • इस समझौते में शामिल होने के पश्चात् भारत में स्थानीय और छोटे उत्पादकों को कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ सकता था. उदाहरण के तौर पर आयात शुल्क में कमी होने से भारत के कृषि, डेयरी उत्पाद और अन्य ‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम’ (MSMEs) क्षेत्रों को क्षति हो सकती थी.
  • भारत के RCEP समझौते से अलग होने से RCEP सदस्यों के साथ भारत के द्विपक्षीय व्यापार संबंधों के प्रभावित होने की आशंका भी बढ़ गई है क्योंकि इस समूह में शामिल अधिकांश देश RCEP के अंदर अपने व्यापार को मज़बूत करने को अधिक प्राथमिकता देंगे.

जानिए क्या है आसियान…»

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म्यांमार चुनाव में आंग सान सू की के नेतृत्व वाली NLD ने बहुमत प्राप्त किया

म्यांमार में हाल ही में संपन्न हुए चुनाव में आंग सान सू की के नेतृत्व वाली नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रेसी (NLD) ने बहुमत प्राप्त किया है. म्यांमार के चुनाव आयोग ने अंतिम नतीजों की घोषणा 15 नवम्बर को की.

इस चुनाव में सत्तारूढ़ NLD ने 920 सीटों पर जीत हासिल की है. संसद की 1117 सीटों के लिए चुनाव हुआ था. इनमें से 315 सीट निचले सदन ‘हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव’ और 161 सीट उच्च सदन ‘हाउस ऑफ नेशनलटीज’ में हैं. 612 सीट क्षेत्रीय और प्रादेशिक स्तर की संसद की हैं. आंग सान सू की NLD ने 2015 में भी भारी बहुमत से जीत हासिल की थी.

इस बार के म्यांमार चुनाव में रोहिंग्या मुद्दा प्रमुख रूप से बना हुआ था. 2017 में रोहिंग्या के क्षेत्र में सेना ने आपरेशन चलाए थे, जिसमें साढ़े सात लाख रोहिंग्या पलायन कर बांग्लादेश चले गए हैं. इस बार के चुनाव में रोहिंग्या को नागरिक न मानते हुए चुनाव प्रक्रिया से दूर कर दिया गया था.

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बहरीन के प्रधानमंत्री खलीफा बिन सलमान अल खलीफा का निधन

बहरीन के प्रधानमंत्री शेख खलीफा बिन सलमान अल खलीफा का 11 नवम्बर को निधन हो गया है. वह 84 वर्ष के थे. वह विश्व के सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री थे.

24 नवंबर 1935 को जन्‍मे शेख खलीफा बहरीन के शाही परिवार से थे. 15 अगस्त 1971 को बहरीन की स्वतंत्रता से एक साल पहले शेख खलीफा ने पदभार ग्रहण किया था. उन्होंने तीन दशकों से अधिक समय तक बहरीन के राजनीतिक और आर्थिक मामलों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

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अमेरिका जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से औपचारिक रूप से अलग हुआ

अमेरिका 4 नवंबर को औपचारिक रूप से ‘जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते 2015’ से अलग हो गया। यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत एक समझौता है, जो नवंबर 2016 से प्रभावी हुआ था।

पेरिस समझौते के तहत देशों को तापमान में दो डिग्री सेल्सियस से कम वृद्धि रखने और वैश्विक ऊष्मा को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न होने देने का संकल्प लेना होता है। अगस्त 2017 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समझौते से पीछे हटने के फैसले से संयुक्त राष्ट्र महासचिव को अवगत कराया था।

जानिए क्या है UNFCCC COP और पेरिस समझौता…»

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अमेरिका और बांग्लादेश के बीच नौसैनिक अभ्यास CARAT-2020 का आयोजन

अमेरिका और बांग्लादेश के बीच 4 नवंबर को नौसैनिक अभ्यास CARAT-2020 का आयोजन किया गया. यह अभ्यास बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह में आयोजित किया गया था.

CARAT: एक दृष्टि

CARAT का पूरा नाम ‘Cooperation Afloat Readiness and Training’ है. यह बांग्लादेश और अमेरिका की नौसेनाओं के बीच आयोजित किया जाने वाला वार्षिक अभ्यास है. पहली बार इस अभ्यास का आयोजन वर्ष 2011 में किया गया था.

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अमेरिका ने ताइवान को 60 करोड़ डॉलर के सशस्त्र ड्रोन बेचने को मंजूरी दी

अमेरिका ने ताइवान को 60 करोड़ डॉलर के सशस्त्र ड्रोन बेचने को मंजूरी दी है. दोनों देशों के बीच हुए समझौते के तहत ताइवान को रिमोट संचालित सशत्र ड्रोन व अन्य उपकरण देने की प्रक्रिया मंजूर की गई है.

इन ड्रोन के मिलने के बाद ताइवान को अपनी सुरक्षा, सैन्य संतुलन और राजनीतिक स्थिरता में मदद मिलेगी. इससे पहले अमेरिकी सरकार ने ताइवान को 237 करोड़ डालर की हार्पून मिसाइल बेचने पर सहमति दी थी. यह मिसाइल बेहद घातक मानी जाती है.

चीन-ताइवान संबंध

अमेरिका, चीन की चेतावनी के बावजूद ताइवान की सैन्य शक्ति को लगातार मजबूत कर रहा है. दरअसल चीन ताइवान को अपना अलग हुआ प्रांत बताकर उस पर अधिकार जताता है, जबकि ताइवान का कहना है कि वह संप्रभु देश है. वर्ष 1949 में गृहयुद्ध के दौरान यह द्वीपीय क्षेत्र चीन से अलग हो गया था. संयुक्त राष्ट्र ने ताइवान को चीन के एक प्रांत के रूप में मान्यता दी है.

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FATF की बैठक: पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बने रहने का फैसला

फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स (FATF) की बैठक हाल ही में आयोजित की गयी थी. इस बैठक की अध्यक्षता चीन ने की थी. बैठक में FATF ने एक बार फिर पाकिस्तान को संदिग्ध देशों की सूची (ग्रे लिस्ट) में रखने का निर्णय लिया. इस निर्णय के बाद, अब पाकिस्तान को फरवरी 2021 तक में होने वाली FATF की अगली बैठक तक निगरानी सूची में ही रहना होगा.

उल्लेखनीय है कि पांच बार दी गई आखिरी समय-सीमाओं के बावजूद पाकिस्तान आतंकवाद के वित्तपोषण पर काबू करने में नाकाम रहा है.

FATF की ग्रे-लिस्ट या ब्लैक-लिस्ट में डाले जाने पर पाकिस्तान को अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और यूरोपीय संघ से आर्थिक मदद मिलने में कठिनाई होगी.

फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स (FATF): एक दृष्टि

  • FATF पैरिस स्थित अंतर-सरकारी संस्था है. इसका काम गैर-कानून आर्थिक मदद (आतंकी फाइनैंसिंग) को रोकने के लिए नियम बनाना है. इसका गठन 1989 में किया गया था.
  • वर्तमान में FATF की पूर्ण सदस्‍यता वाले देशों की संख्या 39 है. सउदी अरब को 21 जून 2019 को फ्लोरिडा के ऑरलैंडो में समूह की वार्षिक आम बैठक में FATF की सदस्यता दी गयी. वह पूर्ण सदस्‍यता पाने वाला 39वां देश बना है.
  • FATF की ग्रे-लिस्ट या ब्लैक-लिस्ट में डाले जाने पर देश को अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज मिलने में काफी कठिनाई आती है.
  • FATF नियमों के मुताबिक, ग्रे-लिस्ट और ब्लैक-लिस्ट के बीच डार्क ग्रे-लिस्ट की भी कैटिगरी होती है. ‘डार्क ग्रे-लिस्ट’ का अर्थ है सख्त चेतावनी, ताकि संबंधित देश को सुधार का एक अंतिम मौका मिल सके.
  • FATF ने पाकिस्तान को फरवरी 2018 में इसे ग्रे-लिस्ट के डाला था. इससे पहले पाकिस्तान साल 2012 से 2015 तक FATF की ग्रे लिस्ट में रहा था.
  • FATF की वर्तमान ब्लैक-लिस्ट में ईरान और उत्तर कोरिया शामिल हैं.

FATF की पूर्ण सदस्‍यता वाले देश

Argentina, Australia, Austria, Belgium, Brazil, Canada, China, Denmark, European Commission, Finland, France, Germany, Greece, Gulf Co-operation Council, Hong Kong, China, Iceland, India, Ireland, Israel, Italy, Japan, Republic of Korea, Luxembourg, Malaysia, Mexico, Netherlands, New Zealand, Norway, Portugal, Russian Federation, Singapore, South Africa, Spain, Sweden, Switzerland, Turkey, United Kingdom, United States and Saudi Arabia

FATF का पर्यवेक्षक देश

इंडोनेशिया

FATF का वर्तमान अध्यक्ष देश

चीन

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इजरायल की संसद ने UAE के साथ हुए शांति समझौते को मंजूरी दी

इजरायल की संसद ने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ हुए शांति समझौते को आधिकारिक रूप से मंजूरी प्रदान कर दी है. इजरायल की संसद में इस शांति समझौते को लेकर मतदान हुआ था जिसमें 80 सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया जबकि 13 सांसदों ने इसका विरोध किया.

इजरायल-UAE शांति समझौता (अब्राहम समझौता)

  • इजरायल और UAE के बीच अगस्त 2020 में अमेरिका की मध्यस्थता में एक शांति समझौते को लेकर सहमति बनी थी. इसी दिन इजरायल ने बहरीन के साथ भी एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
  • समझौते पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू तथा बहरीन और UAE के विदेश मंत्रियों ने हस्ताक्षर किए थे.
  • इस समझौते के तहत, UAE इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करेगा. जबकि बदले में इजरायल ने वेस्ट बैंक पर नियंत्रण करने की योजना को छोड़ दिया है. वेस्ट बैंक मुख्य विवादित क्षेत्र है जिसकी मांग फिलिस्तीन करता है.
  • इस शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद इजरायल, UAE और अमेरिका ने इस बात की घोषणा की थी कि वह मिलकर संयुक्त रूप से ऊर्जा रणनीति तैयार करेंगे.
  • यह शांति सौदा महत्वपूर्ण है क्योंकि इजरायल का मिस्र और जॉर्डन को छोड़कर किसी अन्य अरब राज्यों के साथ राजनयिक संबंध नहीं है.
  • 1948 में इजरायल की स्वतंत्रता की घोषणा के बाद से इजरायल ने 1979 में मिस्र और 1994 में जाॅर्डन के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते के बाद UAE और बहरीन इज़राइल के साथ राजनीयिक संबंधों पर सहमत होने वाले क्रमशः पहले और दूसरे खाड़ी देश बन गए हैं.
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