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भारतीय सेना ने मध्य प्रदेश में क्वांटम प्रयोगशाला स्थापित की

भारतीय सेना ने मध्य प्रदेश में क्वांटम प्रयोगशाला (Quantum Laboratory) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता केंद्र (AI) की स्थापना की है. इसकी स्थापना राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) के सहयोग से  महू के मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (MCTE) में की गयी है. इसका उपयोग प्रौद्योगिकी के प्रमुख विकासशील क्षेत्र में अनुसंधान एवं प्रशिक्षण के लिए होगा.

भारतीय सेना ने उसी संस्थान में एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) केंद्र भी स्थापित किया है. क्वांटम कंप्यूटिंग प्रयोगशाला और कृत्रिम बुद्धिमत्ता केंद्र (AI) सशस्त्र बलों द्वारा उपयोग के लिए परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों के विकास में व्यापक शोध करेंगे. थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे ने हाल ही में महू की अपनी यात्रा के दौरान इस सुविधा का दौरा किया था.

लखनऊ में रक्षा प्रौद्योगिकी और परीक्षण केंद्र तथा ब्रह्मोस विनिर्माण केंद्र की आधारशिला

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 26 दिसम्बर को लखनऊ में रक्षा प्रौद्योगिकी और परीक्षण केंद्र तथा ब्रह्मोस विनिर्माण केंद्र की आधारशिला रखी. ये केंद्र रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा बनाए जा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारे (UPDIC) में रक्षा और अंतरिक्ष वैमानिकी निर्माण समूहों के तेज विकास के लिए लगभग 22 एकड़ में अपनी तरह का पहला रक्षा प्रौद्योगिकी और परीक्षण केंद्र (DTTC) स्थापित किया जा रहा है.

ब्रह्मोस एयरोस्पेस का यह ब्रह्मोस विनिर्माण केंद्र, UPDIC के लखनऊ नोड में एक अत्याधुनिक सुविधा वाला केंद्र होगा. यहां अगली पीढ़ी के ब्रह्मोस मिसाइल बनाए जाएंगे. यह नया केंद्र अगले दो से तीन वर्षों में बनकर तैयार हो जाएगा. यहां प्रतिवर्ष 80 से 100 ब्रह्मोस-एनजी मिसाइलें बनाई जाएंगी.

भारतीय वायु सेना ने पंजाब सेक्टर में एस-400 वायु रक्षा प्रणाली को तैनात किया

भारतीय वायु सेना ने पंजाब सेक्टर में एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की पहली स्वाड्रन को तैनात किया है. यह वायु रक्षा प्रणाली पाकिस्तान और चीन दोनों से हवाई खतरों से निपटने में सक्षम होगी.

मुख्य बिंदु

  • रूस ने हाल ही में एस-400 वायु रक्षा प्रणाली का पहला स्क्वाड्रन भारत को सौंपा था. भारत ने रूस से पांच S-400 वायु रक्षा प्रणाली की खरीद के लिए लगभग 35,000 करोड़ रुपये में सौदा किया था. यह 400 किमी तक हवाई खतरों से निपटने में सक्षम है.
  •  वायु रक्षा प्रणाली भारत को दक्षिण एशियाई आसमान में मजबूती देगी क्योंकि वे 400 किमी की दूरी से दुश्मन के विमानों और क्रूज मिसाइलों को बाहर निकालने में सक्षम होंगे.
  •  S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली चार अलग-अलग मिसाइलों से लैस है जो दुश्मन के विमानों, बैलिस्टिक मिसाइलों और AWACS विमानों को 400 किमी, 250 किमी, मध्यम दूरी की 120 किमी और कम दूरी की 40 किमी पर मार सकती है.

भारत ने सतह से सतह पर मार करने में सक्षम मिसाइल प्रलय का सफल परीक्षण किया

भारत ने स्‍वदेश विकसित मिसाइल ‘प्रलय’ (Pralay) मिसाइल का 22 दिसम्बर को सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने ओडिसा तट पर डॉक्‍टर एपी अब्‍दुल कलाम द्वीप से इस का परीक्षण किया था.

यह मिसाइल पूरे नियंत्रण और मार्गदर्शन के साथ उच्‍च स्‍तर की सटीकता से निशाना लगाने में सक्षम है. इस मिसाइल के पथ और दिशा में अचानक परिवर्तन करना भी संभव है.

यह सतह से सतह पर मार करने में सक्षम आधुनिक मिसाइल है. इस मिसाइल का विकास रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने किया है. डॉ जी सतीश रेड्डी DRDO के वर्तमान अध्यक्ष हैं.

भारतीय नौसेना ने अत्‍या‍धुनिक विध्‍वंसक पोत मोरमुगांव का समुद्र में परीक्षण किया

भारतीय नौसेना ने देश में बने अत्‍या‍धुनिक विध्‍वंसक पोत मोरमुगांव (Mormugao) का 19 दिसम्बर को पहली बार समुद्र में परीक्षण किया. इसका निर्माण मड्गांव डॉक शिप बिल्‍डर्स लिमिटेड (MDSL) ने किया है. इस पोत का नामकरण गोआ के बंदरगाह शहर के नाम पर किया गया है.

मोरमुगांव का निर्माण सितम्‍बर 2016 में उस समय किया गया था जब मनोहर पर्रिकर रक्षामंत्री थे. भारतीय नौसेना ने INS मोरमुगांव को 2022 के मध्‍य में इसे विधिवत् शुरू करने की योजना बनाई है. मोरमुगाओ दूसरा स्वदेशी स्टेल्थ डिस्ट्रॉयर है, जिसे प्रोजेक्ट P-15B के तहत बनाया गया है. INS विशाखापत्तनम P-15B प्रोजेक्ट के तहत बनाया गया पहला पोत था. इससे पहले चौथी P-75 पनडुब्‍बी INS वेला को भी नौसेना में शामिल किया गया था.

P-15B प्रोजेक्ट

P-15B प्रोजेक्ट के तहत विशाखापत्तनम, मोरमुगाओ, इंफाल और सूरत नामक कुल चार युद्धपोतों की योजना बनाई गई है. इन जहाजों के लिए 2011 में अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे. इन जहाजों को दुनिया भर में सबसे अधिक तकनीकी रूप से उन्नत निर्देशित मिसाइल विध्वंसक में गिना जाता है.

DRDO ने परमाणु क्षमता संपन्न बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-प्राईम का दूसरा सफल परीक्षण किया

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने परमाणु क्षमता संपन्न बैलिस्टिक मिसाइल ‘अग्नि-प्राईम’ (Agni P) का दूसरा सफल परीक्षण 18 दिसम्बर को किया था. यह परीक्षण ओडिशा तट के पास डॉक्टर अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया था.

दूसरे परीक्षण  की सफलता ने इस मिसाइल में प्रयुक्त सभी उन्नत तकनीकों की विश्वसनीयता प्रमाणित कर दी है. परीक्षण के दौरान प्रक्षेपास्त्र का कार्य-निष्पादन अपने पूर्व निर्धारित मार्ग के अनुसार रहा और इसने सटीकता से सभी लक्ष्य पूरे किए.

अग्नि पी (Agni P)

अग्नि-पी ठोस ईंधन से चलने वाला बैलिस्टिक मिसाइल है. यह एक मध्यम दूरी की मिसाइल है, जिसे DRDO ने विकसित किया है. यह अग्नि (मिसाइल) श्रृंखला की छठी मिसाइल है जिसकी मारक क्षमता एक हजार से दो हजार किलोमीटर के बीच है. इसे मोबाइल लांचर के साथ ट्रेन से भी लांच किया जा सकता है.

भारत ने लंबी दूरी की सुपरसोनिक मिसाइल असिस्टेड टॉरपीडो का सफल परीक्षण किया

भारत ने 13 दिसम्बर को लंबी दूरी की सुपरसोनिक मिसाइल असिस्टेड टॉरपीडो (SMART) का सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण ओडिशा के बालासोर तट (अब्दुल कलाम द्वीप) से किया गया था. इस परीक्षण में इसे एक ग्राउंड मोबाइल लॉन्चर से लॉन्च किया गया था.

SMART: मुख्य बिंदु

‘स्मार्ट’ (Supersonic Missile Assisted Torpedo) अगली पीढ़ी का मिसाइल आधारित स्टैंड ऑफ टारपीडो डिलीवरी सिस्टम है. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने भारतीय नौसेना के लिए यह हथियार विकसित किया है. इस प्रणाली को टॉरपीडो की पारंपरिक सीमा से कहीं अधिक पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है.

विस्तारित दूरी वाली पिनाक रॉकेट प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण

भारत ने 8-10 दिसम्बर को पिनाक रॉकेट प्रणाली (पिनाका ईआर) की परीक्षण श्रृंखला सफलतापूर्वक पूरी की थी. यह परीक्षण राजस्थान के पोखरण में आयोजित किया गया था.

इस परीक्षण में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने सेना के साथ फील्ड फायरिंग रेंज में कई बार इन रॉकेट का परीक्षण कर इनके प्रदर्शन का मूल्यांकन किया.

इस दौरान विभिन्न युद्धक क्षमताओं के साथ उन्नत रेंज के पिनाक रॉकेट का अलग-अलग रेंज में परीक्षण किया गया. सभी परीक्षण संतोषजनक रहे.

मुख्य बिंदु

  • इन रॉकेट प्रणालियों का निर्माण रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के बाद एक निजी उद्योग ने किया है.
  • रॉकेट प्रणाली को पुणे स्थित दो DRDO प्रयोगशालाओं – आयुध अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (ARDI) और उच्च ऊर्जा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (HEMRL) द्वारा संयुक्त रूप से डिजाइन किया गया है.
  • पिनाक-I MK रॉकेट सिस्टम की मारक क्षमता लगभग 40 किमी है, जबकि पिनाक II संस्करण 60 किमी की दूरी से लक्ष्य को भेद सकता है. पिनाक-ER (MK -I संस्करण) की सीमा का तत्काल पता नहीं चल पाया है.

स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी INS वेला का मुंबई में नौसेना गोदी में जलावतरण किया गया

स्वदेश निर्मित स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी INS वेला (INS Vela) का 25 नवम्बर को मुंबई में नौसेना गोदी में जलावतरण किया गया. यह प्रोजेक्ट 75 के तहत चौथी स्टेल्थ स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी है.

  • INS वेला का निर्माण मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने फ्रांस के नेवल ग्रुप के सहयोग से किया है. मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने स्कॉर्पिन श्रेणी की छह पनडुब्बियों के निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए फ्रांस के नेवल ग्रुप के साथ समझौता किया था. INS कलवरी, INS खंदेरी और INS करंज के बाद INS वेला इस श्रृंखला की चौथी पनडुब्बी है.
  • INS वेला, डीजल-इलेक्ट्रिक से चलने वाला एक अटैक पनडुब्बी है. इसकी लंबाई 67.5 मीटर और ऊंचाई 12.3 मीटर है जबकि इसकी बीम की लंबाई 6.2 मीटर है.
  • वेला जलमग्न होने पर 20 समुद्री मील की शीर्ष गति तक पहुँच सकता है जबकि इसकी सतह की शीर्ष गति 11 समुद्री मील तक होती है. इसमें पावर के लिए 360 बैटरी सेल के साथ चार MTU 12V 396 SE84 डीजल इंजन शामिल हैं.

INS विशाखापट्टनम को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया

भारती नौसेना में 21 नवंबर को INS विशाखापट्टनम को शामिल कर लिया गया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में मुंबई डॉकयार्ड में इस जंगी जहाज (वारशिप) को नौसेना में शामिल किया गया.

INS विशाखापट्टनम: एक दृष्टि

INS विशाखापट्टनम एक जंगी जहाज है जिसको आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत 75 फीसदी स्वदेशी उपकरणों से बनाया गया है. इसे भारतीय सेना के प्रॉजेक्ट 15B के तहत बनाया गया है. 2015 में पहली बार इसे पानी में उतारा गया था. 164 मीटर लंबाई वाले वारशिप का सभी उपकरणों और हथियारों की तैनाती के बाद वजन 7,400 टन हो गया है. यह एक दिन में 500 नॉटिकल मील से ज्‍यादा की दूरी तय करने में सक्षम है.

INS विशाखापत्तनम डिस्‍ट्रॉयर उन चार स्‍टेल्‍थ डिस्‍ट्रॉयर्स में से एक हैं जो मझगांव डॉक्‍स पर बनाए जा रहे हैं. जनवरी 2011 में इनका कॉन्‍ट्रैक्‍ट दिया गया था. तीन और डिस्‍ट्रॉयर्स- मुरगांव, इम्‍फाल और सूरत अगले कुछ सालों में नौसेना में सौंपे जायेंगे. इन चारों डिस्‍ट्रॉयर में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और इजरायली बराक मिसाइलें लगी होंगी. चारों को तैयार करने में 35,000 करोड़ रुपये से ज्‍यादा की लागत आने वाली है.

रूस ने भारत को एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की आपूर्ति शुरू की

रूस ने भारत को सतह से हवा में मार करने वाली एस-400 मिसाइल वायु रक्षा प्रणाली (एयर डिफेंस सिस्टम) की आपूर्ति शुरू कर दी है. इस सिस्टम की पहली यूनिट को जल्द ही सेना में शामिल किया जा सकता है. भारत से पहले चीन ने भी रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम को खरीदा था.

क्या है वायु रक्षा प्रणाली?

वायु रक्षा प्रणाली (एयर डिफेंस सिस्टम) का काम देश में होने वाले किसी भी संभावित हवाई हमले का पता लगाना और उसे रोकना है. यह तमाम तरह के रेडार और उपग्रहों की मदद से जानकारी जुटाता है. इस जानकारी के आधार पर यह बता सकता है कि लड़ाकू विमान कहां से हमला कर सकते हैं. यह एंटी-मिसाइल दागकर दुश्मन विमानों और मिसाइलों को हवा में ही खत्म कर सकता है.

क्या है S-400 डिफेंस सिस्टम?

S-400 को रूस का सबसे उन्नत लंबी दूरी का सतह से हवा (अडवांस लॉन्ग रेंज सर्फेस-टु-एयर) में मारक क्षमता का मिसाइल डिफेंस सिस्टम माना जाता है. यह दुश्मन के क्रूज, एयरक्राफ्ट और बलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम है. यह सिस्टम रूस के ही S-300 का अपग्रेडेड वर्जन है. इस मिसाइल सिस्टम को रूस की सरकारी कंपनी अल्माज-आंते (Almaz-Antey) ने तैयार किया है.

S-400 के रडार 100 से 300 टारगेट ट्रैक कर सकते हैं. 600 किमी तक की रेंज में ट्रैकिंग कर सकता है. इसमें लगी मिसाइलें 30 किमी ऊंचाई और 400 किमी की दूरी में किसी भी टारगेट को भेद सकती हैं. इससे ज़मीनी ठिकानों को भी निशाना बनाया जा सकता है. एक ही समय में यह 400 किमी तक 36 टारगेट को एक साथ मार सकती है.

चौथी स्कॉर्पीन सबमरीन ‘INS वेला’ भारतीय नौसेना को प्रदान की गई

भारत की चौथी स्कॉर्पीन सबमरीन ‘आईएनएस वेला’ भारतीय नौसेना को प्रदान कर दी गई. इसका निर्माण ‘प्रोजेक्ट-75’ के तहत किया गया है.

प्रमुख बिंदु

  • ‘प्रोजेक्ट-75’ के तहत शामिल स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियाँ ‘डीज़ल-इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम’ द्वारा संचालित होती हैं. स्कॉर्पीन सर्वाधिक परिष्कृत पनडुब्बियों में से एक है, जो एंटी-सरफेस शिप वॉरफेयर, पनडुब्बी रोधी युद्ध, खुफिया जानकारी एकत्र करने, खदान बिछाने और क्षेत्र-विशिष्ट की निगरानी सहित कई मिशनों को पूरा करने में सक्षम है.
  • ‘स्कॉर्पीन’ श्रेणी जुलाई 2000 में रूस से खरीदे गए ‘INS सिंधुशास्त्र’ के बाद लगभग दो दशकों में नौसेना की पहली आधुनिक पारंपरिक पनडुब्बी शृंखला है.
  • प्रोजेक्ट-75 भारतीय नौसेना का एक कार्यक्रम है, जिसमें छह स्कॉर्पीन श्रेणी की ‘अटैक सबमरीन’ का निर्माण किया जाना है. दो पनडुब्बियों- कलवरी और खांदेरी को भारतीय नौसेना में शामिल किया जा चुका गया है. स्कॉर्पीन ‘वागीर’ का परीक्षण चल रहा है. छठी पनडुब्बी- ‘वाग्शीर’ निर्माणाधीन है. कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियों का डिज़ाइन ‘फ्रेंच स्कॉर्पीन श्रेणी’ की पनडुब्बियों पर आधारित है.
  • इसका निर्माण मझगाँव डॉक लिमिटेड (MDL) द्वारा किया जा रहा है. इस पनडुब्बियों के निर्माण के लिए अक्तूबर, 2005 में 3.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किये गये थे. ‘मझगाँव डॉक लिमिटेड’ शिपयार्ड रक्षा मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है.