राजद्रोह कानून को लेकर विधि आयोग की रिपोर्ट, क्या है राजद्रोह कानून
22वें विधि आयोग ने राजद्रोह कानून को लेकर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 124-A, यानी राजद्रोह कानून को बरकरार रखने की सिफारिश की है. दरअसल, केंद्र ने राजद्रोह कानून को लेकर विधि आयोग से रिपोर्ट मांगी थी.
22वें विधि आयोग की रिपोर्ट: मुख्य बिन्दु
- 22वें विधि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कानून को समाप्त करने की जरूरत नहीं है. कुछ संशोधन करके राजद्रोह कानून को बनाये रखा जा सकता है.
- रिपोर्ट में इस अपराध के तहत दोषी पाए जाने पर न्यूनतम सजा को बढ़ाने की सिफारिश की गई है. इस अपराध के तहत न्यूनतम सजा 3 साल से बढ़ाकर 7 साल की जानी चाहिए.
- आयोग ने सुझाव दिया है कि सीआरपीसी 1973 की धारा-196 (3) के तहत धारा-154 में नया प्रावधान जोड़ा जा सकता है.
- इसके तहत इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी की शुरुआती जांच और सरकार की इजाजत के बाद ही राजद्रोह अपराध के मामलों में एफआईआर दर्ज होनी चाहिए.
राजद्रोह कानून क्या है?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124-A के तहत राजद्रोह एक अपराध है. यह कानून राजद्रोह को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा भारत में संवैधानिक तौर पर गठित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित, सांकेतिक या दृश्य रूप में घृणा, अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयास किया जाता है.
राजद्रोह कानून का इतिहास
- भारत में राजद्रोह कानून का मसौदा साल 1837 में ब्रिटिश राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले ने तैयार किया था. साल 1860 में भारतीय दंड सहिता लागू हुई थी लेकिन इस कानून को शामिल नहीं किया गया. फिर साल 1870 में एक संशोधन के तहत भारतीय दंड सहिता की धारा 124-A (राजद्रोह) को जोड़ा गया.
- स्वतंत्रता के बाद ‘राजद्रोह’ शब्द संविधान से हटा दिया गया और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) ने भाषण और अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता दी गई. हालांकि, भारतीय दंड सहिता (IPC) में धारा 124-A बनी रही.
- 1951 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए संविधान का पहला संशोधन किया. इस संशोधन में सरकार को सशक्त बनाने के लिए अनुच्छेद 19(2) को अधिनियमित किया, जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर ‘उचित प्रतिबंध’ के रूप में अंकुश लगाता है.
- इंदिरा गांधी सरकार के दौरान भारत के इतिहास में पहली बार धारा 124-A को संज्ञेय अपराध बनाया गया. 1974 में नयी सीआरपीसी, 1973 लागू हुई जिससमें राजद्रोह को संज्ञेय अपराध बना दिया गया और पुलिस को बिना वारंट के गिरफ्तारी करने का अधिकार दे दिया गया.
- फिलहाल राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है. इसमें तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. इसके साथ जुर्माना लगाया जा सकता है.