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लाई चिंग ते ने ताइवान के नए राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली

लाई चिंग ते (Lai Ching-te) ने 20 मई को राजधानी ताइपे में स्थित राष्ट्रपति कार्यालय में ताइवान के नए राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. उन्होंने साई इंग-वेन से पदभार ग्रहण किया. लाई पिछले चार साल से साई इंग-वेन के उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहे थे.

मुख्य बिन्दु

  • 64 वर्षीय लाई ने 20 मई को अपने उद्घाटन भाषण में चीन से अपनी सैन्य धमकी को बंद करने का आग्रह किया. उन्होंने ताइवान स्ट्रेट (जलडमरूमध्य) के दोनों किनारों पर शांति की मांग की.
  • ताइवान के नए राष्ट्रपति के लिए चीन सबसे बड़ी चुनौती है. चीन, लाई चिंग ते को एक अलगाववादी मानती है. बीजिंग की कम्युनिस्ट सरकार लोकतांत्रिक ताइवान को अपना क्षेत्र मानती है और खुलकर कहती रही है कि जरूरत पड़ने पर ताइवान को बल प्रयोग करके नियंत्रण में लाया जाएगा.
  • जनवरी में हुए राष्ट्रपति चुनाव में लाई की जीत के बाद से ही ताइवान को लगातार चीन की ओर से दबाव का सामना करना पड़ रहा है.
  • चीन किसी भी दूसरे देश द्वारा ताइवान को मान्यता देने का कड़ा विरोध करता है और इसे वन चाइना पॉलिसी का उल्लंघन मानता है. बावजूद इसके लाई के शपथ ग्रहण ग्रहण समारोह में जो बाइडन ने पूर्व अमेरिकी अधिकारी को हिस्सा लेने के लिए भेजा था.
  • इसके अलावा जापान, जर्मनी और कनाडा के सांसद और पैराग्वे के राष्ट्रपति सैंटियागो पेना समेत 12 देशों के नेता भी पहुंचे थे, जो ताइवान से औपचारिक राजनयिक संबंध बनाए हुए हैं.

ताइवान और चीन के बीच का इतिहास

  • चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है. 1894 के चीन-जापान युद्ध में चीन की हार के बाद ताइवान द्वीप, जिसे फॉर्मोसा के नाम से भी जाना जाता है, पर जापान ने कब्जा कर लिया था.
  • द्वितीय विश्व युद्ध (1945) में जापान की हार के बाद, ताइवान अमरीका और मित्र पश्चिमी देशों के सहयोग से चीन गणराज्य का हिस्सा बन गया, जिस पर चियांग काई शेक का शासन था.
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चीन में चियांग काई शेक और माओत्से तुंग के नेतृत्व वाले कम्युनिस्टों के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया.
  • माओ की कम्युनिस्ट पार्टी ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमितांग पार्टी) को गृहयुद्ध में हारा दिया जिसके फलस्वरूप चियांग काई शेक और उनके अनुयायी चीन से ताइवान भाग गए.
  • चियांग काई शेक ने ताइवान में चीन गणराज्य की स्थापना की और माओ ने 1949 में मुख्य भूमि चीन में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की.
  • चियांग काई शेक के चीन गणराज्य सरकार ने दावा किया कि वह पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करती है और उसे पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त है. यहाँ तक की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन की सदस्यता ताइवान के पास थी.
  • 1971 में संयुक्त राज्य अमेरिका और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच एक समझौते के बाद, संयुक्त राष्ट्र की सदयस्ता पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को दी गई.

एक चीन नीति

  • चीन एक-चीन नीति का पालन करता है जिसके तहत ताइवान को मान्यता देने वाला कोई भी देश चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित नहीं कर सकता है.
  • चीन की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक ताकत के कारण कई देशों ने ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़कर चीन के साथ संबंध स्थापित कर लिए हैं. वर्तमान में, केवल 12 देश ताइवान को मान्यता देते हैं.
  • चीन ने ताइवान के लिए ‘एक देश, दो प्रणाली’ का सुझाव दिया है. चीन हांगकांग का उदाहरण देता है. हांगकांग 200 वर्षों से अधिक समय तक ब्रिटिश शासन के अधीन था और 1997 में ‘एक देश, दो प्रणाली’ के तहत इसे चीन को वापस सौंप दिया गया था.

अमेरिका – चीन तनाव, अमरीकी संसद की अध्‍यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा

हाल के दिनों में अमेरिका और चीन के बीच संबंध निचले स्तर पर पहुंच गया है. दोनों देशों के बीच तनाव तब चरण पर पहुँच गया जब अमरीकी संसद की अध्‍यक्ष नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) चीन की चेतावनी के बावजूद 2 अगस्त को ताइवान पहुंच गई.

मुख्य घटनाक्रम: एक दृष्टि

  • सुश्री पेलोसी पिछले 25 वर्ष में ताइवान जाने वाली चुनी हुई उच्चस्तरीय अमरीकी अधिकारी हैं. उन्होंने कहा कि उनकी यात्रा से अमरीका की आधिकारिक नीति का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है.
  • उन्होंने ताइवान की राष्‍ट्रपति साइ-इंग-वेन और सांसदों से मुलाकात की. हालांकि, चीन, ताइवान को अलग देश के बजाय अपना अभिन्न अंग मानता है; सुश्री पेलोसी ने ताइवान के प्रति अमरीका की प्रतिबद्धता को दोहराया.
  • नैंसी पेलोसी के चीन की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए ताइवान पहुंचने के बाद चीन ने घोषणा की है कि वह लक्षित सैन्य अभियान शुरू करेगा. अमरीका की रिपब्लिकन पार्टी ने सुश्री पेलोसी की यात्रा का समर्थन किया है.

चीन-ताइवान विवाद क्या है?

  • चीन अपने ‘वन चाइना पॉलिसी’ के तहत ताइवान को अलग देश के बजाय अपना अभिन्न अंग मानता है. दूसरी तरफ ताइवान खुद को एक अलग और संप्रभु राष्ट्र मानता है. चीन नहीं चाहता है कि ताइवान के मुद्दे पर किसी भी तरह का विदेशी दखल हो.
  • ताइवान पहले चीन का हिस्सा था. 1644 के दौरान जब चीन में चिंग वंश का शासन तो ताइवान उसी के हिस्से में था. 1895 में चीन ने ताइवान को जापान को सौंप दिया.
  • 1949 में चीन में गृहयुद्ध हुआ तो माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हरा दिया. इसके बाद कॉमिंगतांग पार्टी ताइवान पहुंच गई और वहां जाकर अपनी सरकार बना ली.
  • दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई तो उसने कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंप दिया. इसके बाद से ताइवान में चुनी हुई सरकार बन रही है. वहां का अपना संविधान भी है.
  • ताइवान का असली नाम रिपब्‍ल‍िक ऑफ चाइना है. वहीं चीन का नाम पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है.

अमेरिका ने ताइवान को 60 करोड़ डॉलर के सशस्त्र ड्रोन बेचने को मंजूरी दी

अमेरिका ने ताइवान को 60 करोड़ डॉलर के सशस्त्र ड्रोन बेचने को मंजूरी दी है. दोनों देशों के बीच हुए समझौते के तहत ताइवान को रिमोट संचालित सशत्र ड्रोन व अन्य उपकरण देने की प्रक्रिया मंजूर की गई है.

इन ड्रोन के मिलने के बाद ताइवान को अपनी सुरक्षा, सैन्य संतुलन और राजनीतिक स्थिरता में मदद मिलेगी. इससे पहले अमेरिकी सरकार ने ताइवान को 237 करोड़ डालर की हार्पून मिसाइल बेचने पर सहमति दी थी. यह मिसाइल बेहद घातक मानी जाती है.

चीन-ताइवान संबंध

अमेरिका, चीन की चेतावनी के बावजूद ताइवान की सैन्य शक्ति को लगातार मजबूत कर रहा है. दरअसल चीन ताइवान को अपना अलग हुआ प्रांत बताकर उस पर अधिकार जताता है, जबकि ताइवान का कहना है कि वह संप्रभु देश है. वर्ष 1949 में गृहयुद्ध के दौरान यह द्वीपीय क्षेत्र चीन से अलग हो गया था. संयुक्त राष्ट्र ने ताइवान को चीन के एक प्रांत के रूप में मान्यता दी है.

ताइवान की राष्‍ट्रपति साई इंग वेन को राष्‍ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज की

ताइवान में 11 जनवरी को हुए चुनाव में राष्ट्रपति साई इंग वेन को विजयी घोषित किया गया है. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवार के मुकाबले 58 फीसद से अधिक मतों से जीत दर्ज की.

ताईवान में पहली बार किसी महिला नेता को दूसरे कार्यकाल के लिए भारी बहुमत से चुना गया है. अपने प्रचार अभियान के दौरान साई ने खुद को लोकतंत्र के समर्थक के तौर पर पेश किया था. चुनाव में चीन के साथ ताइवान के रिश्ते मुख्य मुद्दा रहा था.

63 वर्षीय साई इंग वेन ने जीत के बाद अपने भाषण में आशा व्‍यक्‍त की कि लोकतांत्रिक ताईवान और लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई ताईवान सरकार किसी प्रकार के डराने-धमकाने के आगे नहीं झुकेगी.