जलवायु परिवर्तन पर IPCC रिपोर्ट: संयुक्त राष्ट्र में 195 देशों ने दी मंजूरी

संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) द्वारा जारी रिपोर्ट “क्लामेट चेंज 2022: इंपैक्ट, एडप्शन और वल्नरबिलिटी” (Climate Change 2022: Impacts, Adaptation and Vulnerability) को मंजूरी दी है. रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान को बताया गया है और इस नुकसान को कम करने के तरीके पर चर्चा की गई है. IPCC की रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र में 195 देशों ने मंजूरी दी है.

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • जलवायु परिवर्तन के कारण देश के तटीय शहर और हिमालय से लगे इलाकों पर बड़ा असर पड़ेगा.
  • मौसम बदलने के कारण ज्यादा या कम बारिश, बाढ़ की विभीषिका और लू के थेपेड़े बढ़ सकते हैं. रिपोर्ट में बढ़ते तापमान के कारण भारत में कृषि उत्पादन में बड़े पैमाने पर कमी की भी आशंका जताई गई है.
  • दुनिया की 3.6 अरब की आबादी ऐसे इलाकों में रहती है जहां जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर हो सकता है. अगले दो दशक में दुनियाभर में तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान लगाया गया है.
  • तापमान बढ़ने के कारण फूड सिक्योरिटी, पानी की किल्लत, जंगल की आग, हेल्थ, ट्रांसपोटेशन सिस्टम, शहरी ढांचा, बाढ़ जैसी समस्याएं बढ़ने का अनुमान जताया गया है.

भारत के सन्दर्भ में

  • भारत में 7,500 किलोमीटर लंबा तटीय इलाका है. समुद्र का स्तर ऊपर जाने के कारण इन इलाकों में बाढ़ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. यही नहीं, यहां चक्रवाती तूफानों का भी खतरा मंडराएगा.
  • अगर तापमान में 1-4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी होती है तो भारत में, चावल का उत्पादन 10 से 30 प्रतिशत तक, जबकि मक्के का उत्पादन 25 से 70 प्रतिशत तक घट सकता है.
  • इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से निपटने के तरीकों पर भी चर्चा की गई है. भारतीय शहर सूरत, इंदौर और भुवनेश्वर के जलवायु परिवर्तन से निपटने के तौर-तरीकों का भी जिक्र किया गया है.
  • इस सदी के मध्य तक देश की करीब साढ़े 3 करोड़ की आबादी तटीय बाढ़ की विभीषिका झेलेगी और सदी के अंत तक यह आंकड़ा 5 करोड़ तक जा सकता है. रिपोर्ट में दक्षिण भारत के तेलंगाना में पानी संचयन की पुरानी तकनीक का भी जिक्र किया गया है.

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC)

IPCC संयुक्त राष्ट्र का एक अंतर सरकारी समूह है जो जलवायु परिवर्तन पर अध्ययन करता है. इसकी स्थापना विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने 1988 में किया था. इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है.