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चंद्रयान-3 की लैंडिग साइट शिव-शक्ति को IAU ने मंजूरी दी

अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने 19 मार्च को चंद्रयान -3 की लैंडिंग साइट के लिए ‘शिव शक्ति’ नाम को मंजूरी दे दी है. यह नाम प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 26 अगस्त, 2023 को मिशन की सफलता की घोषणा के बाद दिया गया था.

चंद्रयान-3 मिशन

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा प्रक्षेपित चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग किया था.
  • भारत चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला विश्व का चौथा (अमेरिका, रूस, चीन के बाद) और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला विश्व का पहला देश बना है.

लैंडर मॉड्यूल ने जहां पर कदम रखे, उस जगह का नामकरण

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल ‘विक्रम’ ने जहां पर कदम रखे, उस जगह को ‘शिवशक्ति‘ नाम दिया था.
  • प्रधानमंत्री मोदी ने चंद्रयान-2 के इम्पैक्ट पॉइंट को ‘तिरंगा‘ नाम दिया है. वर्ष 2019 में यहीं पर चंद्रयान-2 का लैंडर क्रैश हो गया था.

इसरो ने का पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान ‘पुष्पक’ का सफल परीक्षण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 22 मार्च 2024 को अपने रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) की लैंडिंग का सफल परीक्षण किया था. इसका नाम ‘पुष्पक’ है. यह कर्नाटक के चित्रदुर्ग में चालाकेरे एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में की गई थी. पुष्पक इसरो का इस तरह के प्रयासों की श्रृंखला में दूसरा (RLV LEX-02) था.

पुष्पक का परीक्षण: मुख्य बिन्दु

  • पुष्पक खास तरह का स्पेस शटल है. इसे जटिल युद्धाभ्यास करने, त्रुटियों को ठीक करने और पूरी तरह से स्वायत्त रूप से रनवे पर उतरने के लिए डिज़ाइन किया गया है. पुष्पक परियोजना की अनुमानित लागत 100 करोड़ रुपये (लगभग 13.5 मिलियन डॉलर) है.
  • पुष्पक मिशन प्राथमिक उद्देश्य रीयूजेबल (पुनः उपयोग योग्य) प्रक्षेपण यान (लॉन्च व्हीकल) के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों का विकास करना है, जिससे प्रक्षेपण लागत काम हो सके.
  • इस परीक्षण में पुष्पक RLV को भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा उठाया गया और फिर 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई से छोड़ा गया. इसके जारी होने के बाद रनवे से 4 किलोमीटर की दूरी पर पुष्पक सुधार करते हुए स्वतंत्र रूप से रनवे की ओर चला गया. यह रनवे पर ठीक से उतरा और ब्रेक पैराशूट, लैंडिंग गियर ब्रेक और नोज व्हील स्टीयरिंग सिस्टम का उपयोग करके रुक गया.
  • रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल का अगला चरण संभावित रूप से कक्षा में मौजूद उपग्रहों में ईंधन भरने या नवीनीकरण के लिए उपग्रहों को वापस लाने में सक्षम हो सकता है. पुष्पक आरएलवी को रीयूजेबल सिंगल-स्टेज-टू-ऑर्बिट (SSTO) वाहन के रूप में डिजाइन किया गया है.
  • इसरो  (ISRO) ने अपने लॉन्च वाहन के लिए ‘पुष्पक’ नाम चुना है. लंबे समय से इसरो अपने रॉकेट का नामकरण पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) और स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) जैसे नामों से करता रहा है.

देश के पहले मानव अंतरिक्ष उडान मिशन ‘गगनयान’ के लिए चार यात्रियों के नाम घोषित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के पहले मानव अंतरिक्ष उडान मिशन ‘गगनयान’ (Gaganyaan Mission) के लिए चार यात्रियों के नाम की घोषणा 28 फ़रवरी को की थी. ये अंतरिक्ष यात्री ‘गगनयान मिशन’ के लिए प्रशिक्षण ले रहे हैं.

मुख्य बिन्दु

  • गगनयान मिशन के लिए ये अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन प्रशांत नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला चुने गए हैं. चारों देश के हर तरह के फाइटर जेट्स उड़ा चुके हैं.
  • सभी अंतरिक्ष यात्री जो पहले क्रू मिशन का हिस्सा होंगे, वे भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के टेस्ट पायलट हैं. इनके चयन के लिए इसरो और आईएएफ के इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन (आईएएम) जिम्मेदार थे.
  • अंतरिक्ष उड़ान के लिए आवश्यक परिस्थितियों के अनुकूल ढलने के लिए उन्हें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से प्रशिक्षित किया जाता है. विभिन्न प्रकार के विमान उड़ाने के कारण, वे जल्दी ही नई प्रणालियों से परिचित हो जाते हैं. वे विभिन्न प्रकार के दबावों और गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध काम करने के भी आदी होते हैं.
  • भारतीय वायुसेना के इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन (आइएएम) ने 2019 में 12 टेस्ट पायलटों का चयन किया था. इसरो ने कई चरणों के बाद इनमें से चार लोगों का अंतिम चयन किया.
  • इन चारों को शुरुआती प्रशिक्षण के लिए रूस भेजा गया था. प्रशिक्षण 2021 में पूरा हुआ. अब इन्हें बेंगलुरु में कई एजेंसियां और सशस्त्र बल प्रशिक्षण दे रहे हैं. चारों नियमित रूप से वायुसेना के विमान भी उड़ाते हैं.

क्या है गगनयान मिशन

  • गगनयान मिशन में चालक दल के चार सदस्यों को तीन दिन के लिए पृथ्वी से 400 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष की कक्षा में भेजा जाएगा और सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लाया जाएगा.
  • यह मिशन 2025 में लॉन्च होगा. मिशन के लिए ‘क्रू मॉड्यूल’ रॉकेट का इस्तेमाल होगा.
  • इसरो ने अक्टूबर 2023 में श्रीहरिकोटा से गगनयान स्पेसक्राफ्ट लॉन्च किया था. परीक्षण यह जानने के लिए था कि क्या रॉकेट में खराबी की हालत में अंतरिक्ष यात्री सुरक्षित बच सकते हैं.
  • गगनयान मिशन में कामयाबी मिलने पर अमेरिका, चीन और रूस के बाद भारत मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन भेजने वाला चौथा देश बन जाएगा.

इसरो ने GSLV-F14 रॉकेट के माध्यम से मौसम उपग्रह ‘INSAT-3DS’ को प्रक्षेपित किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 17 फ़रवरी, 2024 को मौसम उपग्रह ‘INSAT-3DS’ को प्रक्षेपित किया था. इसे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर (SDSC-SHAR) से GSLV-F14 रॉकेट के माध्यम से अंतरिक्ष में भेज गया.

मुख्य बिन्दु

  • उपग्रह INSAT-3DS का वजन 2,274 किलोग्राम है. यह तीसरी पीढ़ी का मौसम पूर्वानुमान संबंधी अत्याधुनिक उपग्रह है. इसे भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित किया गया है. यह पूरी तरह से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है.
  • यह उपग्रह मौसम के साथ-साथ आपदा को लेकर भी अलर्ट जारी करेगी. खास तौर पर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग यानी IMD और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत विभिन्न विभागों को सेवा प्रदान करेगा.
  • INSAT-3DS में छह चैनल इमेजर, 19 चैनल साउंडर पेलोड, डेटा रिले ट्रांसपोंडर (DRT) और सैटेलाइट सहायता प्राप्त खोज और बचाव (SA & SR) ट्रांसपोंडर हैं.
  • उपग्रह INSAT-3DS का प्रक्षेपण GSLV-F14 रॉकेट से किया गया था. इस रॉकेट का नाम ‘नॉटी बॉय’ दिया गया है. GSLV-F14, 51.7 मीटर लंबा और 420 टन वजन वाला तीन फेज का जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) है.
  • बहरहाल, उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो मुख्य रूप से तीन रॉकेटों का प्रयोग करता है. GSLV, PSLV और LVM3. PSLV की तुलना में GSLV कहीं अधिक शक्तिशाली रॉकेट है. यह  PSLV से ज्यादा भारी उपग्रहों को कैरी कर सकता है.
  • चूंकि सफल प्रक्षेपणों के मामले में GSLV का ट्रैक रिकॉर्ड PSLV जितना अच्छा नहीं रहा है, इसलिए इसरो के एक पूर्व अध्यक्ष ने इसे ‘नॉटी बॉय’ का उपनाम दिया है.
  • यह GSLV रॉकेट का कुल मिलाकर 16वां मिशन था और स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग करके इसकी 10वीं उड़ान थी.

इसरो ने आदित्‍य एल-1 उपग्रह को अंतिम कक्षा में सफलतापूर्वक स्‍थापित किया

भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 6 जनवरी को आदित्‍य एल-1 उपग्रह (Aditya L-1 satellite) को अंतिम कक्षा में सफलतापूर्वक स्‍थापित कर दिया. आदित्‍य एल-1 भारत का पहला सौर अभियान है जो सूर्य के कोरोना, सूर्य के भीषण ताप और पृथ्‍वी पर इसके प्रभाव का अध्ययन करेगा.

मुख्य बिन्दु

  • आदित्‍य एल-1 को हालो कक्षा में एल-1 बिन्‍दु (लैग्रेंजियन बिंदु) के नजदीक सफलतापूर्वक प्रवेश कराया गया है. इसरो ने इसके लिए कमान केन्‍द्र से मोटर और थ्रस्‍टर का प्रयोग किया.
  • एल-1 बिन्‍दु पृथ्‍वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है. अंतरिक्ष यान में 440 न्‍यूटन लिक्विड अपोजी मोटर, आठ 22 न्‍यूटन थ्रस्‍टर और चार 10 न्‍यूटन थ्रस्‍टर लगे थे जो इसे एल-1 बिन्‍दु तक ले गये.
  • लैग्रेंजियन बिंदु वह स्थान है जहां कोई वस्तु सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण संतुलन में रह सकती है. यह बिन्‍दु पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है.
  • लैग्रेंजियन बिंदु का उपयोग अंतरिक्ष यान द्वारा स्थिति में बने रहने के लिए आवश्यक ईंधन की खपत को कम करने के लिए किया जा सकता है.
  • एल-1 बिंदु, पांच लैग्रेंजियन बिंदुओं में से एक है. यह बिंदु सूर्य का निर्बाध दृश्य प्राप्त करता है और वर्तमान में सौर और हेलिओस्फेरिक वेधशाला उपग्रह SOHO इसी बिन्दु पर हैं.

ISRO ने एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट का सफल प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 1 जनवरी 2024 को एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट (XPoSat) का सफल प्रक्षेपण किया था. यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया था. इस प्रक्षेपण अभियान में 10 अन्य वैज्ञानिक पेलोड्स उपग्रहों को भी प्रक्षेपित किया गया था.

मुख्य बिन्दु

  • यह सैटेलाइट ब्लैक होल (आकाशगंगा) और न्यूट्रॉन सितारों का अध्ययन करेगा. यह मिशन करीब पांच साल (2028 तक) का होने वाला है.
  • एक्सपोसैट (XPoSat) का प्रक्षेपण ध्रुवीय सैटेलाइट लॉन्च व्हिकल (PSLV)-C5 के माध्यम से किया गया था. PSLV-C5 का लिफ्ट-ऑफ द्रव्यमान 260 टन है. यह रॉकेट एक्सपोसैट को पृथ्वी से 650 किमी ऊंचाई पर स्थापित किया.
  • इस मिशन के माध्यम से अमेरिका के बाद भारत ब्लैक होल (आकाशगंगा) और न्यूट्रॉन सितारों का अध्ययन करने के लिए एक विशेष सैटेलाइट भेजने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया.

चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर को निष्क्रिय किया गया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-3 के रोवर ‘प्रज्ञान’ के पेलोड्स को फिलहाल निष्‍क्रिय कर दिया है. चंद्रमा की सतह पर अपने सभी कार्य पूरा करने के बाद इसे निष्‍क्रिय किया गया है.

इसरो द्वारा प्रक्षेपित चंद्रयान-3 का लैंडर ‘विक्रम’ और उसके अंदर रखे रोवर ‘प्रज्ञान’ ने 23 अगस्त को चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग किया था. लैंडिंग के कुछ घंटे बाद प्रज्ञान रोवर विक्रम लैंडर से बाहर आ गया था और इसने चांद की सतह पर घूमना शुरू किया था.

मुख्य बिन्दु

  • रोवर ‘प्रज्ञान’ की बैटरी सूर्य का प्रकाश द्वारा चार्ज होता है. चन्‍द्रमा पर 14 दिन तक सूर्य का प्रकाश उपलब्ध न होने के कारण रोवर पेलोड्स को निष्क्रिय किया गया है.
  • प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित है. रोवर की बैटरी पूरी तरह से चार्ज है और चंद्रमा पर 22 सितम्‍बर को अगले सूर्योदय होने पर इसे प्रकाश मिलने लगेगा. रिसीवर को चालू रखा गया है.
  • इसरो ने आशा व्‍यक्‍त की है कि प्रज्ञान रोवर को अन्य कार्यों के लिए फिर से सफलतापूर्वक सक्रिय किया जा सकेगा. ऐसा न होने पर भी रोवर हमेशा के लिए चंद्रमा की सतह पर मौजूद रहेगा.
  • 26 किलो वजन वाला छह पहियों पर चलने वाला और सौर शक्ति संचालित रोवर ने चंद्रमा की सतह की छानबीन कर हम तक अहम जानकारी पहुंचाई है.
  • चंद्र ग्रह पर सल्फर, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम और आयरन की मौजूदगी का प्रमाण भेजा गया है.

भारत चंद्रमा ने दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला विश्व का पहला देश बना

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा प्रक्षेपित चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग किया. इसके साथ थी भारत चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला विश्व का चौथा (अमेरिका, रूस, चीन के बाद) और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला विश्व का पहला देश बन गया.

मुख्य बिन्दु

  • इसरो ने चंद्रयान-3 मिशन का प्रक्षेपण 14 जुलाई को ‘लॉन्च व्हीकल मार्क-3’ (LVM-3) रॉकेट (प्रक्षेपण यान) द्वारा श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अन्‍तरिक्ष केन्‍द्र से किया था.
  • 23 अगस्त को शाम 6.04 बजे चंद्रयान-3 के लैंडर ‘विक्रम’ और उसके अंदर रखे रोवर ‘प्रज्ञान’ ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के करीब सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग किया. सॉफ्ट लैंडिंग का अर्थ बिना झटके के सतह पर उतरना होता है.
  • भारत से पहले चांद पर पूर्ववर्ती सोवियत संघ, अमेरिका और चीन ही सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर पाए हैं. इनमें से कोई भी देश चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के आस-पास ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ नहीं कर पाया था.
  • अब तक चांद के लिए जो भी सफल मिशन रहे हैं वो चांद के उत्तर या मध्य में हैं. यहां पर लैंडिंग के लिए जगह समतल है और सूरज की सही रोशनी भी आती है. चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर रोशनी नहीं पहुंचती साथ ही सतह पथरीली, ऊबड़-खाबड़ और गड्ढों से भरी है.
  • चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग का यह भारत का दूसरा प्रयास था. इसरो ने पहला प्रयास 7 सितंबर 2019 को ‘चंद्रयान-2’ मिशन द्वारा किया था, जो सॉफ्ट लैंडिंग करने में असफल रहा था. इसरो का पहला चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-1’ को 2008 में प्रक्षेपित किया गया था. इस मिशन में चाँद पर उतरने के लिए लैंडर मॉड्यूल नहीं था.
  • इसरो के वर्तमान चेयरमैन एस सोमनाथ हैं. चंद्रयान-3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर महान वैज्ञानिक पी वीरामुथुवेल हैं. वहीं चंद्रयान-3 मिशन की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर महिला वैज्ञानिक कल्पना के हैं. चंद्रयान-3 मिशन का कुल खर्च की राशि 615 करोड़ रुपये है.
  • दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने जोहान्‍सबर्ग से वर्चुअली इसरो के लैंडिंग कार्यक्रम को देखा और संबोधित किया. प्रधानमंत्री 15वें ब्रिक्‍स सम्मेलन में हिस्सा लेने दक्षिण अफ्रीका गए थे.

चंद्रयान 3 मिशन: एक दृष्टि

  • चंद्रयान 3 के तीन हिस्‍से हैं- प्रोपल्‍शन, लैंडर और रोवर. प्रोपल्‍शन, लैंडर और रोवर को पृथ्‍वी की कक्षा से चंद्रमा की कक्षा में ले गया था. रोवर को लैंडर के अंदर स्थापित किया गया था. लैंडर का नाम ‘विक्रम’ और रोवर का नाम ‘प्रज्ञान’ दिया गया है.
  • लैंडर का काम चंद्रमा की सतह पर उतरकर उसमें मौजूद 6 पहियों वाले रोवर को बाहर निकालना था. रोवर चांद की सतह पर खनिजों सहित कई महत्‍वपूर्ण जानकारी जुटाएगा.
  • इस मिशन का उद्देश्य ध्रुवीय क्षेत्र के पास चंद्रमा की सतह के तापीय गुणों को मापना, भूकंपीय गतिविधि का पता लगाना और लूनर क्रस्ट और मेंटल की संरचना का चित्रण करना भी है.
  • लैंडर और रोवर (कुल वजन 1,752 किलोग्राम) को एक चंद्र दिवस की अवधि (धरती के लगभग 14 दिन के बराबर) तक काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
  • सुरक्षित रूप से चंद्र सतह पर उतरने के लिए लैंडर में कई सेंसर थे, जिसमें एक्सेलेरोमीटर, अल्टीमीटर, डॉपलर वेलोमीटर, इनक्लिनोमीटर, टचडाउन सेंसर और खतरे से बचने एवं स्थिति संबंधी जानकारी के लिए कैमरे लगे थे.

लैंडर मॉड्यूल ने जहां पर कदम रखे, उस जगह का नामकरण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल ‘विक्रम’ ने जहां पर कदम रखे, उस जगह का नामकरण किया है.

  • चंद्रमा के 23 अगस्‍त 2023 को चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल जिस हिस्से पर उतरा, अब उस पॉइंट को ‘शिवशक्ति‘ के नाम से जाना जाएगा.
  • प्रधानमंत्री मोदी ने चंद्रयान-2 के इम्पैक्ट पॉइंट को भी एक नाम दिया. अब उसे ‘तिरंगा‘ के नाम से जाना जाएगा. 2019 में यहीं पर चंद्रयान-2 का लैंडर क्रैश हो गया था.
  • प्रधानमंत्री ने कहा कि शिवशक्ति पॉइंट आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा कि हमें विज्ञान का उपयोग मानवता के कल्याण के लिए ही करना है. तिरंगा पॉइंट हमें प्रेरणा देगा कि कोई भी विफलता आखिरी नहीं होती.

23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रत्येक वर्ष 23 अगस्त को जब भारत के विक्रम लैंडर ने दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग किया, उस दिन को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की.

इसरो ने श्रीहरिकोटा से चन्‍द्रयान-3 को सफलतापूर्वक प्रेक्षिपत‍ किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 14 जुलाई को चन्‍द्रयान-3 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपन किया था. या प्रक्षेपन श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अन्‍तरिक्ष केन्‍द्र से किया गया था.

मुख्य बिन्दु

  • चन्‍द्रयान-3 को LVM-3 प्रक्षेपण यान (रॉकेट) से प्रक्षेपित किया गया. प्रक्षेपण यान LVM-3 का वजन 642 टन है. यह भारी उपग्रहों को ले जाने के लिए एक सफल और भरोसेमंद प्रक्षेपण यान है.
  • LVM-3 रॉकेट के संचालन के लिए तीन चरणों ठोस ईंधन, तरल ईंधन और अंत में क्रायोजनिक ईंधन (तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन) को पूर्ण करते हुए चंद्रयान-3 लगभग 16 मिनट में पृथ्वी की कक्षा (जियो ट्रांसफर ऑर्बिट) में स्थापित हुआ.
  • चन्‍द्रयान-3 के चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर 23 अगस्‍त या 24 अगस्‍त को उतरने की आशा है. यह चंद्रमा तक पहुंचने के लिए एक महीने में 3.84 लाख किलोमीटर की दूरी (ओवल आकार के मार्ग में) तय करेगा.
  • यह चांद की सतह पर उतरने का भारत का दूसरा प्रयास है. 2019 में ‘चन्‍द्रयान-2’ मिशन आखिरी चरण में चांद की सतह पर उतरने में विफल हो गया था.
  • अगर भारत सफलतापूर्वक चांद की सतह पर उतरने में सफल रहता है तो यह उपलब्धि हासिल करने वाला वो दुनिया का चौथा देश होगा. इससे पहले अमरीका, तत्‍कालीन सोवियत संघ और चीन ने ये उपलब्धि हासिल की है.

चंद्रयान 3: एक दृष्टि

  • चंद्रयान 3 के तीन हिस्‍से हैं- प्रोपल्‍शन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर मॉड्यूल. प्रोपल्‍शन मॉड्यूल लैंडर और रोवर को पृथ्‍वी की कक्षा से चंद्रमा की कक्षा में ले जाएगा.
  • लैंडर का काम चंद्रमा की सतह पर उतरकर उसमें मौजूद रोवर को बाहर निकालना है. रोवर चांद की सतह पर खनिजों सहित कई महत्‍वपूर्ण जानकारी जुटाएगा.
  • इस मिशन का उद्देश्य ध्रुवीय क्षेत्र के पास चंद्रमा की सतह के तापीय गुणों को मापना, भूकंपीय गतिविधि का पता लगाना और लूनर क्रस्ट और मेंटल की संरचना का चित्रण करना भी है.

इसरो ने अगली पीढी का नौवहन उपग्रह एनवीएस-1 का प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 29 मई को अगली पीढी का नौवहन उपग्रह ‘नाविक’ एनवीएस-1 का प्रक्षेपण किया. यह सैटेलाइट खासकर सशस्त्र बलों को मजबूत करने और नौवहन सेवाओं की निगरानी के लिए बनाया गया है.

मुख्य बिन्दु

  • यह प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) एफ-12 के माध्यम से किया गया.
  • एनवीएस-1 का भार लगभग दो हजार 232 किलोग्राम है.  यह दूसरी पीढ़ी का पहला नेविगेशन उपग्रह है. इसका उद्देश्‍य निगरानी और नौवहन क्षमता प्रदान करना है.
  • इसका इस्तेमाल स्थलीय, हवाई और समुद्री परिवहन, लोकेशन-आधारित सेवाओं, निजी गतिशीलता, संसाधन निगरानी, सर्वेक्षण और भूगणित, वैज्ञानिक अनुसंधान, समय प्रसार और आपात स्थिति में किया जाएगा.
  • इसरो के मुताबिक, यह पहली बार स्वदेशी रूप से विकसित रूबिडियम परमाणु घड़ी का प्रक्षेपण में उपयोग किया जाएगा. पहले तारीख और स्थान का निर्धारण करने के लिए आयातित रूबिडियम परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल करते थे.
  • अब अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र में विकसित रूबिडियम परमाणु घड़ी होगी. यह महत्वपूर्ण तकनीक कुछ ही देशों के पास है.

ISRO ने हाल ही में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान ‘PSLV C-55’ को सफलतापूर्वक लॉन्च किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने हाल ही में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्‍द्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान PSLV C-55 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था. यह प्रक्षेपण न्‍यू स्‍पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) द्वारा किया गया, जो इसरो की वाणिज्यिक शाखा है.

मुख्य बिन्दु

  • इसरो ने PSLV C-55 प्रक्षेपण यान द्वारा सिंगापुर के दो उपग्रह 741 किलोग्राम वजन वाला प्रा‍थमिक उपग्रह ‘TeLEOS-2’ और 16 किलोग्राम भार वाला दूसरा उपग्रह Lumelite-4 को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया.
  • यह PSLV की 57वीं उडान थी. इस यान से उपग्रह प्रक्षेपण का यह सोलहवां मिशन था. C-55, PSLV यान का सबसे हल्का संस्करण है.
  • वैज्ञानिकों ने PSLV ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल-2 (POEM-2) का उपयोग इसके द्वारा किये गए गैर-पृथक पेलोड के माध्यम से वैज्ञानिक प्रयोगों को करने हेतु एक कक्षीय मंच के रूप में किया.
  • TeLEOS-2 पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (EOS) है और रॉकेट द्वारा ले जाया जाने वाला प्राथमिक उपग्रह होगा. यह सभी मौसमों में दिन और रात में कवरेज प्रदान करने में सक्षम होगा.
  • वर्ष 2015 में ISRO ने TeLEOS-1 लॉन्च किया, जिसे रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन के लिये पृथ्वी की निचली कक्षा में लॉन्च किया गया था.
  • LUMILITE-4 एक उन्नत 12U उपग्रह है जिसे उच्च-प्रदर्शन अंतरिक्ष-जनित VHF डेटा एक्सचेंज सिस्टम (VDES) के तकनीकी प्रदर्शन के लिये विकसित किया गया है.
  • POEM इसरो (ISRO) का एक प्रायोगिक मिशन है जो PSLV प्रक्षेपण यान के चौथे चरण के दौरान कक्षीय मंच के रूप में कक्षा में वैज्ञानिक प्रयोग करता है.

इसरो ने प्रक्षेपण यान की स्वतः लैंडिंग का मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने दोबारा उपयोग में लाए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान की स्वतः लैंडिंग मिशन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है.

मुख्य बिन्दु

  • यह परीक्षण 2 अप्रैल को कर्नाटक में चित्रदुर्ग के परीक्षण रेंज में RLV LEX प्रक्षेपण यान के माध्यम से किया गया.
  • परीक्षण के दौरान वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर ने प्रक्षेपण-यान को साढ़े चार किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाकर छोड़ दिया. वहां से प्रक्षेपण यान ने 350 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाई पट्टी पर स्‍वतः लैंडिंग की. इस दौरान वह सभी दस मानदंडों पर ख़रा उतरा.
  • प्रक्षेपण यान की स्वायत्त लैंडिंग (LEX) की स्थितियों को बिलकुल उस तरह डिजाइन किया गया था, जिस तरह अंतरिक्ष से पृथ्वी की कक्षा में लौटने वाले यान की स्थितियां होती हैं.
  • इस तकनीक को हासिल करने के साथ भारत बार-बार इस्तेमाल हो सकने वाला प्रक्षेपण यान (RLV) बनाने के करीब पहुंच गया है. खास बात यह है कि भारत का यह मिशन पूरी तरह स्वदेशी है.
  • हवाई पट्टी पर विमान की तरह प्रक्षेपण यान उतारने की तकनीक हासिल करने वाला भारत दुनिया का छठा देश बन गया है. अभी यह तकनीक अमेरिका, रूस, चीन, स्पेन और न्यूजीलैंड के पास है.
  • RLV को भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन (DRDO) व वायुसेना (IAF) की मदद से बनाया गया है.