केन्द्रीय मंत्री परिषद ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ को मंजूरी दी

केन्द्रीय मंत्री परिषद ने 18 सितम्बर को ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ (One Nation One Election) के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया. इस उच्च स्तरीय समिति का गठन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में किया गया था.

मुख्य बिन्दु

  • एक देश एक चुनाव (ONOE) का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हों. वोटर सांसद और विधायक चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर अपना वोट डाल सकेंगे.
  • देश में लोकसभा के प्रथम आम चुनाव और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित कराये गए थे. यह अभ्यास वर्ष 1957, 1962 और 1967 में आयोजित अगले तीन आम चुनावों में भी जारी रहा.
  • 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं तय समय से पहले भंग कर दी गई थीं. 1970 में लोकसभा भी समय से पहले भंग कर दी गई थी. इस कारण लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे.

रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति का गठन

  • एक देश एक चुनाव की संभावनाओं पर विचार करने के लिए 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था.
  • इस समिति की सिफारिशों को ही केन्द्रीय मंत्री परिषद ने मंजूरी दी है. समिति ने यह रिपोर्ट 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी.
  • इस समिति के अन्य सदस्य थे: हरीश साल्वे, वरिष्ठ अधिवक्ता; अमित शाह, गृह मंत्री; अधीर रंजन चौधरी, कांग्रेस नेता; गुलाम नबी, डीपीए पार्टी; एनके सिंह, वित्त आयोग पूर्व अध्यक्ष; डॉ. सुभाष कश्यप, लोकसभा के पूर्व महासचिव; संजय कोठारी, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त.

समिति के मुख्य सुझाव

  • सभी विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए.
  • पहले चरण में लोकसभा-विधानसभा चुनाव और फिर दूसरे चरण में 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं.
  • चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकाय चुनावों के लिए एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान-पत्र बनाए.

‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ लागू होने के फायदे

  • चुनाव खर्च में कटौती: देश में बार-बार चुनाव कराने पर लॉजिस्टिक्स, सुरक्षा और जनशक्ति समेत कई चीजों पर बहुत पैसा खर्च होता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में अनुमानित कुल खर्च करीब 1.35 लाख करोड़ रुपये थे.
  • राजनीतिक भ्रष्टाचार में कमी: प्रत्येक चुनाव के लिये उल्लेखनीय मात्रा में धन जुटाने की आवश्यकता होती है. इससे व्यापारिक समुदाय पर बार-बार चुनावी चंदा देने का दबाव भी कम हो जाएगा.
  • प्रशासनिक कार्य-क्षमता में वृद्धि: चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू होने से नीति निर्माण और विकास कार्यों में रुकावट आती है. अगर पांच साल में सिर्फ एक बार आचार संहिता लागू होगी तो स्वाभाविक है कि प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी.
  • संसाधनों का बेहतर उपयोग: देश में हर छह माह चुनाव होने पर प्रशासनिक मशीनरी और सुरक्षाबलों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है. एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकता है.
  • सतत विकास में मददगार: बार-बार चुनाव लोकलुभावन नीतियों को बढ़ावा देते हैं. एक साथ चुनाव लंबी अवधि की नीति योजना और सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करने में मददगार साबित होंगे.
  • वोट प्रतिशत में वृद्धि: एक साथ चुनाव होने से मतदाता एक ही समय में कई वोट डाल सकते हैं, जिससे मतदाता भागीदारी में वृद्धि हो सकती है.

एक राष्ट्र एक चुनाव लागू करने में चुनौतियां

  • देश में एक राष्‍ट्र एक चुनाव व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान में कई संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी.
  • संविधान के अनुच्छेद 83(2) और 172 में क्रमशः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये पाँच वर्ष का कार्यकाल निर्दिष्ट किया गया है, यदि समय-पूर्व उनका विघटन नहीं हो जाए.
  • समय-पूर्व विघटन की स्थिति में पुनः चुनाव कराने या राष्ट्रपति शासन लगाने की दुविधा संवैधानिक ढाँचे को जटिल बनाती है.
  • कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बसपा और सपा इसका विरोध कर रहे हैं. क्षेत्रीय दल को डर है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे तो राष्ट्रीय मुद्दे प्रमुख हो जाएंगे और वे स्थानीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठा नहीं पाएंगे.
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