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विश्व भर के 11000 वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल की घोषणा की

विश्व भर के 153 देशों के 11000 वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल (Climate Emergency) की घोषणा कर दी है. ‘बायोसाइंस’ (Bioscience) नाम की पत्रिका में छपे एक लेख में 11258 मे से 69 भारतीय वैज्ञानिकों के भी हस्ताक्षर हैं.

जलवायु आपातकाल की घोषणा पिछले 40 सालों के दौरान कुछ क्षेत्रों के तय मानकों पर एकत्रित डेटा के आधार पर की गई है. यह घोषणा ऊर्जा उपयोग, सतह के तापमान, जनसंख्या वृद्धि, भूमि समाशोधन, वनों की कटाई, ध्रुवीय बर्फ द्रव्यमान, प्रजनन दर के वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित है.

वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन से जो हालात उपजे हैं उसने बचना आसान नहीं है. हालात सुधारने के लिए जलवायु पर हो रहे आघात तुरंत रोकना होगा. धरती के बढ़ते तापमान के लिए वैज्ञानिकों के समूह ने छह क्षेत्रों में तत्काल कदम उठाने पर जोर दिया है. ये हैं ऊर्जा, लघु प्रदूषक, प्रकृति, भोजन, अर्थव्यवस्था और जनसंख्या.

भारत ने स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाते हुए मिशन इनोवेशन की शुरुआत की

भारत ने बढ़ती ऊर्जा जरुरतो, जलवायु परिवर्तन और दुनियाभर में बढ़ते प्रदुषण के खतरे को देखते हुए स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाते हुए मिशन इनोवेशन (Mission Innovation) की शुरुआत की है. इस मिशन में भारत के साथ चौबीस देश भी जुड़े हुए है.

मिशन इनोवेशन के लिए आठ क्षेत्रों की पहचान की गई है. इन आठ क्षेत्रो में क्या-क्या प्रगति हुई है इसको लेकर नई दिल्ली में 4 से 6 नवम्बर को एक सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है. सम्मेलन में चौबीस देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे है.

भारतीय शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक खाने वाले जीवाणु की खोज की

भारतीय शोधकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा स्थित दलदली भूमि से दो प्रकार के प्लास्टिक खाने वाले जीवाणुओं की खोज की है. जीवाणु के ये दो प्रकार– एक्सिगुओबैक्टीरियम साइबीरिकम जीवाणु DR11 और एक्सिगुओबैक्टीरियम अनडेइ जीवाणु DR14 हैं.

ग्रेटर नोएडा के शिव नाडर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा खोजे गए इन जीवाणुओं में पॉलिस्टरीन के विघटन की क्षमता है. पॉलिस्टरीन एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक के सामान जैसे डिस्पोजेबल कप, प्लेट, खिलौने, पैकिंग में इस्तेमाल होने वाली सामग्री आदि को बनाने में इस्तेमाल होने वाला प्रमुख घटक है.

यह खोज दुनियाभर में प्लास्टिक कचरे के पर्यावरण हितैषी तरीके से निस्तारण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकती है.

पर्यावरण संरक्षण के लिए 1,400 किलोमीटर लंबी ‘ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया’ को विकसित किया जाएगा

केंद्र सरकार देश में पर्यावरण के संरक्षण और हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए 1,400 किलोमीटर लंबी ‘ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया’ परियोजना पर विचार कर रही है. भारत में घटते वन और बढ़ते रेगिस्तान को रोकने के लिए यह परियोजना हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की कॉन्फ्रेंस (COP14) से आया है. इस परियोजना पर मंजूरी के बाद यह भारत में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए भविष्य में भी एक मिसाल की तरह होगा.

अफ्रीका के ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ तर्ज पर विकसित किया जायेगा

भारत सरकार की यह परियोजना अफ्रीका में बनी हरित पट्टी ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ की तर्ज पर विकसित किया जायेगा. अफ्रीका का ग्रेट ग्रीन वॉल सेनेगल से जिबूती तक बनी है. अफ्रीका में क्लाइमेट चेंज और बढ़ते रेगिस्तान से निपटने के लिए यह हरित पट्टी तैयार किया गया है. इसे ‘ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ सहारा’ भी कहा जाता है. इसपर करीब एक दशक पहले काम शुरू हुआ था.

गुजरात से लेकर दिल्ली-हरियाणा सीमा तक ‘ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया’

इस परियोजना के तहत गुजरात से लेकर दिल्ली-हरियाणा सीमा तक ‘ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया’ को विकसित किया जाएगा. इसकी लंबाई 1,400 किलोमीटर होगी, जबकि यह 5 किलोमीटर चौड़ी होगी.

इस परियोजना को थार रेगिस्तान के पूर्वी तरफ विकसित किया जाएगा. पोरबंदर से लेकर पानीपत तक बनने वाली इस ग्रीन बोल्ट से घटते वन क्षेत्र में इजाफा होगा. इसके अलावा गुजरात, राजस्थान, हरियाणा से लेकर दिल्ली तक फैली अरावली की पहाड़ियों पर घटती हरियाली के संकट को भी कम किया जा सकेगा.

यह ग्रीन बेल्ट लगातार नहीं होगी, लेकिन अरावली रेंज का बड़ा हिस्सा इसके तहत कवर किया जाएगा ताकि उजड़े हुए जंगल को फिर से पूरी तरह विकसित किया जा सके. इस परियोजना से पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के रेगिस्तानों से दिल्ली तक उड़कर आने वाली धूल को भी रोका जा सकेगा.

2030 तक काम पूरा करने का लक्ष्य

भारत सरकार ‘ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया’ परियोजना को 2030 तक राष्ट्रीय प्राथमिकता में रखकर जमीन पर उतारने पर विचार कर रही है. इसके तहत 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि को प्रदूषण मुक्त करने का लक्ष्य है.

कई राज्यों में रेगिस्तान का दायरा बढ़ने का खतरा

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 2016 में एक नक्शा जारी किया था, जिसके मुताबिक गुजरात, राजस्थान और दिल्ली ऐसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हैं, जहां 50 फीसदी से अधिक भूमि हरित क्षेत्र से बाहर है. इसके चलते इन इलाकों में रेगिस्तान का दायरा बढ़ने का खतरा है.

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन 2019 का न्यूयॉर्क में आयोजन

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (Climate Action Summit) 23 सितम्बर को न्यूयॉर्क में आयोजित किया गया. इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य पेरिस समझौते का शीघ्र क्रियान्वयन सुनिश्चित करना था. सम्मेलन का उदघाटन संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने किया. उन्होंने दुनिया के नेताओं से जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने और समस्या के समाधान मुहैया कराने का आह्वान किया.

सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संबोधन

अमेरिका की यात्रा पर गये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया और संबोधित किया. श्री मोदी ने जलवायु परिवर्तन के रोक-थाम को जन-आंदोलन बनाने की बात कही.

उन्होंने जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान की रोकथाम में भारत में किये गये उल्लेखनीय प्रयासों की चर्चा की:

  • भारत सरकार ने पंद्रह करोड़ परिवारों को स्वच्छ रसोई गैस उपलब्ध कराई है.
  • 15 अगस्त 2019 से ‘सिंगल यूज़’ प्लास्टिक का उपयोग प्रतिबंधित किया गया है.
  • जल के उचित उपयोग के लिए अगले पांच वर्षों में 50 अरब डॉलर खर्च किया जायेगा.
  • गैर-परंपरागत ईंधन उत्पादन के लक्ष्य को दोगुने से अधिक बढ़ाकर वर्ष 2022 तक 450 गीगावाट तक का लक्ष्य है.
भारत और स्वीडन मिलकर, “इंडस्ट्री ट्रांजीशन ट्रैक” के “लीडरशिप ग्रुप” का गठन.

प्रधानमंत्री मोदी ने भारत और स्वीडन के अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर, “इंडस्ट्री ट्रांजीशन ट्रैक” के “लीडरशिप ग्रुप” का गठन किया है. यह पहल सरकारों और निजी क्षेत्र को साथ लाकर इंटस्ट्री के लिए लो कार्बन Pathways बनाने में अहम भूमिका अदा करेगी.

ग्रेटा थनबर्ग चर्चा में रहीं

जलवायु परिवर्तन पर हुए सत्र को स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता सोलह वर्षीया ग्रेटा थनबर्ग ने विकसित देशों पर अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी न करने का आरोप लगाया. विश्व नेताओं को भावुकता से संबोधित करते हुए ग्रेटा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण लोग यातना झेल रहे हैं, मर रहे हैं और पूरी पारिस्थितिकीय प्रणाली ध्वस्त हो रही है.

ग्रेटा थनबर्ग ने स्वीडन की संसद के समक्ष पेरिस समझौते के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए विरोध प्रदर्शन किये जाने के कारण चर्चित हो गयीं थीं.

सम्मेलन के मुख्य बिंदु
  • संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में दुनिया की सबसे ज्‍यादा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करने वाले उद्योगों को कम कार्बन उत्‍सर्जन वाली अर्थव्यवस्था बनाने में मदद करने के लिए एक नई पहल शुरू की गई है.
  • भारत और स्‍वीडन के साथ अर्जेन्‍टीना, फिनलैण्‍ड, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैण्‍ड, लग्‍जमबर्ग, हॉलैण्‍ड, दक्षिण कोरिया तथा ब्रिटेन और कंपनियों के एक समूह ने उद्योगों में इस तरह के बदलाव लाने के लिए एक नये नेतृत्‍व समूह की घोषणा की है.

स्वास्थ्य कवरेज पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्चस्तरीय बैठक

न्यूयॉर्क में 23 सितम्बर को स्वास्थ्य कवरेज पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की गयी. बैठक का उद्देश्य स्वास्थ्य क्षेत्र में वित्तीय और राजनीतिक सहयोग प्राप्त करना था. इस बैठक का शीर्षक “व्यापक स्वास्थ्य कवरेजः अधिक स्वस्थ विश्व के निर्माण की दिशा में सम्मिलित प्रयास” था. इस बैठक में विभिन्न देशों, राजनीतिक और स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रमुखों और नीति निर्माताओं ने भाग लिया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बैठक को संबोधित किया.


क्रिकेटर रोहित शर्मा ने विलुप्त हो रहे इस जानवर के संरक्षण के लिए अभियान शुरू किया

भारतीय क्रिकेटर रोहित शर्मा ने विलुप्त हो रहे जानवर गैंडों (Rhinoceros) के संरक्षण के लिए एक अभियान शुरू किया है. रोहित शर्मा ‘WWF India’ और ‘एनीमल प्लैनेट’ के साथ मिलकर एक सींग वाले गैंडों के संरक्षण के लिए इस अभियान पर कार्य करेंगे. रोहित ने खुद को इसके लिए ‘Rohit4Rhinos’ अभियान से जोड़ा है.

गैंडों का यह संरक्षण अभियान 22 सितंबर को विश्व राइनो दिवस (World Rhino Day) पर शुरू किया जाएगा. रोहित ‘WWF India’ में राइनो संरक्षण के लिए ब्रांड एंबेसडर हैं.


पर्यावरण मंत्रालय ने वनीकरण के लिए CAMPA को 47,436 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने CAMPA (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority) को 47,436 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की है. यह राशि वनीकरण को बढ़ावा देने और देश के हरित उद्देश्यों की प्राप्ति को प्रोत्‍साहन देने के लिए दिया गया है. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने 29 अगस्त को इसकी घोषणा की.

जिन महत्वपूर्ण गतिविधियों पर इस धन का उपयोग किया जाएगा उनमें – क्षतिपूरक वनीकरण, जलग्रहण क्षेत्र का उपचार, वन्यजीव प्रबंधन, वनों में लगने वाली आग की रोकथाम, वन में मृदा एवं आद्रता संरक्षण कार्य, वन्‍य जीव पर्यावास में सुधार, जैव विविधता और जैव संसाधनों का प्रबन्‍धन, वानिकी में अनुसंधान कार्य आदि शामिल हैं.

हस्तांतरित की जा रही धनराशि राज्य के बजट के अतिरिक्त होगी. सभी राज्य इस धनराशि का उपयोग वन और वृक्षों का आवरण बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्‍तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के उद्देश्‍यों की पूर्ति के लिए वानिकी कार्यकलापों में करेंगे. इससे वर्ष 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के समान अतिरिक्त कार्बन सिंक (यानी वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण) होगा.


प्‍लास्टिक कचरे से डीजल बनाने वाले संयंत्र का देहरादून में उद्घाटन

भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने प्‍लास्टिक कचरे से डीजल बनाने वाले संयंत्र उत्‍तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थापित किया है. केन्‍द्रीय विज्ञान और टेक्‍नोलाजी मंत्री डॉक्‍टर हर्षवर्धन ने 27 अगस्त को मुख्‍यमंत्री त्रिवेन्‍द्र सिंह रावत के साथ इस संयंत्र का संयुक्‍त रूप से उद्घाटन किया.

एक टन क्षमता का यह प्‍लांट वर्षों की सफलतापूर्वक की गई रिसर्च के परिणामस्‍वरूप देहरादून के IIT के कैम्‍पस में लगाया गया है. संस्‍थान ने विमानों के लिए जैव ईंधन बनाने के बाद प्‍लास्टिक से डीजल बनाने में यह कामयाबी हासिल की है.

भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसन्धान परिषद् (CSIR) की प्रयोगशाला है. इस संस्थान का कार्य पेट्रोकेमिकल, पेट्रोलियम रिफाइनिंग इत्यादि प्रक्रियाओं पर रिसर्च करना है.


10 अगस्त: विश्‍व जैव ईंधन दिवस से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

प्रत्येक वर्ष 10 अगस्‍त को ‘विश्‍व जैव ईंधन दिवस’ मनाया जाता है. इसका उद्देश्‍य पांरपरिक जीवाश्‍म ईंधनों के विकल्‍प के रूप में गैर-जीवाश्‍म ईंधनों के महत्‍व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है. जैव ईंधनों के विभिन्‍न फायदों में आयात निर्भरता में कमी, स्‍वच्‍छ पर्यावरण, किसानों को अतिरिक्‍त आमदनी और रोजगार सृजन शामिल हैं. इस वर्ष यानि 2019 में विश्‍व जैव ईंधन दिवस का विषय (थीम) ‘इस्‍तेमाल किये गये खाद्य तेल से जैव ईंधन का उत्‍पादन करना’ है.

इस्‍तेमाल किये गये खाद्य तेल से ‘जैव ईंधन’ का उत्‍पादन करना
भारत में खाद्य तेल (कुकिंग ऑयल) का उपयोग विभिन्‍न चीजों को तलने-भुनने के लिए किया जाता है. ये प्रयुक्‍त खाद्य तेल (Used Cooking Oil- UCO) या तो पूरी तरह से नष्‍ट नहीं होता है अथवा पर्यावरण अनुकूल ढंग से इसका निस्‍तारण नहीं हो पाता है, जिससे नालियां और सीवरेज प्रणालियां जाम हो जाती हैं. भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018 में जैव ईंधनों पर जारी राष्‍ट्रीय नीति में UCO से जैव ईंधन (बायोफ्यूल) का उत्‍पादन करने की परिकल्‍पना की गई है.

मौजूदा समय में भारत में हर महीने लगभग 850 करोड़ लीटर हाई स्‍पीड डीजल (HSD) की खपत होती है. ‘जैव ईंधन पर राष्‍ट्रीय नीति 2018’ में वर्ष 2030 तक HSD में 5 प्रतिशत जैव डीजल (बायोडीजल) को मिश्रित करने के लक्ष्‍य की परिकल्‍पना की गई है. मिश्रित करने के इस लक्ष्‍य की प्राप्ति के लिए हर वर्ष 500 करोड़ लीटर जैव डीजल की जरूरत है.

भारत में लगभग 22.7 mmtpa (2700 करोड़ लीटर) कुकिंग ऑयल का उपयोग होता है, जिनमें से 1.2 mmtpa (140 करोड़ लीटर) UCO को बल्‍क उपभोक्‍ताओं जैसे कि होटलों, रेस्‍तरां, कैंटीन इत्‍यादि से प्राप्‍त किया जा सकता है. इससे हर वर्ष तकरीबन 110 करोड़ लीटर जैव डीजल की प्राप्ति होगी.