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सउदी अरब और पाकिस्तान के बीच पारस्परिक रक्षा समझौता

सउदी अरब और पाकिस्तान ने 17 सितंबर 2025 को एक पारस्परिक रक्षा समझौता किया है. इस समझौते के अनुसार दोनों देशों ने किसी एक देश के ख़िलाफ़ आक्रमण की स्थिति में दोनों के ख़िलाफ़ आक्रमण माना जाने की बात कही गई है. हालांकि समझौते में किसी भी देश का नाम नहीं लिया गया है.

इज़राइली हमले के परिप्रेक्ष्य में

  • यह समझौता हाल ही में फ़िलिस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास पर दोहा में हुए इज़राइली हमले के बाद हुआ है.
  • इज़राइली हमले ने अरब देशों में खतरे की घंटी बजा दी है, क्योंकि ईरान, लेबनान, सीरिया, यमन और अब क़तर में इज़राइली अभियान बढ़ रहे हैं.
  • खाड़ी देश इस बात से अवगत हैं कि इज़राइल मध्य पूर्व में एकमात्र परमाणु-सशस्त्र देश है. इसलिए, सऊदी-पाकिस्तान का यह समझौता एकजुटता का संदेश है.
  • यह नवीनतम समझौता इस्लामी देशों के बीच सुरक्षा सहयोग को औपचारिक रूप देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है.

सऊदी अरब पाकिस्तान सैन्य संबंध

  • सऊदी अरब वर्षों से पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम में अपनी रुचि का संकेत देता रहा है. यह व्यापक रूप से माना जाता है कि सऊदी अरब ने चुपचाप पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम वित्तपोषित किया है.
  • 1967 से, पाकिस्तान ने 8,000 से ज़्यादा सऊदी सैन्य कर्मियों को प्रशिक्षण दिया है. यमन में मिस्र के युद्ध को लेकर बढ़ते तनाव के बीच, 1960 के दशक में पाकिस्तानी सैनिकों ने सऊदी अरब की यात्रा की थी.

सऊदी अरब भारत संबंध

  • सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि भारत, सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है.
  • वित्त वर्ष 2024-25 में, द्विपक्षीय व्यापार 41.88 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. दोनों देशों के बीच गहरे आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक संबंध हैं.
  • पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच व्यापार लगभग 3-4 अरब अमेरिकी डॉलर का है. इसलिए, यह संभावना नहीं है कि सऊदी अरब भारत के खिलाफ जाएगा.
  • भारत ने सतर्कतापूर्वक प्रतिक्रिया व्यक्त की है और कहा है कि यह समझौता सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच ‘एक दीर्घकालिक व्यवस्था को औपचारिक रूप देता है’.

अरब-इस्लामी देशों के नेता की दोहा में आपात शिखर सम्मेलन

  • कतर में 15 सितम्बर को अरब और इस्लामी देशों के नेताओं का आपात शिखर सम्मेलन (Arab-Islamic emergency summit) आयोजित किया गया है.
  • यह सम्मेलन हाल ही में फ़िलिस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास पर दोहा में हुए इज़राइली हमले के बाद बुलाई गई थी.

नाटो (NATO) जैसा संयुक्त रक्षा तंत्र बनाने पर चर्चा

  • इस दौरान मुस्लिम देशों ने इजरायल के कतर पर हमले की कड़ी आलोचना की. साथ ही अरब देशों की एक संयुक्त सेना बनाने या संयुक्त रक्षा तंत्र बनाने पर चर्चा हुई.
  • बैठक में मुस्लिम देशों का नाटो जैसा संगठन होने पर जोर दिया गया ताकि भविष्य में इजरायल की आक्रामकता को रोका जा सके.
  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) की ओर से एक ‘संयुक्त रक्षा तंत्र’ सक्रिय करने पर जोर दिया गया. ऐसा तंत्र बनता है तो यह इस शिखर सम्मेलन का सबसे व्यावहारिक परिणाम हो सकता है.
  • GCC देशों- बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने सदस्य देशों की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए रक्षा समझौता किया है.

इजरायल को रोकने के लिए ठोस कदम की जरूरत

  • कतर के अमीर शेख तमीम ने समिट में कहा कि दोहा में हमास नेताओं और उनके वार्ता प्रतिनिधिमंडल के परिवारों को निशाना बनाकर हमला किया गया.
  • ये दिखाता है कि इजरायल सरकार किसी भी अंतरराष्ट्रीय नियम को नहीं मान रही है. इजरायल को रोकने के लिए हमे ठोस कदम उठाने की जरूरत है.

नाटो (NATO) क्या है?

  • नाटो, North Atlantic Treaty Organization (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) का संक्षिप्त रूप है. इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है.
  • यह 32 यूरोपीय और उत्तरी अमरीकी देशों का एक सैन्य गठबन्धन है जो रूसी आक्रमण के खिलाफ दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1949 में बनाया गया था.
  • नाटो सदस्य देशों ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके तहत बाहरी हमले की स्थिति में सदस्य देश सहयोग करते हैं.
  • नाटो की सामूहिक रक्षा का मूल सिद्धांत यह है कि एक सदस्य पर हमला सभी पर हमला माना जाएगा.

नाटो के सदस्य देश

  • संस्थापक सदस्य: मूल रूप से नाटो में 12 सदस्य (फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका) थे जो अब बढ़कर 32 हो गए हैं.
  • नाटो के अन्य सदस्य देश: ग्रीस, तुर्की, जर्मनी, स्पेन, चेक गणराज्य, हंगरी, पोलैंड, बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, अल्बानिया, क्रोएशिया, मोंटेनेग्रो, उत्तर मैसेडोनिया (2020 में शामिल), फिनलैंड (2022 में शामिल) और स्वीडन (2024 में शामिल).

ओमान के सुल्‍तान हैथम बिन तारिक़ की भारत यात्रा

ओमान के सुल्‍तान हैथम बिन तारिक़ 15 से 17 दिसम्बर तक भारत की यात्रा पर थे. उनकी यह पहली भारत यात्रा थी. ओमान के सुल्‍तान हैथम बिन तारिक़ ने 16 दिसम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता हुई थी.

मुख्य बिन्दु

  • दोनों नेताओं की इस वार्ता में भारत-ओमान सामरिक संबंधों को गति देने और व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते को जल्द से जल्द पूरा करने पर जोर दिया गया. वार्ता में 10 महत्वपूर्ण क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए दृष्टिकोण पत्र स्वीकार किया गया.
  • श्री मोदी और श्री तारिक ने हमास-इस्राइल संघर्ष से उत्पन्न स्थिति, आतंकवाद की चुनौतियों और फिलिस्तीन मुद्दे के द्वि-राष्ट्र समाधान के लिए कोशिश करने पर भी विचार-विमर्श किया.
  • दोनों पक्षों ने करीब ढाई हजार करोड़ रुपये के ओमान-भारत संयुक्त निवेश कोष के तीसरे हिस्से की भी घोषणा की. इस राशि का उपयोग भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में निवेश के लिए किया जाएगा.

कुवैत के अमीर शेख नवाफ का निधन, भारत में एक दिन का राजकीय शोक

भारत ने कुवैत के अमीर शेख नवाफ अल-अहमद अल-जबर अल-सबाह के सम्मान में 17 दिसम्बर को देशभर में एक दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है.

मुख्य बिन्दु

  • गृह मंत्रालय के अनुसार पूरे देश में भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा और आज सरकारी स्तर पर मनोरंजन के कोई कार्यक्रम नहीं होंगे.
  • कुवैत के अमीर शेख नवाफ का 16 दिसम्बर को निधन हो गया था. वे 86 वर्ष के थे.
  • कुवैत के शहजादे शेख मेशल अल-अहमद अल-जाबेर अल-सबह को देश का अगला अमीर घोषित किया गया है.
  • केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कुवैत के अमीर शेख मेशल अल-अहमद अल-जाबिर अल-सबाह से मुलाकात की और पूर्व अमीर शेख नवाफ अल-अहमद अल-जाबिर अल-सबाह के निधन पर शोक व्‍यक्‍त किया.

बहरीन के प्रधानमंत्री खलीफा बिन सलमान अल खलीफा का निधन

बहरीन के प्रधानमंत्री शेख खलीफा बिन सलमान अल खलीफा का 11 नवम्बर को निधन हो गया है. वह 84 वर्ष के थे. वह विश्व के सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री थे.

24 नवंबर 1935 को जन्‍मे शेख खलीफा बहरीन के शाही परिवार से थे. 15 अगस्त 1971 को बहरीन की स्वतंत्रता से एक साल पहले शेख खलीफा ने पदभार ग्रहण किया था. उन्होंने तीन दशकों से अधिक समय तक बहरीन के राजनीतिक और आर्थिक मामलों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

हैथम-बिन-तारिक-अल-सईद ने ओमान के नए सुल्तान के रूप में शपथ ली, कबूस बिन-सईद का निधन

ओमान के सुल्तान कबूस बिन-सईद का 10 जनवरी को निधन हो गया. 79 वर्षीय सुल्तान पिछले एक वर्ष से गंभीर रूप से बीमार थे. उन्हें ओमान को एक आधुनिक और समृद्ध राष्ट्र में बदलने का श्रेय दिया जाता है. वह 1970 से ओमान पर शासन कर रहे थे. ओमान के सुल्तान देश के प्रमुख निर्णय-निर्माता होते हैं. सुल्तान कबूस अल सईद परिवार के आठवें सुल्तान थे. वे हाल के अरब शासकों में अब तक के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले सुल्तान थे.

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने ओमान के सुल्तान कबूस बिन सईद अल सईद के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सुल्तान कबूस भारत का सच्चा मित्र बताया है.

ओमान के सुल्तान के सम्मान में भारत में एक दिन का शोक

भारत सरकार ने ओमान के सुल्तान क़ाबूस बिन सईद अल सईद के सम्मान में 13 जनवरी को शोक रखने की घोषणा की है. शोक के दौरान सरकारी समारोह स्थगित रहेंगे। देशभर में राष्ट्र ध्वज झुका रहेगा.

हैथम-बिन-तारिक-अल-सईद ने ओमान के नए सुल्तान के रूप में शपथ ली

ओमान की रक्षा समिति ने घोषणा की है कि हैथम-बिन-तारिक-अल-सईद सुल्‍तान काबूस के उत्‍तराधिकारी होंगे. सुल्‍तान काबूस ने अपने चचेरे भाई हैथम-बिन-तारिक-अल-सईद सुल्‍तान को नया शासक घोषित किया था. हैथम-बिन-तारिक-अल-सईद ओमान के विभिन्‍न महत्‍वपूर्ण मंत्रालयों में काम कर चु‍के हैं.

ओमान के संविधान के अनुसार राजगद्दी के रिक्‍त होने की स्थिति में शाही परिवार को तीन दिनों के भीतर नया उत्तराधिकारी चुनना होता है. इसमें विफल रहने पर शाही परिवार परिषद को लिखे पत्र के अनुसार क़ाबूस द्वारा नामित उत्तराधिकारी को शासक घोषित करना होगा.

यमन सरकार और दक्षिण अलगाववादियों के बीच समझौता

यमन की सऊदी समर्थित सरकार और दक्षिण अलगाववादियों ने 5 नवम्बर को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते से दक्षिण अलगाववादियों का यमन की नई कैबिनेट में शामिल होने का मार्ग प्रशस्त होगा और दक्षिणी सशस्त्र बल यमन सरकार के नियंत्रण में आ सकेंगे.

दक्षिण यमन में सऊदी अरब समर्थित यमन सरकार और दक्षिण अलगाववादियों के बीच काफी समय से सत्ता संघर्ष चल रहा था. इस संघर्ष से अब तक कम से कम 7,000 नागरिकों की मृत्यु हुई है. यह समझौता यमन के गृह युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

सऊदी अरब की तेल कंपनी पर ड्रोन से हमले किये गये

सऊदी अरब की तेल कंपनी अरामको के अबकैक और खुराइस में स्थित तेल कुओं पर 14 सितम्बर को ड्रोन से हमले किये गये. हमले के बाद से सऊदी अरब की तेल कंपनी ने उत्पादन को लगभग आधा कर दिया है. बीते 4 महीनों में यह छठा मौका है, जब सऊदी अरब के फैसिलिटी सेंटर या फिर आपूर्ति करने वाले तेल टैंकरों को निशाना बनाया गया.

आपूर्ति को लेकर संकट

हमले से इस इंडस्ट्री के समक्ष पहली बार आपूर्ति को लेकर संकट खड़ा हो गया है. इस हमले के चलते आपूर्ति में 57 लाख बैरल प्रतिदिन की कमी आई है, जो वैश्विक आपूर्ति का 6 फीसदी है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले समय में ग्लोबल क्रूड सप्लाई चेन के लिए यह गंभीर चुनौती है और अनियंत्रित युद्ध की स्थिति में विकट हालात पैदा हो सकते हैं.

हमले की जिम्मेदारी हूथी विद्रोही संगठन ने ली

अरामको के अबकैक और खुराइस में स्थित तेल कुओं पर हमले की जिम्मेदारी यमन के हथियारबंद हूथी विद्रोही संगठन ने ली थी. लेकिन अमरीका और सउदी अरब को संदेह है कि यह हमला ईरान द्वारा किया गया है. सउदी अरब ने कहा है कि प्रारंभिक जांच से पता चला है कि हमारे तेल संयंत्र पर हमला ईरानी हथियारों से किया गया था.

अमेरिका और ईरान के बीच तनाव

सऊदी अरब के तेल ठिकानों पर हमले के बाद अमेरिका और ईरान के बीच तनाव गहरा गया है. अमरीका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने ईरान पर सउदी तेल प्रतिष्‍ठानों पर कल के ड्रोन हमलों का आरोप लगाया है. जबकि ईरान ने अमेरिका के दावे को सिरे से खारिज किया है.ईरान ने कहा है कि अमेरिका उसके खिलाफ जवाबी कार्रवाई के बहाने तलाश रहा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सऊदी अरब को अमेरिका की ओर से समर्थन देने का प्रस्ताव दिया है.

सउदी अरब, अमरीका के नेतृत्‍व वाले संगठन में शामिल हुआ

सउदी अरब ने कहा है कि वह पश्चिम एशिया के समुद्री मार्गों और तेल उद्योग को ईरान से होने वाले संभावित हमलों से सुरक्षित रखने के लिए अमरीका के नेतृत्‍व वाले संगठन में शामिल हो गया है. सउदी अरब का यह फैसला अमरीका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो की आगामी सउदी अरब यात्रा को देखते हुए किया गया है.