अमेरिका, जापान और फिलीपींस की पहली त्रिपक्षीय शिखर बैठक 11 अप्रैल, 2024 को वाशिंगटन डीसी के व्हाइट हाउस में आयोजित की गई थी. सम्मेलन की मेजबानी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने की थी.
मुख्य बिन्दु
बैठक में चीन के साथ बढ़ते क्षेत्रीय विवादों के बीच अपने सहयोगियों, जापान और फिलीपींस का समर्थन करने की संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिबद्धता पर विचार-विमर्श हुआ.
शिखर सम्मेलन से पहले, फिलीपींस, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की समुद्री सेनाओं ने 7 अप्रैल, 2024 को एक संयुक्त समुद्री अभ्यास का आयोजन किया था. यह आयोजन फिलीपींस के विशेष आर्थिक क्षेत्र में किया गया था.
चीन और फिलीपींस के बीच तनाव चीन सागर में स्थित थॉमस शोल पर केंद्रित है. फिलीपींस ने तट पर अपना दावा मजबूत करने के लिए 1999 में एक जहाज, बीआरपी सिएरा माद्रे को रोक दिया, जिससे फिलीपीन के पुन: आपूर्ति मिशनों को अवरुद्ध करने या परेशान करने का प्रयास करने वाले चीनी जहाजों के साथ लगातार झड़पें हुईं.
चीन और जापान के बीच सेनकाकू द्वीप विवाद में 2008 से जापानी क्षेत्रीय जल में चीनी जहाजों द्वारा घुसपैठ शामिल है. संयुक्त राज्य अमेरिका जापान के साथ अपनी रक्षा संधि की पुष्टि करता है, यह दावा करते हुए कि सेनकाकू द्वीप उसके संरक्षण में आता है.
सेनकाकू द्वीप और दूसरा थॉमस शोल दोनों दक्षिण चीन सागर के भीतर स्थित हैं, जो व्यापार के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र है और संभावित रूप से तेल और गैस भंडार से समृद्ध है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-04-17 19:30:142024-04-17 19:30:14अमेरिका, जापान और फिलीपींस की पहली त्रिपक्षीय शिखर बैठक
चीन ने जापान से समुद्री भोजन के सभी आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. चीन के सीमा शुल्क अधिकारियों ने इसकी घोषणा 24 अगस्त को की थी.
मुख्य बिन्दु
तोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी द्वारा फुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र से उपचारित पानी प्रशांत महासागर में छोड़ना शुरू करने के बाद चीन ने ये फैसला किया है.
चीन ने कहा कि इसका उद्देश्य रेडियोधर्मी पानी के निकलने से दूषित भोजन के खतरे को खत्म करना और खाद्य पदार्थ तथा चीन के लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करना है.
चीन, जापान के समुद्री भोजन का सबसे बाद आयातक है. इस प्रतिबंध से जापान के मछली पकड़ने के उद्योग पर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है और इससे द्विपक्षीय संबंधों में और गिरावट आ सकती है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2023-08-24 21:20:552023-08-27 13:02:50चीन ने जापान से समुद्री भोजन के सभी आयात पर प्रतिबंध लगाया
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHRC) ने चीन में मानवाधिकारों पर 31 सितमबर को एक रिपोर्ट जारी की थी.
UNHRC की रिपोर्ट: मुख्य बिन्दु
इस रिपोर्ट के अनुसार चीन के शिनझियांग में वीगर स्वायत क्षेत्र में वीगर और मुख्य रूप से मुस्लिम समुदायों के खिलाफ मानवाधिकारों का गंभीर हनन हुआ है.
रिपोर्ट में कहा कि यातना या बुरे बर्ताव सहित जबरन चिकित्सा उपचार और हिरासत की बेहद खराब स्थितियों के आरोप पूरी तरह सत्य हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने कहा कि वीगर और अन्य लोगों को लम्बे समय तक हिरासत में रखे जाना अंतरराष्ट्रीय अपराध विशेष रूप से मानवता के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में आ सकता है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2022-09-01 21:24:002022-09-01 21:24:00संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने चीन में मानवाधिकारों पर रिपोर्ट जारी की
हाल के दिनों में अमेरिका और चीन के बीच संबंध निचले स्तर पर पहुंच गया है. दोनों देशों के बीच तनाव तब चरण पर पहुँच गया जब अमरीकी संसद की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) चीन की चेतावनी के बावजूद 2 अगस्त को ताइवान पहुंच गई.
मुख्य घटनाक्रम: एक दृष्टि
सुश्री पेलोसी पिछले 25 वर्ष में ताइवान जाने वाली चुनी हुई उच्चस्तरीय अमरीकी अधिकारी हैं. उन्होंने कहा कि उनकी यात्रा से अमरीका की आधिकारिक नीति का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है.
उन्होंने ताइवान की राष्ट्रपति साइ-इंग-वेन और सांसदों से मुलाकात की. हालांकि, चीन, ताइवान को अलग देश के बजाय अपना अभिन्न अंग मानता है; सुश्री पेलोसी ने ताइवान के प्रति अमरीका की प्रतिबद्धता को दोहराया.
नैंसी पेलोसी के चीन की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए ताइवान पहुंचने के बाद चीन ने घोषणा की है कि वह लक्षित सैन्य अभियान शुरू करेगा. अमरीका की रिपब्लिकन पार्टी ने सुश्री पेलोसी की यात्रा का समर्थन किया है.
चीन-ताइवान विवाद क्या है?
चीन अपने ‘वन चाइना पॉलिसी’ के तहत ताइवान को अलग देश के बजाय अपना अभिन्न अंग मानता है. दूसरी तरफ ताइवान खुद को एक अलग और संप्रभु राष्ट्र मानता है. चीन नहीं चाहता है कि ताइवान के मुद्दे पर किसी भी तरह का विदेशी दखल हो.
ताइवान पहले चीन का हिस्सा था. 1644 के दौरान जब चीन में चिंग वंश का शासन तो ताइवान उसी के हिस्से में था. 1895 में चीन ने ताइवान को जापान को सौंप दिया.
1949 में चीन में गृहयुद्ध हुआ तो माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हरा दिया. इसके बाद कॉमिंगतांग पार्टी ताइवान पहुंच गई और वहां जाकर अपनी सरकार बना ली.
दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई तो उसने कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंप दिया. इसके बाद से ताइवान में चुनी हुई सरकार बन रही है. वहां का अपना संविधान भी है.
ताइवान का असली नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना है. वहीं चीन का नाम पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2022-08-03 15:37:352022-08-03 15:41:21अमेरिका – चीन तनाव, अमरीकी संसद की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा
चीन ने 17 जून को अपना तीसरा और सबसे आधुनिक विमानवाहक पोत फुजियान (Fujian) का जलावतरण किया था. इसे शंघाई में एक समारोह में पानी में उतारा गया. इसका नाम फुजियान प्रांत के नाम पर रखा गया है. अब यह निर्धारित समय के अनुसार समुद्री परीक्षण करेगा.
यह चीन का पहला घरेलू निर्मित वाहक है जो विद्युत चुम्बकीय कैटापोल्ट्स का उपयोग करता है. चीन का पहला पूरी तरह से घरेलू रूप से विकसित और निर्मित विमानवाहक पोत है. फ़ुज़ियान में 80,000 टन से अधिक की विस्थापन क्षमता है.
फुजियान चीन का तीसरा विमानवाहक पोत है. चीन का पहला विमानवाहक पोत लियाओनिंग सोवियत युग के जहाज का एक उन्नत रूप है, जिसका जलावतरण 2012 में किया गया था और उसके बाद 2019 में दूसरे विमानवाहक पोत ‘शेडोंग’ का जलावतरण किया गया था. चीन की पांच विमानवाहक पोत बनाने की योजना है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2022-06-20 16:14:482022-06-21 16:25:25चीन ने अत्याधुनिक विमानवाहक पोत फुजियान का जलावारण किया
यूरोपीय संघ (EU) ने चीन के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शिकायत दर्ज की है. यह शिकायत चीन द्वारा लिथुआनिया के साथ व्यापार भेदभाव करने के लिए दर्ज करायी है.
क्या है मामला?
दरअसल, लिथुआनिया ने चीन के साथ कूटनीतिक परंपरा को तोड़ते हुए ताइवान में अपना कार्यालय चीनी ताइपे के बजाय ताइवान नाम से खोला है. ताइपे के विलयुनेस स्थित इस ताइवानी कार्यालय को चीन अपने साथ विश्वासघात के रूप में देखता है. क्योंकि चीन, ताइवान को अलग देश के बजाय अपना अभिन्न अंग मानता है.
प्रतिक्रिया स्वरुप चीन ने लिथुआनिया के राजदूत को बर्खास्त कर दिया है और अपने राजदूत भी वहां से वापस बुला लिया है. इससे पहले लिथुआनिया ने चीन की राजधानी में अपने दूतावास को बंद कर दिया था.
तनाव बढ़ने के बाद चीनी सरकार ने लिथुआनिया पर आयात प्रतिबंध लगा दिया है. इसलिए इस मुद्दे को यूरोपीय संघ अब WTO के समक्ष उठा रहा है. EU का कहना है कि इस बाल्टिक देश के साथ चीन के झगड़े से अन्य देशों का निर्यात भी प्रभावित हो रहा है.
जर्मन और फ्रांसीसी कंपनियां लिथुआनिया के रास्ते चीन को अपना निर्यात भेजती है. ये कंपनियां अब बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई हैं. इस प्रकार, लिथुआनिया को अवरुद्ध करके चीन यूरोपीय संघ के व्यापार पर प्रभाव डाल रहा है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2022-01-31 22:53:572022-01-31 22:53:57चीन-लिथुआनिया विवाद: यूरोपीय संघ ने चीन के खिलाफ WTO में शिकायत दर्ज की
चीन के खिलाफ 10 जनवरी को ऑस्ट्रेलिया और जापान ने एक बड़े रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए. यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के एयरबेस, बंदरगाहों, रसद और बुनियादी सुविधाओं तक गहरी पहुंच की अनुमति देता है. इस डील से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन को साधने में मदद मिलने की संभावना है, क्योंकि चीन बहुत तेजी से अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है.
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और जापान के प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा ने ऑनलाइन एक सम्मेलन में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए. यह अमेरिका के अलावा किसी भी देश के साथ जापान द्वारा हस्ताक्षरित ऐसा पहला रक्षा समझौता है.
मुख्य बिंदु
ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच हुए रक्षा समझौते के कारण दोनों देशों की सेनाएं एक साथ प्रशिक्षण, अभ्यास और संचालन में भी तेजी ला सकती हैं. ऐसे में अगर भविष्य में चीन के साथ कोई युद्ध होता है तो दोनों देश एक साथ मिलकर प्रभावी और तेज जवाबी कार्रवाई भी कर सकते हैं.
इसका उद्देश्य कानूनी बाधाओं को खत्म करना है, ताकि एक देश के सैनिकों को प्रशिक्षण और अन्य उद्देश्यों के लिए दूसरे में प्रवेश करने की अनुमति मिल सके.
इंडो-पैसिफिक में चीन की बढ़ती आक्रामकता से सबसे अधिक खतरा भारत को है. ऐसे में भारत से भी अपेक्षा की जा रही है कि वह दुनिया के बाकी चीन विरोधी देशों के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत करे.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2022-01-11 18:40:362022-01-12 08:59:07चीन के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया-जापान ने एक बड़े रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए
चीन की संसद ने हाल ही में एक नया सीमा कानून पारित किया था. इस कानून का नाम “भूमि सीमा कानून” (Land Boundary Law) है. नया सीमा कानून 1 जनवरी, 2022 से लागू होगा.
इस कानून में अन्य बातों के अलावा यह कहा गया है कि भूमि सीमा मामलों पर चीन दूसरे देशों के साथ किए या संयुक्त रूप से स्वीकार किए समझौतों का पालन करेगा. कानून में सीमावर्ती क्षेत्रों में जिलों का पुनर्गठन करने का भी प्रावधान है.
यह चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के लिए चीन की भूमि सीमाओं के पार किसी भी आक्रमण, अतिक्रमण, घुसपैठ, उकसावे का मुकाबला करने के लिए व्यवस्था करता है.
पडोसी देशों की चिंता
चीनी का यह कानून भारत सहित चीन के सभी पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों पर असर डालेगा. चीन 14 देशों के साथ लगभग 22,000 किलोमीटर की भूमि सीमा साझा करता है, जिसके साथ विवाद उत्पन्न होते रहते हैं.
भारत ने इस नए कानून पर चिंता व्यक्त की है. भारत का मानना है कि इस कानून का सीमा प्रबंधन पर वर्तमान द्विपक्षीय समझौतों और सीमा से जुड़े सम्पूर्ण प्रश्नों पर प्रभाव पड़ सकता है.
भारत चीन के साथ 3,488 किलोमीटर की सीमा साझा करता है, जो अरुणाचल प्रदेश से जम्मू और कश्मीर तक फैली हुई है. भारत के साथ सीमा पूरी तरह से सीमांकित नहीं है और दोनों पक्षों ने समानता पर आधारित विचार विमर्श के आधार पर निष्पक्ष, व्यावहारिक और एक दूसरे को स्वीकार्य समाधान निकालने पर सहमति व्यक्त की है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-10-28 17:51:492021-10-28 17:52:32चीन ने नया सीमा कानून पारित किया, पडोसी देशों की चिंता
हाल ही में प्रकाशित एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार चीन ने अंतरिक्ष से धरती पर हमला करने में सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया है. चीन ने यह परीक्षण अपने लॉन्ग मार्च रॉकेट की मदद से किया था.
इस परीक्षण में परमाणु क्षमता से लैस हाइपरसोनिक मिसाइल को धरती की निचली कक्षा में भेजा, इसके बाद मिसाइल ने पृथ्वी का चक्कर लगाया. फिर मिसाइल ने ध्वनि की पांच गुना से ज्यादा रफ्तार से अपने लक्ष्य को निशाना लगाया.
रिपोर्ट के मुताबिक चीन का यह ताजा सिस्टम अगर काम करने लगता है तो वह धरती पर कहीं भी अचानक से अंतरिक्ष से परमाणु बम गिराने में सक्षम हो जायेगा. यह अंतरिक्ष से धरती के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से पर समान रूप से हमला कर सकती है.
हाइपरसोनिक मिसाइल
हाइपरसोनिक मिसाइलों को आधुनिक ‘ब्रह्मास्त्र’ कहा जाता है. इसकी रफ्तार ध्वनि से 5 गुना ज्यादा होती है. दुनिया में अभी ऐसा कोई एयर डिफेंस सिस्टम नहीं है जो हाइपरसोनिक मिसाइलों को ट्रैक करके उसे रोक पाए. हालांकि रूस का दावा है कि उसका एस-500 एयर डिफेंस सिस्टम हाइपरसोनिक मिसाइलों को मार गिरा सकता है.
अभी तक हाइपरसोनिक मिसाइलों को बनाने की तकनीक अमेरिका, रूस, चीन और भारत के पास है. भारत ने सितम्बर 2020 में इस तकनीक का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था.
भारत के डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) ने ओडिशा के बालासोर में हाइपरसोनिक टेक्नॉलजी डिमॉन्स्ट्रेटर वीइकल (HSTDV) टेस्ट को अंजाम दिया था. इस परीक्षण के बाद भारत के पास अब बिना विदेशी मदद के हाइपरसोनिक मिसाइल विकसित करने की क्षमता हो गई है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-10-18 18:13:562021-10-18 18:37:17चीन ने अंतरिक्ष से धरती पर हमला करने में सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया
चीन का अंतरिक्ष यान ‘शेनझू-13’ तीन अंतरिक्ष यात्रियों को अपने साथ लेकर गया है. इस दल में दो अनुभवी अंतरिक्ष यात्री झाई झिगांग 55 वर्ष व वांग यापिंग 41 शामिल हैं. इसके अलावा एक महिला अंतरिक्ष यात्री ये गुआंगफू भी इस मिशन का हिस्सा हैं.
अंतरिक्ष स्टेशन ‘तियान’ के काम को पूरा करेगा
चीन ने 16 अक्तूबर को शेनझू-13 अन्तरिक्ष मिशन को लांच किया था. चीन अपना खुद का स्पेस स्टेशन ‘तियान’ अंतरिक्ष में स्थापित कर रहा है. इस मिशन का उद्देश्य इस चीनी स्पेस स्टेशन के काम को पूरा करना और अगले छह महीने तक ऑपरेट करना है. नए मिशन के तहत चीन ने शेनझू-13 अंतरिक्ष यान को लांग मार्च-2 से रवाना किया है.
सबसे लंबे समय का रिकॉर्ड
चीन के इस मिशन का उद्देश्य सबसे लंबा समय अंतरिक्ष में बिताने का रिकॉर्ड बनाने का भी है. इससे पहले चीन ने तीन महीने के लिए तीन अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस स्टेशन भेजा था, जो हाल ही में पृथ्वी पर लौटे हैं. इस बार चीन ने छह महीने के लिए इस मिशन को लांच किया है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-10-18 18:06:152021-10-18 18:06:15चीन ने ‘शेनझू-13’ अंतरिक्ष यान से तीन अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष स्टेशन भेजा
चीन की राष्ट्रीय विधायिका नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) ने सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा लायी गयी तीन बच्चों की नीति (Three-Child Policy) का औपचारिक रूप से मंजूरी दे दी है. यह नीति चीन में तेजी से कम होती जन्म दर को रोकने के मकसद से लायी गयी है.
चीन में 1980 के दशक से एक-बच्चे की नीति लागू थी
चीन में 1980 के दशक में राष्ट्रपति डेंग शाओपिंग के शासन में एक-बच्चे की नीति (वन-चाइल्ड पॉलिसी) सख्ती से लागू की गई थी. इसके तहत माता-पिता सिर्फ एक बच्चा ही पैदा कर सकते थे. इन नियमों को तोड़ने वाले माता-पिता और उनके बच्चों से सरकारी सुविधाएं छीन ली जाती थीं. साथ ही उन्हें सरकारी नौकरियों और योजनाओं से भी दूर कर दिया जाता था. चीन ने यह योजना 2015 तक जारी रखी.
2015 में से दो बच्चों की नीति
आबादी में बूढ़ों की संख्या बढ़ने और जन्मदर कम होने के बाद 2015 में इस नीति को बदल कर दो बच्चों की नीति (टू-चाइल्ड पॉलिसी) कर दिया गया. एक सर्वे के अनुसार 2020 में चीन में महज 1.2 करोड़ बच्चे ही पैदा हुए, जो कि 2019 के 1.46 करोड़ बच्चों के आंकड़े से कम था. इसके अलावा चीन में प्रजनन दर भी 1.3 फीसदी पर ठहर गई, जिसने चीन को सबसे कम प्रजनन दर वाले देशों में शामिल कर दिया.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-08-23 18:22:572021-08-23 18:22:57चीन में तीन बच्चे पैदा करने की नीति को मंजूरी दी गयी
चीन ने नई मैग्लेव ट्रेन परिवहन प्रणाली की सार्वजनिक तौर पर शुरुआत की है. यह शुरुआत चीन के तटीय शहर किंगदाओ से हुई है. चीन में द्रुत गति की मैग्लेव ट्रेन परियोजना की शुरुआत अक्टूबर, 2016 में हुई थी. 600 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार की इस ट्रेन का प्रोटोटाइप 2019 में बनाया गया था. इसका सफल परीक्षण जून, 2020 में हुआ था.
मैग्लेव ट्रेन: मुख्य बिंदु
इस ट्रेन की चाल 600 किलोमीटर प्रति है जिसमें 10 डिब्बे लगाए जा सकते हैं. प्रत्येक की क्षमता 100 यात्रियों की होगी.
इस ट्रेन के जरिए बीजिंग से शंघाई पहुंचने में केवल 2.5 घंटे लगेंगे. दोनों शहरों के बीच 1,000 किमी की दूरी है. अभी प्लेन से इसमें 3 घंटे और हाई-स्पीड रेल से 5.5 घंटे लगते हैं.
देश की सबसे तेज स्पीड की ट्रेन मैग्लेव 2003 में चलनी शुरू हो गई थी. इसकी अधिकतम स्पीड 431 किलोमीटर प्रति घंटा है और यह शंघाई पुडोन्ग एयरपोर्ट को शंघाई के पूर्वी सिरे पर लॉन्गयाग रोड से जोड़ती है.
क्या है यह टेक्नोलॉजी
मैग्लेव यानी मैगनेटिक लेविटेशन. इन तेज रफ्तार रेलगाड़ियों में पहिए चाहिए, एक्सल, बियरिंग आदि नहीं होते हैं. परंपरागत ट्रेनों की तरह मैग्लेव रेल के पहिये रेल ट्रैक के संपर्क में नहीं आते हैं.
यह उच्च तापमान सुपरकंडक्टिंग (HTS) पावर पर चलती है जिससे लगता है कि यह चुंबकीय ट्रैक्स पर तैर रही हो. जापान और जर्मनी जैसे देश भी मैग्लेव नेटवर्क बनाने में जुटे हैं.
यह पटरियों के बजाय हवा में चलती है. इस वजह से इसमें ऊर्जा की बहुत कम खपत होती है और परिचालन लागत भी बहुत कम होती है.
भारत में मैग्लेव ट्रेन
भारत में मैग्लेव ट्रेन का के लिए सरकारी इंजीनियरिंग कंपनी बीएचईएल ने स्विटजरलैंड की कंपनी SwissRapide AG के साथ समझौता किया है. SwissRapide AG को Maglev Rail परियोजनाओं में विशेषज्ञता हासिल है. बीएचईएल पिछले पांच दशकों से रेलवे के विकास में साझेदार है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-07-21 19:19:302021-07-21 19:19:30चीन में मैग्लेव ट्रेन परिवहन प्रणाली की सार्वजनिक तौर पर शुरुआत