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दिल्ली में डिजिटल जनजातीय विश्वविद्यालय ‘आदि संस्कृति’ का शुभारंभ

  • जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने 10 सितम्बर को नई दिल्ली में डिजिटल जनजातीय विश्वविद्यालय ‘आदि संस्कृति’ का शुभारंभ किया. यह दुनिया का पहला डिजिटल जनजातीय विश्वविद्यालय है.
  • यह मंच न केवल सांस्कृतिक ज्ञान का भंडार होगा, बल्कि यह आदिवासी कारीगरों के लिए आजीविका के नए रास्ते भी खोलेगा.
  • इसके तहत एक ऑनलाइन बाज़ार भी शुरू किया गया है, जो देश भर के आदिवासी कारीगरों द्वारा बनाए गए उत्पादों के लिए एक वैश्विक डिजिटल (ऑनलाइन) बाज़ार उपलब्ध कराएगा.

आदि संस्कृति प्लेटफॉर्म तीन मुख्य घटकों में विभाजित

  1. आदि विश्वविद्यालय: यह एक डिजिटल जनजातीय कला अकादमी है, जहाँ आदिवासी नृत्य शैलियों, चित्रकला, विभिन्न शिल्पों, संगीत और लोककथाओं पर 45 विशेष पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए गए हैं.
  2. आदि संपदा: यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक कोष है. इसमें अब तक चित्रकला, नृत्य, पारंपरिक परिधान और वस्त्र, कलाकृतियों और आजीविका से जुड़े विषयों पर 5,000 से अधिक क्यूरेटेड दस्तावेज़ शामिल किए गए हैं.
  3. आदि हाट: यह एक डिजिटल बाज़ार है, जिसका उद्देश्य आदिवासी कारीगरों को उनके उत्पादों के लिए एक सीधा ऑनलाइन बाज़ार प्रदान करना है.

भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा रत्नों को 127 साल बाद भारत लाया गया

  • भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष (Sacred Piprahwa Relics) रत्नों को 127 साल बाद भारत लाया गया है. ये अवशेष 1898 में खोजे गए थे, लेकिन औपनिवेशिक काल के दौरान भारत से बाहर चले गए थे.
  • ये रत्न न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के बौद्ध समुदाय के लिए अत्यधिक श्रद्धा और ऐतिहासिक महत्व रखते हैं.‌
  • पिपरहवा रत्नों की वापसी भारत की छवि को एक वैश्विक संरक्षक और बौद्ध मूल्यों जैसे शांति, करुणा व समावेशिता के संवाहक के रूप में और मजबूत करती है.

क्या हैं पिपरहवा अवशेष (Piprahwa Relics)?

  • पिपरहवा अवशेष वो पवित्र वस्तुएं हैं जो वर्ष 1898 में ब्रिटिश अधिकारी विलियम क्लॉक्सटन पेप्पे द्वारा उत्तर प्रदेश के पिपरहवा स्तूप की खुदाई के दौरान प्राप्त हुए थे.
  • इनमें हड्डियों के टुकड़े, क्रिस्टल के पात्र, सोने के आभूषण और अन्य चढ़ावे शामिल थे, जो बौद्ध परंपरा के अनुसार स्तूप में रखे गए थे.
  • ये अवशेष शाक्य वंश द्वारा भगवान बुद्ध के लिए समर्पित किए गए थे जो कि बुद्ध का ही परिवार था.

कैसे हुई वापसी?

  • वर्ष 1899 में अधिकांश पिपरहवा अवशेष कोलकाता के इंडियन म्यूजियम को सौंप दिए गए थे, हालांकि कुछ हिस्से ब्रिटिश अधिकारी पेप्पे के परिवार के पास निजी रूप से रह गए थे.
  • 2025 में ये अवशेष अचानक हांगकांग में सोथबी (Sotheby’s) नीलामी में सामने आए, जिसे देख कर भारत सरकार सतर्क हुई. चूंकि ये अवशेष भारत के कानून के अनुसार प्राचीन धरोहर हैं, इन्हें बेचना या भारत से बाहर ले जाना गैरकानूनी है.
  • भारत इन अवशेषों को ‘AA’ पुरावशेषों के रूप में वर्गीकृत करता है, जिससे उन्हें राष्ट्रीय कानून के तहत उच्चतम स्तर की कानूनी सुरक्षा प्राप्त होती है.
  • भारत के संस्कृति मंत्रालय ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए तुरंत हस्तक्षेप किया. कूटनीतिक और कानूनी प्रयासों से भारत ने नीलामी को रुकवाया और अवशेषों को सुरक्षित वापस लाया गया.

मिजोरम के लुंगफुन रोपुई को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया

  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने मिजोरम के लुंगफुन रोपुई (Lungphun Ropui) को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय महत्व का स्मारक का दर्जा दिया है.
  • वांगछिया में स्थित कवछुआ रोपुई के बाद यह राज्य का दूसरा महापाषाण (मेगालिथ) युग का स्थल है जिसे ASI ने राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में घोषित किया गया है.

लुंगफुन रोपुई स्मारक: एक दृष्टि

  • लुंगफुन रोपुई स्मारक, मिजोरम के चंपई ज़िले के लियानपुई नामक गाँव में स्थित है एक महापाषाण स्थल (बड़े पत्थरों से बने प्राचीन स्मारक या संरचनाएँ) है.
  • यह स्थल अपनी प्राचीन नक्काशीदार पत्थर की संरचनाओं (मेनहिर) के लिए जाना जाता है, जिनका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक माना जाता है.
  • यहाँ पायी जाने वाली मेनहिर में मानव आकृतियों, जानवरों, पक्षियों, छिपकलियों और अन्य सांस्कृतिक रूपांकनों की विस्तृत नक्काशी है.
  • यह इस क्षेत्र में रहने वाली जनजातियों की सांस्कृतिक प्रथाओं को दर्शाती है.
  • इनमें से सबसे बड़े स्मारक पत्थर की ऊँचाई 1.87 मीटर और चौड़ाई 1.37 मीटर है.

प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958

  • लुंगफुन रोपुई को प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया है.
  • यह अधिनियम भारत में प्राचीन स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और अवशेषों के संरक्षण और विनियमन के लिए बनाया गया एक कानून है.
  • यह अधिनियम प्राचीन स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और अवशेषों को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने का अधिकार देता है, यदि वे ऐतिहासिक, पुरातात्विक या स्थापत्य महत्व के हैं.
  • यह अधिनियम स्मारकों और स्थलों को नष्ट करने, क्षति पहुंचाने, या उनका दुरुपयोग करने से रोकता है, और उल्लंघन करने वालों के लिए दंड का प्रावधान करता है.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)

  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक प्रमुख संगठन है. यह देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिए जिम्मेदार है.
  • ASI का मुख्य कार्य राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और अवशेषों का रखरखाव और संरक्षण करना है. इसकी स्थापना 1861 में हुई थी.

राम चरित मानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन को यूनेस्को के अनुस्मरण रजिस्टर में शामिल किया गया

भारत के रामचरितमानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन को एशिया प्रशांत क्षेत्र के ‘यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर’ (UNESCO’s Memory of the World Asia-Pacific Regional Register) में शामिल किया गया है.

मुख्य बिन्दु

  • रामचरितमानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन को शामिल करने का निर्णय 7 और 8 मई को मंगोलिया की राजधानी, उलानबटार में आयोजित मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमेटी फॉर एशिया एंड द पैसिफिक (MOWCAP) की 10वीं आम बैठक में लिया गया था.
  • इस बैठक में भारत की ओर से इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केन्‍द्र (IGNCA) ने हिस्सा लिया था. इन तीन नामांकनों को समर्थन देकर IGNCA ने यूनेस्को के विश्‍व एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय अनुस्मरण रजिस्टर में इन साहित्यिक कृतियों के स्‍थान को सु‍निश्चित किया.
  • सहृदयालोक-लोकन, पंचतंत्र और रामचरितमानस की रचना क्रमशः पंडित आचार्य आनंदवर्धन, विष्णु शर्मा और गोस्वामी तुलसीदास ने की थी.

अयोध्या में नवनिर्मित मंदिर में राम लला की भव्य रूप में प्राण प्रतिष्ठा

अयोध्या में नवनिर्मित मंदिर में 22 जनवरी को राम लला की भव्य रूप में प्राण प्रतिष्ठा हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान संपन्न किया.

मुख्य बिन्दु

  • उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में हिस्सा लिया.
  • इस अवसर पर देश के सभी प्रमुख आध्यात्मिक और धार्मिक संप्रदायों के प्रतिनिधि उपस्थित थे. विभ‍िन्‍न जनजातीय समुदाय के प्रतिनिधियों सहित समाज के सभी वर्गों के लोगों ने भी भागीदारी की.
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम लला की प्राण प्रतिष्‍ठा के बाद मंदिर परिसर में जटायु की प्रतिमा का अनावरण किया. कुबेर टीला में पुनरोद्धार किए गए शिव मंदिर में पूजा-अर्चना की.
  • राम लला की भव्य रूप में प्राण प्रतिष्ठा पौष शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत 2080 अभिजीत मुहूर्त और समय दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर हुई.
  • प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम काशी के गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ के निर्देशन में और प्रसिद्ध विद्वान लक्ष्मीकांत दीक्षित के द्वारा संपन्न कराया गया.

संस्कृति मंत्रालय ने मेरा गांव मेरी धरोहर पहल की शुरुआत की

संस्कृति मंत्रालय ने देश में मेरा गांव मेरी धरोहर (Mera Gaon Meri Dharohar) पहल शुरू की है. इस पहल की आज शुरुआत गृह मंत्री अमित शाह ने 27 जुलाई को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के समन्वय से राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन के तहत किया था. यह अनूठी पहल आजादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में किया गया है.

  • यह राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन के तहत संस्कृति मंत्रालय की राष्ट्रीय पहल है. गृह मंत्री शाह ने कुतुब मीनार परिसर में भव्‍य सांस्‍कृति मानचित्रण कार्यक्रम के दौरान आधिकारिक तौर पर वर्चुअल प्लेटफॉर्म की शुरूआत की थी.
  • परियोजना का मुख्य उद्देश्य 29 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में भारत के छह लाख पचास हज़ार गांवों का सांस्कृतिक मानचित्रण करना है.
  • मेरा गांव, मेरी धरोहर के माध्‍यम से लोगों को भारत के विविध और जीवंत सांस्‍कृतिक विरासत को जानने का अवसर मिलेगा.
  • इस पोर्टल के माध्‍यम से लोगों को प्रत्‍येक गांवों के बारे में आवश्यक जानकारी उपलब्‍ध हो सकेगी. जिसमें गांव की भौगोलिक स्थिति, पारंपरिक पोशाकों का विवरण, कला और शिल्प, मंदिर, मेले और वहां के त्यौहार शामिल है.

देशभर में मेरी माटी मेरा देश कार्यक्रम आयोजित की जाएगी

सरकार ‘मेरी माटी मेरा देश’ (meri mati mera desh) कार्यक्रम 9 अगस्‍त से 15 अगस्‍त के दौरान देशभर में आयोजित करेगी. लगभग 7.5 हजार विकास खण्‍डों से चयनित युवा दिल्‍ली के कर्तव्‍य पथ पर जुटेंगे. इस भव्‍य समारोह में युवा अपने राज्‍यों के ग्राम पंचायतों या सभी गांवों की मिट्टी अपने साथ लेकर आयेंगे.

यह अभियान आजादी का अमृत महोत्‍सव साबरमती से दाण्‍डी मार्च के साथ 12 मार्च 2021 को शुरु हुआ था. अब मेरी माटी मेरा देश अभियान की परिकल्‍पना आजादी का अमृत महोत्‍सव कार्यक्रम के समापन के रूप में की गई है.

वाराणसी में काशी- तमिल संगमम आयोजित किया गया

वाराणसी में 17 नवंबर से 16 दिसम्बर तक काशी- तमिल संगमम आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम का औपचारिक उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने किया था. गृह मंत्री अमित शाह इसके समापन समारोह में मुख्य अतिथि थे.

मुख्य बिन्दु

  • काशी- तमिल संगमम  का उद्देश्य देश के दो महत्वपूर्ण शिक्षण पीठों – तमिलनाडु और काशी के बीच सदियों पुराने सम्‍पर्कों को नये सिरे से स्थापित करना था.
  • इस एक माह के संगमम में तमिलनाडु से विभिन्न वर्गों के करीब ढाई हजार लोगों ने काशी का दौरा किया और यहां की कला-संस्कृति, लोक-परंपराओं, रहन-सहन, भाषा तथा खानपान के बारे में नजदीक से जाना. वहीं, स्थानीय लोगों को भी तमिल संस्कृति को और निकट से जानने का अवसर मिला.
  • काशी तमिल संगमम के तहत वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में रोजाना सांस्कृतिक संध्या का आयोजन हुआ जिसमें तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के कलाकारों ने अपनी कला-संस्कृति, संगीत और लोक नृत्यों का प्रदर्शन किया.
  • खेल, फिल्म, हथकरघा और हस्तशिल्प जैसी अन्य विधाओं से जुड़ी गतिविधियां भी आयोजित की गयीं, जिसमें तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया.
  • काशी तमिल संगमम ने तमिलनाडु और काशी के बीच सदियों पुराने संबंधों को पुर्नजीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.

नई दिल्ली में प्रधानमंत्री संग्रहालय का उद्घाटन

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री संग्रहालय (Pradhan Mantri Sangrahalaya) का उद्घाटन किया है. यह संग्रहालय दिल्‍ली के तीन मूर्ति भवन परिसर में है. संग्रहालय का उद्घाटन अम्बेडकर जयंती पर किया गया. प्रधानमंत्री मोदी इस संग्रहालय का टिकट खरीदने वाले पहले व्यक्ति बने.

  • इस संग्रहालय में देश के 14 पूर्व प्रधानमंत्रियों का जीवन और राष्ट्रनिर्माण में उनका योगदान दर्शाया गया है. स्‍वतंत्रता संग्राम के प्रदर्शन से शुरू होकर सविंधान के निर्माण तक यह संग्रहालय इस गाथा को प्रस्‍तुत करता है कि कैसे हमारे प्रधानमंत्रियों ने विभिन्‍न चुनौतियों के बावजूद देश को नई राह दी और इस सर्वांगिण प्रवृति को सुनिश्चित किया.
  • उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि यह संग्रहालय ऐसे समय में बना है, जब देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. ये म्यूजियम एक भव्य प्रेरणा बनकर आया है. इन 75 वर्षों में देश ने अनेक गौरवमय पल देखे हैं. इतिहास के जरोखे में इन पलों का जो महत्व है वह अतुलनीय है. ऐसे बहुत से पलों की झलक प्रधानमंत्री संग्रहालय में भी देखने को मिलेगी.
  • इसका लोगो- हाथों में राष्‍ट्र और लोकतंत्र का प्रतीक धर्मचक्र थामे देशवासियों का प्रतिनिधित्‍व करता है.

कर्नाटक के होयसला मंदिर, विश्व विरासत की सूची के लिए भारत का नामांकन

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने कर्नाटक के बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा के होयसला मंदिरों को वर्ष 2022-2023 की विश्व विरासत सूची के लिए भारत के नामांकन के तौर पर शामिल किया गया है.

होयसला के पवित्र स्मारक 15 अप्रैल, 2014 से यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल हैं और मानव रचनात्मक प्रतिभा के उच्चतम बिंदुओं में से एक का प्रतिनिधित्व करते हैं.

यूनेस्को द्वरा साइट के मूल्यांकन किये जाने के बाद इन मंदिरों को विश्व विरासत की सूची में शामिल किये जाने पर विचार किया जायेगा.

यूनेस्‍को ने तेलंगाना का काकतीय रुद्रेश्‍वर मंदिर को विश्‍व धरोहर में शामिल किया

यूनेस्‍को (UNESCO) ने तेलंगाना के काकतीय रुद्रेश्‍वर मंदिर को विश्‍व स्थल की मान्यता दी है. 800 साल पुराने इस मंदिर को रामप्‍पा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. 25 जुलाई, 2021 को यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के 44वें बैठक में यह निर्णय लिया गया. वहीं इस मंदिर को विश्व धरोहर में शामिल करने के लिए सरकार द्वारा वर्ष 2019 के लिए यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में एकमात्र नामांकन के लिए प्रस्तावित किया गया था.

यूनेस्को की बैठक में आस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ के विश्व धरोहर दर्जे को बरकरार रखा गया है. यूनेस्को ने रीफ को विश्व धरोहर से बाहर करने का प्रस्ताव दिया था, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण उसे काफी नुकसान हुआ है. आस्ट्रेलिया ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि इसे वर्ष 2023 तक टाल दिया जाए. ग्रेट बैरियर रीफ उत्तरपूर्वी आस्ट्रेलिया तट पर स्थित दुनिया का सबसे बड़ा बड़े प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र है.

काकतीय रुद्रेश्‍वर मंदिर: एक दृष्टि

  • इस मंदिर का निर्माण काकतिया वंश के महाराजा गणपति देव के आदेश पर सेनापति रेचारला रुद्र ने करवाया था.
  • मार्को पोलो ने काकतीय वंश के दौरान बने इस मंदिर को तमाम मंदिरों में सबसे चमकता तारा कहा था.
  • भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में मुख्य रूप से रामलिंगेश्वर स्वामी की पूजा होती है. इस मंदिर में शिव, श्री हरि और सूर्य देवता की प्रतिमाएं स्‍थापित हैं.
  • इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ था. मंदिर को शिल्पकार रामप्पा का नाम दिया गया, जिसने 40 वर्षों के अथक प्रयास के बाद इसका निर्माण किया था.

यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

1983 में पहली बार भारत के चार ऐतिहासिक स्थलों को यूनेस्को ने ‘विश्व धरोहर स्थल’ में शामिल किया था. ये चार स्थल थे – ताज महल, आगरा किला, अजंता और एलोरा गुफाएं. वर्तमान में, भारत की कुल 39 साइटें विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं, जिनमें से 28 को सांस्कृतिक श्रेणी में, 7 प्राकृतिक और मिश्रित श्रेणी में 1 स्थान दिया गया है. भारत दुनिया की धरोहरों में छठे स्थान पर है.

मध्यप्रदेश के ग्वालियर और ओरछा यूनेस्को की विश्व धरोहर शहरों की सूची में शामिल

मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक किला शहर ग्वालियर और ओरछा को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की विश्व धरोहर शहरों की सूची में शामिल किया गया है.

यूनेस्को ने अपने विश्व धरोहर शहर कार्यक्रम (अर्बन लैंडस्केप सिटी प्रोग्राम) के तहत इन दोनों शहरों को विश्व धरोहर शहरों की सूची में शामिल किया है. विश्व धरोहर शहरों की सूची में आने के बाद यूनेस्को, ग्वालियर और ओरछा के ऐतिहासिक स्थलों को बेहतर बनाने तथा उसकी खूबसूरती निखारने के लिए पर्यटन विभाग के साथ मिलकर मास्टर प्लान तैयार करेगा.

इस परियोजना के तहत यूनेस्को इन ऐतिहासिक शहरों के लिए ऐतिहासिक नगरीय परिदृय (HUL) सिफारिशों पर आधारित शहरी विकास के सबसे बेहतर तरीकों और साधनों का पता लगाएगा.

ओरछा
ओरछा का अर्थ है ‘छिपे हुए महल’ है. मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित ओरछा अपने मंदिरों और महलों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. ओरछा पूर्ववर्ती बुंदेला राजवंश की 16वीं शताब्दी की राजधानी है. ओरछा, राज महल, जहांगीर महल, रामराजा मंदिर, राय प्रवीन महल, लक्ष्मीनारायण मंदिर एवं कई अन्य प्रसिद्ध मंदिरों और महलों के लिए विख्यात है.

ग्वालियर

ग्वालियर भी मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक नगर और प्रमुख शहर है. 9वीं शताब्दी में स्थापित ग्वालियर गुर्जर प्रतिहार राजवंश, तोमर, बघेल, कछवाहों तथा सिंधिया राजवंश की राजधानी रहा है. विश्व धरोहर शहरों की सूची में आने के बाद ग्वालियर के मानसिंह पैलेस, गूजरी महल और सहस्रबाहु मंदिर के अलावा अन्य धरोहरों का रासायनिक रूप से परिशोधन किया जाएगा. इससे दीवारों पर उकेरी गई कला स्पष्ट दिखेगी और उसकी चमक भी बढ़ेगी.