भारत सरकार ने फिलिस्तीन शरणार्थियों के लिए UNRWA को 2.5 मिलियन डॉलर जारी किए
भारत सरकार ने फिलिस्तीन शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (UNRWA) को 2.5 मिलियन डॉलर जारी किए हैं. इस पैसे का उपयोग फिलिस्तीनी शरणार्थियों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सेवाएं प्रदान करने के लिए किया जाएगा. फिलिस्तीन ने आर्थिक मदद के लिए भारत को धन्यवाद दिया है.
मुख्य बिन्दु
- भारत ने वर्ष 2024-2025 के लिए 5 मिलियन अमरीकी डॉलर के अपने वार्षिक योगदान के पहले हिस्से के रूप में 2.5 मिलियन डॉलर जारी किए हैं.
- फ़िलिस्तीनी शरणार्थी वे व्यक्ति और उनके वंशज हैं जिन्होंने 1948 के संघर्ष के दौरान अपने घर से बेघर हो और फ़िलिस्तीन से निर्वासित हो गए थे.
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने 29 नवंबर 1947 को पश्चिम एशिया में फिलिस्तीन राज्य को इज़राइल और फिलिस्तीन के दो संप्रभु देशों में विभाजित करने के लिए एक प्रस्ताव अपनाया. उस समय फ़िलिस्तीन पर अंग्रेज़ों का नियंत्रण था.
- फिलिस्तीन के मूल अरब मुस्लिम निवासी और अन्य अरब देशों ने इजराइल के निर्माण और फिलिस्तीन के विभाजन का विरोध किया.
- 14 मई 1948 को इज़राइल द्वारा अपनी स्वतंत्रता की घोषणा के बाद युद्ध छिड़ गया. पड़ोसी अरब देशों के समर्थन से फ़िलिस्तीनी अरबों ने इज़राइल पर हमला किया लेकिन वे युद्ध हार गए.
- इस युद्ध के दौरान इज़राइल ने फ़िलिस्तीनी राज्य के लिए निर्धारित क्षेत्र के लगभग 77 प्रतिशत क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया.
- अरब फ़िलिस्तीनी आबादी के आधे से अधिक लोगों को इस क्षेत्र से निष्कासित कर दिया गया या वे यहाँ से चले गए.
- 1967 के अरब-इजरायल युद्ध में इज़राइल ने फिर से अरब सेनाओं को हरा दिया और मिस्र की गाजा पट्टी और जॉर्डन के पश्चिमी तट पर कब्जा कर लिया, जहाँ बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी आबादी रहती थी. इस कारण पांच लाख और फ़िलिस्तीनी शरणार्थी बन गए.
- इजरायल के हमलों के बाद करीब 22 लाख लोग गाजा पट्टी में रह रहे हैं, जो 365 वर्ग किमी का क्षेत्र है. ये फिलिस्तीन की आबादी का लगभग 41 फीसदी है. इस आबादी का करीब 66 प्रतिशत हिस्सा शरणार्थी हैं.
- संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद के लिए 1949 में संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (United Nations Relief and Works Agency for Palestine Refugees) की स्थापना की थी. यह पूरी तरह से संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के स्वैच्छिक योगदान से वित्त पोषित है.