Tag Archive for: RBI

चालू वित्त वर्ष 2019-20 की तीसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति की समीक्षा

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक 5 अगस्त से 7 अगस्त तक मुंबई में हुई. यह चालू वित्त वर्ष (2019-20) की तीसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक थी.

RBI ने नेशनल इलेक्‍ट्रोनिक फंड्स ट्रांसफर (NEFT) की सुविधा चौबीसों घंटे जारी करने की घोषणा की है. यह सुविधा दिसम्‍बर 2019 से शुरू हो जायेगी.

रेपो रेट में 35 बेसिस पॉइंट की कटौती

RBI ने इस समीक्षा बैठक में रेपो रेट में 35 बेसिस पॉइंट की कटौती की है. इस कटौती के बाद अब रेपो रेट 5.75% से घटकर 5.40% हो गया है. RBI की इस समीक्षा बैठक में सभी 6 सदस्यों ने रेपो रेट में कटौती का पक्ष लिया. RBI ने लगातार चौथी बार रीपो रेट में कटौती की है. रेपो रेट वह रेट होता है, जिस पर RBI बैंकों को कर्ज देता है.

रिवर्स रेपो और बैंक दर में भी कमी

इस बैठक में RBI ने रिवर्स रेपो रेट को 5.50 से घटाकर 5.15% कर दिया है. यह वह रेट है जिस पर बैंकों को RBI में जमा किए गए धन पर ब्याज मिलता है. इस बैठक में RBI ने बैंक रेट को 6 से घटा कर 5.65 प्रतिशत किया है.

रेपो रेट कम होने से कैसे लोगों को होता है फायदा?

रेपो रेट के कम होने से बैंकों को RBI से कम व्याज पर कर्ज मिलता है. इस सस्ती लागत का लाभ कर्ज लेने वाले ग्राहकों को मिलता है. इससे बैंकों को घर, दुकान, पर्सनल और कार के लिये लोन कम दरों पर देने का मौका मिलता है. ग्राहकों के चल रहे लोन पर EMI का भी कम होता है.

जीडीपी वृद्धि का पूर्वानुमान

रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये GDP वृद्धि का पूर्वानुमान 7 प्रतिशत से घटाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया है.

मुद्रास्फीति का अनुमान

रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितम्बर) के लिए सीपीआई मुद्रास्‍फीति 3.1% अनुमानित की है.

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI): एक दृष्टि

  • भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) भारत का केन्द्रीय बैंक है. यह भारत के सभी बैंकों का संचालक है.
  • RBI की स्थापना 1 अप्रैल 1935 को RBI ऐक्ट 1934 के अनुसार हुई. प्रारम्भ में इसका केन्द्रीय कार्यालय कोलकाता में था जो सन 1937 में मुम्बई आ गया.
  • पहले यह एक निजी बैंक था किन्तु सन 1949 से यह भारत सरकार का उपक्रम बन गया है.
वर्तमान दरें: एक दृष्टि
नीति रिपो दर5.40%
प्रत्‍यावर्तनीय रिपो दर5.15%
सीमांत स्‍थायी सुविधा दर5.65%
बैंक दर5.65%
CRR4%
SLR18.75%


भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंक आफ चाइना को देश में नियमित बैंक सेवायें देने की अनुमति दी

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंक आफ चाइना (BOC) को देश में नियमित बैंक सेवायें देने की 1 अगस्त को अनुमति दे दी. RBI ने BOC को भारतीय रिजर्व बैंक कानून, 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल किया है. भारतीय स्टेट बैंक (SBI), HDFC बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और ICICI बैंक समेत सभी वाणिज्यिक बैंक दूसरी अनुसूची में शामिल हैं. इस अनुसूची में आने वाले बैंकों को RBI के नियमों का अनुपालन करना होता है.


चालू वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति की समीक्षा

चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति की समीक्षा

क्या होता है रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर और एसएलआर?

रेपो रेट

जैसा कि आप जानते हैं कि बैंकों को अपने रोज के काम लिए अक्सर बड़ी रकम की जरूरत होती है। अक्सर यह होता है कि इसकी मियाद एक दिन से ज्यादा नहीं होती। तब बैंक केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेने का विकल्प अपनाते हैं। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।

रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और तब ही बैंक ब्याज दरों में भी कमी करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके। अब अगर रेपो दर में बढ़ोतरी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। ऐसे में जाहिर है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें बढ़ाना होगा।

रिवर्स रेपो दर

रिवर्स रेपो रेट ऊपर बताए गए रेपो रेट से उल्टा होता है। बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

वैसे कई बार रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी हो गई है तब वह रिवर्स रेपो रेट में बढ़ोतरी कर देता है। इससे होता यह है कि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपना पैसा रिजर्व बैंक के पास रखने लगते हैं।

कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर)

सभी बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। इसे नकद आरक्षी अनुपात यानी कि कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) कहते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर किसी भी मौके पर एक साथ बहुत बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके।

आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बिना बाजार से लिक्विडिटी कम करना चाहता है, तो वह सीआरआर बढ़ा देता है। इससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम रकम बचती है। वहीं सीआरआर को घटाने से बाजार में नकदी की सप्लाई बढ़ जाती है।

स्टैच्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो (एसएलआर)

कैश रिजर्व रेश्यो की तरह कमर्शियल बैंकों को रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार एक निश्चित राशि, नकदी, सोना या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त बॉन्डों में निवेश करना होता है। इस पर रिजर्व बैंक नजर रखता है, ताकि बैंकों के उधार देने पर नियंत्रण रखा जा सके। अगर सीधे शब्दों में समझें तो एसएलआर वो नकदी होती है जिससे बैंकों को लोन बांटने से पहले सरकारी बॉन्ड या फिर सोना खरीदना होता है। एसएलआर में कटौती के बाद बैंक सरकारी बॉन्ड बेच सकते हैं और इस रकम का इस्तेमाल बैंक लोन बांटने में कर सकते हैं।