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भारत के प्रस्तावित सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ के लिए सपोर्ट सेल ‘AL1SC’ की स्थापना की गयी

भारत के प्रस्तावित पहला सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ (Aditya L-1 Mission) से प्राप्त होने वाले आंकड़ों को एक वेब इंटरफेस पर जमा करने के लिए एक कम्युनिटी सर्विस सेंटर की स्थापना की गई है. इस सेंटर का नाम ‘आदित्य L1 सपोर्ट सेल’ (AL1SC) दिया गया है. इसकी स्थापना उत्तराखंड स्थित हल्द्वानी में किया गया है.

आदित्य L1 सपोर्ट सेल (AL1SC): मुख्य बिंदु

  • इस सेंटर को भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस (ARIES) ने मिलकर बनाया है.
  • सपोर्ट सेल ‘AL1SC’ की स्थापना का उद्देश्य भारत के प्रस्तावित पहले सौर अंतरिक्ष मिशन आदित्य L1 (Aditya-L1) से मिलने वाले सभी वैज्ञानिक विवरणों और आंकड़ों का अधिकतम विश्लेषण करना है. इस केंद्र का उपयोग अतिथि पर्यवेक्षकों (गेस्ट ऑब्जर्वर) द्वारा किया जा सकेगा. यह विश्व के प्रत्येक इच्छुक व्यक्ति को आंकड़ों का वैज्ञानिक विश्लेषण करने की छूट देगा.
  • AL1SC की स्थापना ARIES के उत्तराखंड स्थित हल्द्वानी परिसर में किया गया है, जो इसरो के साथ संयुक्त रूप काम करेगा.
  • यह केंद्र दुनिया की अन्य अंतरिक्ष वेधशालाओं से भी जुड़ेगा. सौर मिशन से जुड़े आंकड़े उपलब्ध कराएगा, जो आदित्य L1 से प्राप्त होने वाले विवरण में मदद कर सकते हैं.

भारत का प्रस्तावित सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’

  • ‘आदित्य एल-1’ (Aditya-L1) भारत का प्रस्तावित पहला सौर मिशन है. इसरो (ISRO) ने अगले वर्ष (2022 में) इस मिशन को प्रक्षेपित करने की योजना बनायी है.
  • इसरो द्वारा आदित्य L-1 को 400 किलो-वर्ग के उपग्रह के रूप में वर्गीकृत किया है जिसे ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-XL’ (PSLV- XL) से प्रक्षेपित (लॉन्च) किया जाएगा.
  • आदित्य L-1 को सूर्य एवं पृथ्वी के बीच स्थित एल-1 लग्रांज/ लेग्रांजी बिंदु (Lagrangian point) के निकट स्थापित किया जाएगा. आदित्य L-1 का उद्देश्य ‘सन-अर्थ लैग्रैनियन प्वाइंट 1’ (L-1) की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है.
  • यह मिशन सूर्य का नज़दीक से निरीक्षण करेगा और इसके वातावरण तथा चुंबकीय क्षेत्र के बारे में अध्ययन करेगा.
    आदित्य L-1 को सौर प्रभामंडल के अध्ययन हेतु बनाया गया है. सूर्य की बाहरी परतों, जोकि डिस्क (फोटोस्फियर) के ऊपर हजारों किमी तक फैला है, को प्रभामंडल कहा जाता है.
  • प्रभामंडल का तापमान मिलियन डिग्री केल्विन से भी अधिक है. सौर भौतिकी में अब तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि प्रभामंडल का तापमान इतना अधिक क्यों होता है.
  • आदित्य L-1 देश का पहला सौर कॅरोनोग्राफ उपग्रह होगा. यह उपग्रह सौर कॅरोना के अत्यधिक गर्म होने, सौर हवाओं की गति बढ़ने तथा कॅरोनल मास इंजेक्शंस (CMES) से जुड़ी भौतिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करेगा.

लग्रांज/लेग्रांजी बिंदु क्या होता है?

सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, वह लग्रांज बिंदु (Lagrangian point) कहलाता है.

लग्रांज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल समान रूप से लगने से दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है. इस स्थिति में वस्तु को ना तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा, ना पृथ्वी अपनी ओर खींच सकेगी और वस्तु अधर में लटकी रहेगी.

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO): एक दृष्टि

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है. इसकी स्थापना वर्ष 1969 में की गई थी. इस संस्थान का प्रमुख काम उपग्रहों का निर्माण करना और अंतरिक्ष उपकरणों के विकास में सहायता प्रदान करना है.

आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस (ARIES)

‘आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस’ (ARIES), भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संचालित एक स्वायत्त संस्थान है. यह संस्थान उत्तराखंड की मनोरा पीक (नैनीताल) में स्थित है. इसकी स्थापना 20 अप्रैल, 1954 को की गई थी. इस संस्थान के कार्यक्षेत्र खगोल विज्ञान, सौर भौतिकी और वायुमंडलीय विज्ञान इत्यादि हैं.

ISRO ने साउंडिंग रॉकेट RH-560 का परीक्षण किया, हवाओं के बदलाव से जुड़े अध्ययन में मदद करेगा

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 13 मार्च को अपने साउंडिंग रॉकेट RH-560 का परीक्षण किया था. यह परीक्षण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा परीक्षण केंद्र से किया गया था.

इसरो के साउंडिंग रॉकेट की मदद से इसरो वायुमंडल में मौजूद तटस्थ हवाओं में ऊंचाई पर होने वाले बदलावों और प्लाज्मा की गतिशीलता का अध्यन किया जाएगा. यह रॉकेट हवाओं में व्यवहारिक बदलाव और प्लाज्मा गतिशीलता पर अध्यन की दिशा में नए आयाम स्थापित करेगा.

ISRO ने PSLV-C51 राकेट से ब्राजील के अमे‍जोनिया-1 सहित 19 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 28 फरवरी को ब्राजील के अमे‍जोनिया-1 सहित 19 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया. यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV-C51 अन्तरिक्ष यान के माध्यम से किया गया. यह ISRO की वाणिज्यिक संस्था ‘न्‍यू स्‍पेस इंडिया लिमिटेड’ का पहला मिशन था.

इस प्रक्षेपण में PSLV-C51 द्वारा ब्राजील के अमेजोनिया-1 उपग्रह के साथ 18 अन्य उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा गया. ISRO ने इस बार सैटेलाइट के अलावा भगवद गीता की एक इलेक्ट्रॉनिक कॉपी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फोटो भी अंतरिक्ष में भेजी है.

मुख्य तथ्यों पर एक दृष्टि

  • PSLV-C51, PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) का 53वां और इस वर्ष का पहला मिशन था. इस अंतरिक्ष यान के शीर्ष पैनल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर उकेरी गई है.
  • PSLV-C51 रॉकेट ने ब्राजील के 637 किलोग्राम भार के एमेजोनिया-1 उपग्रह को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित किया. बाद में एक घंटे से अधिक समय के अंतराल के बाद इसने शेष 18 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया.
  • अमेजोनिया-1, ब्राजील के नेशनल इंस्‍टीट्यूट फॉर स्‍पेस रिसर्च का प्रकाशीय पृथ्‍वी पर्यवेक्षण उपग्रह है. यह अमेजन क्षेत्र में वनों की कटाई की निगरानी और ब्राजील के लिए विविध कृषि के विश्लेषण के लिए उपयोगकर्ताओं को दूरस्थ संवेदी आंकड़े मुहैया कराएगा. साथ ही मौजूदा ढांचे को और मजबूत बनाएगा.
  • अमेजोनिया-1 के साथ 18 अन्य उपग्रह को भी सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित किया गया है. इन उपग्रहों में चेन्नई की स्पेस किड्ज़ इंडिया (SKI) का उपग्रह भी शामिल है. SKI ने एक एसडी कार्ड में भगवद्गीता की इलेक्ट्रॉनिक प्रति को अंतरिक्ष भेजा है.

ISRO ने संचार उपग्रह CMS-01 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 17 दिसम्बर को भारत के नये संचार उपग्रह CMS-01 का प्रक्षेपण किया. यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्‍द्र से किया गया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का यह अपने देश में 77वां प्रक्षेपण था.

प्रक्षेपण PSLV C-50 अन्तरिक्ष यान से

CMS-01 का प्रक्षेपण PSLV C-50 अन्तरिक्ष यान से किया गया. PSLV का ये 52वां अभियान था. इस अभियान में PSLV C-50 ने CMS-01 उपग्रह को भू-समतुल्‍य अंतरण कक्षा में प्रक्षेपित किया. यह अभियान केवल 21 मिनट में पूरा हो गया.

CMS-01 उपग्रह: एक दृष्टि

CMS-01 संचार उपग्रह (Communication Satellite) है. यह उपग्रह 2011 में प्रक्षेपित की गई GSAT-2 संचार उपग्रह का जगह लेगा. इसका उपयोगी जीवनकाल सात वर्ष का होगा. इसकी मदद से टीवी चैनलों की पिक्चर गुणवत्ता सुधरने के साथ ही आपदा प्रबंधन के दौरान मदद मिलेगी.

CMS-01 उपग्रह में ट्रांसपोंडर लगे हैं, जिनसे Extended-C Band का इस्‍तेमाल करते हुए सेवाएं प्रदान की जा सकेंगी. इस उपग्रह के दायरे में भारत की मुख्य भूमि, अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप द्वीप समूह होंगे.

ISRO ने GSLV-F 10 जियो इमेजिंग सैटेलाइट, GISAT-1 के प्रक्षेपण की घोषणा की

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 5 मार्च को जियो इमेजिंग सैटेलाइट- GISAT-1 का प्रक्षेपण करेगा. यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से किया जायेगा.

इस प्रक्षेपण में GSLV-F 10 राकेट के माध्यम से GISAT-1 सैटेलाइट को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (भू-समकालीन स्थानांतरण कक्षा- GTO) में स्थापित किया जाएगा. इसके बाद, उपग्रह प्रणोदन प्रणाली का उपयोग करके अंतिम भूस्थिर कक्षा में पहुंच जाएगा. यह GSLV का 14वां उड़ान होगा.

GISAT-1: एक दृष्टि

  • GISAT-1 एक अत्याधुनिक तेजी से धरती का अवलोकन करने वाला उपग्रह है. इसका वजन 2,275 किलोग्राम है.
  • इस GSLV उड़ान में पहली बार चार मीटर व्यास का ओगिव आकार का पेलोड फेयरिंग (हीट शील्ड) प्रवाहित किया जा रहा है.
  • GISAT-1 में इमेजिंग कैमरों की एक विस्तृत श्रंखला है. ये निकट इंफ्रारेड और थर्मल इमेजिंग करने में सक्षम हैं. इन कैमरों में हब्बल दूरदर्शी जैसा 700 एमएम का एक रिची च्रीटियन प्रणाली का टेलीस्कोप का इस्तेमाल किया गया है.
  • इसमें कई हाइ-रिजोल्यूशन कैमरे हैं जो उपग्रह की ऑन-बोर्ड प्रणाली द्वारा ही संचालित होंगे. इसकी एक और खासियत ये है कि ये 50 मीटर से 1.5 किलोमीटर की रिजोल्यूशन में फोटो ले सकता है.

ISRO ने स्कूली छात्रों के लिए यंग साइंटिस्ट प्रोग्राम का दूसरा संस्करण शुरू किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 3 फरवरी को ‘युवा विज्ञानी कार्यक्रम- युविका’ (ISRO Young Scientist Programme) 2020 शुरू किया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य स्कूली छात्रों को अंतरिक्ष की जानकारी और उसकी टेकनोलॉजी की समझ को विकसित करना है.

युविका 2020 के लिए 24 फरवरी, 2020 तक www.isro.gov.in पर आवेदन किए जा सकते हैं. यह कार्यक्रम गर्मियों के छुट्टियों के दौरान दो सप्ताह 11 मई से 22 मई 2020 तक चलेगा.

इसरो का युविका कार्यक्रम 2019 में शुरू किया गया था. 2020 में इस कार्यक्रम का दूसरा संस्करण है. इस कार्यक्रम का मकसद बच्चों को स्पेस टक्नोलॉजी, स्पेस साइंस जैसी चीजों के बारे में जागरूक करना है.

योग्यता

जिन स्टूडेंट्स ने आठवीं की परीक्षा पास कर ली है और नौवीं में पढ़ाई कर रहे हैं, वह इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आवेदन कर सकते हैं. इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सीबीएसई, आईसीएसई और राज्‍य पाठ्यक्रम को मिलाकर हर राज्‍य/केंद्र शासित प्रदेश से तीन विद्यार्थियों का चयन किया जाएगा.

चयन

उम्मीदवारों का चयन ऑनलाइन पंजीकरण के जरिए किया जाएगा. इसके लिए 24 फरवरी तक ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया चलेगी. 8वीं के प्राप्त मार्क्स और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में प्रदर्शन के आधार स्टूडेंट्स का चयन होगा.

ISRO के संचार उपग्रह जीसैट-30 का फ्रेंच गुयाना से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के संचार उपग्रह जीसैट-30 का 17 जनवरी को सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया. यह प्रक्षेपण फ्रेंच गुयाना के कोउरू लांच बेस से ‘एरियन-5’ रॉकेट (अन्तरिक्ष-यान) के माध्यम से किया गया. फ्रेंच गुयाना दक्षिण अमेरिका के उत्तर पूर्वी तट पर फ्रांस के क्षेत्र में स्थित है.

जियोसिनक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में प्रक्षेपित किया गया
प्रक्षेपण में उपग्रह जीसैट-30 को जियोसिनक्रोनस (भूतुल्यकालिक) ट्रांसफर ऑर्बिट में प्रक्षेपित किया गया. आने वाले दिनों में धीरे-धीरे करके चरणबद्ध तरीके से उसे जियोस्टेशनरी (भूस्थिर) कक्षा में भेजा जाएगा. जियोस्टेशनरी कक्षा की ऊंचाई भूमध्य रेखा से करीब 36,000 किलोमीटर होती है. जीसैट-11 को जियोस्टेशनरी कक्षा में 74 डिग्री पूर्वी देशांतर पर रखा जाएगा.

उपग्रह जीसैट-30: एक दृष्टि

  • जीसैट-30 टेलीविजन, दूरसंचार और प्रसारण के लिए गुणवत्‍तापूर्ण सेवाएं उपलब्‍ध कराएगा.
  • 30 वर्ष की मिशन अवधि वाला यह उपग्रह डीटीएच, टेलीविजन अपलिंक और वीसैट सेवाओं के लिए क्रियाशील संचार उपग्रह है.
  • तीन हजार 357 किलोग्राम के इस उपग्रह में 12-सी और 12-केयू बैंड के ट्रांसपोंडर लगे हैं.
  • यह उपग्रह केयू बैंड में भारतीय मुख्य भूमि और द्वीपों को, सी बैंड में खाड़ी देशों, बड़ी संख्या में एशियाई देशों और आस्ट्रेलिया को कवरेज प्रदान करेंगा.
  • यह अपेक्षाकृत अधिक कवरेज के साथ इनसैट-4A का स्‍थान लेगा, जिसकी अवधि समाप्‍त हो रही है.
  • भारत के अलावा ऑस्‍ट्रेलिया, खाड़ी देश, और बड़ी संख्‍या में अन्‍य एशियाई देश भी इसके दायरे में आयेंगे.
  • जीसैट-30 का पेलोड विशेष रूप से इस तरह डिजाइन किया गया है कि ट्रांसपोंडरों की संख्‍या अधिक से अधिक बढ़ाई जा सके.

ISRO मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए कर्णाटक के चल्लकेरे में केंद्र स्थापित करेगा

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मानव मिशन के लिए कर्णाटक के चल्लकेरे (चित्रदुर्गा) में विश्वस्तरीय “मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र” (HSFC) स्थापित करेगा. इस केंद्र में अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण से लेकर मानव मिशन से जुड़ी सभी गतिविधियां संचालित होंगी. ISRO ने इस केंद्र के विकास के लिए 2700 करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार किया है.

यह नया केंद्र योजना के मुताबिक अगले तीन साल में तैयार होगा. इसके तैयार हो जाने के बाद मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम (HSP) से जुड़ी तमाम गतिविधियां चल्लकेरे स्थित केंद्र में स्थानांतरित हो जाएंगी.

ISRO के मौजूदा मानव मिशन “गगनयान” मिशन के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए रूस भेजा जा रहा है लेकिन भविष्य में यहां ऐसी सुविधाएं होंगी कि विदेश जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. दरअसल, विदेशों से सहायता के लिए भारत को भारी-भरकम राशि का भुगतान करना पड़ता है.

क्या है गगनयान मिशन?

गगनयान मिशन के तहत वर्ष 2022 तक तीन अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. इसके लिए चार अंतरिक्ष यात्रियों का चयन किया जा चुका है जिन्हें जनवरी के तीसरे सप्ताह में प्रशिक्षण के लिए रूस भेजा जाएगा. हालांकि, चल्लकेरे केंद्र के तैयार होने में अभी कम से कम तीन साल का समय लगेगा और संभवत: यह केंद्र पहले मानव मिशन के बाद ही अस्तित्व में आ पायेगा.

चल्लकेरे साइंस सिटी: एक दृष्टि

चल्लकेरे साइंस सिटी के उपनाम से मशहूर है. यहां रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO), भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) और इसरो के केंद्र हैं जो लगभग 10 हजार एकड़ क्षेत्र में फैले हैं.

2020 में ISRO की पूरी योजना: गगनयान के लिए 4 अंतरिक्षयात्रियों का चयन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने वर्ष 2020 में ISRO की योजनाओं की घोषणा की है. इसकी घोषणा ISRO प्रमुख डॉक्टर के सिवन ने 1 जनवरी को की.

मिशन गगनयान के लिए 4 अंतरिक्षयात्रियों का चयन

ISRO ने अंतरिक्ष के लिए भारत के पहले मानव मिशन गगनयान के लिए वायुसेना के चार अधिकारियों को चुना है. ये चारों जनवरी के तीसरे सप्ताह से रूस में अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण लेंगे. गगनयान के लिए नैशनल अडवाइजरी कमिटी बनाई गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के अनुरूप गगनयान 2022 में भेजने की योजना है. परीक्षण के तौर पर 2020 में मानव रहित मिशन भेजा जायेगा.

चंद्रयान-3 मिशन को मंजूरी

सरकार ने चन्द्रमा के लिए ISRO के तीसरे मिशन ‘चंद्रयान-3’ को मंजूरी दे दी है. इसका कॉन्फिगरेशन चंद्रयान-2 की तरह ही होगा. इस मिशन में ऑर्बिटर नहीं भेजा जायेगा. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर और रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग कराई जायेगी. इस मिशन पर 250 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.

चन्‍द्रयान-2 के लैंड़र कीट को नियंत्रण में लाने के लिए आवश्‍यक डिजा‍इन न होने की वजह से चन्‍द्रयान लैंडर चन्‍द्रमा की सतह पर ठीक से नहीं उतर पाया था. इससे सीखते हुए चन्‍द्रयान-3 में सुधार लाया जायेगा.

सूरज की किरणों के परीक्षण के लिए आदित्‍य उपग्रह

इस साल 35 से ज्‍यादा उपग्रहों को अंतरिक्ष भेजने की योजना है. इसमें ‘जी-सैट 30’ और ‘आदित्‍या’ प्रमुख हैं. आदित्‍य सेटेलाइट सूरज की किरणों का परीक्षण करेगा, जिससे वातावरण पर होने वाले बदलाव का कारण पता लगाया जायेगा.

तूतीकोरिन में देश का दूसरा स्पेस पोर्ट

देश का दूसरा स्पेस पोर्ट तमिलनाडु के तूतीकोरिन में होगा. इस स्पेस पोर्ट के लिए भूमि अधिग्रहण शुरू कर दिया गया है.

ISRO ने निगरानी उपग्रह ‘कार्टोसैट-3’ सहित अमेरिका के 13 नैनो उपग्रहों का प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 27 नवम्बर को ‘कार्टोसैट-3’ सहित अमेरिका के 13 नैनो उपग्रहों (सैटलाइट्स) का प्रक्षेपण किया. यह प्रक्षेपण PSLV-C47 राकेट के माध्यम से किया गया. यह PSLV-C47 की यह 49वीं उड़ान थी. इस उड़ान में ‘कार्टोसैट-3’ सहित सभी उपग्रहों को उनके कक्षा (ऑर्बिट) में प्रक्षेपित किया गया.

यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के लॉन्च पैड से किया गया. ISRO का इस अंतरिक्ष केंद्र से यह 74वां प्रक्षेपण यान मिशन था. इस प्रक्षेपण में PSLV C47 राकेट ने कार्टोसैट-3 उपग्रह को 509 किलोमीटर के पोलर सन-सिन्क्रनस ऑर्बिट में प्रक्षेपित किया.

कार्टोसैट-3 (Cartosat-3): एक दृष्टि

  • कार्टोसैट-3 धरती की निगरानी और मैप (एडवांस्ड रिमोट सेंसिंग) सैटलाइट है. इसे भारत की आंख भी कहा जा रहा है. यह 509 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की प्रक्रिमा करेगा.
  • ‘कार्टोसैट-3’ कार्टोसैट सीरीज का नौवां सैटलाइट है. इसका भार 1,625 किलोग्राम है. इसका जीवनकाल पांच वर्ष का होगा.
  • यह तीसरी पीढ़ी का बेहद चुस्त और उन्नत असैन्य उपग्रह है जिसमें हाई रेजॉलूशन तस्वीर लेने की क्षमता है.
  • कार्टोसैट-3 का इस्तेमाल 3-डी मैपिंग, आपदा प्रबंधन, खेती, जल प्रबंधन, सीमा सुरक्षा, मौसम और असैन्य जानकारी जुटाने के लिए किया जायेगा.
  • 509 किलोमीटर की ऊंचाई से यह जमीन पर ऐसी दो चीजों में फर्क कर सकता है जिनके बीच की दूरी 25 सेंटिमीटर हो. यही नहीं जमीन से एक फुट ऊंची चीज को भी यह आसानी से पहचान सकता है.

ISRO ने चंद्रयान-2 के संपर्क टूट चुके लैंडर ‘विक्रम’ का पता लगाया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के 8 सितम्बर को ‘चंद्रयान-2’ मिशन के लैंडर ‘विक्रम’ का पता लगा लिया गया. ऑर्बिटर द्वारा भेजी तस्वीर से इसके चंद्रमा की सतह पर मौजूद होने का पता चला. ISRO के वैज्ञानिक लैंडर से सम्पर्क साधने की लगातार कोशिश में हैं.

उल्लेखनीय है कि ISRO द्वारा चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का अभियान 7 सितम्बर को अपनी तय योजना के मुताबिक पूरा नहीं हो पाया था.

लैंडर ‘विक्रम’ को चांद की सतह पर उतारने की प्रक्रिया के दौरान जमीनी स्टेशन से इसका संपर्क टूट गया था. उस समय विक्रम चांद से महज 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर था. ‘चंद्रयान-2’ मिशन के साथ गया ऑर्बिटर पूरी तरह सुरक्षित और सही है. ऑर्बिटर को सफलतापूर्वक चाँद की परिक्रमा के लिए स्थापित किया गया था.

ISRO का चन्‍द्रयान-2 मिशन ज्यादातर उद्देश्यों में कामयाब रहा

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) द्वारा चाँद के अध्ययन के लिए भेजा गया चन्‍द्रयान-2 मिशन अपने ज्यादातर उद्देश्यों में कामयाब रहा है. तकनीकी कारणों से इस मिशन के लैंडर से संपर्क टूटने के कारण यह कुछ उद्देश्यों को छोड़कर सफल रहा.

चन्‍द्रयान-2 के लैंडर ‘विक्रम’ का 7 सितम्बर को चन्‍द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने से कुछ मिनट पहले ही धरती से सम्‍पर्क टूट गया था. ‘विक्रम’ के उतरने की निर्धारित प्रक्रिया से 2.1 किलोमीटर की दूरी रह जाने तक सामान्‍य थी. लैंडर ‘विक्रम’ को 2.30 बजे चंद्रमा पर उतरना था.

इस मिशन का आर्बिटर सफलतापूर्वक चन्द्रमा की सौ किलोमीटर ऊपर कक्षा में भली-भांति कार्य कर रहा है. यह ऑर्बिटर चांद की विकास यात्रा, सतह की संरचना, खनिज और पानी की उपलब्धता आदि के बारे में हमारी समझ को और बेहतर बनाने में मदद करेगा. इसकी उम्र 1 साल की मानी जा रही थी लेकिन वह करीब 7 साल तक सक्रिय रहेगा.

इस ऑर्बिटर में चंद्रमा की सतह की मैपिंग और उसके बाहरी वातावरण के अध्‍ययन के लिए आठ पेलोड लगे हैं. ऑर्बिटर में लगे ये आठ पेलोड्स और उसके कैमरे अब तक के सारे मून मिशन के कैमरों से ज्यादा रिजॉलूशन (0.3m) वाला है.

चन्‍द्रयान-2 मिशन: एक दृष्टि

  • इसरो ने चंद्रयान-2 मिशन को 22 जुलाई, 2019 को स्वदेश निर्मित रॉकेट जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-मार्क III (GSLV MK III) से अंतरिक्ष में भेजा था.
  • चन्‍द्रयान-2 में तीन प्रमुख हिस्से- ऑर्बिटर (वजन 2,379 किलोग्राम), लैंडर विक्रम (1,471 किलोग्राम) और एक रॉवर प्रज्ञान (27 किलोग्राम) है.
  • चंद्रयान-2 मिशन पर 14.1 करोड़ डॉलर (करीब 900 करोड़ रुपये) का खर्च आया जो अमेरिका के ऐतिहासिक अपोलो मून मिशन की लागत का महज एक छोटा सा हिस्सा है.
  • चंद्रयान-2 मिशन के तहत भेजा गया लैंडर ‘विक्रम’ भारत का पहला मिशन था जो स्वदेशी तकनीक की मदद से चंद्रमा पर खोज करने के लिए भेजा गया था. लैंडर का यह नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम ए साराभाई पर दिया गया था.
  • चंद्रयान-2 मिशन में चंद्रमा की सतह पर लैंडर को उतरा जाना था जिसके भीतर रोवर ‘प्रज्ञान’ था. सौर ऊर्जा से चलने वाले प्रज्ञान को उतरने के स्थान से 500 मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर चलने के लिए बनाया गया था.
  • इसरो के पूर्व अध्‍यक्ष जी माधवन नायर ने कहा है कि लैंडर ‘विक्रम’ के चंद्रमा की सतह पर नहीं उतर पाने के बावजूद चंद्रयान-2 ने अपने 95 प्रतिशत उद्देश्‍यों को प्राप्‍त किया है. उन्होंने कहा कि ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में सामान्‍य ढंग से काम कर रहा है. चंद्रयान -2 के कई उद्देश्य थे, जिनमें चंद्रमा की सतह पर उतरना भी शामिल था.
  • चंद्रयान-2 भारत का चंद्रमा पर दूसरा मिशन है. यह 2008 में चाँद पर भेजे गये गए मिशन ‘चंद्रयान-1’ का उन्नत संस्करण है. चंद्रयान-1 मिशन को केवल चन्द्रमा की परिक्रमा करने के लिए भेजा गया था.