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चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति की समीक्षा

व्यापक वित्तीय समावेशन पर विचार करने के लिए नीति आयोग का फिन-टेक सम्मेलन

आम बजट 2018-19

क्या है पनामा पेपर्स लीक?

पनामा पेपर्स एक दस्तावेज है जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय रूप से किये गये भ्रष्टाचार का उल्लेख है. यह दस्तावेज पनामा (उत्तरी व दक्षिणी अमरीका को भू-मार्ग से जोडऩे वाला देश) की एक कानूनी कंपनी ‘मोसेक फोंसेका’ के सर्वर को वर्ष 2013 में हैक करके निकाला गया है. ‘मोसेक फोंसेका’ ने कई देशों के लोगों को गैर कानूनी रूप से टैक्स बचाने में मदद की थी. साथ ही इस कंपनी के माध्यम से काफी मात्रा में काले धन को सफ़ेद किया गया.

क्या होता है रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर और एसएलआर?

रेपो रेट

जैसा कि आप जानते हैं कि बैंकों को अपने रोज के काम लिए अक्सर बड़ी रकम की जरूरत होती है। अक्सर यह होता है कि इसकी मियाद एक दिन से ज्यादा नहीं होती। तब बैंक केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेने का विकल्प अपनाते हैं। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।

रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और तब ही बैंक ब्याज दरों में भी कमी करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके। अब अगर रेपो दर में बढ़ोतरी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। ऐसे में जाहिर है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें बढ़ाना होगा।

रिवर्स रेपो दर

रिवर्स रेपो रेट ऊपर बताए गए रेपो रेट से उल्टा होता है। बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

वैसे कई बार रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी हो गई है तब वह रिवर्स रेपो रेट में बढ़ोतरी कर देता है। इससे होता यह है कि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपना पैसा रिजर्व बैंक के पास रखने लगते हैं।

कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर)

सभी बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। इसे नकद आरक्षी अनुपात यानी कि कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) कहते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर किसी भी मौके पर एक साथ बहुत बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके।

आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बिना बाजार से लिक्विडिटी कम करना चाहता है, तो वह सीआरआर बढ़ा देता है। इससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम रकम बचती है। वहीं सीआरआर को घटाने से बाजार में नकदी की सप्लाई बढ़ जाती है।

स्टैच्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो (एसएलआर)

कैश रिजर्व रेश्यो की तरह कमर्शियल बैंकों को रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार एक निश्चित राशि, नकदी, सोना या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त बॉन्डों में निवेश करना होता है। इस पर रिजर्व बैंक नजर रखता है, ताकि बैंकों के उधार देने पर नियंत्रण रखा जा सके। अगर सीधे शब्दों में समझें तो एसएलआर वो नकदी होती है जिससे बैंकों को लोन बांटने से पहले सरकारी बॉन्ड या फिर सोना खरीदना होता है। एसएलआर में कटौती के बाद बैंक सरकारी बॉन्ड बेच सकते हैं और इस रकम का इस्तेमाल बैंक लोन बांटने में कर सकते हैं।