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इसरो ने उपग्रह प्रक्षेपण से 14.30 करोड डॉलर के विदेशी राजस्‍व का सजृन किया

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने उपग्रह प्रक्षेपण के माध्यम से लगभग 14.30 करोड अमरीकी डॉलर के विदेशी राजस्‍व का सजृन किया है.
  • पिछले दस वर्षों के दौरान इसरो ने कुल 393 विदेशी और 3 भारतीय उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है. इसरो ने अमरीका, ब्रिटेन, सिंगापुर और अनेक विकसित देशों सहित 34 देशों के उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं.
  • जनवरी 2015 और दिसम्‍बर 2024 के बीच यह सभी उपग्रह इसरो के पीएसएलवी, एलवीएम-3 और एसएसएलवी प्रक्षेपण वाहनों से इन उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया.

इसरो के SpaDeX मिशन ने ऐतिहासिक डॉकिंग सफलता हासिल की

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) मिशन ने 16 जनवरी 2025 को ऐतिहासिक डॉकिंग सफलता हासिल की. डॉकिंग के बाद एक ही अंतरिक्षयान के रूप में दो उपग्रहों का नियंत्रण सफल रहा.

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 30 दिसंबर 2024 को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था.
  • SpaDeX मिशन को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लांच किया गया. इसे PSLV-C60 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया किया गया था.
  • इस मिशन के तहत PSLV-C60 के जरिए दो छोटे अंतरिक्ष यान ‘चेजर’ (SDX01) और ‘टारगेट’ (SDX02) भेजे गए थे. इनमें से प्रत्येक का वजन 220 किलोग्राम है.
  • प्रक्षेपण के कुछ ही मिनटों बाद दोनों अंतरिक्ष यान, रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग होकर करीब 470 किलोमीटर की निचली कक्षा में स्थापित हुए थे.
  • इसरो ने 16 जनवरी 2025 को पहली बार अंतरिक्ष में दोनों उपग्रह ‘चेजर’ और ‘टारगेट’  की सफल डॉकिंग कराकर ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की. इसरो आने वाले दिनों में अनडॉकिंग और पावर ट्रांसफर की जांच करेगा.
  • लगातार तीन वर्ष से इसरो एक के बाद एक इतिहास रच रहा है. भारत ने 2023 में चंद्रयान मिशन में कामयाबी के साथ ही चंद्रमा की सतह पर अपने लैंडर उतारने वाला अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश बना. 2024 में आदित्य एल1 मिशन में सफलता हासिल की थी.

SpaDeX (स्पैडेक्स) डाकिंग क्या है?

  • SpaDeX का अर्थ होता है ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट’ यानी अंतरिक्ष में यानों को ‘डॉक’ और ‘अनडॉक’ करना.
  • बिना किसी बाहरी सहायता के एक अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान के जुड़ने को डाकिंग, जबकि अंतरिक्ष में एक दूसरे से जुड़े दो अंतरिक्ष यानों के अलग होने को अनडाकिंग कहते हैं.
  • अंतरिक्ष में देश के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए डॉकिंग क्षमता बेहद जरूरी है. इन लक्ष्यों में चंद्रमा से नमूने लाना, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएसएस) का निर्माण शामिल है.

‘इन-स्पेस डॉकिंग’ तकनीक के उपयोग

  • ‘इन-स्पेस डॉकिंग’ तकनीक की जरूरत उस समय होती है, जब एक कॉमन मिशन को अंजाम देने के लिए कई अंतरिक्षयानों को लॉन्च करने की जरूरत पड़ती है.
  • यह चंद्रयान-4 जैसे मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए भी अहम साबित होगा. साथ ही वहां से सैंपल लाने के साथ-साथ 2035 तक भारत के अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने जैसी योजनाओं के लिए बेहद अहम साबित होगा.

भारत दुनिया का चौथा देश बना

  • इस सफलता के साथ ही भारत दुनिया का चौथा देश बन गया जिसके पास अपनी स्पेस डॉकिंग जटिल तकनीक है. इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ही ऐसा करने में सफल रहे हैं.
  • 1966 में जेमिनी आठ अंतरिक्षयान और एजेना टार्गेट व्हीकल की डॉकिंग प्रक्रिया पूरी कर अमेरिका डॉकिंग क्षमता को प्रदर्शित करने वाला दुनिया का पहला देश बना था.
  • तत्कालीन सोवियत संघ ने 1967 में कोसमोस 186 और कोसमोस 188 अंतरिक्ष यान को डॉक कर स्वचालित डॉकिंग का प्रदर्शन किया था.
  • चीन ने पहली बार 2011 में डॉकिेग क्षमता का प्रदर्शन किया, जब मानव रहित शेनझोउ-8 अंतरिक्षयान तियांगोंग-1 अंतरिक्ष लैब के साथ डाक किया गया था.

इसरो ने स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च किया

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 30 दिसंबर 2024 को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था.
  • SpaDeX मिशन को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लांच किया गया. इसे PSLV-C60 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया किया गया.
  • इस मिशन के तहत PSLV-C60 के जरिए दो छोटे अंतरिक्ष यान चेजर (SDX01) और टारगेट (SDX02) भेजे गए हैं. इनमें से प्रत्येक का वजन 220 किलोग्राम है.
  • प्रक्षेपण के कुछ ही मिनटों बाद दोनों अंतरिक्ष यान, रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग होकर करीब 470 किलोमीटर की निचली कक्षा में स्थापित हो चुके हैं.
  • आने वाले दिनों में इसरो के वैज्ञानिक दोनों यानों की बीच की दूरी कम कर उन्हें डॉक करने यानी जोड़ने की कोशिश करेंगे.

SpaDeX (स्पैडेक्स) क्या है?

  • SpaDeX का अर्थ होता है ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट’ यानी अंतरिक्ष में यानों को ‘डॉक’ और ‘अनडॉक’ करना.
  • बिना किसी बाहरी सहायता के एक अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान के जुड़ने को डाकिंग, जबकि अंतरिक्ष में एक दूसरे से जुड़े दो अंतरिक्ष यानों के अलग होने को अनडाकिंग कहते हैं.
  • डॉकिंग तकनीक के जरिए इसरो अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्ट को आपस में जोड़ेगा. अंतरिक्ष में ये काम अब तक रूस, अमेरिका और चीन ही कर पाए हैं.

‘इन-स्पेस डॉकिंग’ तकनीक के उपयोग

  • ‘इन-स्पेस डॉकिंग’ तकनीक की जरूरत उस समय होती है, जब एक कॉमन मिशन को अंजाम देने के लिए कई अंतरिक्षयानों को लॉन्च करने की जरूरत पड़ती है.
  • यह चंद्रयान-4 जैसे मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए भी अहम साबित होगा. साथ ही वहां से सैंपल लाने के साथ-साथ 2035 तक भारत के अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने जैसी योजनाओं के लिए बेहद अहम साबित होगा.

भारत दुनिया का चौथा देश बना

  • इस सफलता के साथ ही भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा, जिसके पास अपनी स्पेस डॉकिंग जटिल तकनीक है. इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ही ऐसा करने में सफल रहे हैं.
  • संयुक्त राज्य अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने सबसे पहले 1960 के दशक में दो अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक डॉक किया था, जिसने अपोलो प्रोग्राम के जरिए मून मिशनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया.

इसरो के GSAT-N2 उपग्रह को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के GSAT-N2 सैटेलाइट (कृत्रिम उपग्रह) को 19 नवंबर 2024 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया.
  • यह प्रक्षेपण अमेरिका में फ्लोरिडा के केप कैनावेरल से ‘फाल्कन 9′ रॉकेट (अंतरिक्ष यान) के माध्यम से किया गया. यह रॉकेट एलन मस्क के स्वामित्व वाली स्पेसएक्स का है.
  • GSAT-N2 एक संचार उपग्रह है. इसे GSAT-20 भी कहा जाता है. इसका विकास इसरो के सैटेलाइट सेंटर तथा लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर ने किया है.
  • 4700 किलोग्राम वजनी GSAT-N2 को भूस्थिर कक्षा (35,786 किलोमीटर की ऊँचाई पर) में प्रक्षेपित किया गया है. इसका जीवन काल 14 वर्ष है.
  • इसका उद्देश्य भारत की बढ़ती कनेक्टिविटी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है.

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने चंद्रयान-4 मिशन और वीनस ऑर्बिटर मिशन को स्‍वीकृति दी

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 18 सितम्बर को चंद्रयान-4 मिशन को स्‍वीकृति दी. मंत्रिमंडल ने वीनस ऑर्बिटर मिशन और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की स्थापना को भी मंजूरी दी. दोनों मिशन को साल 2028 तक लॉन्च करने का प्लान बनाया गया है.

चंद्रयान-4 मिशन:

  • चंद्रयान-4 मिशन का उद्देश्य स्पेसक्राफ्ट को चंद्रमा पर उतारना, वहाँ की सतह से मिट्टी और अन्य नमूने को एकत्र करना और उन्हें पृथ्वी पर वापस लाना है. इस मिशन पर 2104 करोड़ रुपए का खर्च आएगा.
  • हैवी-लिफ्टर LVM-3 और ISRO का रिलायबल वर्कहॉर्स PSLV अलग-अलग पेलोड लेकर जाएंगे.
  • केवल तीन देश-संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन-चंद्रमा की मिट्टी को पृथ्वी पर वापस लाने में सफल रहे हैं.

वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM):

  • VOM पर 1,236 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है. इसे मार्च 2028 में लॉन्च किया जाना है. VOM का मुख्य उद्देश्य शुक्र की सतह और वायुमंडल के साथ-साथ शुक्र के वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव के बारे में हमारी समझ को बढ़ाना है.
  • वीनस पृथ्वी का सबसे करीबी ग्रह है. शुक्र के पास ऐसी कई सारी जानकारी हैं जो हमें पृथ्वी और एक्सोप्लैनेट को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकती हैं.

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS):

  • मंत्रिमंडल ने रिवाइज्ड गगनयान प्रोग्राम को मंजूरी दी है. इसके तहत गगनयान मिशन का दायरा बढ़ाकर भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS-1) के पहले मॉड्यूल का विकास किया जाएगा. इस मिशन में BAS-1 यूनिट सहित आठ मिशन शामिल हैं. इसे दिसंबर 2028 तक पूरा किया जाना है.
  • गगनयान मिशन पर रखे गए बजट को 11,170 करोड़ रुपए बढ़ाकर 20,193 करोड़ रुपए कर दिया गया है.
  • गगनयान मिशन  में 3 गगनयात्री को 400 KM ऊपर पृथ्वी की कक्षा में भेजा जाएगा. इसके बाद क्रू मॉड्यूल को सुरक्षित रूप से समुद्र में लैंड कराया जाएगा.
  • भारत अपने मिशन में कामयाब रहा तो वो ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा. इसे पहले अमेरिका, चीन और रूस ऐसा कर चुके हैं.
  • 12 अप्रैल 1961 को सोवियत रूस के यूरी गागरिन 108 मिनट तक स्पेस में रहे. 5 मई 1961 को अमेरिका के एलन शेफर्ड 15 मिनट स्पेस में रहे. 15 अक्टूबर 2003 को चीन के यांग लिवेड 21 घंटे स्पेस में रहे.

इसरो ने SSLV-D3 प्रक्षेपण यान से उपग्रह ‘EOS-08’ का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 16 अगस्त को पृथ्वी अवलोकन उपग्रह ‘EOS-08’ और एक अन्‍य छोटे उपग्रह ‘SR-0’ का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया. यह प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से किया गया.

मुख्य बिन्दु

  • दोनों उपग्रहों को SSLV-D3 प्रक्षेपण यान (रॉकेट) के माध्यम से पृथ्वी से 475 किलोमीटर दूर कक्षा में स्थापित किया गया.
  • SSLV-D3 रॉकेट 34 मीटर लंबा और लगभग 119 टन वजन का है. यह SSLV-D3 प्रक्षेपण यान की तीसरी उड़ान थी.
  • SSLV रॉकेट मिनी, माइक्रो या नैनो उपग्रहों (10 से 500 किलोग्राम द्रव्यमान) को 500 किमी की कक्षा में लॉन्च करने में सक्षम है.
  • रॉकेट के तीन चरण ठोस ईंधन द्वारा संचालित होते हैं जबकि अंतिम वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (वीटीएम) में तरल ईंधन का इस्तेमाल होता है.
  • पृथ्वी अवलोकन उपग्रह ‘EOS-08’ निगरानी, ​​आपदा निगरानी, ​​आग का पता लगाने, ज्वालामुखी गतिविधियों, औद्योगिक और बिजली संयंत्र आपदाओं जैसे अनुप्रयोगों के लिए दिन और रात के दौरान इंफ्रारेड तस्‍वीरें भेजेंगा.
  • EOS-08 का द्रव्यमान लगभग 175.5 किलोग्राम है और यह लगभग 420 वाट बिजली उत्पन्न करता है. इस उपग्रह का जीवनकाल एक साल है.
  • उपग्रह ‘SR-0’ चेन्नई स्थित अंतरिक्ष क्षेत्र के स्टार्टअप स्पेस रिक्शा का पहला उपग्रह है.

शुभांशु शुक्ला को इसरो और नासा के संयुक्त अंतरिक्ष मिशन के लिए चुना गया

भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी इसरो और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के संयुक्त अंतरिक्ष मिशन ‘एक्सिओम-4’ के लिए चुना गया है.

मुख्य बिन्दु

  • अगर कैप्टन शुक्ला इस मिशन के तहत अंतरिक्ष जाते हैं तो वो भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री होंगे. राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले और एकमात्र भारतीय हैं. 3 अप्रैल 1984 को उन्होंने सोवियत रॉकेट सोयुज टी-11 से अंतरिक्ष की यात्रा की थी.
  • इसरो ने 2 अगस्त को एक्सिओम-4 मिशन के लिए कैप्टन शुभांशु शुक्ला (39 साल) के साथ ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालाकृष्णन नायर (48 साल) का चयन किया है.
  • शुभांशु शुक्ला प्राथमिक (प्राइम) अंतरिक्ष यात्री होंगे जबकि नायर को बैकअप के लिए चुना गया है. यानि शुभांशु अगर किसी वजह से इस मिशन पर नहीं जा पाए तो बालाकृष्णन नायर उनकी जगह लेंगे.
  • ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ‘एक्सिओम-4’ मिशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) जाएंगे. यह अमेरिका की एक निजी स्पेस कंपनी एक्सिओम स्पेस का चौथा मिशन होगा.
  • यह मिशन स्पेसएक्स रॉकेट के ज़रिये लॉन्च होगा. नासा ने एक्सिओम-4 मिशन के लिए कोई तारीख निर्धारित नहीं की है.
  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचने वाले इस अंतरिक्ष यान में ग्रुप कैप्टन शुक्ला के साथ पौलेंड, हंगरी और अमेरिका के भी अंतरिक्ष यात्री होंगे.
  • साल 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच इस मिशन पर सहमति बनी थी.

गगनयान मिशन

  • शुभांशु शुक्ला और बालाकृष्णन नायर इसरो के ‘गगनयान’ मिशन में भी शामिल हैं. गगनयान मिशन के लिए भारतीय वायुसेना के चार पायलटों का चयन किया गया है. गगनयान मिशन में अन्य दो पायलट अजीत कृष्णन और अंगद प्रताप हैं.
  • गगनयान मिशन के तहत तीन अंतरिक्ष यात्रियों को 400 किलोमीटर की कक्षा में भेजा जाएगा जिसके तीन दिन बाद उन्हें वापस आना होगा.
  • वर्तमान में, केवल तीन देश- रूस, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के पास मानव अंतरिक्ष मिशन लॉन्च करने की क्षमता है.

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS)

  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) एक प्रकार का अंतरिक्ष यान है जो अंतरिक्ष में पृथ्वी की परिक्रमा करता है और जहां अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक रह सकते हैं.
  • अंतरिक्ष यात्री अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का उपयोग विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधान उद्देश्यों के लिए किया जाता है. यह पृथ्वी से लगभग 400 किमी ऊपर है.
  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को 1998 में लॉन्च किया गया था. यह यूरोप, अमेरिका, रूस, कनाडा और जापान की एक संयुक्त परियोजना है.

निजी तौर पर निर्मित देश के दूसरे रॉकेट ‘अग्निबाण SOrTeD’ का प्रक्षेपण किया गया

भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में 29 मई को इतिहास रच दिया. निजी तौर पर निर्मित देश के दूसरे अंतरिक्ष रॉकेट का निजी लॉन्चपैड ‘धनुष’ से प्रक्षेपण किया गया. चेन्नई की अंतरिक्ष स्टार्टअप अग्निकुल कॉसमॉस ने श्रीहरिकोटा से सिंगल स्टेज टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर ​रॉकेट ‘अग्निबाण SOrTeD’ का सफल प्रक्षेपण किया.

मुख्य बिन्दु

  • यह ऐसा पहला प्रक्षेपण था जिसमें गैस एवं तरल यानी दोनों प्रकार के ईंधन का इस्तेमाल किया गया. SOrTeD में दुनिया के पहले सिंगल पीस 3डी प्रिंटेड सेमी-क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया है. इसका डिजाइन स्वदेशी तौर पर तैयार किया गया और इसे देश में ही बनाया गया है.
  • इस प्रक्षेपण को ऐतिहासिक इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अब तक ऐसे सेमी-क्रायोजेनिक इंजन को सफलतापूर्वक नहीं उड़ाया नहीं है, जिसमें प्रोपेलर के तौर पर तरल एवं गैस दोनों प्रकार के ईंधन का उपयोग किया जाता है.
  • ‘अग्निबाण SOrTeD’ को अग्निकुल द्वारा स्थापित भारत के पहले निजी लॉन्च पैड ‘धनुष’ से प्रक्षेपित किया गया है.
  • अग्निकुल अंतरिक्ष में अपना रॉकेट प्रक्षेपित करने वाली दूसरी भारतीय निजी कंपनी बन गई है. रॉकेट प्रक्षेपित करने वाली पहली निजी कंपनी हैदराबाद स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस थी. इसने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) श्रीहरिकोटा लॉन्चपैड से अपना स्वदेशी रूप से विकसित ‘विक्रम-एस’ रॉकेट को अक्टूबर 2022 में प्रक्षेपित किया था.
  • अग्निकुल के इस मिशन का मुख्य उद्देश्य एक परीक्षण उड़ान के रूप में काम करना, देसी तकनीकों का प्रदर्शन करना, महत्त्वपूर्ण उड़ान डेटा जुटाना और अग्निकुल के प्रक्षेपण यान अग्निबाण के लिए प्रणालियों का बेहतर कामकाज सुनिश्चित करना है.
  • अग्निबाण रॉकेट, दो चरण वाला प्रक्षेपण यान है जो करीब 300 किलोग्राम तक पेलोड को 700 किलोमीटर की ऊंचाई पर कक्षाओं में ले जा सकता है.
  • चेन्नई स्तिथ अग्निकुल कॉसमॉस की स्थापना 2017 में मोइन एसपीएम और श्रीनाथ रविचंद्रन ने आईआईटी मद्रास के सहयोग से की थी.

चंद्रयान-3 की टीम को अमेरिका के स्पेस फाउंडेशन का शीर्ष पुरस्कार

इसरो की चंद्रयान-3 मिशन टीम को अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए 2024 जॉन एल ‘जैक’ स्विगर्ट, जूनियर पुरस्कार (John L. ‘Jack’ Swigert Jr. Award) से सम्मानित किया गया है. यह पुरस्कार अमेरिका के स्पेस फाउंडेशन (Space Foundation) द्वारा दिया जाता है.

मुख्य बिन्दु

  • कोलोराडो स्थित स्पेस फाउंडेशन के वार्षिक अंतरिक्ष संगोष्ठी उद्घाटन समारोह में यह पुरस्कार प्रदान किया गया. ह्यूस्टन में भारत के महावाणिज्य दूत डीसी मंजूनाथ ने इसरो की टीम की ओर से पुरस्कार प्राप्त किया.
  • स्पेस फाउंडेशन अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सूचना, शिक्षा और सहयोग प्रदान करता है. स्पेस फाउंडेशन के सीईओ हीथर प्रिंगल ने कहा, अंतरिक्ष में भारत का नेतृत्व दुनिया के लिए एक प्रेरणा है.
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को यह पुरस्कार चंद्रयान-3 टीम की असाधारण उपलब्धियों के लिए दिया गया है. चंद्रयान-3 चंद्रमा के अज्ञात दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर उतरने वाला विश्व का पहला यान था.
  • इसरो ने चंद्रयान-3 मिशन को जुलाई 2023 में लॉन्च किया था. चंद्रयान-3 मिशन में शामिल विक्रम नामक लैंडर और प्रज्ञान नामक रोवर को 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतारा गया था.
  • अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए जॉन एल. ‘जैक’ स्विगर्ट जूनियर पुरस्कार का नाम अंतरिक्ष यात्री जॉन एल. स्विगर्ट जूनियर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने प्रसिद्ध अपोलो 13 चंद्र मिशन में काम किया था.

ISRO के सैटेलाइट पीएसएलवी ने शून्य कक्षीय मलबा मिशन पूरा किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के रॉकेट PSLV ने शून्य कक्षीय मलबा मिशन (ISRO Achieves Zero Orbital Debris Mission) पूरा कर एक बड़ी उपलब्धि प्राप्त की है. इससे फायदा यह होगा कि अब इसरो नए मिशन के लिए जो भी रॉकेट लॉन्च करेगा, उसका मलबा अंतरिक्ष में नहीं बिखरेगा.

मुख्य बिन्दु

  • इसरो ने इस मिशन को ऐसे समय में पूरा किया है जब दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए अंतरिक्ष में मलबा एक बड़ी चुनौती बना हुआ है.
  • यह उपलब्धि 21 मार्च को हासिल किया गया जब PSLV ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल-3 (POEM-3) ने पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश किया और अपने मिशन को पूरा किया.
  • इस परीक्षण में PSLV-C58 /एक्सपीओसैट मिशन ने व्यावहारिक रूप से कक्षा में शून्य मलबा छोड़ा है.
  • किसी भी सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित करने के बाद पीएसएलवी तीन हिस्सों में बंट जाता है. इसे POEM-3 कहा जाता है.
  • इस परीक्षण में PSLV को पहले 650 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा से 350 किलोमीटर वाली कक्षा में लाया गया.
  • इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि कक्षा बदलने के दौरान किसी भी सैटेलाइट के दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा कम हो जाएगा.

चंद्रयान-3 की लैंडिग साइट शिव-शक्ति को IAU ने मंजूरी दी

अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने 19 मार्च को चंद्रयान -3 की लैंडिंग साइट के लिए ‘शिव शक्ति’ नाम को मंजूरी दे दी है. यह नाम प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 26 अगस्त, 2023 को मिशन की सफलता की घोषणा के बाद दिया गया था.

चंद्रयान-3 मिशन

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा प्रक्षेपित चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग किया था.
  • भारत चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला विश्व का चौथा (अमेरिका, रूस, चीन के बाद) और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला विश्व का पहला देश बना है.

लैंडर मॉड्यूल ने जहां पर कदम रखे, उस जगह का नामकरण

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल ‘विक्रम’ ने जहां पर कदम रखे, उस जगह को ‘शिवशक्ति‘ नाम दिया था.
  • प्रधानमंत्री मोदी ने चंद्रयान-2 के इम्पैक्ट पॉइंट को ‘तिरंगा‘ नाम दिया है. वर्ष 2019 में यहीं पर चंद्रयान-2 का लैंडर क्रैश हो गया था.

इसरो ने का पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान ‘पुष्पक’ का सफल परीक्षण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 22 मार्च 2024 को अपने रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) की लैंडिंग का सफल परीक्षण किया था. इसका नाम ‘पुष्पक’ है. यह कर्नाटक के चित्रदुर्ग में चालाकेरे एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में की गई थी. पुष्पक इसरो का इस तरह के प्रयासों की श्रृंखला में दूसरा (RLV LEX-02) था.

पुष्पक का परीक्षण: मुख्य बिन्दु

  • पुष्पक खास तरह का स्पेस शटल है. इसे जटिल युद्धाभ्यास करने, त्रुटियों को ठीक करने और पूरी तरह से स्वायत्त रूप से रनवे पर उतरने के लिए डिज़ाइन किया गया है. पुष्पक परियोजना की अनुमानित लागत 100 करोड़ रुपये (लगभग 13.5 मिलियन डॉलर) है.
  • पुष्पक मिशन प्राथमिक उद्देश्य रीयूजेबल (पुनः उपयोग योग्य) प्रक्षेपण यान (लॉन्च व्हीकल) के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों का विकास करना है, जिससे प्रक्षेपण लागत काम हो सके.
  • इस परीक्षण में पुष्पक RLV को भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा उठाया गया और फिर 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई से छोड़ा गया. इसके जारी होने के बाद रनवे से 4 किलोमीटर की दूरी पर पुष्पक सुधार करते हुए स्वतंत्र रूप से रनवे की ओर चला गया. यह रनवे पर ठीक से उतरा और ब्रेक पैराशूट, लैंडिंग गियर ब्रेक और नोज व्हील स्टीयरिंग सिस्टम का उपयोग करके रुक गया.
  • रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल का अगला चरण संभावित रूप से कक्षा में मौजूद उपग्रहों में ईंधन भरने या नवीनीकरण के लिए उपग्रहों को वापस लाने में सक्षम हो सकता है. पुष्पक आरएलवी को रीयूजेबल सिंगल-स्टेज-टू-ऑर्बिट (SSTO) वाहन के रूप में डिजाइन किया गया है.
  • इसरो  (ISRO) ने अपने लॉन्च वाहन के लिए ‘पुष्पक’ नाम चुना है. लंबे समय से इसरो अपने रॉकेट का नामकरण पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) और स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) जैसे नामों से करता रहा है.