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वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता में ऐतिहासिक वृद्धि

  • नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRI) ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत के स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में प्रगति से संबंधित रिपोर्ट 10 अप्रैल को जारी की थी.
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, 31 मार्च 2025 तक देश में कुल स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता 220.10 गीगावॉट तक पहुँच गई है. यह पिछले वित्त वर्ष में 198.75 गीगावॉट थी.
  • सौर ऊर्जा ने सबसे अधिक योगदान दिया है. वित्त वर्ष 2024-25 में 23.83 गीगावाट सौर ऊर्जा की वृद्धि हुई है.  कुल स्थापित सौर क्षमता अब 105.65 गीगावाट है.
  • वर्ष के दौरान पवन ऊर्जा में 4.15 गीगावाट की वृद्धि हुई है. देश की कुल संचयी स्थापित पवन क्षमता अब 50.04 गीगावाट है.
  • जैव ऊर्जा संयंत्रों की कुल क्षमता 11.58 गीगावाट तक पहुंच गई है. लघु पनबिजली परियोजनाओं ने 5.10 गीगावाट की क्षमता प्राप्त कर ली है.
  • अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (आईआरईएनए) के अनुसार, 2024 में चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राजील के बाद भारत, दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अक्षय ऊर्जा क्षमता वाला देश होगा.

अक्षय ऊर्जा क्या है?

  • अक्षय ऊर्जा प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा है जो लगातार और स्वाभाविक रूप से नवीनीकृत होती रहती है, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल-विद्युत ऊर्जा, जैव ऊर्जा और भूतापीय ऊर्जा. इसे ‘नवीकरणीय ऊर्जा’ के नाम से भी जाना जाता है.
  • अक्षय ऊर्जा, जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम तेल, प्राकृतिक गैस) जैसे ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों से अलग हैं, जो सीमित मात्रा हैं.
  • अक्षय ऊर्जा की तुलना में जीवाश्म ईंधन अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारक माना जाता है.
  • प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित क्षमता प्राप्त करने के लक्ष्य रखा है.

भारत में 4 नए आर्द्रभूमि को रामसर स्थल का दर्जा दिया गया

रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention) के तहत भारत के 4 नए आर्द्रभूमि को रामसर स्थल (Ramsar Sites) का दर्जा दिया गया है. ये स्थल हैं- झारखंड में उधवा झील (Udhwa Lake), तमिलनाडु में तीरतंगल और सक्काराकोट्टई (Theerthangal and Sakkarakottai) और सिक्किम में खेचियोपालरी (Khecheopalri). 4 नए रामसर स्थल का दर्जा दिए जाने के बाद अब भारत में रामसर स्थलों की कुल संख्‍या 89 हो गई है.

रामसर स्थल: एक दृष्टि

  • अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि को रामसर स्थल कहा जाता है. रामसर स्थल पानी में स्थित मौसमी या स्थायी पारिस्थितिक तंत्र हैं. इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र (6 मीटर से कम ऊँचे ज्वार वाले स्थान) के अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे- अपशिष्ट जल उपचार तालाब और जलाशय आदि शामिल होते हैं.
  • आर्द्रभूमियां प्राकृतिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं. ये बाढ़ की घटनाओं में कमी लाती हैं, तटीय इलाकों की रक्षा करती हैं, साथ ही प्रदूषकों को अवशोषित कर पानी की गुणवत्ता में सुधार करती हैं.
  • आर्द्रभूमि मानव और पृथ्वी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं. 1 बिलियन से अधिक लोग जीवनयापन के लिये उन पर निर्भर हैं और दुनिया की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं तथा प्रजनन करती हैं.

रामसर स्थल का दर्जा

  • रामसर स्थल का दर्जा उन आर्द्रभूमियों को दिया जाता है जो रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention) के मानकों को पूरा करते हैं. रामसर कन्वेंशन एक पर्यावरण संधि है जो आर्द्रभूमि एवं उनके संसाधनों के संरक्षण तथा उचित उपयोग हेतु राष्ट्रीय कार्रवाई और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये रूपरेखा प्रदान करती है.
  • रामसर स्थल नाम ईरान के रामसर शहर के नाम पर रखा गया है क्योंकि यहीं 02 फरवरी 1971 को रामसर कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए गए थे. भारत ने इस संधि पर 1 फरवरी 1982 को हस्ताक्षर किये थे.
  • रामसर स्थलों की सूची रामसर सम्मेलन के सचिवालय द्वारा रखी जाती है, जो स्विट्जरलैंड के ग्लैंड में स्थित अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) मुख्यालय में स्थित है.
  • रामसर साइट का दर्जा प्राप्त वेटलैंड अंतरराष्ट्रीय महत्व रखते हैं और उनके संरक्षण और उनके संसाधनों के इस्तेमाल के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त होता है.
  • दुनिया भर में रामसर साइट की संख्या 2,500 से ज्यादा है, जो करीब 25 लाख वर्ग किलोमीटर से ज्यादा के क्षेत्र में फैले हैं.

भारत और विश्व में रामसर स्थल

  • भारत में अब कुल 89 रामसर स्थल हैं जो देश की कुल भूमि का लगभग 5% है. ये क्षेत्र देश के 13.58 लाख हैक्‍टेयर भूमि में फैले हैं.
  • आर्द्रभूमि के राज्य-वार वितरण में तमिलनाडु (20 रामसर स्थल) पहले और गुजरात दूसरे स्थान पर है (एक लंबी तटरेखा के कारण). इसके बाद आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है.
  • प्रथम भारतीय रामसर स्थल- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान) और चिल्का झील (ओडिशा) है, जिसे 1981 में शामिल किया गया था.
  • भारत में सबसे बड़ा रामसर स्थल पश्चिम बंगाल का सुंदरबन और सबसे छोटा रामसर हिमाचल प्रदेश में रेणुका है.
  • रामसर सूची के अनुसार, सबसे अधिक रामसर स्थलों वाले देश यूनाइटेड किंगडम (175) और मेंक्सिको (142) हैं. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि का क्षेत्रफल (148,000 वर्ग किमी) सबसे अधिक बोलीविया में है.

इंदौर और उदयपुर को भारत की पहली ‘वेटलैंड सिटी’ का दर्जा दिया गया…»

इंदौर और उदयपुर को भारत की पहली ‘वेटलैंड सिटी’ का दर्जा दिया गया

  • भारत के इंदौर और उदयपुर को ‘वेटलैंड (आर्द्र भूमि) सिटी’ का दर्जा दिया गया है. यह उपलब्धि हासिल करने वाले ये भारत के पहले शहर बन गए हैं. दुनिया भर में कुल 31 शहरों को ‘वेटलैंड सिटी’ का दर्जा प्राप्त है.
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वेटलैंड सिटी प्रमाणन (WCA) हासिल करने के लिए भारत के तीन शहरों –  इंदौर (मध्य प्रदेश), भोपाल (मध्य प्रदेश), और उदयपुर (राजस्थान) के नामांकन भेजे थे. जिनमें से इंदौर और उदयपुर को यह दर्ज दिया गया.
  • वेटलैंड सिटी मान्यता, एक तरह का प्रमाण पत्र है जिसे रामसर कन्वेंशन के तहत कॉप-12 सम्मेलन के दौरान उन शहरों के लिए बनाया गया था, जो शहरों में मौजूद वेटलैंड की सुरक्षा, संरक्षण और उसके सतत प्रबंधन के लिए प्रतिबद्ध हैं. इसका उद्देश्य शहरी विकास और पारिस्थितिकी के बीच संतुलन बनाए रखना है.
  • वेटलैंड या आर्द्र भूमि से आशय नमी वाले उन इलाकों से है, जहां साल भर या कुछ महीने पानी भरा रहता है. जैव विविधता और पानी को बचाने के लिए वेटलैंड बेहद जरूरी हैं.
  • मैंग्रोव, दलदल, बाढ़ के मैदान, तालाब, झील, नदियां, पानी से भरे जंगल, धान के खेत ये सभी वेटलैंड के ही उदाहरण हैं.
  • दुनिया भर में मैंग्रोव 1.5 करोड़ से ज्यादा लोगों की रक्षा करते हैं और हर साल बाढ़ से होने वाले करीब 65 अरब डॉलर के नुकसान को बचाते हैं.
  • दलदली जमीन प्राकृतिक स्पंज की तरह काम करती है. बारिश के दौरान ये अपने अंदर पानी जमा करती है और सूखे के समय उसे धीरे-धीरे बाहर निकालती है, जिससे सूखे जैसे संकट के समय मदद मिलती है.
  • धरती की सतह का 70 फीसदी हिस्सा पानी से ढका होने के बाद भी पीने के लिए मात्र 2.7 फीसदी मीठा पानी ही मौजूद है. मीठा पानी का अधिकांश हिस्सा ग्लेशियरों में मौजूद है.
  • मानव तक पहुंचने वाला अधिकांश मीठा पानी वेटलैंड से ही हासिल होता है. वेटलैंड के बिना दुनिया भर में पीने के पानी की समस्या पैदा हो सकती है.
  • वेटलैंड वातावरण में मौजूद कार्बन सोखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये पेड़ों की तुलना में ज्यादा कार्बन जमा कर सकते हैं. ये तूफानी लहरों को रोक कर हर साल बाढ़ से होने वाले नुकसान से बचाते हैं.
  • रामसर स्थल और वेटलैंड सिटी में अंतर है. रामसर साइट देश के किसी भी हिस्से में मौजूद हो सकती हैं जबकि वेटलैंड सिटी का दर्जा सिर्फ शहरी इलाकों में मौजूद साइट को ही हासिल हो सकता है.

जानिए क्या है रामसर स्थल, भारत में रामसर स्थलों की संख्‍या 89 हुई…»

केरल के कप्पड़ और चाल समुद्रतट को  ‘ब्लू फ्लैग सर्टिफिकेशन’ दिया गया

डेनमार्क के फाउंडेशन फॉर एनवायर्नमेंटल एजुकेशन (FEE) ने केरल के कप्पड़ और चाल समुद्रतट को ‘ब्लू फ्लैग सर्टिफिकेशन’ प्रदान किया है. कप्पड़ समुद्रतट केरल के कोझिकोड में और चाल समुद्रतट कन्नूर में है.

ब्लू फ्लैग सर्टिफिकेशन (प्रमाणन) समुद्र तटों, मरीनाओं और नौकायन संचालकों को दिया जाता है जो फाउंडेशन फॉर एनवायरनमेंटल एजुकेशन (FEE) द्वारा स्थापित 33 कड़े मानदंडों को पूरा करते हैं.

ब्लू फ्लैग प्रमाणन वाले भारतीय समुद्र तट

भारत का पहला ब्लू फ्लैग प्रमाणित समुद्र तट ओडिशा में स्थित चंद्रभागा समुद्र तट है. भारत में अब 13 ब्लू फ्लैग प्रमाणित समुद्र तट हैं:

  • ओडिशा: गोल्डन समुद्र तट
  • गुजरात: शिवराजपुर समुद्र तट
  • केरल: कप्पड़ समुद्र तट, चाल समुद्र तट
  • दीव: घोघला समुद्र तट
  • अंडमान और निकोबार: राधानगर समुद्र तट
  • कर्नाटक: कसारकोड समुद्र तट, पडुबिद्री समुद्र तट
  • आंध्र प्रदेश: रुशिकोंडा समुद्र तट
  • तमिलनाडु: कोवलम समुद्र तट
  • पुदुचेरी: ईडन समुद्र तट
  • लक्षद्वीप: मिनिकॉय थुंडी समुद्र तट, कदमत समुद्र तट

वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट 2024 जारी

  • जल शक्ति मंत्री श्री सीआर पाटिल ने 31 दिसंबर 2024 को वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट 2024 (Annual Ground Water Quality Report 2024) जारी की थी.
  • यह रिपोर्ट केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा तैयार की गई है. भूजल गुणवत्ता का आकलन 15,200 निगरानी स्थलों से प्राप्त डेटा के आधार पर किया गया है.
  • रिपोर्ट के अनुसार भारत के भूजल में कैल्शियम सबसे प्रमुख धनायन (Cations) है, उसके बाद सोडियम और पोटेशियम का स्थान है.
  • भारत के भूजल में बाइकार्बोनेट सबसे अधिक मौजूद ऋण-आयन (Anions) है, उसके बाद क्लोराइड और सल्फेट का स्थान है.
  • नाइट्रेट, फ्लोराइड और आर्सेनिक का असंगत प्रदूषण कुछ क्षेत्रों में देखा गया है.
  • भूजल सैम्पल्स सिंचाई के लिए सुरक्षित सीमाओं के भीतर पाए गए, जो भूजल की कृषि उपयोगिता को अनुकूल दर्शाते हैं.
  • पूर्वोत्तर राज्यों में सभी भूजल सैम्पल्स सिंचाई के लिए उत्कृष्ट श्रेणी में पाए गए.
  • सोडियम अवशोषण अनुपात पानी में कैल्शियम (Ca), और मैग्नीशियम (Mg) की तुलना में सोडियम (Na) मात्रा के अनुपात को मापने का एक मानक है.
  • देश में कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण (ग्राउंड वाटर रिचार्ज) 446.90 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) आंका गया है. देश में भूजल निकासी का औसत स्तर  60.47% है.

प्रधानमंत्री ने खजुराहो में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना की आधारशिला रखी

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर 2024 को मध्य प्रदेश के खजुराहो में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना (KBLP) की आधारशिला रखी.
  • केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना (KBLP) भारत की राष्ट्रीय नदी जोड़ो नीति के तहत पहली नदी जोड़ो परियोजना है.
  • इस परियोजना के अंतर्गत केन नदी से पानी को बेतवा नदी में स्थानांतरित किया जाना है. केन एवं बेतवा यमुना की सहायक नदियाँ हैं.
  • KBLP केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश सरकारों के बीच एक त्रिपक्षीय पहल है. इस परियोजना की अनुमानित लागत 44,605 ​​करोड़ रुपए है जिसकी समय सीमा लगभग 8 वर्ष है.
  • यह परियोजना दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दृष्टिकोण के अनुरूप है जिन्होंने भारत की जल कमी की समस्या के समाधान के रूप में नदी-जोड़ने की वकालत की थी.
  • परियोजना के अंतर्गत पन्ना टाइगर रिजर्व में केन नदी पर दौधन बांध का निर्माण किया जाएगा, जो 77 मीटर ऊंचा और 2.13 किलोमीटर लंबा होगा.

KBLP के मुख्य विशेषता

  • 221 किलोमीटर लंबी लिंक नहर दौधन बांध को बेतवा नदी से जोड़ेगी, जिससे सिंचाई और पेयजल प्रयोजनों के लिए अधिशेष जल का स्थानांतरण सुगम हो जाएगा.
  • इस परियोजना से मध्य प्रदेश के पन्ना, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, सागर, रायसेन, विदिशा, शिवपुरी एवं दतिया सहित 10 जिलों में 8.11 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी.
  • इस परियोजना से उत्तर प्रदेश के 2.51 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई भी होगी, जिससे महोबा, झांसी, ललितपुर एवं बांदा जिलों में पानी की उपलब्धता में सुधार और बाढ़ की समस्या को दूर करने में मदद करेगी.
  • यह परियोजना प्रभावित क्षेत्रों के समुदायों को विश्वसनीय पेयजल उपलब्ध कराएगी, जिससे बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी की कमी की पुरानी समस्या दूर होगी.
  • औद्योगिक उपयोग के लिए भी पर्याप्त जल उपलब्ध होगा, जो क्षेत्र में आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है.
  • इस परियोजना में 103 मेगावाट जल विद्युत एवं 27 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन भी शामिल है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में योगदान मिलेगा.

पर्यावरणीय एवं सामाजिक चिंताएँ

  • दौधन बांध पन्ना टाइगर रिजर्व के मुख्य भाग में स्थित है और इसके निर्माण से रिजर्व का लगभग 98 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा.
  • दौधन बांध के निर्माण से केन घड़ियाल अभयारण्य में घड़ियाल जैसी प्रजातियों और नीचे की ओर गिद्धों के घोंसले के स्थलों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
  • इस परियोजना में लगभग 2-3 मिलियन वृक्षों की कटाई होगी, जो सबसे विवादास्पद पहलुओं में से एक है.

भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023: भारत के कुल क्षेत्रफल का 25.17 प्रतिशत वन

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने 21 दिसम्बर को देहरादून में भारत वन स्थिति रिपोर्ट (18th India State of Forest Report) 2023 का विमोचन किया.
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत का कुल वन और पौध-क्षेत्र 8.27 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है जो देश के कुल क्षेत्रफल के 25.17 प्रतिशत है.
  • वनावरण का क्षेत्रफल लगभग 7.15 लाख वर्ग किलोमीटर (21.76 प्रतिशत) है. वृक्ष आवरण का क्षेत्रफल 1.12 लाख वर्ग किलोमीटर (3.41 प्रतिशत) है.
  • वर्ष 2021 की तुलना में देश के कुल वन और वृक्ष आवरण में 1445 वर्ग किलोमीटर की वृ‌द्धि हुई है.
  • भारत वन स्थिति रिपोर्ट वर्ष 1987 से भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा हर दो साल पर जारी की जाती है. यह रिपोर्ट इस श्रृंखला की 18वीं रिपोर्ट है.
  • क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वनावरण वाले शीर्ष तीन राज्य- मध्य प्रदेश (77,073 वर्ग कि.मी.), अरुणाचल प्रदेश (65,882 वर्ग कि.मी.) और छत्तीसगढ़ (55,812 वर्ग कि.मी.).
  • प्रतिशतता की दृष्टि से सर्वाधिक वनावरण वाले शीर्ष तीन राज्य- लक्ष‌द्वीप (91.33%), मिजोरम (85.34%) और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह (81.62%).
  • वनावरण में सर्वाधिक वृद्धि दर्शाने वाले शीर्ष तीन राज्य- मिजोरम (242 वर्ग कि.मी.), गुजरात (180 वर्ग कि.मी.) और ओडिशा (152 वर्ग कि.मी.).

दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत महासागर में दुनिया की सबसे बड़े कोरल की खोज

  • हाल ही में दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत महासागर में दुनिया की सबसे बड़े कोरल (मूंगा) की खोज की गई है. इसकी खोज नेशनल जियोग्राफ़िक सोसाइटी की प्रिस्टीन सीज़ टीम ने की है.
  • यह कोरल ब्लू व्हेल से भी बड़ा है. यह 34 मीटर चौड़ा, 32 मीटर लंबा और 5.5 मीटर ऊंचा है जो 42 फ़ीट की गहराई पर मौजूद है.
  • यह सोलोमन द्वीप में खोजा गया है. यह द्वीप ऑस्ट्रेलिया से लगभग 2,000 किमी. उत्तर-पूर्व में स्थित है. यह लगभग 300 साल से भी ज्यादा पुरानी है.
  • कोरल एक तरह का समुद्री जीव हैं जिसे इसे प्रवाल और मिरजान भी कहते हैं. ये आनुवंशिक रूप से समान जीवों से मिलकर बने होते हैं, जिन्हें पॉलीप्स कहा जाता है.
  • ये पॉलीप्स अपने शरीर से कैल्शियम कार्बोनेट नामक एक पदार्थ निकालते हैं. समय के साथ ये कैल्शियम कार्बोनेट जमकर शंख जैसी सख्त ढांचा बना लेता है.
  • हज़ारों कोरल पॉलीप्स एक कॉलोनी बनाने के लिए एक साथ आते हैं और ये कॉलोनियां एक रीफ़ बनाती हैं.

भारत अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता हब में शामिल होने पर सहमत

भारत अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता हब में शामिल होने पर सहमत हो गए है. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इससे संबंधित ‘आशय पत्र’ पर हस्ताक्षर को 3 अक्तूबर को मंजूरी प्रदान की थी.

मुख्य बिन्दु

  • एक यह कदम सतत विकास की दिशा में भारत की प्रतिबद्धता को मजबूती प्रदान करता है तथा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के उसके प्रयासों के अनुरूप है.
  • इससे भारत को कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था बनने और ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास में मदद मिलेगी.
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता हब
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता हब (Energy Efficiency Hub), ऊर्जा दक्षता को प्रोत्साहन देने के लिए समर्पित एक वैश्विक मंच है.
  • 2017 में हैम्बर्ग में जर्मनी द्वारा आयोजित जी 20 शिखर सम्मेलन की बैठक में, जर्मनी ने ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए एक ऊर्जा दक्षता हब के निर्माण का प्रस्ताव रखा था.
  • 2021 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता हब को औपचारिक रूप से पेरिस में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी सचिवालय में स्थापित कर इसका शुभारंभ किया गया था.
  • वर्तमान में इसके 16 सदस्य हैं- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, डेनमार्क, यूरोपीय आयोग, फ्रांस, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया, लक्जमबर्ग, रूस, सऊदी अरब, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम. इस संस्था का वर्तमान अध्यक्ष यूरोपीय आयोग (2024) है.

भारत ने BEE को भारतीय कार्यान्वयन एजेंसी नामित किया

  • भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता हब के लिए भारतीय कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) को नामित किया है.
  • BEE एक वैधानिक निकाय है जिसे केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया था.
  • BEE का एक मुख्य उद्देश्य ऊर्जा कुशल उत्पादों को बढ़ावा देकर भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता को कम करना है.

भारत ने समुद्री जैव विविधता संधि पर हस्ताक्षर किए

भारत ने समुद्री जैव विविधता की रक्षा के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. भारत सरकार की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 25 सितंबर 2024 को न्यूयॉर्क में स्थित संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘बायोड़ायवर्सिटी बियॉन्ड़ नेशनल ज्यूरिस्डि़क्शन एग्रीमेंट’ (BBNJ) समझौते पर हस्ताक्षर किए.

BBNJ समझौता: मुख्य बिन्दु

  • BBNJ समझौता उच्च समुद्र क्षेत्र में देशों के अधिकारों को स्थापित करने का प्रयास करता है ताकि देशों के बीच संघर्ष से बचा जा सके.
  • इस अंतरराष्ट्रीय संधि पर मार्च 2023 में सहमति बनी थी और सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षर के लिए खोला गया था.
  • सदस्य देशों के पास समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए सितंबर 2025 तक का समय है और इस समझौते पर कम से कम 60 देशों द्वारा पुष्टि होने के बाद ही लागू होगा.
  • 2 जुलाई 2024 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की एक बैठक में BBNJ समझौते को मंजूरी दी थी.
  • भारत में BBNJ समझौते के प्रावधानों को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय होगा.

BBNJ समझौते के उद्देश्य

  • यह समझौता खुले समुद्र में समुद्री जैव विविधता की रक्षा करने और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से समुद्री संसाधनों (तेल और गैस, मछली, खनिज, आदि) का निरंतर उपयोग करने के लिए तंत्र का एक सेट प्रदान करता है.
  • यह किसी भी देश को उच्च समुद्रों पर समुद्री संसाधनों पर विशेष अधिकार का दावा करने से रोकता है.
  • समझौते का उद्देश्य क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरणों के माध्यम से और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के संचालन के लिए नियम स्थापित करके समुद्री पर्यावरण पर प्रभाव को कम करना है.
  • यह सतत विकास लक्ष्य संख्या ’14- पानी के नीचे जीवन को प्राप्त करना’ में भी मदद करेगा.

समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन

  • समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन वर्ष 1994 को लागू हुआ था. यह समुद्र में एक तटीय देश द्वारा समुद्री संसाधनों के उपयोग के संबंध में नियम और विनियम निर्धारित करता है. यह प्रादेशिक जल, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र और उच्च समुद्र को परिभाषित करता है.
  • एक तटीय देश का क्षेत्रीय जल देश के महाद्वीपीय शेल्फ से 12 समुद्री मील की दूरी तक निर्धारित किया गया है. इस सीमा के भीतर, देश, सिद्धांत रूप में, किसी भी कानून को लागू करने, किसी भी उपयोग को विनियमित करने और किसी भी संसाधन का दोहन करने के लिए स्वतंत्र हैं.
  • तटीय देश के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) को उसके महाद्वीपीय शेल्फ से 200 समुद्री मील तक फैले समुद्र के एक क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है. EEZ के भीतर, देश को पानी, समुद्र तल और क्षेत्र के उप-मिट्टी में पाए जाने वाले प्राकृतिक समुद्री संसाधनों (तेल और गैस, खनिज, मछली, आदि) का दोहन करने का अधिकार है.
  • उच्च समुद्र क्षेत्र, समुद्र में स्थित वे जल क्षेत्र जो किसी तटीय देश के क्षेत्रीय जल क्षेत्र और विशेष आर्थिक क्षेत्र से परे हैं.

भारत में 3 नए आर्द्रभूमि को रामसर स्थल का दर्जा दिया गया

रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention) के तहत भारत के 3 नए आर्द्रभूमि को रामसर स्थल (Ramsar Sites) का दर्जा दिया गया है. ये स्थल हैं- तमिलनाडु में स्थित नंजरायन पक्षी अभयारण्य, काज़ुवेली पक्षी अभयारण्य और मध्य प्रदेश में स्थित तवा जलाशय. 3 नए रामसर स्थल का दर्जा दिए जाने के बाद अब भारत में रामसर स्थलों की कुल संख्‍या 85 हो गई है.

रामसर स्थल: एक दृष्टि

  • अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि को रामसर स्थल कहा जाता है. रामसर स्थल पानी में स्थित मौसमी या स्थायी पारिस्थितिक तंत्र हैं. इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र (6 मीटर से कम ऊँचे ज्वार वाले स्थान) के अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे- अपशिष्ट जल उपचार तालाब और जलाशय आदि शामिल होते हैं.
  • आर्द्रभूमियां प्राकृतिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं. ये बाढ़ की घटनाओं में कमी लाती हैं, तटीय इलाकों की रक्षा करती हैं, साथ ही प्रदूषकों को अवशोषित कर पानी की गुणवत्ता में सुधार करती हैं.
  • आर्द्रभूमि मानव और पृथ्वी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं. 1 बिलियन से अधिक लोग जीवनयापन के लिये उन पर निर्भर हैं और दुनिया की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं तथा प्रजनन करती हैं.

रामसर स्थल का दर्जा

  • रामसर स्थल का दर्जा उन आर्द्रभूमियों को दिया जाता है जो रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention) के मानकों को पूरा करते हैं. रामसर कन्वेंशन एक पर्यावरण संधि है जो आर्द्रभूमि एवं उनके संसाधनों के संरक्षण तथा उचित उपयोग हेतु राष्ट्रीय कार्रवाई और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये रूपरेखा प्रदान करती है.
  • रामसर स्थल नाम ईरान के रामसर शहर के नाम पर रखा गया है क्योंकि यहीं 02 फरवरी 1971 को रामसर कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए गए थे. भारत ने इस संधि पर 1 फरवरी 1982 को हस्ताक्षर किये थे.
  • रामसर स्थलों की सूची रामसर सम्मेलन के सचिवालय द्वारा रखी जाती है, जो स्विट्जरलैंड के ग्लैंड में स्थित अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) मुख्यालय में स्थित है.

भारत और विश्व में रामसर स्थल

  • भारत में अब कुल 85 रामसर स्थल हैं जो देश की कुल भूमि का लगभग 5% है. ये क्षेत्र देश के 13.58 लाख हैक्‍टेयर भूमि में फैले हैं.
  • आर्द्रभूमि के राज्य-वार वितरण में तमिलनाडु पहले और गुजरात दूसरे स्थान पर है (एक लंबी तटरेखा के कारण). इसके बाद आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है.
  • प्रथम भारतीय रामसर स्थल- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान) और चिल्का झील (ओडिशा) है, जिसे 1981 में शामिल किया गया था.
  • भारत में सबसे बड़ा रामसर स्थल पश्चिम बंगाल का सुंदरबन और सबसे छोटा रामसर हिमाचल प्रदेश में रेणुका है.
  • रामसर सूची के अनुसार, सबसे अधिक रामसर स्थलों वाले देश यूनाइटेड किंगडम (175) और मेंक्सिको (142) हैं. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि का क्षेत्रफल (148,000 वर्ग किमी) सबसे अधिक बोलीविया में है.

राजस्थान में लुप्तप्राय पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड  की संख्या में बढ़ोतरी

राजस्थान में जैसलमेर स्थित राष्ट्रीय मरु उद्यान में हाल ही में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) पक्षी का सर्वेक्षण किया गया था. इस सर्वेक्षण में 64 GIB पक्षी की गिनती की गई थी. GIB को राजस्थान में ‘गोडावण’ नाम से भी जाना जाता है. यह भारत का सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी माना जाता है.

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB): मुख्य बिन्दु

  • राष्ट्रीय मरु उद्यान में आयोजित वार्षिक वाटरहोल सर्वेक्षण के दौरान 64 GIB पक्षी की गिनती की गई जबकि पिछली 2022 के सर्वेक्षण में 42 पक्षियों की गिनती वॉटरहोल तकनीक से की गई थी. पश्चिमी विक्षोभ के कारण हुई बारिश के कारण 2023 में कोई जनगणना नहीं की गई थी.
  • GIB की गणना केवल रामदेवरा और जैसलमेर में की गई. 21 GIB को रामदेवरा क्षेत्र में, जबकि 43 को जैसलमेर में गिना गया.
  • GIB एक स्थलीय पक्षी है जिसे गोडावण नाम से भी जाना जाता है, एक अत्यधिक लुप्तप्राय प्रजाति है जो मुख्य रूप से सूखे घास के मैदानों में रहती है.
  • GIB को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में रखा गया है, जो इसे उच्चतम स्तर की कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है.
  • इस पक्षी को प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (सीएमएस) की अनुसूची 1 और वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के परिशिष्ट 1 में भी सूचीबद्ध किया गया है.
  • केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय के अनुसार, अगस्त 2023 तक, भारत में 150 GIB पक्षी थे. इनमें से 128 राजस्थान में थे, और बाकी गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में प्रत्येक में 10 से कम GIB थे.