आगामी जनगणना में जाति गणना कराने का फैसला
सरकार ने आगामी जनगणना में जाति गणना भी कराने का फैसला किया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में 30 अप्रैल 2025 को हुई मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCPA) ने यह निर्णय लिया.
कोविड-19 महामारी के कारण 2021 की जनगणना में देरी हुई है. अब इसकी 2025 में शुरू होने की उम्मीद है.
भारत में जनगणना का इतिहास
- गवर्नर जनरल लॉर्ड मेयो के शासनकाल में, 1872 में पहली जनगणना शुरू की गई थी. यह जनगणना संपूर्ण भारत में नहीं की गई थी.
- पहली पूर्ण जनगणना गवर्नर जनरल लॉर्ड रिपन के शासनकाल में 1881 में हुई, जो कि ब्रिटिश भारत की पहली समकालिक जनगणना थी. 1881 के बाद से, हर 10 साल में जनगणना की जाती रही है.
- 1881 से, जनगणना गणना में जाति को शामिल किया गया था. आखिरी जाति गणना 1931 में हुई थी.
- स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार ने जाति गणना बंद कर दी. हालाँकि, 1951 से हर जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी की जनगणना की गई. कई विसंगतियों पाये के कारण सरकार ने जाति के आंकड़ों को कभी जारी नहीं किया.
- 2015 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना से जाति के आंकड़ों को वर्गीकृत करने के लिए अरविंद पंगरिया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था.
जातिगत जनगणना का महत्व
- जातिगत जनगणना वंचित समूहों की पहचान करने और उन्हें नीति निर्माण की मुख्य धारा में लाने में मदद कर सकती है.
- जनसंख्या पर उचित आँकड़े के बिना इन नीतियों के प्रभाव और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
जातिगत जनगणना के नुकसान
- जातियों को परिभाषित करना एक जटिल मुद्दा है, क्योंकि भारत में हजारों जातियाँ और उपजातियाँ पाई जाती हैं.
- जातिगत जनगणना जाति व्यवस्था को सबल करेगी. इससे समाज में भ्रम, विवाद और विभाजन की वृद्धि की स्थिति बन सकती है.
सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान
- संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान है.
- 103वें संविधान संशोधन अधिनियम 2019 ने अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया और सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान किया.