सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाया

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर 9 नवम्बर को सर्वसम्मति से फैसला सुनाया. कोर्ट ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को रामलला का बताया. न्‍यायालय ने निर्मोही अखाड़े की उस याचिका को नामंजूर कर दिया जिसमें विवादित जमीन पर नियंत्रण की मांग की गई थी.

कोर्ट ने केंद्र सरकार को 3 महीने के भीतर बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज का गठन कर विवादित स्थान को मंदिर निर्माण के लिए देने को कहा. साथ ही कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन दिए जाने का आदेश दिया.

5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया. इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर थे.

अयोध्या भूमि विवाद में मध्‍यथता का प्रयास विफल हो जाने के बाद संविधान पीठ ने इस मामले में 6 अगस्त से रोजाना सुनवाई शुरू की थी. 16 अक्तूबर को न्यायालय ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था.

उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ सुनवाही
2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. उच्‍च न्‍यायालय के निर्णय में कहा गया था कि विवादित भूमि को दावेदारों में बराबर बांट दिया जाना चाहिए. इस विवाद में तीन प्रमुख पक्ष हिन्दू महासभा, निर्मोही अखाडा़ और मुस्लिम वक्फ बोर्ड हैं.

ASI की रिपोर्ट पर फैसला
कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट को आधार मानते हुए कहा कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद किसी खाली स्थान पर नहीं बनाई गई थी. मस्जिद के नीचे विशाल संरचना थी जो इस्‍लामिक संरचना नहीं थी. ASI ने इसे 12वीं सदी का मंदिर बताया था.