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चौथी स्कॉर्पीन सबमरीन ‘INS वेला’ भारतीय नौसेना को प्रदान की गई

भारत की चौथी स्कॉर्पीन सबमरीन ‘आईएनएस वेला’ भारतीय नौसेना को प्रदान कर दी गई. इसका निर्माण ‘प्रोजेक्ट-75’ के तहत किया गया है.

प्रमुख बिंदु

  • ‘प्रोजेक्ट-75’ के तहत शामिल स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियाँ ‘डीज़ल-इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम’ द्वारा संचालित होती हैं. स्कॉर्पीन सर्वाधिक परिष्कृत पनडुब्बियों में से एक है, जो एंटी-सरफेस शिप वॉरफेयर, पनडुब्बी रोधी युद्ध, खुफिया जानकारी एकत्र करने, खदान बिछाने और क्षेत्र-विशिष्ट की निगरानी सहित कई मिशनों को पूरा करने में सक्षम है.
  • ‘स्कॉर्पीन’ श्रेणी जुलाई 2000 में रूस से खरीदे गए ‘INS सिंधुशास्त्र’ के बाद लगभग दो दशकों में नौसेना की पहली आधुनिक पारंपरिक पनडुब्बी शृंखला है.
  • प्रोजेक्ट-75 भारतीय नौसेना का एक कार्यक्रम है, जिसमें छह स्कॉर्पीन श्रेणी की ‘अटैक सबमरीन’ का निर्माण किया जाना है. दो पनडुब्बियों- कलवरी और खांदेरी को भारतीय नौसेना में शामिल किया जा चुका गया है. स्कॉर्पीन ‘वागीर’ का परीक्षण चल रहा है. छठी पनडुब्बी- ‘वाग्शीर’ निर्माणाधीन है. कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियों का डिज़ाइन ‘फ्रेंच स्कॉर्पीन श्रेणी’ की पनडुब्बियों पर आधारित है.
  • इसका निर्माण मझगाँव डॉक लिमिटेड (MDL) द्वारा किया जा रहा है. इस पनडुब्बियों के निर्माण के लिए अक्तूबर, 2005 में 3.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किये गये थे. ‘मझगाँव डॉक लिमिटेड’ शिपयार्ड रक्षा मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है.

देश का पहला विध्वंसक युद्धपोत ‘विशाखापट्टनम’ भारतीय नौसेना को सौंपा गया

देश में नौसेना के लिए युद्धपोत बनाने की परियोजना P15B का पहला विध्वंसक युद्धपोत ‘विशाखापट्टनम’ (Y12704) को 31 अक्तूबर को भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया. इसके शामिल होने से हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय नौसेना की सामरिक और रणनीतिक क्षमता में बढ़ोतरी होगी.

विशाखापट्टनम युद्धपोत: मुख्य बिंदु

  • ‘विशाखापट्टनम’ भारत में निर्मित सबसे लंबा विध्वंसक युद्धपोत है. इसे ‘नौसेना डिजाइन निदेशालय’ ने डिजाइन किया है और निर्माण मुंबई स्थित मझगांव डाक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने किया है. इसका निर्माण स्वदेशी स्टील डीएमआर-249ए से किया गया है. इसकी लंबाई 164 मीटर है और भार क्षमता 7,500 टन है.
  • इस युद्धपोत को सुपरसोनिक ब्रह्मोस और बराक समेत सभी प्रमुख मिसाइलों और हथियारों से लैस किया गया है. यह पूर्ण रूप से दुश्मन की पनडुब्बियों, युद्धपोतों, एंटी सबमरीन मिसाइलों और युद्धक विमानों का मुकाबला बिना किसी सहायक युद्धपोत के करने में सक्षम है.
  • इसमें समुद्र के नीचे युद्ध करने में सक्षम डिस्ट्रायर, पनडुब्बी रोधी हथियार और सेंसर लगाए गए हैं. साथ ही इसमें हाल माउंटेड सोनार, हमसा एनजी, हेवी वेट टारपीडो ट्यूब लांचर्स, राकेट लांचर्स आदि भी शामिल हैं. यह एक बार में 42 दिनों तक समुद्र में रहने में सक्षम है.
  • ‘नौसैनिक युद्धपोत निर्माण परियोजना’ के तहत देश के चार कोनों के प्रमुख शहरों विशाखापट्टनम, मोरमुगाओ, इंफाल और सूरत के नाम पर चार युद्धपोतों का निर्माण किया जा रहा है.

भारत ने लंबी दूरी के स्मार्ट बम का सफल फ्लाइट परीक्षण किया

भारत ने 29 अक्तूबर को लंबी दूरी के बम का सफल फ्लाइट परीक्षण किया था. यह परीक्षण ओडिशा के अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया. इस बम का परीक्षण एरियल प्लेटफार्म के माध्यम से किया गया. परीक्षण के दौरान इस बम को एक फाइटर एयरक्राफ्ट से गिराया गया. इसे लांग रेंज बम को स्मार्ट बम भी कहा जाता है, क्योंकि गिराने के बाद भी इस बम की दिशा और गति को बदला जा सकता है.

इसे पूरी तरह स्वदेशी टेक्‍नोलॉजी से भारत में बनाया गया है. यह परीक्षण रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारतीय वायुसेना सेना (IAF) की टीम ने किया.

मुख्य बिंदु

  • इस बम का सफल परीक्षण काफी अहम है क्योंकि मौजूदा घटनाक्रम के दृष्टिकोण से भारत के सामने पाकिस्तान के साथ-साथ चीन से भी टक्कर लेने की चुनौती है. बीते कुछ समय से चीन का रुख काफी आक्रामक हुआ है. इसे देखते हुए भारत को अपनी रक्षा तैयारियों को चुस्त-दुरुस्त रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
  • इससे पहले 28 अक्तूबर को भारत ने अग्नि-5 का सफल परीक्षण किया था. अग्नि-5 को डीआरडीओ और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड ने तैयार किया है. यह परमाणु सक्षम और सतह से सतह पर 5,000 किलोमीटर रेंज तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल है.
  • DRDO ने ABHYAS का सफल फ्लाइट टेस्‍ट किया था. यह हाई-स्पीड एक्सपेंडेबल एरियल टारगेट (HEAT) है. यह हथियार प्रणालियों को परीक्षण के लिए एक रियलिस्टिक डेंजर सीनेरियो देता है, जिसकी मदद से विभिन्न मिसाइलों या हवा में मार करने वाले हथियारों का परीक्षण किया जा सकता है.

अग्नि-5 मिसाइल का सफल परीक्षण, 5 हजार किलोमीटर तक मारक क्षमता

भारत ने 27 अक्टूबर को परमाणु सक्षम अग्नि-5 बैलिस्टिक मिसाइल (Agni-5 ballistic Missile) का सफल परीक्षण (यूजर ट्रायल) किया. यह परीक्षण रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने ओडिशा तट के पास ‘डॉ अब्दुल कलाम द्वीप’ पर एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर) पर मोबाइल लॉन्चर से से किया गया. ‘डॉ अब्दुल कलाम द्वीप’ को पहले व्हीलर आईलैंड के नाम से जाना जाता था. अग्नि-5 का सफल परीक्षण विश्वस्त न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता (credible minimum deterrence) हासिल करने की भारत की नीति के अनुरूप है.

अग्नि-5 मिसाइल: एक दृष्टि

  • अग्नि 5 मिसाइल एक परमाणु सक्षम अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (intercontinental ballistic missile – ICBM) है. यह अग्नि श्रृंखला की सबसे उन्नत मिसाइल है. इस श्रृंखला की अन्य मिसाइलों के उलट यह मार्ग और दिशा-निर्देशन, विस्फोटक ले जाने वाले शीर्ष हिस्से और इंजन के लिहाज से सबसे उन्नत है.
  • यह मिसाइल तीन चरणों में मार करने वाली मिसाइल है. इसमें ‘ठोस प्रणोदक’ इंधन प्रणाली का इस्तेमाल किया गया है जिस कारण यह सड़क, रेल और मोबाइल लॉन्चर दोनों से फायर किया जा सकता है.
  • यह 17 मीटर लंबी और 2 मीटर व्यास वाली मिसाइल है जिसका वजन करीब 50 हजार किलोग्राम है. यह 1500 किलोग्राम वजनी परमाणु सामग्री ले जाने में सक्षम है. इसकी मारक क्षमता 5000 हजार किलोमीटर तक है.
  • निर्माण: अग्नि-5 को देश में ही एडवांस्ड सिस्टम्स लैबोरेटरी (ASL) ने रक्षा अनुसंधान विकास प्रयोगशाला (DRDL) और अनुसंधान केंद्र इमारत (RCI) के सहयोग से विकसित किया है. मिसाइल को भारत डायनामिक्स लिमिटेड ने समेकित किया है. ASL मिसाइल विकसित करने वाली रक्षा शोध एवं विकास संगठन (DRDO) की प्रमुख प्रयोगशाला है.

DRDO ने ‘ABHYAS’ हाईस्पीड मिसाइल वेहिकल का सफल परीक्षण किया

डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) ने 22 अक्टूबर को ‘ABHYAS’ हाईस्पीड मिसाइल वेहिकल का सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण उड़ीसा के चांदीपुर में इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (ITR) से किया गया था. इस परीक्षण में वेहिकल की उड़ान को कई रडार और इलेक्ट्रो ऑप्टिक सिस्टम की मदद से ट्रैक किया गया.

ABHYAS ड्रोन: एक दृष्टि

  • ABHYAS, हाई स्पीड एक्पेंडेबल एरियल टारगेट (HEAT) है. यह एक प्रकार का ड्रोन है जो मिसाइल वेहिकल यान के रूप में कार्य करता है. इसका इस्तेमाल अनेक मिसाइल प्रणालियों का मूल्यांकन करने के लिए हवाई लक्ष्य के तौर पर किया जा सकता है.
  • ABHYAS को DRDO के वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान, बेंगलुरू ने डिजाइन और विकसित किया है. इसे गैस टर्बाइन इंजन से चलाया जाता है ताकि सबसोनिक गति पर लंबी उड़ान भरी जा सके. यह अपने नेविगेशन और रास्ता खोजने के लिए स्वदेशी रूप से विकसित MEMS आधारित नेविगेशन प्रणाली का उपयोग करता है.

रक्षा अनुसन्धान व विकास संगठन (DRDO) क्या है?

रक्षा अनुसन्धान व विकास संगठन (DRDO) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक संगठन है. यह सैन्य अनुसन्धान तथा विकास से सम्बंधित कार्य करता है. इसकी स्थापना 1958 में की गयी थी. इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है. DRDO का आदर्श वाक्य ‘बलस्य मूलं विज्ञानं’ है. वर्तमान में DRDO के चेयरमैन डॉ. जी. सतीश रेड्डी हैं. पूरे देश में DRDO की 52 प्रयोगशालाओं का नेटवर्क है.

प्रधानमंत्री ने सात नई रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों को राष्ट्र को समर्पित किया

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने 15 अक्तूबर को सात नई रक्षा कंपनी को राष्ट्र को समर्पित किया. इन 7 नई कंपनियों का गठन आयुध निर्माणी बोर्ड (Ordnance Factory Board – OFB) का विघटन कर किया गया है. OFB के अंतर्गत 41 निर्माण और 9 सहायक निकाय थे.

OFB को 01 अक्टूबर, 2021 से भंग कर दिया गया था. यह भारत में हथियारों और सैन्य उपकरणों का प्रमुख उत्पादक था. 1 अक्टूबर के बाद, इसकी 41 फैक्ट्रियों को 7 नवगठित रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (DPSUs) में स्थानांतरित कर दिया गया. OFB के निगमीकरण का उद्देश्य आयुध आपूर्ति में स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार लाना है.

ये सात नई सरकारी स्वामित्व वाली कॉर्पोरेट संस्थायें वाहन, गोला-बारूद और विस्फोटक, हथियार और उपकरण, ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स गियर, सैनिक आराम के आइटम, पैराशूट और सहायक उत्पाद का उत्पादन करेंगी.

सात नये सार्वजनिक उपक्रम

OFB की 41 फैक्ट्रियों को जिन सात नई कॉरपोरेट इकाइयों में बांटा गया है. ये इकाई हैं:

  1. गोला बारूद और विस्फोटक समूह (मुनिशन इंडिया लिमिटेड)
  2. वाहन समूह (बख्तरबंद वाहन निगम लिमिटेड)
  3. हथियार और उपकरण समूह (उन्नत हथियार और उपकरण इंडिया लिमिटेड)
  4. ट्रूप कम्फर्ट आइटम्स ग्रुप (ट्रूप कम्फर्ट्स लिमिटेड)
  5. सहायक समूह (यंत्र इंडिया लिमिटेड)
  6. ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स समूह (इंडिया ऑप्टेल लिमिटेड)
  7. पैराशूट समूह (ग्लाइडर्स इंडिया लिमिटेड)

आयुध निर्माणी बोर्ड क्या है?

भारत के आयुध निर्माणी बोर्ड (Ordnance Factory Board) भारतीय सशस्त्र बलों के लिए सैन्य उपकरणों और हथियारों का मुख्य उत्पादक और आपूर्तिकर्ता था. 240 साल पुराने इस द्वारा देश के 41 आयुध कारखानों को नियंत्रित किया जाता था. यह रक्षा मंत्रालय के अधीन एक अधीनस्थ कार्यालय के रूप में कार्य कर रहा था.

8 अक्टूबर 2021: भारतीय वायुसेना ने अपनी स्‍थापना की 89वीं वर्षगांठ मनाई

भारतीय वायुसेना 8 अक्टूबर को अपना स्थापना दिवस (Air Force Day) मनाती है. भारतीय वायुसेना का गठन आज के ही दिन 1932 में हुआ था. 8 अक्टूबर 2021 को इसने अपना 89वां स्थापना दिवस मनाया. इस अवसर पर गाजियाबाद स्थित वायु सेना केन्‍द्र हिंडन में विभिन्‍न विमानों द्वारा शानदार हवाई प्रदर्शन और परेड तथा अलंकरण समारोह आयोजित गया. वायु सेना अध्‍यक्ष एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी ने परेड का निरक्षण किया.

भारतीय वायुसेना: एक दृष्टि

  • 8 अक्टूबर 1932 को भारतीय वायुसेना अस्तित्व में आई थी.
  • आरम्भ में भारतीय वायुसेना का नाम रॉयल इंडियन एयर फोर्स था. 1950 में इसका नाम इंडियन एयर फोर्स (भारतीय वायु सेना) कर दिया गया.
  • आजादी से पहले वायु सेना पर थलसेना का नियंत्रण होता था. वायुसेना को थलसेना से अलग करने में महत्वपूर्ण भूमिका भारतीय वायुसेना के पहले चीफ एयर मार्शल सर थॉमस डब्ल्यू एल्महर्स्ट निभाई थी. वह 15 अगस्त 1947 से 22 फरवरी 1950 तक इस पद पर थे.
  • भारतीय वायुसेना का आदर्श वाक्य “नभः स्पर्शं दीप्तम” है. यह वाक्य गीता के 11वें अध्याय से लिया गया है.
  • वायुसेना के वर्तमान अध्‍यक्ष एयर चीफ मार्शल राकेश कुमार सिंह भदौरिया हैं.
  • भारतीय वायु सेना में पाँच कमानें हैं. पश्चिमी कमान, जिसका मुख्यालय दिल्ली में है, इलाहाबाद में केंद्रीय कमान, शिलांग में पूर्वी कमान, जोधपुर में दक्षिण-पश्चिमी कमान और तिरुवनंतपुरम में दक्षिणी कमान है.
  • भारतीय वायु सेना अमरीका, चीन और रूस के बाद दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना है.
  • देशभर में वायु सेना के 60 केन्‍द्र हैं. भारतीय वायु सेना का हिंडन केन्‍द्र एशिया में सबसे बड़ा और विश्‍व का आठवां सबसे बड़ा केन्‍द्र है.
  • वायुसेना का नीले रंग का है जिसके पहले एक चौथाई भाग में राष्‍ट्रीय ध्वज बना हुआ है. मध्य भाग में राष्‍ट्रीय ध्वज के तीनों रंगों (केसरिया, श्वेत और हरा) से बना एक वृत्त है. यह ध्वज 1951 में अपनाया गया.

आकाश मिसाइल के प्राइम संस्करण का सफल परीक्षण

भारत ने 27 सितम्बर को आकाश मिसाइल के प्राइम संस्करण का सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण ओडिशा के चांदीपुर एकीकृत परीक्षण केंद्र से किया गया. परीक्षण के दौरान मिसाइल ने मानव रहित डमी आकाशीय लक्ष्य को इंटरसेप्ट किया और सटीक निशाना साध कर उसे ध्वस्त कर दिया.

‘आकाश प्राइम’ मौजूदा आकाश मिसाइल सिस्टम के मुकाबले स्वदेशी उन्नत सटीकता वाले उपकरण से लैस है. इसके अलावा अधिक ऊंचाई पर कम तापमान में भी इसका प्रदर्शन भरोसेमंद है. मौजूदा आकाश मिसाइल के ग्राउंड सिस्टम में बदलाव कर इसका फ्लाइट टेस्ट किया गया है.

आकाश मिसाइल: एक दृष्टि

आकाश मिसाइल एक मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली वायु रक्षा प्रणाली है. इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने विकसित किया है. यह मिसाइल भारतीय सेना में पहले से शामिल है. इस मिसाइल का उत्पादन भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) द्वारा किया जाता है.

आकाश मिसाइल की मारक क्षमता 50-80 किमी तक है. यह मिसाइल दुश्मन के लड़ाकू जेट और बैलिस्टिक मिसाइलों जैसे हवाई लक्ष्यों को बेअसर कर सकती है.

C-295 परिवहन विमान की खरीदारी को मंजूरी, एयरबस-टाटा के सहयोग से निर्माण

रक्षा मंत्रालय ने वायुसेना के लिए सी-295 परिवहन विमान खरीदने के लिए स्पेन के एयरबस डिफेंस एंड स्पेस (Airbus Defence and Space, Spain)  के साथ एक समझौते को मंजूरी दी है. यह सौदा करीब 20,000 करोड़ रुपये का है जिसके तहत 56 सी-295 परिवहन विमान खरीदा जाना है.

मुख्य बिंदु

  • सौदे के तहत, अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के 48 महीनों के भीतर स्पेन के एयरबस डिफेंस एंड स्पेस द्वारा उड़ान भरने की स्थिति वाले 16 विमान उपलब्ध कराए जाएंगे.
  • अन्य 40 विमानों को भारत में ही 10 वर्षों के भीतर तैयार किया जाएगा. इसके लिए एयरबस डिफेंस ने टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड (TASL) के साथ पार्टनरशिप की है. इस डील की खास बात ये है कि भारत में पहली बार किसी प्राइवेट कंपनी की तरफ से मिलिट्री एयरक्राफ्ट का निर्माण किया जाएगा.
  • C-295 MW विमान 5-10 टन क्षमता वाला परिवहन विमान है. यह अपनी तरह की पहली परियोजना है जिसमें एक निजी कंपनी द्वारा भारत में सैन्य विमान का निर्माण किया जाएगा.
  • अभी इंडियन एयरफोर्स ट्रांसपोर्ट के लिए Avro-748 विमान का इस्तेमाल करती है. एयरबस से खरीदे गए विमान इसको रिप्लेस करेगा.

रक्षा मंत्रालय ने 118 अर्जुन Mk-1A मुख्य युद्धक टैंक को खरीदने की मंजूरी दी

भारतीय रक्षा मंत्रालय ने  अर्जुन Mk-1A मुख्य युद्धक टैंक के 118 यूनिट को खरीदने की मंजूरी दी. 7,523 करोड़ रुपये की लागत से इसका निर्माण चेन्नई स्थित हैवी व्हीकल फैक्ट्री (Heavy Vehicles Factory) में किया जाएगा.

अर्जुन टैंक पूरी तरह से भारत में निर्मित है. इस टैंक को DRDO की अन्य प्रयोगशालाओं के साथ कॉम्बैट व्हीकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (CVRDE) द्वारा डिजाइन और विकसित किया गया है.

अर्जुन Mk-1A

  • यह टैंक अर्जुन Mk -1 का ही एक अपग्रेडेड वर्जन है. यह दिन और रात की परिस्थितियों में काम कर सकता है और स्थिर और गतिशील दोनों तरीकों से लक्ष्य पर निशाना साध सकता है.
  • इस टैंक में अत्याधुनिक ट्रांसमिशन सिस्टम लगाया गया है. जिससे टैंक के अंदर बैठा गनर सीधे कंट्रोल सेंटर से जुड़ सकता है. इसमें स्वदेशी 120 MM कैलिबर की गन भी लगी हुई है.
  • इस टैंक के बाहरी हिस्से में रिएक्टिव ऑर्मर लगे हुए हैं. जो दुश्मन के किसी भी मिसाइल या रॉकेट के प्रभाव को अपने ऊपर झेलकर कम कर सकते हैं.
  • इस टैंक में रसायनिक हमलों से बचने के लिए भी कई सेंसर लगाए गए हैं. जिससे अंदर बैठे क्रू मेंबर बाहरी हमले से सुरक्षित रह सकते हैं.

भारत का पहला परमाणु मिसाइल ट्रैकिंग जहाज INS ध्रुव को नौसेना में शामिल किया गया

भारत के पहले उपग्रह और बैलिस्टिक (परमाणु) मिसाइल ट्रैकिंग जहाज ‘ध्रुव’ को 10 सितम्बर को नौसेना में शामिल कर लिया गया. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की उपस्थिति में विशाखापत्तनम में इस जहाज को शामिल किया गया. 10,000 टन वजनी इस जहाज में लंबी दूरी तक परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलों को ट्रैक करने की क्षमता है.

INS ध्रुव: एक दृष्टि

INS ध्रुव का विकास रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) के सहयोग से हिंदुस्तान शिपयार्ड ने किया है. निर्माण की शुरुआत के दौरान इस जहाज का नाम वीसी-11184 दिया गया था. इसकी लंबाई 175 मीटर, बीम 22 मीटर, ड्राफ्ट छह मीटर है और यह 21 समुद्री मील की गति प्राप्त कर सकता है.

  • इस तरह के जहाज का संचालन करने वाला भारत छठा देश बन गया है. इससे पहले ऐसे जहाजों का संचालन केवल फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और चीन द्वारा किया जाता था.
  • यह दुश्मन पनडुब्बियों की विस्तृत जानकारी का पता लगाने के लिए समुद्र तल का नक्शा बनाने की क्षमता रखता है. यह अत्याधुनिक सक्रिय स्कैन एरे रडार या एईएसए से लैस है, जो भारत पर नजर रखने वाले जासूसी उपग्रहों की निगरानी के साथ-साथ पूरे क्षेत्र में मिसाइल परीक्षणों की निगरानी के लिए विभिन्न स्पेक्ट्रम को स्कैन करने की क्षमता रखता है.
  • आईएनएस ध्रुव भारतीय नौसेना को तीनों आयामों- सतह के नीचे, सतह और हवा में बेहतर सैन्य संचालन की योजना बनाने में मदद करेगा
  • यह भारतीय शहरों और सैन्य प्रतिष्ठानों की ओर जाने वाली दुश्मनों की मिसाइलों के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य करेगा. यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री जानकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन होगा.
  • यह मिसाइल को ट्रैक करने के साथ-साथ पृथ्वी की निचली कक्षा में सैटेलाइटों की निगरानी भी करेगा. लंबी दूरी तक परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलों को ट्रैक करने की क्षमता होने से भारत की एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता बढ़ेगी.
  • जमीनी जंग के बीच चीन और पाकिस्तान समुद्री रास्ते का इस्तेमाल करते हुए भारत पर नौसैनिक शिप से बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकते हैं. ऐसे में भारत का यह ट्रैकिंग और सर्विलांस शिप भारत की जमीनी सीमा को किसी मिसाइल या एयरक्राफ्ट के हमले से सुरक्षित करेगा.

भारतीय वायुसेना में MR-SAM वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली को शामिल किया गया

MR-SAM (Medium-Range Surface-to-Air Missile) वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली को 10 सितम्बर को भारतीय वायुसेना में शामिल कर लिया गया. रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (DRDO) ने राजस्थान के जैसलमेर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में भारतीय वायु सेना की 2204 स्‍कवॉडर्न को यह वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली सौंपी.

MR-SAM वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली: एक दृष्टि

MR-SAM सतह से हवा में मार करने वाली वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली है, जिसकी लंबाई 4.5 मीटर है. यह खराब मौसम में भी 70 किलोमीटर की रेंज में कई लक्ष्यों को एक साथ भेदने में पूरी तरह से सक्षम है. इसमें एक कमांड कंट्रोल सिस्टम, ट्रैकिंग रडार, मिसाइल और मोबाइल लॉन्चर सिस्टम को शामिल किया गया है.

यह रक्षा प्रणाली विरोधी लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टरों, यूएवी, निर्देशित और बिना निर्देशित युद्ध सामग्री, सब-सोनिक और सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों जैसे हवाई खतरों के खिलाफ हवाई सुरक्षा प्रदान करता है. यह अत्यंत द्रुत गति से भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों की रक्षा करने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है.

भारत और इजरायल द्वारा संयुक्त रूप से विकसित

MR-SAM को भारत और इजरायल की कंपनियों ने मिल कर बनाया है. इस प्रणाली के विकास के लिए इजराइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के बीच एक समझौते पर 2009 में हस्ताक्षर किए गए थे. इसे IAI और DRDO द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है. इसका प्रयोग देश की तीनों सेनाएं कर सकेंगी.