संयुक्त राष्ट्र महासभा का 78वां अधिवेशन, भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री ने किया

संयुक्त राष्ट्र महासभा का 78वां अधिवेशन (78th Session of the UN General Assembly) 18 से 26 सितम्बर तक न्यूयॉर्क में आयोजित किया गया था. इस अधिवेशन का विषय (थीम) था- विश्वास का पुनर्निर्माण और वैश्विक एकजुटता को फिर से जागृत करना: सभी के लिए शांति, समृद्धि, प्रगति और स्थिरता की दिशा में 2030 एजेंडा और इसके सतत विकास लक्ष्यों पर कार्रवाई में तेजी लाना.

78वां अधिवेशन: मुख्य बिन्दु

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें अधिवेशन में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने किया था. वे इस अधिवेशन में भाग लेने के प्रयोजन से 22 से 30 सितंबर तक अमरीका यात्रा पर थे.
  • अमेरिका की इस यात्रा के दौरान विदेश मंत्री जयशंकर ने न्यूयॉर्क में क्‍वाड देशों के विदेश मंत्रियों के साथ चर्चा की. बैठक के दौरान उन्होंने हिन्‍द प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा करने और क्वाड प्रतिबद्धताओं को पूरा करने पर चर्चा की.
  • इस यात्रा के दौरान विदेश मंत्री विभिन्न बहुपक्षीय और द्विपक्षीय बैठकों में भाग लिया. उन्होंने जापान के विदेश मंत्री योको कामिकावा के साथ बैठक में विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी पर दृष्टिकोण का आदान-प्रदान किया.
  • उन्होंने मैक्सिको, बोस्निया और हर्जेगोविना और आर्मेनिया के अपने समकक्षों के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय बैठकें कीं.
  • विदेश मंत्री जयशंकर ने अर्मेनियाई समकक्ष अरारत मिर्ज़ोयान से भी मुलाकात की और कॉकस में मौजूदा स्थिति के उनके साझा आकलन की सराहना की.

संबोधन के मुख्य बिन्दु

  • डॉक्टर जयशंकर ने 26 सितम्बर को 78वें अधिवेशन में भारत का पक्ष रखा था. अधिवेशन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि, अब वे दिन नहीं रहे हैं, जब कुछ देश एजेंडा तय करते थे और बाकी देशों से उनके अनुरूप चलने की उम्मीद की जाती थी.
  • डॉ. जयशंकर ने बल देकर कहा कि आम सहमति बनाना अनिवार्यता है. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को सुरक्षा परिषद को समसामयिक बनाना चाहिए और इसके लिए प्रभावशीलता और विश्वसनीयता दोनों ही आवश्‍यक है.
  • उन्होंने कहा कि आतंकवाद, उग्रवाद और हिंसा पर राजनीतिक सुविधा के अनुसार प्रतिक्रियाएं निर्धारित नहीं की जानी चाहिए.
  • विदेश मंत्री ने इस बात पर बल दिया कि क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान और घरेलू मामलों में हस्तक्षेप का इस्तेमाल अपनी सुविधा अनुसार नहीं किया जा सकता है.