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भारत का ऋण-GDP अनुपात 74 प्रतिशत से 90 प्रतिशत हुआ

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में ऋण और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का अनुपात जारी किया है. IMF के अनुसार भारत के मामले में कोविड-19 महामारी से पहले 2019 के अंत में ऋण अनुपात सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 74 प्रतिशत था, और 2020 के अंत में ये बढ़कर जीडीपी का लगभग 90 प्रतिशत हो गया है.

वर्ष 2021 तक भारत के ऋण-GDP अनुपात में स्थिरता आ सकती है. वर्ष 1991 से अब तक भारत का ऋण-GDP अनुपात तकरीबन स्थिर ही रहा है और बीते एक दशक में यह औसतन 70 प्रतिशत दर्ज किया गया है, किंतु इस वर्ष इसमें बढ़ोतरी होने की संभावना है.

ऋण-GDP अनुपात क्या होता है?

ऋण-GDP अनुपात अथवा सार्वजनिक ऋण अनुपात किसी भी देश के सकल घरेलू उत्पाद के साथ ऋण का अनुपात होता है. इस अनुपात का उपयोग किसी देश की ऋण चुकाने की क्षमता का आकलन करने के लिये किया जाता है. अतः जिस देश का ऋण-GDP अनुपात जितना अधिक होता है, उसे अपने सार्वजनिक ऋण को चुकाने में उतनी ही अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

इस प्रकार एक देश का ऋण-GDP अनुपात जितना अधिक बढ़ता है, उसके डिफाॅल्ट (ऋण चुकाने में असमर्थ) होने की संभावना उतनी अधिक हो जाती है. यही कारण है कि सभी देशों की सरकारों द्वारा अपने ऋण-GDP अनुपात को हर स्थिति में कम करने के प्रयास किये जाते हैं.

हालाँकि कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि अपनी स्वयं की मुद्रा छापने में सक्षम संप्रभु देश कभी भी डिफाॅल्ट नहीं हो सकते हैं, क्योंकि वे अधिक-से-अधिक मुद्रा छाप कर अपने ऋण का भुगतान कर सकते हैं. किंतु यह नियम उन देशों पर लागू नहीं होता है जो अपनी स्वयं की मौद्रिक नीति को नियंत्रित नहीं करते हैं, जैसे कि यूरोपीय संघ (EU) में शामिल देश, जिन्हें नई मुद्रा प्राप्त करने के लिये यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ECB) पर निर्भर रहना पड़ता है.

विश्व बैंक द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, लंबी अवधि तक 77 प्रतिशत से अधिक ऋण-GDP अनुपात आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.

ऋण-GDP अनुपात में बढ़ोतरी का कारण

युद्ध, आर्थिक अस्थिरता, आपदा और अशांति की स्थिति में सरकारों के लिये इस अनुपात को स्थिर रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है. इस स्थिति में सरकारें विकास और कुल मांग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अधिक ऋण लेती हैं जिससे उन देशों का ऋण-GDP अनुपात बढ़ता जाता है.

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF): एक दृष्टि

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) 189 देशों का एक संगठन है. इसका गठन वर्ष 1945 में किया गया था. इसका प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करना है.

IMF विश्व में मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देने, वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने, रोज़गार के अवसर सृजित करने, सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और गरीबी को कम करने की दिशा में कार्य करता है.

IMF ने विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट जारी किया

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट (World Economic Outlook Report) 2020 जारी किया था. इस रोपोर्ट के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  • कोरोनावायरस लॉकडाउन के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था 2020 में यह 3% तक संकुचित होगी. ब्रिक्स राष्ट्र के बीच भारत की विकास दर सबसे धीमी होगी. यह चार वर्षों में भारत की सबसे कम वृद्धि है.
  • श्रीलंका के बाद दक्षिण एशिया में COVID-19 महामारी से भारत की अर्थव्यवस्था सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है. 2020 में, भारत में उपभोक्ता मूल्य 9% बढ़ेगा, जबकि 2021 में इसमें 3.7% वृद्धि होगी.
  • 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज आर्थिक सुधार होगा. भारत की GDP 2021 में 8.8% तक बढ़ेगी.
    IMF ने 2020 में एक गहरी वैश्विक मंदी का अनुमान लगाया है. इसने वैश्विक वृद्धि दर के -4.4% रहने का अनुमान लगाया है.

वर्ल्ड इकॉनोमिक आउटलुक रिपोर्ट क्या है?

वर्ल्ड इकॉनोमिक आउटलुक रिपोर्ट IMF द्वारा प्रकाशित की जाती है. इस रिपोर्ट में आर्थिक गतिविधि, रोज़गार मुद्रास्फीति, कीमत, विदेशी मुद्रा और वित्तीय बाज़ार, बाहरी भुगतान, वित्त पोषण तथा ऋण पर वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के विकास का विश्लेषण प्रस्तुत किया जाता है.

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष: एक दृष्टि

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) अपने सदस्य देशों की वैश्विक आर्थिक स्थिति पर नज़र रखने का काम करती है. यह अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय दरों को स्थिर रखने के साथ-साथ विकास को सुगम करने में सहायता करता है.

IMF की स्थापना 1944 में हुई थी. इसका मुख्यालय वाशिंगटन डी सी में है. वर्तमान में इसकी प्रमुख क्रिश्टालीना जार्जीवा हैं. इसके सदस्य देशों की संख्या 189 है. 2016 में नौरु गणराज्य IMF का 189वांँ सदस्य बना था.

एशिया की अर्थव्यवस्था पर IMF का ब्लॉग, 2020 में वृद्धि दर शून्य रहने का अनुमान

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने ‘कोविड-19 महामारी और एशिया-प्रशांत क्षेत्र: 1960 के दशक के बाद की सबसे कम वृद्धि दर’ शीर्षक से एक ब्लॉग प्रकाशित किया है. इस ब्लॉग में कोरोना वायरस महामारी के कारण एशिया-प्रशांत क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि दर पर चर्चा की गयी है.

ब्लॉग के मुख्य बिंदु:

  • इस महामारी का एशिया-प्रशांत क्षेत्र में गंभीर और अप्रत्याशित असर होगा. हालांकि गतिविधियों के संदर्भ में अन्य क्षेत्रों की तुलना में अभी भी एशिया बेहतर स्थिति में है.
  • 2020 में एशिया की वृद्धि दर 0 (शून्य) रहने की आशंका है. शून्य वृद्धि दर करीब 60 साल की सबसे खराब स्थिति होगी. एशिया की आर्थिक वृद्धि दर वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान 4.7 प्रतिशत और एशियाई वित्तीय संकट के दौरान 1.3 प्रतिशत थी.
  • इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में तीन प्रतिशत की गिरावट आने के अनुमान हैं. एशिया के दो बड़े व्यापारिक भागीदार अमेरिका और यूरोप में क्रमश: 6 प्रतिशत और 6.6 प्रतिशत की गिरावट के अनुमान हैं. IMF ने दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के लिए आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान में क्रमश: 3.5 प्रतिशत और 9 प्रतिशत की कटौती की है.
  • एशिया में उत्पादकता में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है. अब भी एशिया क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में बेहतर कर सकता है.
  • इस साल भारत की विकास दर सबसे ज्यादा 1.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है. चीन की आर्थिक वृद्धि दर भी 2019 के 6.1 प्रतिशत से गिरकर 1.2 प्रतिशत पर आ जाने की आशंका है. 2021 में चीन 9.2 फीसदी और भारत 7.4 फीसदी की दर से विकास कर सकता है.

RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को IMF की प्रमुख के बाहरी सलाहकार नियुक्त किया गया

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) की प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा के बाहरी सलाहकार समूह (External Advisory Group) का सदस्य बनाया गया है. राजन सहित 11 अन्य अर्थशास्त्रियों को बाहरी सलाहकार समूह का सदस्य बनाया गया है. ये सलाहकार कोरोना वायरस महामारी के कारण उत्पन्न संकट को लेकर उठाए जाने वाले कदमों समेत दुनियाभर में हो रहे बदलाव तथा नीतिगत मुद्दों पर अपनी राय IMF प्रमुख को देंगे.

राजन सितंबर 2016 तक तीन साल तक RBI के गवर्नर रह चुके हैं. वह अभी शिकागो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. इस समूह में शामिल किए गए अन्य सदस्यों में सिंगापुर के वरिष्ठ मंत्री व सिंगापुर के मौद्रिक प्राधिकरण के चेयरमैन तारमण षणमुगरत्नम, मैसचुएट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की प्रोफेसर क्रिस्टीन फोर्ब्स, आस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रुड, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व डिप्टी महासचिव लॉर्ड मार्क मलोक ब्राउन भी शामिल हैं.

सरकार ने सुरजीत एस भल्ला को आईएमएफ में कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया

सरकार ने अर्थशास्त्री सुरजीत एस भल्ला को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष में भारत की ओर से कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 1 अक्टूबर को मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने उनकी नियुक्ति को मंजूरी दी. उनकी नियुक्ति कार्यभार संभालने की तारीख से तीन साल के लिए की गयी है.

प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री और स्तंभकार सुरजीत भल्ला प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अंशकालिक सदस्य रह चुके हैं. उन्होंने दिसंबर 2018 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

क्रिस्टालिना जॉर्जीएवा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की नई प्रबंध निदेश नियुक्त की गयीं

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने क्रिस्टालिना जॉर्जीएवा को अपना नया प्रबंध निदेशक तथा कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया है. क्रिस्टालिना ने क्रिस्टीन लागार्द का स्थान लिया है. उनकी नियुक्ति 1 अक्टूबर 2019 से प्रभावी होगी. जॉर्जीएवा का चयन IMF के 24 सदस्यीय कार्यकारी बोर्ड ने किया.

बुल्गालिया की जॉर्जीएवा जनवरी 2017 से विश्व बैंक की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) रही हैं. 1 फरवरी 2019 से 8 अप्रैल 2019 तक वह विश्व बैंक समूह की अंतरिम अध्यक्ष रहीं.