भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा रत्नों को 127 साल बाद भारत लाया गया

  • भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष (Sacred Piprahwa Relics) रत्नों को 127 साल बाद भारत लाया गया है. ये अवशेष 1898 में खोजे गए थे, लेकिन औपनिवेशिक काल के दौरान भारत से बाहर चले गए थे.
  • ये रत्न न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के बौद्ध समुदाय के लिए अत्यधिक श्रद्धा और ऐतिहासिक महत्व रखते हैं.‌
  • पिपरहवा रत्नों की वापसी भारत की छवि को एक वैश्विक संरक्षक और बौद्ध मूल्यों जैसे शांति, करुणा व समावेशिता के संवाहक के रूप में और मजबूत करती है.

क्या हैं पिपरहवा अवशेष (Piprahwa Relics)?

  • पिपरहवा अवशेष वो पवित्र वस्तुएं हैं जो वर्ष 1898 में ब्रिटिश अधिकारी विलियम क्लॉक्सटन पेप्पे द्वारा उत्तर प्रदेश के पिपरहवा स्तूप की खुदाई के दौरान प्राप्त हुए थे.
  • इनमें हड्डियों के टुकड़े, क्रिस्टल के पात्र, सोने के आभूषण और अन्य चढ़ावे शामिल थे, जो बौद्ध परंपरा के अनुसार स्तूप में रखे गए थे.
  • ये अवशेष शाक्य वंश द्वारा भगवान बुद्ध के लिए समर्पित किए गए थे जो कि बुद्ध का ही परिवार था.

कैसे हुई वापसी?

  • वर्ष 1899 में अधिकांश पिपरहवा अवशेष कोलकाता के इंडियन म्यूजियम को सौंप दिए गए थे, हालांकि कुछ हिस्से ब्रिटिश अधिकारी पेप्पे के परिवार के पास निजी रूप से रह गए थे.
  • 2025 में ये अवशेष अचानक हांगकांग में सोथबी (Sotheby’s) नीलामी में सामने आए, जिसे देख कर भारत सरकार सतर्क हुई. चूंकि ये अवशेष भारत के कानून के अनुसार प्राचीन धरोहर हैं, इन्हें बेचना या भारत से बाहर ले जाना गैरकानूनी है.
  • भारत इन अवशेषों को ‘AA’ पुरावशेषों के रूप में वर्गीकृत करता है, जिससे उन्हें राष्ट्रीय कानून के तहत उच्चतम स्तर की कानूनी सुरक्षा प्राप्त होती है.
  • भारत के संस्कृति मंत्रालय ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए तुरंत हस्तक्षेप किया. कूटनीतिक और कानूनी प्रयासों से भारत ने नीलामी को रुकवाया और अवशेषों को सुरक्षित वापस लाया गया.