ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम ने AUKUS रक्षा सहयोग संधि की प्रतिबद्धता पर हस्ताक्षर किए
ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने ‘ऑकस’ (AUKUS) रक्षा संधि के लिए 50 साल की प्रतिबद्धता पर हस्ताक्षर किए हैं.
ऑस्ट्रेलिया यूके द्विपक्षीय बैठक
- ऑस्ट्रेलिया के उप-प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्लेस और ऑस्ट्रेलिया की यात्रा पर आए यूके के रक्षा मंत्री जॉन हीली के बीच 27 जुलाई को एक द्विपक्षीय बैठक हुई थी. यह बैठक विक्टोरिया के जिलॉन्ग में आयोजित की गई थी.
- इस बैठक में द्विपक्षीय परमाणु ऊर्जा-संचालित पनडुब्बी (nuclear-powered attack submarines) साझेदारी और सहयोग संधि (जिलॉन्ग संधि) पर हस्ताक्षर किए गए.
- दोनों नेताओं ने एक संयुक्त घोषणा में जिलॉन्ग संधि को AUKUS स्तंभ-1 के तहत अगले 50 वर्षों के यूके-ऑस्ट्रेलियाई द्विपक्षीय रक्षा सहयोग की प्रतिबद्धता बताया.
- संयुक्त घोषणा के अनुसार, जिलॉन्ग संधि उनकी SSN-AUKUS पनडुब्बियों के डिज़ाइन, निर्माण, संचालन, रखरखाव और निपटान पर व्यापक सहयोग को सक्षम बनाएगी. SSN पूरा नाम Submersible Ship Nuclear है.
- AUKUS के तीसरे साझेदार अमेरिका ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है. इस संधि पर हस्ताक्षर ऐसे समय में हुए हैं जब अमेरिका अपनी भूमिका को लेकर झिझक रहा है.
जिलॉन्ग संधि (Geelong Treaty): मुख्य बिन्दु
- ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम परमाणु ऊर्जा-संचालित हमलावर पनडुब्बियों के निर्माण और संचालन का यह समझौता 50 वर्षों की अवधि के लिए वैध है.
- ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम परमाणु ऊर्जा-संचालित हमलावर पनडुब्बियों का निर्माण करेगा. ये पनडुब्बी यूनाइटेड किंगडम में बनाई जाएगी.
- यह पनडुब्बी यूनाइटेड किंगडम की नौसेना में 2030 के दशक तक और ऑस्ट्रेलिया में 2040 के दशक तक सेवा में आ जाएगी.
- यूनाइटेड किंगडम, पनडुब्बियों के संचालन और रखरखाव के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचा विकसित करने में ऑस्ट्रेलिया की सहायता करेगा और ऑस्ट्रेलियाई नौसैनिकों को प्रशिक्षित भी करेगा.
AUKUS क्या है?
- AUKUS का पूरा नाम है Australia, United Kingdom, and United States. यह ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौता है. यह 2021 में हुआ था.
- इसका मुख्य उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा-संचालित पनडुब्बियां प्राप्त करने में मदद करना और तीनों देशों के बीच रक्षा प्रौद्योगिकियों को साझा करना है.
- यह सुरक्षा समझौता हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति का मुकाबला करने के लिए हुआ है.
- यह समझौता तीनों देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने, रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने और उभरती प्रौद्योगिकियों में एक साथ काम करने का एक प्रयास है.
AUKUS के दो स्तंभ हैं
स्तंभ-1: परमाणु ऊर्जा-संचालित पनडुब्बी हमलावर पनडुब्बियों की आपूर्ति
- ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका से तीन से पाँच वर्जीनिया-श्रेणी की परमाणु ऊर्जा-संचालित हमलावर पनडुब्बियाँ खरीदेगा. ये पनडुब्बियाँ अमेरिकी नौसेना में पहले से ही सेवारत हैं.
- ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम की नौसेना के लिए यूनाइटेड किंगडम में एक नई परमाणु ऊर्जा-संचालित हमलावर पनडुब्बी का निर्माण किया जाएगा.
- अमेरिका नई पनडुब्बी के लिए तकनीक प्रदान करेगा, जो ब्रिटिश डिज़ाइन की होगी.
स्तंभ-2: लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइलों के लिए सहयोग
- यह तीनों देशों से लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइलों, समुद्र के भीतर रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित सैन्य क्षमताओं में अपनी उन्नत क्षमताओं पर सहयोग करने का आह्वान करता है.
अमेरिका का रुख
- AUKUS के तीसरे साझेदार अमेरिका ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है. अमेरिका ने इस 239 अरब डॉलर के त्रिपक्षीय समझौते के समीक्षा करने की बात कही है.
- अमेरिका चाहता है कि उसके सहयोगी देश रक्षा साझेदारी में अपना योगदान बढ़ाएँ.
- यदि अमेरिका AUKUS का समर्थन नहीं करता है, तो ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम सरकारों के लिए AUKUS को लागू करना चुनौतीपूर्ण होगा.