UNFCCC COP क्या है?

सीओपी (कोप), कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (Conference of Parties – COP) का संक्षिप्त रूप है. यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के ढाँचे यानी UNFCCC (United Nations Framework Convention on Climate Change) में शामिल सदस्यों का सम्मेलन है. UNFCCC वैश्विक समझौता है, जिसमें 1992 में हस्‍ताक्षर किए गए थे. समझौते पर 197 देशों ने हस्‍ताक्षर किए हैं.

जलवायु परिवर्तन क्या है?

पृथ्वी के धरातल तथा समय में होने वाले तापमान एवं वर्षा की विसामान्यता (Deviation) को जलवायु परिवर्तन कहते हैं. मानव के द्वारा किया गया प्रदूषण और गर्म हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को जलवायु परिवर्तन को प्रमुख कारण माना जाता है. जलवायु परिवर्तन एक निरंतर प्रक्रिया है और जलवायु परिवर्तन पृथ्वी की उत्पत्ति (4.6 बिलियन वर्ष) से लेकर आज तक होता रहा है.

यूएनएफसीसीसी का गठन

ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में 3 से 14 जून 1992 तक पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED) का आयोजन किया गया था. इस सम्मेलन को रियो शिखर सम्मेलन या प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन के रूप में जाना जाता है.

रियो पृथ्वी सम्मेलन में 172 देशों ने भाग लिया था. इस सम्मेलन में पर्यावरण की रक्षा के लिए एक संधि पर सहमति बनी जिसे ‘युनाइटेड नेशन्स फ़्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज’ या यूएनएफ़सीसीसी कहते हैं.

यूएनएफ़सीसीसी का गठन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को स्थिर करने और पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने के लिये किया गया था. वर्तमान में यूएनएफसीसीसी में सदस्य देशों की संख्या 197 है.

यूएनएफसीसीसी कोप (सीओपी)

रियो पृथ्वी सम्मेलन में यह तय किया गया कि यूएनएफसीसीसी के सदस्य राष्ट्र प्रत्येक वर्ष एक सम्मेलन हेतु एकत्रित होंगे तथा जलवायु संबंधित चिंताओं और कार्ययोजनाओं पर चर्चा करेंगें. इस सम्मेलन को कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी या कोप) नाम दिया गया.

पहला कोप यानी कोप-1 का आयोजन 28 मार्च से 7 अप्रैल 1995 तक जर्मनी के बर्लिन में किया गया था.

अब तक आयोजित यूएनएफसीसीसी कोप

कोप संस्करण आयोजन वर्ष आयोजन स्थल
कोप-1 1995 Berlin, Germany
कोप-2 1996 Geneva, Switzerland
कोप-3 1997 Kyoto, Japan
कोप-4 1998 Buenos Aires, Argentina
कोप-5 1999 Bonn, Germany
कोप-6 2000 The Hague, Netherlands
कोप-6 2001 Bonn, Germany
कोप-7 2001 Marrakech, Morocco
कोप-8 2002 New Delhi, India
कोप-9 2003 Milan, Italy
कोप-10 2004 Buenos Aires, Argentina
कोप-11 2005 Montreal, Canada
कोप-12 2006 Nairobi, Kenya
कोप-13 2007 Bali, Indonesia
कोप-14 2008 Poznan, Poland
कोप-15 2009 Copenhagen, Denmark
कोप-16 2010 Cancun, Mexico
कोप-17 2011 Durban, South Africa
कोप-18 2012 Doha, Qatar
कोप-19 2013 Warsaw, Poland
कोप-20 2014 Lima, Peru
कोप-21 2015 Paris, France
कोप-22 2016 Marrakech, Morocco
कोप-23 2017 Bonn, Germany
कोप-24 2018 Katowice, Poland
कोप-25 2019 Madrid, Spain
कोप (स्‍थगित) 2020 कोविड की वजह से स्‍थगित
कोप-26 2021 ग्‍लासगो, स्‍कॉटलैंड
कोप-27 2022 शर्म अल शेख, मिस्र (Egypt)
कोप-28 2023 दुबई, UAE
कोप-29 2024 Azerbaijan (प्रस्तावित)
कोप-30 2025 Brazil (प्रस्तावित)

पेरिस समझौता क्या है?

दिसम्बर 2015 में पेरिस में हुई कोप-21 बैठक में दुनियाभर के देश जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए एक समझौता किया था. इस समझौते को ‘पेरिस समझौता’ या ‘कोप-21 समझौता’ कहा जाता है.

समझौते में प्रावधान:

  1. इस समझौते में प्रावधान है वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना और कोशिश करना कि वो 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़े.
  2. मानवीय कार्यों से होने वाले ग्रीन-हाउस गैस उत्सर्जन को इस स्तर पर लाना कि पेड़, मिट्टी और समुद्र उसे प्राकृतिक रूप से सोख लें. इसकी शुरुआत 2050 से 2100 के बीच करना.
  3. समझौते के तहत हर पांच साल में गैस उत्सर्जन में कटौती में प्रत्येक देश की भूमिका की प्रगति की समीक्षा करना भी उद्देश्य है.
  4. विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्तीय सहायता के लिए 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष देना और भविष्य में इसे बढ़ाने के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने की बात भी कही गई है.

पेरिस संधि पर शुरुआत में ही 177 सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिये थे. ऐसा पहली बार हुआ जब किसी अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के पहले ही दिन इतनी बड़ी संख्या में सदस्यों ने सहमति व्यक्त की. अब तक 195 सदस्य देश इस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. भारत ने 2 अक्टूबर, 2016 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था. अमेरिका और चीन ने भी अगस्त में समझौते को स्वीकार कर लिया था.

पेरिस समझौता की आलोचना

  1. पेरिस समझौता के आलोचकों का मानना है कि यह समझौता बहुत सीमित और देरी से उठाया गया कदम है. वर्तमान में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर पूर्व औद्योगिक स्तर की तुलना में 30 प्रतिशत बढ़ चुका है.
  2. इस समझौते की एक प्रमुख आलोचना है कि यह जलवायु परिवर्तन के पहले से दिखाई पड़ रहे प्रभावों को नजरअंदाज करते हुए अब भी इसे भविष्य के खतरे के तौर पर देखता है.
  3. आलोचकों ने इस मुद्दे को भी उठाया है कि यह समझौता कार्बन उत्सर्जन रोकने के उपायों पर तो जोर देता है लेकिन इन उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं करता.

विकासशील और विकसित देशों के बीच विवाद

पिछले 21 सालों से कोप बैठकों में विवाद का सबसे बड़ा बिंदु सदस्य देशों के बीच जलवायु परिवर्तन से निपटने की जिम्मेदारी और इसके बोझ के उचित बँटवारे का रहा है. विकसित देश भारत और चीन जैसे विकासशील देशों पर वैश्विक उत्सर्जन बढ़ाने का दोष लगा रहे हैं. जबकि विकसित देश कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि में अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी से बचते रहे हैं.

पेरिस समझौता और भारत

विश्व में कार्बन उत्सर्जन के मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरे नंबर पर आता है. अमेरिका 30%, चीन 10% और भारत 4.1% ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है.

भारत जलवायु परिवर्तन के खतरों से प्रभावित होने वाले देशों में से है. साथ ही कार्बन उत्सर्जन में कटौती का असर भी भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं पर सबसे अधिक पड़ेगा. साल 2030 तक भारत ने अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के मुकाबले 33-35 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य रखा है. इसके लिये कृषि, जल संसाधन, तटीय क्षेत्रों, स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन के मोर्चे पर भारी निवेश की जरूरत है. पेरिस समझौते में भारत विकासशील और विकसित देशों के बीच अंतर स्थापित करने में कामयाब रहा है.

पेरिस समझौते से अमरीका के बाहर होने का फ़ैसला

अमेरिका ने 1 जून 2017 को पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने की घोषणा की थी. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रंप ने कहा था कि ये समझौता अमरीका को दंडित करता है और इसकी वजह से अमरीका में लाखों नौकरियां चली जाएंगी. ट्रंप ने ये भी कहा था कि समझौते की वजह से अमरीकी अर्थव्यवस्था को भारी नुक़सान होगा. ट्रंप ने कहा था कि पेरिस समझौता चीन और भारत जैसे देशों को फ़ायदा पहुंचाता है. ये समझौता अमरीका की संपदा को दूसरे देशों में बांट रहा है.

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