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देश का पहला प्राइवेट रॉकेट विक्रम-एस से तीन उपग्रहों का प्रक्षेपण

भारत के पहले प्राइवेट रॉकेट विक्रम-एस (Rocket Vikram-S)  ने 19 नवंबर को सफलता के साथ उड़ान भरी और तीन उपग्रहों (सैटलाइट्स) को उनकी कक्षा में स्थापित किया. यह प्रक्षेपण श्री हरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से किया गया.

इसके साथ ही देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में निजी क्षेत्र के प्रवेश का प्रारंभ हुआ. यही कारण है, इस मिशन का नाम ‘प्रारंभ’ रखा गया है.

रॉकेट ‘विक्रम एस’: मुख्य बिन्दु

  • इसरो के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई की याद में पहले प्राइवेट रॉकेट का नाम ‘विक्रम एस’ दिया गया है. इसे हैदराबाद के स्टार्टअप ‘स्काईरूट एयरोस्पेस’ ने बनाया है.
  • 550 किलोग्राम वजनी यह रॉकेट कार्बन फाइबर से बना है. इसमें 3-D प्रिंटेड इंजन लगे हैं. यह रॉकेट 83 किलो के पेलोड (सैटलाइट) को 100 किमी. ऊंचाई तक ले जाने में सक्षम है. यह आवाज की 5 गुना अधिकतम रफ्तार से उड़ान भर सकता है.
  • रॉकेट ‘विक्रम एस’ के पहले उड़ान से तीन सैटलाइट्स भेजे गए. इनमें दो भारतीय और एक विदेशी कंपनी का था. भारतीय सैटलाइट – चेन्नै बेस्ड स्टार्टअप ‘स्पेसकिड्ज़’ और आंध्र के एन-स्पेसटेक के थे. स्पेसकिड्ज़ के ‘फन-सैट’ को भारत, अमेरिका, सिंगापुर और इंडोनेशिया के स्टूडेंट्स ने तैयार किया है. वहीं, विदेशी सैटलाइट अर्मेनियन बाजूम-Q स्पेस रिसर्च लैब से जुड़ा था.
  • आम रॉकेट ईंधन के बजाय इसमें LNG (लिक्विड नेचरल गैस) और LoX (लिक्विड ऑक्सीजन) की मदद ली गई है, जो किफायती और प्रदूषण मुक्त होता है.
  • यह लॉन्च सब-ऑर्बिटल था यानी रॉकेट आउटर स्पेस में नहीं गया और काम पूरा कर समंदर में गिर गया.
  • भारत इस लॉन्च के बाद अमेरिका, रूस, ईयू, जापान, चीन और फ्रांस जैसे देशों के क्लब में शामिल हो गया, जहां प्राइवेट रॉकेट छोड़े जा रहे हैं.

ISRO ने LVM3 प्रक्षेपण यान से 36 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 23 अक्तूबर को LVM3 प्रक्षेपण यान से 36 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया था. ये उपग्रह ब्रिटिश कंपनी ‘वन वेब’ के थे जिन्हें आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किए गए.

मुख्य बिन्दु

  • वनवेब, ब्रिटेन स्थित एक निजी उपग्रह संचार कंपनी है, जिसमें भारत की ‘भारती एंटरप्राइजेज’ एक प्रमुख निवेशक और शेयरधारक है. वनवेब के 36 उपग्रहों के एक और सेट को जनवरी 2023 में कक्षा में स्थापित करने की योजना है.
  • LVM3 (Launch Vehicle Mark 3) भारत का सबसे भारी रॉकेट है. यह जियोसिन्क्रोनस सैटलाइट लॉन्च वीइकल-मार्क3 (GSLV-Mk3) नाम से भी जाना जाता है.
  • मिशन में वनवेब के 5,796 किलोग्राम वजन के 36 उपग्रहों के साथ अंतरिक्ष में जाने वाला LVM3 पहला भारतीय रॉकेट बन गया है.
  • यह LVM3 का पहला वाणिज्यिक (कॉमर्शियल) मिशन था. इस मिशन पर इसने ‘वनवेब’ के 36 उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit)  में स्थापित किया.
  • प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद ही 601 किलोमीटर की ऊंचाई पर धरती की निचली कक्षा में सभी 36 सैटलाइट सफलता से स्थापित हो गए.
  • इससे पहले ISRO ने पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (PSLV) के माध्यम से वाणिज्यिक मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया था लेकिन GSLV के लिए यह पहला वाणिज्यिक मिशन था.
  • ISRO अब तक 345 विदेशी सैटलाइट को लॉन्च कर चुका है. इन सभी सैटलाइट को PSLV से अंतरिक्ष में भेजा गया था.
  • LVM3 रॉकेट 43.5 मीटर लंबा और 644 टन वजनी है. यह 8 हजार किलो वजन ले जाने में सक्षम है.

चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण जून 2023 में

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण जून 2023 में होने की संभावना है. इसरो प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ ने कहा कि चंद्रयान-3 लगभग तैयार है और इसका परीक्षण भी लगभग पूरा हो चुका है.

राष्ट्रपति HAL के एकीकृत क्रायोजेनिक इंजन निर्माण संयंत्र का शुभारंभ किया

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 27 सितम्बर को बेंगलुरु में हिन्‍दुस्‍तान एयरोनॉटिक्‍स लिमिटेड (HAL) के एकीकृत क्रायोजेनिक इंजन निर्माण संयंत्र का शुभारंभ किया.

क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के उपग्रह प्रक्षेपण में किया जाता है. राष्ट्रपति ने इस दौरान हिन्‍दुस्‍तान एयरोनॉटिक्‍स लिमिटेड में दक्षिण क्षेत्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान की आधारशिला भी रखी.

इसरो का ‘SSLV-D1’ रॉकेट का पहला प्रक्षेपण आंशिक सफल रहा

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का ‘SSLV-D1’ रॉकेट का पहला प्रक्षेपण आंशिक रूप से सफल रहा. यह प्रक्षेपण 7 अगस्त को श्री हरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से किया गया था.

मुख्य बिन्दु

  • इस प्रक्षेपण में इसरो ने ‘SSLV-D1’ रॉकेट के माध्यम से पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (अर्थ आब्‍जर्वर उपग्रह) ‘EOS-02’ और एक अन्‍य उपग्रह ‘आजादी-सैट’ (AzadiSAT) को अंतरिक्ष उनके निर्धारित कक्षा में भेजा गया  था.
  • इस प्रक्षेपण में दोनों उपग्रह अपने निर्धारित कक्षा में पहुँचने में सफल नहीं हुआ. आखिरी समय में इन उपग्रहों का संपर्क इसरो से टूट गया.
  • ‘SSLV-D1’ (स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) इसरो का सबसे छोटा वाणिज्यिक रॉकेट है. इसे बेबी रॉकेट से जाना जाता है.
  • ‘EOS02’ एक अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट हैं. 142 किलोग्राम का यह सैटेलाइट रात में भी पृथ्वी की निगरानी कर सकता है.
  • दूसरा सैटेलाइट ‘AzaadiSAT’ है. यह ‘स्पेसकिड्ज इंडिया’ नाम की देसी निजी स्पेस एजेंसी का स्टूडेंट सैटेलाइट है. इसे देश की 750 लड़कियों ने मिलकर बनाया है.

इसरो ने PSLV-C 53 का सफल परीक्षण किया, सिंगापुर के तीन उपग्रहों का प्रक्षेपण

अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने हाल ही में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान ‘PSLV-C 53’ का सफल परीक्षण किया था. इस परीक्षण में PSLV-C 53 के माध्यम से सिंगापुर के तीन उपग्रहों को सफलतापूर्वक अभीष्ट कक्षा में प्रक्षेपित किया गया. यह प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था. यह PSLV का 55वां मिशन था.

मुख्य बिंदु

  • PSLV-C 53 इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) का दूसरा समर्पित वाणिज्यिक मिशन है. इससे पहले 23 जून को इसरो ने NSIL के लिए बनाए गए नए संचार उपग्रह जीसैट-24 को प्रक्षेपित किया था. इसका प्रक्षेपण फ्रेंच गुयाना (दक्षिण अमेरिका) के कोउरू से किया गया था.
  • 44.4 मीटर लंबे PSLV-C 53 से सिंगापुर के तीन उपग्रहों 365 किग्रा के DS-EO, और 155 किलोग्राम के न्यूसर और सिंगापुर के नानयांग टेक्नालाजिकल यूनिवर्सिटी (NTU) के 2.8 किलोग्राम के स्कूब-1 उपग्रह को प्रक्षेपित किया गया.
  • प्रक्षेपण यान ने तीनों उपग्रहों को 10 डिग्री झुकाव के साथ 570 किमी की सटीक कक्षा में स्थापित किया.
  • दिन और रात, सभी मौसम में तस्वीरें भेजने में सक्षम DS-EO में इलेक्ट्रो-आप्टिक, मल्टी-स्पेक्ट्रल पेलोड होता है जो भूमि वर्गीकरण के लिए पूर्ण रंगीन तस्वीरें भेजेगा. इसके साथ ही मानवीय सहायता और आपदा राहत आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा.
  • न्यूसर सिंगापुर का पहला छोटा वाणिज्यिक उपग्रह है जो AR पेलोड ले जाता है, जो दिन और रात में और सभी मौसम में तस्वीरें भेजने में सक्षम है.
  • सिंगापुर के नानयांग टेक्नालाजिकल यूनिवर्सिटी (NTU) स्कूब-1 सिंगापुर के स्टूडेंट सैटेलाइट सीरीज का पहला उपग्रह है.

ISRO ने संचार उपग्रह जी-सैट 24 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 23 जून को संचार उपग्रह ‘जी-सैट 24’ (GSAT-24) का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया. यह प्रक्षेपण फ्रेंच गयाना के कौरू से एरियन 5 रॉकेट द्वारा किया गया.

मुख्य बिंदु

  • इसरो ने इसका निर्माण न्‍यू स्‍पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के लिये किया है. NSIL इसरो की वाणिज्यिक शाखा है.
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधारों के बाद NSIL का यह पहला मांग आधारित संचार उपग्रह मिशन है. इस उपग्रह की मांग टेलीविजन सेवा प्रदाता टाटा स्काई (टाटा समूह) ने किया था.
  • जी सैट-24 4180 किलोग्राम वजन वाला 24 केयू बैंड का संचार उपग्रह है, जो पूरे भारत में DTH ऐप की जरूरतें पूरी करेगा.
  • फ़्रेंच गयाना दक्षिण अमेरिका के उत्तरी अटलांटिक तट पर फ्रांस का एक विदेशी विभाग/क्षेत्र और एकल क्षेत्रीय प्राधिकरण है.

इसरो ने शुक्र की कक्षा में अंतरिक्षयान भेजने की योजना बनाई

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्र की कक्षा में अंतरिक्षयान भेजने की योजना बनाई है. इसका उद्देश्य शुक्र ग्रह की सतह का अध्ययन और इसके वातावरण में मौजूद सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों के रहस्य का पता लगाना है. इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने यह घोषणा हाल ही में की थी. चंद्रयान और मंगलयान की सफलता के बाद इसरो शुक्र ग्रह के लिए मिशन पर काम कर रहा है.

शुक्र मिशन क्यों है महत्वपूर्ण

  • शुक्र ग्रह धरती का सबसे नजदीकी ग्रह है. यह आकार में पृथ्वी जैसा ही है. उसे सोलर सिस्टम का पहला ग्रह माना जाता है जहां जीवन था. धरती की तरह वहां भी महासागर था. वहां की जलवायु भी धरती की तरह थी.
  • शुक्र ग्रह अब जीवन के लायक नहीं है. वहां सतह का तापमान 900 डिग्री फारेनहाइट यानी 475 डिग्री सेल्सियस है. शुक्र का वातावरण कॉर्बन डाई-ऑक्साइड और सल्फ्यूरिक एसिड के पीले बादलों से घिरा हुआ है. शुक्र के वातावरण का घनत्व पृथ्वी के मुकाबले 50 गुना ज्यादा है. वीनस के अध्ययन से धरती पर भी जीवन के संभावित विनाश को टाला जा सकता है.
  • भारत दिसंबर 2024 तक शुक्र मिशन को लॉन्च करना चाहता है. इसकी वजह ये है कि उस वक्त पृथ्वी और शुक्र ग्रह की स्थिति ऐसी रहेगी कि किसी स्पेसक्राफ्ट को वीनस तक पहुंचने में कम से कम ईंधन लगे. अगर दिसंबर 2024 में लॉन्चिंग नहीं हो पाती है तो फिर उसके 7 साल बाद यानी 2031 में उस तरह की अनुकूल खगोलीय स्थिति बन पाएगी.
  • अबतक अमेरिका, रूस, यूरोपियन स्पेस एजेंसी और जापान ही वीनस मिशन लॉन्च किए हैं. सबसे पहले फरवरी 1961 में रूस ने शुक्र के लिए टी. स्पूतनिक मिशन को लॉन्च किया था लेकिन वह नाकाम हो गया. अगस्त 1962 में अमेरिका का मैरिनर-2 मिशन पहला सफल मिशन था.

डॉ. एस सोमनाथ इसरो के नए चेयरमैन नियुक्त

डॉ. एस. सोमनाथ को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. उन्होंने के सिवन का स्थान लिया है. उन्हें कार्मिक मंत्रालय द्वारा वरिष्ठता के आधार नियुक्त किया गया है. डॉ. सोमनाथ तीन साल के लिए इसरो के निदेशक के रूप में कार्य करेंगे.

डॉ. सोमनाथ ने स्ट्रक्चरल डिजाइन, लॉन्च व्हीकल सिस्टम इंजीनियरिंग, स्ट्रक्चरल डायनेमिक्स, मैकेनिज्म डिजाइन, पायरोटेक्निक में विशेषज्ञता हासिल की है.

इसरो के अध्यक्ष: एक दृष्टि

इसरो के अध्यक्ष भारतीय अंतरिक्ष विभाग के कार्यकारी अधिकारी होते हैं. विक्रम साराभाई इसरो के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले अध्यक्ष थे. उन्होंने 12 साल तक अपनी सेवाएं दी. डॉ. एस सोमनाथ इसरो अध्यक्ष नियुक्त होने वाले चौथे केरलवासी हैं. इससे पहले के. राधाकृष्णन, माधवन नायर और के. कस्तूरीरंगन इसरो अध्यक्ष रह चुके हैं.

गगनयान के लिए क्रायोजेनिक इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने हाल ही में अन्तरिक्ष में मानव भेजने के मिशन ‘गगनयान’ के लिए क्रायोजेनिक इंजन की क्षमता सफलतापूर्वक परीक्षा किया था. यह परीक्षण तमिलनाडु के महेंद्रगिरि में इसरो प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स में किया गया था.

गगनयान मिशन के लिए क्रायोजेनिक इंजन की क्षमता के लिए कई और परीक्षण किया जाना है. यह परीक्षण गगनयान के लिए क्रायोजेनिक इंजन की विश्वसनीयता और मजबूती सुनिश्चित करता है.

गगनयान मिशन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अन्तरिक्ष में मानव भेजने के गगनयान मिशन की योजना बनाई है. इस मिशन के तहत दो मानव रहित उड़ानें और एक मानव सहित अंतरिक्ष उड़ान संचालित किया जायेगा. मानव सहित अंतरिक्ष उड़ान में एक महिला सहित तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री होंगे. गगनयान पृथ्वी से 300-400 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी की निचली कक्षा में 5-7 दिनों तक पृथ्वी का चक्कर लगाएगा.

ISRO का भू-पर्यवेक्षी उपग्रह GISAT-1 का प्रक्षेपण लक्ष्‍य के अनुरूप संपन्‍न नहीं हुआ

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 12 अगस्त को भू-पर्यवेक्षी उपग्रह GISAT-1 (EOS-03) का प्रक्षेपण किया था, लक्ष्‍य के अनुरूप संपन्‍न नहीं हो सका. यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्‍द्र से GSLV-F10 रॉकेट के माध्यम से किया गया था. यह GSLV की 14वीं उड़ान थी.

यह मिशन लक्ष्‍य के अनुरूप संपन्‍न नहीं हुआ. इस प्रक्षेपण का पहला और दूसरा चरण सामान्‍य रहा था. लेकिन क्रायो‍जनिक चरण का प्रक्षेपण तकनीकी व्‍यवधान के कारण नहीं हो सका.

GISAT-1 एक अत्याधुनिक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (Earth Observation Satellite) है. इसे GSLV-F10 रॉकेट द्वारा जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में रखा जाना था.

GSLV का पूर्ण रूप Geosynchronous Satellite Launch Vehicle है. इसमें ठोस रॉकेट बूस्टर और तरल-ईंधन वाले इंजन का उपयोग किया गया है. उपग्रह को इंजेक्ट करने के लिए आवश्यक थ्रस्ट के लिए तीसरा चरण एक क्रायोजेनिक इंजन द्वारा संचालित की जाती है.

भारत के प्रस्तावित सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ के लिए सपोर्ट सेल ‘AL1SC’ की स्थापना की गयी

भारत के प्रस्तावित पहला सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ (Aditya L-1 Mission) से प्राप्त होने वाले आंकड़ों को एक वेब इंटरफेस पर जमा करने के लिए एक कम्युनिटी सर्विस सेंटर की स्थापना की गई है. इस सेंटर का नाम ‘आदित्य L1 सपोर्ट सेल’ (AL1SC) दिया गया है. इसकी स्थापना उत्तराखंड स्थित हल्द्वानी में किया गया है.

आदित्य L1 सपोर्ट सेल (AL1SC): मुख्य बिंदु

  • इस सेंटर को भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस (ARIES) ने मिलकर बनाया है.
  • सपोर्ट सेल ‘AL1SC’ की स्थापना का उद्देश्य भारत के प्रस्तावित पहले सौर अंतरिक्ष मिशन आदित्य L1 (Aditya-L1) से मिलने वाले सभी वैज्ञानिक विवरणों और आंकड़ों का अधिकतम विश्लेषण करना है. इस केंद्र का उपयोग अतिथि पर्यवेक्षकों (गेस्ट ऑब्जर्वर) द्वारा किया जा सकेगा. यह विश्व के प्रत्येक इच्छुक व्यक्ति को आंकड़ों का वैज्ञानिक विश्लेषण करने की छूट देगा.
  • AL1SC की स्थापना ARIES के उत्तराखंड स्थित हल्द्वानी परिसर में किया गया है, जो इसरो के साथ संयुक्त रूप काम करेगा.
  • यह केंद्र दुनिया की अन्य अंतरिक्ष वेधशालाओं से भी जुड़ेगा. सौर मिशन से जुड़े आंकड़े उपलब्ध कराएगा, जो आदित्य L1 से प्राप्त होने वाले विवरण में मदद कर सकते हैं.

भारत का प्रस्तावित सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’

  • ‘आदित्य एल-1’ (Aditya-L1) भारत का प्रस्तावित पहला सौर मिशन है. इसरो (ISRO) ने अगले वर्ष (2022 में) इस मिशन को प्रक्षेपित करने की योजना बनायी है.
  • इसरो द्वारा आदित्य L-1 को 400 किलो-वर्ग के उपग्रह के रूप में वर्गीकृत किया है जिसे ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-XL’ (PSLV- XL) से प्रक्षेपित (लॉन्च) किया जाएगा.
  • आदित्य L-1 को सूर्य एवं पृथ्वी के बीच स्थित एल-1 लग्रांज/ लेग्रांजी बिंदु (Lagrangian point) के निकट स्थापित किया जाएगा. आदित्य L-1 का उद्देश्य ‘सन-अर्थ लैग्रैनियन प्वाइंट 1’ (L-1) की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है.
  • यह मिशन सूर्य का नज़दीक से निरीक्षण करेगा और इसके वातावरण तथा चुंबकीय क्षेत्र के बारे में अध्ययन करेगा.
    आदित्य L-1 को सौर प्रभामंडल के अध्ययन हेतु बनाया गया है. सूर्य की बाहरी परतों, जोकि डिस्क (फोटोस्फियर) के ऊपर हजारों किमी तक फैला है, को प्रभामंडल कहा जाता है.
  • प्रभामंडल का तापमान मिलियन डिग्री केल्विन से भी अधिक है. सौर भौतिकी में अब तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि प्रभामंडल का तापमान इतना अधिक क्यों होता है.
  • आदित्य L-1 देश का पहला सौर कॅरोनोग्राफ उपग्रह होगा. यह उपग्रह सौर कॅरोना के अत्यधिक गर्म होने, सौर हवाओं की गति बढ़ने तथा कॅरोनल मास इंजेक्शंस (CMES) से जुड़ी भौतिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करेगा.

लग्रांज/लेग्रांजी बिंदु क्या होता है?

सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, वह लग्रांज बिंदु (Lagrangian point) कहलाता है.

लग्रांज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल समान रूप से लगने से दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है. इस स्थिति में वस्तु को ना तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा, ना पृथ्वी अपनी ओर खींच सकेगी और वस्तु अधर में लटकी रहेगी.

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO): एक दृष्टि

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है. इसकी स्थापना वर्ष 1969 में की गई थी. इस संस्थान का प्रमुख काम उपग्रहों का निर्माण करना और अंतरिक्ष उपकरणों के विकास में सहायता प्रदान करना है.

आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस (ARIES)

‘आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस’ (ARIES), भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संचालित एक स्वायत्त संस्थान है. यह संस्थान उत्तराखंड की मनोरा पीक (नैनीताल) में स्थित है. इसकी स्थापना 20 अप्रैल, 1954 को की गई थी. इस संस्थान के कार्यक्षेत्र खगोल विज्ञान, सौर भौतिकी और वायुमंडलीय विज्ञान इत्यादि हैं.

ISRO ने साउंडिंग रॉकेट RH-560 का परीक्षण किया, हवाओं के बदलाव से जुड़े अध्ययन में मदद करेगा

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 13 मार्च को अपने साउंडिंग रॉकेट RH-560 का परीक्षण किया था. यह परीक्षण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा परीक्षण केंद्र से किया गया था.

इसरो के साउंडिंग रॉकेट की मदद से इसरो वायुमंडल में मौजूद तटस्थ हवाओं में ऊंचाई पर होने वाले बदलावों और प्लाज्मा की गतिशीलता का अध्यन किया जाएगा. यह रॉकेट हवाओं में व्यवहारिक बदलाव और प्लाज्मा गतिशीलता पर अध्यन की दिशा में नए आयाम स्थापित करेगा.